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शनिवार, 7 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – अनुपम एवं विशिष्ट – 3

 

3. लेखन तथा लेखकों में अनुपम

          जैसे पहले कहा गया है, बाइबल कुल 66 भिन्न पुस्तकों का संकलन है, जो भिन्न समयों पर, भिन्न लोगों द्वारा लिखी गई पुस्तकें हैं; किन्तु जब उन्हें एकत्रित करके साथ रखा गया तो वे सभी पुस्तकें एक पूर्ण पुस्तक बन गईं, जिसके सभी भाग एक-दूसरे के पूरक हैं, उनमें कोई विरोधाभास नहीं है, सभी पुस्तकें एक-दूसरे के लेखों को समर्थित करती हैं, और सभी पुस्तकों की परस्पर सहायता से ही बाइबल की बातें भली-भांति समझी जा सकती हैं। यह तब और भी अद्भुत तथा विलक्षण हो जाता है जब बाइबल के लिखे जाने और लेखकों के बारे में थोड़ा विवरण देखते हैं:

·    बाइबल की पुस्तकें लगभग 1500 वर्ष से अधिक के अंतराल में लिखी गईं।

·    बाइबल की पुस्तकों के 40 से अधिक लेखक थे, जो समय, भौगोलिक स्थान, भाषा, कार्य तथा व्यवसाय, शैक्षिक स्तर, सामाजिक ओहदे, आदि में भिन्न थे। इन विभिन्न लेखकों में से कुछ के उदाहरण देखते हैं:

o   मूसा – एक राजनीतिक अगुवा था, जिसका पालन-पोषण, शिक्षा, प्रशिक्षण मिस्र के राजसी घराने में एक राजकुमार के समान हुआ था।

o   यहोशू – एक सेनापति था।

o   दाऊद – एक चरवाहा युवक था, जो राजा की सेना में सम्मिलित किया गया, उन्नति करते हुए शूरवीर पराक्रमी योद्धा, और फिर इस्राएल का राज्य बना। वह एक कवि, और संगीतज्ञ भी था जिसने न केवल स्तुति के भजन लिखे और संगीत-बद्ध किए, वरन कई संगीत वाद्य  भी बनाए।

o   सुलैमान – राजा तथा परमेश्वर की कृपादृष्टि पाया हुआ दार्शनिक, बुद्धिजीवी, और लेखक था।

o   नहेम्याह – एक गैर-यहूदी राज्य का सेवक था, जिसका कार्य पहले स्वयं चख-परखकर फिर राजा के पीने के लिए उसे पेय का कटोरा पकड़ाना था।

o   एज्रा – एक धर्म-शास्त्री और पवित्र शास्त्र का विद्वान था।  

o   दानिय्येल – एक यहूदी गुलाम युवक, जो बेबीलोन के राजा का सर्वोच्च सलाहकार एवं मंत्री बना।

o   आमोस – एक चरवाहा था।

o   लूका – एक वैद्य और लेखक था।

o   मत्ती – एक चुंगी लेने वाला सरकारी नौकर था।

o   पौलुस – एक धर्म-शास्त्र का विद्वान और धार्मिक अगुवा था।

o   यूहन्ना और पतरस – अनपढ़ साधारण मछुआरे थे।

o   मरकुस – पतरस के लिए लिखने वाले एक सामान्य युवक था।

·    बाइबल की पुस्तकें विभिन्न स्थानों और परिस्थितियों में लिखे गईं:

o   मूसा ने जंगल की यात्रा के दौरान लिखीं

o   यिर्मयाह ने कैदखाने की काल-कोठरी में पड़े हुए लिखी

o   दानिय्येल ने राजमहल में लिखी

o   पौलुस ने बंदीगृह में पड़े हुए लिखीं

o   लूका ने मसीही सेवकाई की यात्रा करते हुए लिखी

o   यूहन्ना ने पतमोस के टापू पर काला-पानी की सजा भोगते हुए लिखी

o   दाऊद ने कुछ युद्ध के समय में लिखी, तो कुछ अन्य अपने जीवन की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में लिखीं।  

o   सुलैमान ने शांति और संपन्नता के समय में लिखी

·    बाइबल की पुस्तकें विभिन्न मनोदशाओं में लिखी गईं:

