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बुधवार, 29 मई 2013

बढ़ते रहो


   हाल ही की एक यात्रा में मेरी पत्नि को सीट एक ऐसी महिला के साथ मिली जिसका छोटा बेटा पहली बार हवाई यात्रा कर रहा था। अपनी इस पहली हवाई यात्रा का भरपूर आनान्द उठाने को वह बच्चा खिड़की के साथ वली सीट पर बैठ गया था और अपना चेहरा बाहर का नज़ारा देखते रहने के लिए खिड़की से लगा लिया। वायुयान के उड़ान भरते ही वह विसमित होकर ऊँची आवाज़ में बोला, "माँ देखो हम कितने ऊँचे आ गए हैं, नीचे सब कुछ कितना छोटा होता जा रहा है।" फिर थोड़ी देर बाद वह फिर वैसे ही बोल उठा, "क्या नीचे वे बादल हैं? वे हमारे नीचे कैसे आ गए?" समय बीतने के साथ बाकी यात्री या तो कुछ पढ़ने लगे, या ऊँघने लगे या अपने सामने लगे टेलिविज़न स्क्रीन पर वीडियो देखने लगे। लेकिन यह बालक खिड़की से चिपका बैठा रहा और आँखें फाड़े जो दिख सकता था मन्त्रमुग्ध होकर वह देखता रहा, पूरी यात्रा में ऐसे ही उसका कौतहूल बना रहा, उसकी टिप्पणियाँ चलती रहीं।

  मसीही जीवन की यात्रा करने वाले ’अनुभवी’ लोगों के लिए इस यात्रा का कौतुहल खो बैठने का खतरा बना रहता है। परमेश्वर का वचन जो कभी हमें बड़ा रोमांचक लगता था अब जाना-पहचाना और महज़ शैक्षणिक लगने लगता है। हम सुस्त होकर केवल दिमाग़ से ही प्रार्थना करने वाले बन जाते हैं ना कि हृदय से निकलने वाली प्रार्थनाएं करने वाले। ये लक्षण हैं कि हमारी मसीही यात्रा एक औपचारिकता बन गई है, परमेश्वर की अदभुत बातों की खोज की यात्रा नहीं रही - हम एक खतरनाक स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं।

   प्रेरित पतरस ने मसीही अनुयायियों को लिखी अपनी पत्री में उनसे आग्रह किया कि वे अपने विश्वास, सदगुण, ज्ञान, आत्मसंयम, धीरज, भक्ति, भाईचारे की प्रीति और प्रेम में लगातार बढ़ते चले जाएं (2 पतरस 5-7) - किसी एक स्थान पर रुक नहीं जाएं, शिथिल ना पड़ जाएं, वरन आगे, और आगे की ओर चलते जाएं - इसी से वे अपने उद्धारकर्ता और प्रभु, मसीह यीशु के लिए कार्यकारी और फलवन्त होने पाएंगे: "क्योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्‍फल न होने देंगी" (2 पतरस 1:8)। अन्यथा आत्मिक अन्धापन उन्हें घेर लेगा और वे अपने उद्धार पाने को भुला बैठेंगे: "और जिस में ये बातें नहीं, वह अन्‍धा है, और धुन्‍धला देखता है, और अपने पूर्वकाली पापों से धुल कर शुद्ध होने को भूल बैठा है" (2 पतरस 1:9)।

   मसीही जीवन एक स्थान पर पहुँचकर स्थिर होकर बैठ जाने का जीवन नहीं है वरन सारी उम्र परिपक्वता की ओर अग्रसर रहने जीवन है। जब तक जीवन है, प्रत्येक मसीही विश्वासी को मसीह यीशु और उसके वचन को जानने में आगे, और आगे बढ़ते ही रहने के प्रयास में रत रहना है। इस प्रयास के लिए अनिवार्य है हमारे उस आरंभिक कौतहूल का बने रहना। यदि वह कौतहूल ठंडा पड़ गया, यदि परमेश्वर से नित प्रायः कुछ नया प्राप्त करने की जिज्ञासा जाती रही तो आत्मिक अन्धापन और शिथिल जीवन दूर नहीं। प्रभु हम पर अपना अनुग्रह बनाए रखे जिससे अपनी पहली हवाई यात्रा कर रहे उस बालक के समान हम लगातार, अपनी पूरी जीवन यात्रा में कुछ नया देखने और खोजने को लालायित बने रहें। - डेविड मैक्कैसलैंड


