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बुधवार, 3 दिसंबर 2014

विचारधारा


   प्रत्येक युग के अपने विचार और मान्यताएं होते हैं जो उस युग की संसकृति को प्रभावित करते हैं और "युग की विचारधारा" माने जाते हैं। यह एक प्रकार कि प्रचलित सर्वसम्मति होती है जिसे संसार के लोग मानते और निभाते हैं तथा दूसरों पर भी उसे मानने एवं निभाने के लिए दबाव डालते हैं। संसार के लोगों की यह प्रवृत्ति सभी को समाज की प्रचलित मान्यताओं को स्वीकार करने और निभाने के लिए उकसाती रहती है और हमें आत्मिक रीति से जागरूक नहीं रहने देती क्योंकि वह परमेश्वर की अटल एवं स्थिर मान्यताओं तथा निर्देशों के अनुसार नहीं वरन मनुष्यों के चंचल विचारों पर आधारित होती है।

   प्रेरित पौलुस ने इस भ्रष्ट कर देने वाले बहुआयामी वातावरण को "संसार की रीति" कहा। इफिसुस के मसीही विश्वासियों के मसीह यीशु में आने से पूर्व के जीवन के संबंध में उसने लिखा: "और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है" (इफिसियों 2:1-2)। यह "संसार की रीति" संसार द्वारा लाया जाने वाला वह दबाव है जो अलग अलग तरीकों से, समय और परिस्थिति अनुसार, शैतान द्वारा प्रेरित मान्यताओं और विचारों के द्वारा एक ऐसी जीवन शैली प्रचलित करवाना चाहता है जो परमेश्वर और उसके स्थिर निर्देशों से पृथक परन्तु तत्कालीन मनुष्यों के अपने विचारों, अहम, मानकों, प्रयासों और कार्यविधि पर आधारित हो।

   इसीलिए प्रभु यीशु मसीह हम मसीही विश्वासियों के लिए, क्योंकि हम संसार के नहीं हैं, संसार में रहते हुए भी हमें शैतान के दुराचारी प्रभावों से सुरक्षित रहने की प्रार्थना करता है (यूहन्ना 17:14-15)। वह जानता था कि संसार में रहते हुए संसार के प्रभावों से बचे रहना सरल नहीं है, इसलिए उसने हमारी सुरक्षा के लिए हमें कई साधन जुटा कर दिए हैं; वह हमारी सहायता करता है कि हम उसकी ज्योति में चलें (इफिसियों 5:8)। उसने अपना वचन हमें दिया है जिसे अपने अन्दर बसा कर हम संसार के अनुकूल बनने से बचे रहें (रोमियों 12:1-2)। उसने अपना पवित्र आत्मा हममें रहने को दिया है जिससे हम उसके चलाए चलते रहें (गलतियों 5:25), और प्रेम (इफिसियों 5:2), सत्य (3 यूहन्ना 1:4) तथा मसीह यीशु में बने रहें (कुलुस्सियों 2:6)।

   हम जितना परमेश्वर के वचन बाइबल के साथ समय बिताएंगे और परमेश्वर की सामर्थ से उसके निर्देषों के अनुसार चलते रहेंगे, हम संसार की युग तथा समयानुसार बदलते रहने वाली हानिकारक विचारधारा और रीति से बचे रहेंगे तथा परमेश्वर की चिरस्थाई, अपरिवर्तनीय और अनन्तकाल के लिए लाभदायक विचारधारा के अनुसार चलते रहने पाएंगे। - डेनिस फिशर

हम मसीही विश्वासी कुछ समय के लिए ही संसार में हैं इसीलिए हमारी निष्ठा हमारे अनन्त निवास स्थान स्वर्ग के प्रति है।

इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो। - रोमियों 12:1-2 

बाइबल पाठ: इफिसियों 2:1-10
Ephesians 2:1 और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 
Ephesians 2:2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है। 
Ephesians 2:3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्‍वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। 
Ephesians 2:4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से प्रेम किया। 
Ephesians 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है)। 
Ephesians 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्‍वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। 
Ephesians 2:7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। 
Ephesians 2:8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 
Ephesians 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्‍ड करे। 
Ephesians 2:10 क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।

एक साल में बाइबल: 
  • इफिसियों 1-3


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