o   कुछ ने परम-आनंद के भाव में उत्साह के साथ लिखीं

o   कुछ ने घोर निराशा, दुख, और हताश के समयों में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं

o   कुछ ने विश्वास की दृढ़ता में निश्चितता के साथ लिखीं

o   कुछ ने संदेह और असमंजस से जूझते हुए लिखा

·    बाइबल की पुस्तकें तीन भिन्न महाद्वीपों और उनकी संस्कृतियों तथा सामाजिक विचारधाराओं में लिखी गईं। ये तीन महाद्वीप हैं:

o   एशिया

o   अफ्रीका

o   यूरोप

·    बाइबल की पुस्तकें तीन भिन्न भाषाओं में लिखी गईं:

o   इब्री या इब्रानी भाषा – जो यहूदियों की, तथा लगभग सम्पूर्ण पुराने नियम के लिखे जाने की भाषा है।

o   अरामी – जो निकट-पूर्व के देशों – वर्तमान इस्राएल तथा उसके आस-पास के देशों के क्षेत्रों की आम लोगों की भाषा हुआ करती थी; राजा सिकंदर के छठी शताब्दी ईसा-पूर्व में यूनान से संसार के विजय अभियान पर निकले से पहले। पुराने नियम के कुछ भाग, जैसे के दानिय्येल के 2 से 7 अध्याय और एज्रा का अधिकांश 4 अध्याय से लेकर 7 अध्याय तक अरामी भाषा में हैं।

o   यूनानी – यह लगभग सम्पूर्ण नए नियम के लिखे जाने की भाषा है, और प्रभु यीशु मसीह की पृथ्वी के समय की सेवकाई के समय की यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा तथा जन-सामान्य की भाषा थी।

 

          अब थोड़ा ध्यान दीजिए और विचार कीजिए कि हर प्रकार की इतनी अधिक विविधता और भिन्नता होते हुए भी; एक लेखक के दूसरे के बारे में न जानते हुए भी; किसी भी लेखक को यह जानकारी न होते हुए भी के भविष्य में किसी समय पर जाकर पुस्तकें संकलित होंगी; अलग-अलग पृष्ठभूमि, विचार-धारा, संस्कृति, समय, स्थान, और भाषाओं के होते हुए भी, इन लेखकों की पुस्तकों में कोई विरोधाभास नहीं है, कोई असंगत होना नहीं है, सभी पुस्तकें एक-दूसरे की पूरक हैं, सहायक हैं, समर्थक हैं। यदि आज, अभी कोई घटना घटित हो, और उसके प्रत्यक्षदर्शियों से उस घटना का विवरण लिखने को कहा जाए, तो उन लोगों के विवरणों में कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य मिलेगी; कुछ थोड़ा-बहुत विरोधाभास भी अवश्य आएगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का सामान्य निष्कर्ष होता है कि या तो लोगों ने किसी एक के वर्णन को आधार बनाकर उसकी नकल की है; या किसी एक व्यक्ति ने उन सभी से लिखवाया है, जिससे कि समान विचार और सामग्री सभी में देखे जा रहे हैं।

          यही तर्क बाइबल के लेखों के लिए भी लागू होता है। ऊपर दी गए विविधता और भिन्नताओं के कारण ये लेखक एक दूसरी की नकल तो कर नहीं सकते थे; तो फिर उन्हें लिखवाने वाला कोई एक ही होगा - सम्पूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखा गया है। लेखक भिन्न थे, लिखवाने वाला एक ही था। इस पर कुछ और चर्चा हम आते समय में एक अन्य लेख में करेंगे।

          बाइबल के लेखकों और लेखन का अनुपम, अद्भुत इतिहास, उसके परमेश्वर का वचन होने के दावे की पुष्टि करता है।  

 

बाइबल पाठ: रोमियों 1:16-23

रोमियों 1:16 क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिये कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिये, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये उद्धार के निमित परमेश्वर की सामर्थ्य है।

रोमियों 1:17 क्योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा॥

रोमियों 1:18 परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।

रोमियों 1:19 इसलिये कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।

रोमियों 1:20 क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ्य, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।

रोमियों 1:21 इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्‍धेरा हो गया।

रोमियों 1:22 वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।

रोमियों 1:23 और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगने वाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।

 

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 72 -73
  • रोमियों 9:1-15

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