मसीह में लगातार बढ़ते जाने के लिए मसीह के वचन की गहराईयों को लगातार खोजते रहना अनिवार्य है।

क्योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्‍फल न होने देंगी। - 2 पतरस 1:8

बाइबल पाठ: 2 पतरस 1:2-11
2 Peter 1:2 परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्‍ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए।
2 Peter 1:3 क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से संबंध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिसने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।
2 Peter 1:4 जिन के द्वारा उसने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूट कर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्‍वभाव के समभागी हो जाओ।
2 Peter 1:5 और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्‍न कर के, अपने विश्वास पर सद्गुण, और सद्गुण पर समझ।
2 Peter 1:6 और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति।
2 Peter 1:7 और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।
2 Peter 1:8 क्योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्‍फल न होने देंगी।
2 Peter 1:9 और जिस में ये बातें नहीं, वह अन्‍धा है, और धुन्‍धला देखता है, और अपने पूर्वकाली पापों से धुल कर शुद्ध होने को भूल बैठा है।
2 Peter 1:10 इस कारण हे भाइयों, अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने का भली भांति यत्‍न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे।
2 Peter 1:11 वरन इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे।

एक साल में बाइबल: 

  • 2 इतिहास 7-9 
  • यूहन्ना 11:1-29



मंगलवार, 28 मई 2013

पहले सुनो फिर करो


   वह खिसियाया हुआ था, क्रोधित था और बार-बार हर बात के लिए, वजह-बेवजह दोषी ठहराए जाने से थक चुका था। साल-दर-साल वह उन्हें एक के बाद एक समस्याओं से निकालता आया था; वह लगातार उनके लिए विनती निवेदन करके उन्हें कोप में पड़कर नाश होने से बचाता आया था। लेकिन बड़े धीरज के साथ इतना सब करने पर भी प्रत्युत्तर में उसे केवल और अधिक दुख ही मिला था। अब फिर वही परिस्थिति एक बार फिर बन गई थी और वह अपने आप को बेवजह इलज़ाम में पड़े हुए पा रहा था। रोष से भड़ककर उसने उन लोगों से कहा: "... हे दंगा करने वालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?" (गिनती 20:10)।

   उसकी यह बात सुनने में असंगत लगती है, लेकिन थी नहीं। लगभग चालीस वर्ष पहले उन लोगों की पिछली पीढ़ी ने भी यही शिकायत करी थी - पानी नहीं है। तब परमेश्वर ने मूसा को एक चट्टान दिखाकर उससे कहा कि अपनी लाठी से वह चट्टान को मारे (निर्गमन 17:6)। जब मूसा ने परमेश्वर के निर्देश के अनुसार किया तो उस चट्टान में से बहुतायत से पानी बह निकला। अब जब वही परिस्थिति उसके सामने फिर से खड़ी थी तो मूसा ने फिर एक बार वही किया जो उसने पहले किया था - चट्टान पर लाठी मारी, लेकिन वह नहीं किया जो उसे करना चाहिए था और जो वह इस्त्राएलियों को करना सिखा रहा था - परमेश्वर की सुनना। इस बार परमेश्वर ने मूसा से चट्टान से पानी देने को कहने के लिए बोला था ना कि उसे मारने के लिए। अपने रोष और खिसियाहट में मूसा परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता कर बैठा; चट्टान से पानी तो अवश्य निकला लेकिन अनाज्ञाकारिता का दण्ड भी मूसा को उठाना पड़ा, चालीस साल की यात्रा और दिक्कतों का सामना करने के बाद भी परमेश्वर ने उसे उस वाचा किए हुए देश में जाने से रोक दिया जिसकी आस लगाए वह इस्त्राएलियों को लिए चल रहा था।

   कई बार थकान, रोष खिसियाहट आदि में हम परमेश्वर की ओर ध्यान नहीं देते हैं; उसकी सुनने की बजाए बस वही करते जाते हैं जो पहले करते आए हैं। हम यह मान लेते हैं कि जो पहले होता था वही अब भी होगा। परमेश्वर जैसे पहले काम करता था वैसे ही अब भी करेगा; लेकिन सदा ही यह नहीं होता। परमेश्वर कभी हम से कार्य करने को कहता है, कभी करने की बजाए कुछ बोलने को कहता है और कभी ना तो कुछ बोलने को और ना ही कुछ करने को वरन केवल धीरज के साथ प्रतीक्षा करने को कहता है। हमारी आशीष और प्रतिफल उसकी सुनकर समझकर उसके बाद निर्देशानुसार ही कार्य करने में है। बिना जाने-सोचे-समझे अपनी ही इच्छानुसार परमेश्वर के नाम से कोई भी कार्य करने या कुछ कहने के अन्जाम अच्छे नहीं होते क्योंकि परमेश्वर को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

   परमेश्वर के लिए कार्य करना है तो पहले उसकी सुनो फिर उसके कहे अनुसार करो। - जूली एकैरमैन लिंक


पहले आज्ञा जानो - फिर आज्ञा मानो।

उस लाठी को ले, और तू अपने भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा कर के उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिये जल निकाल कर मण्डली के लोगों और उनके पशुओं को पिला। - गिनती 20:8 

बाइबल पाठ: गिनती 20:1-13
Numbers 20:1 पहिले महीने में सारी इस्त्राएली मण्डली के लोग सीनै नाम जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहां मरियम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई।
Numbers 20:2 वहां मण्डली के लोगों के लिये पानी न मिला; सो वे मूसा और हारून के विरुद्ध इकट्ठे हुए।
Numbers 20:3 और लोग यह कहकर मूसा से झगड़ने लगे, कि भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के साम्हने मर गए!
Numbers 20:4 और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्यों ले आए हो, कि हम अपने पशुओं समेत यहां मर जाएं?
Numbers 20:5 और तुम ने हम को मिस्र से क्यों निकाल कर इस बुरे स्थान में पहुंचाया है? यहां तो बीज, वा अंजीर, वा दाखलता, वा अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है।
Numbers 20:6 तब मूसा और हारून मण्डली के साम्हने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जा कर अपने मुंह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उन को दिखाई दिया।
Numbers 20:7 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
Numbers 20:8 उस लाठी को ले, और तू अपने भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा कर के उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिये जल निकाल कर मण्डली के लोगों और उनके पशुओं को पिला।
Numbers 20:9 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके साम्हने से लाठी को ले लिया।
Numbers 20:10 और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के साम्हने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उस से कह, हे दंगा करने वालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?
Numbers 20:11 तब मूसा ने हाथ उठा कर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उस में से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपने पशुओं समेत पीने लगे।
Numbers 20:12 परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिये तुम इस मण्डली को उस देश में पहुंचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है।
Numbers 20:13 उस सोते का नाम मरीबा पड़ा, क्योंकि इस्त्राएलियों ने यहोवा से झगड़ा किया था, और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 4-6 
  • यूहन्ना 10:24-42


सोमवार, 27 मई 2013

मार्गदर्शक


   15वीं तथा 16वीं शताबदी में जब बड़ी समुद्री यात्राओं द्वारा संसार की खोज हो रही थी, तो समुद्री जहाज़ों ने कई विषम यात्राएं करीं, खतरनाक तटों से होकर गुज़रे और विशाल समुद्रों को पार किया। इन जहाज़ों के पोतचालक यात्रा में सहायता के लिए विभिन्न नौचालन विधियों का प्रयोग करते थे, जिनमें से एक थी एक विशेष पुस्तक का उपयोग, जिसे ’रटर’ कहते थे। रटर उस ओर से निकलने वाले पूर्व नाविकों और पोतचालकों के अनुभवों, परिस्थितियों, घटनाओं और सामने आई बाधाओं का लिखित विवरण होता था। उन से पहले उस ओर से निकल चुके नाविकों के इस विवरण के सहारे वर्तमान नाविक उन्हीं खतरों से बचने के उपाय करते थे। यह अनेक बातों में उनके लिए बहुत सहायक होता था।

   मसीही विश्वास का जीवन भी सांसारिकता के खतरनाक गहरे समुद्रों से होकर निकलने वाली एक विषम यात्रा के समान ही है और हर मसीही विश्वासी को जीवन की परिस्थितियों से सुरक्षित होकर निकलने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। हम मसीही विश्वासियों को यह मार्गदर्शन मिलता है परमेश्वर के वचन बाइबल से - इस विषम जीवन यात्रा में बाइबल ही हमारा आत्मिक ’रटर’ है जो हमें खतरों से आगाह करता है तथा उनसे पार पाने का मार्ग देता है। अपने बाइबल अध्ययन में जब हम किसी खण्ड पर मनन करते और उसके अर्थ तथा अपने जीवन के लिए उसकी व्यावाहरिकता को समझते हैं, हम साथ ही परमेश्वर की अपने बच्चों के साथ सदा बनी रहने वाली उपस्थिति और सहायता को भी देखते हैं और सीखते हैं कि कैसे वह उन्हें उन कठिन परिस्थितियों से ना केवल सुरक्षित वरन आशीश के साथ भी निकालता लाया है और यह हमारे विश्वास को बढ़ाता है, हमें स्थिरता देता है।

   जीवन की कठिनाईयाँ केवल बाहरी परिस्थितियों और घटनाओं से ही नहीं आतीं; अनेक बार हमारी कठिनाईयाँ पाप करने या उसमें आनन्द लेने की हमारी प्रवृति से भी उपजती हैं। परमेश्वर का वचन बाइबल हमें ना केवल बाहरी परिस्थितियों से आने वाले खतरों में बचाव के लिए मार्गदर्शन देने में सक्षम है, वरन हमारे अन्दर की कमज़ोरियों और प्रवृतियों से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों और खतरों से भी बचने का मार्गदर्शन उतनी ही कुशलता से देता है। इसीलिए बाइबल में एक भजनकार ने लिखा है: "मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे" (भजन 119:133)।

   जब आप बाइबल की शिक्षाओं पर मनन करेंगे, तो साथ ही आपको स्मरण आएगा के कैसे बीते समयों में परमेश्वर ने आपकी देखभाल करी है, आपको सुरक्षित रखा है, आपका मार्गदर्शन किया है। ये बीते अनुभव, और उसके आत्मिक ’रटर’ बाइबल की शिक्षाएं आपके लिए इस बात का भी निश्चय बनेंगे कि परमेश्वर का वही संरक्षण और सुरक्षा आपके लिए आगे भी वैसे ही उपलब्ध रहेगी - हर समय, हर बात के लिए, और ये शिक्षाएं आपको अपने अन्दर की बातों के कारण भी गिरने से बचाती रहेंगी।

   परमेश्वर का कोटि-कोटि धन्यवाद हो उसके इस सहजता से उपलब्ध आत्मिक ’रटर’ के लिए, उसके जीवते सच्चे और खरे वचन के लिए। - डेनिस फिशर


परमेश्वर के वचन के मार्गदर्शन और उसकी पवित्र आत्मा के संरक्षण यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई मसीही विश्वासी भटकेगा नहीं।

जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं। - भजन 119:9, 11 

बाइबल पाठ: भजन 119:129-136
Psalms 119:129 तेरी चितौनियां अनूप हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूं।
Psalms 119:130 तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उस से भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं।
Psalms 119:131 मैं मुंह खोल कर हांफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था।
Psalms 119:132 जैसी तेरी रीति अपने नाम की प्रीति रखने वालों से है, वैसे ही मेरी ओर भी फिर कर मुझ पर अनुग्रह कर।
Psalms 119:133 मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे।
Psalms 119:134 मुझे मनुष्यों के अन्धेर से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपदेशों को मानूंगा।
Psalms 119:135 अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियां मुझे सिखा।
Psalms 119:136 मेरी आंखों से जल की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 1-3 
  • यूहन्ना 10:1-23


रविवार, 26 मई 2013

सांत्वना और विश्वास


   बात 1994 की है, हमें पता पड़ा कि अमेरिका की फुटबॉल टीम वर्ल्ड कप के खेल के लिए हमारे शहर मिशिगन में ही खेलने आ रही थी; अब हमें तो उसे देखने जाना ही था। खेल के दिन हमारा परिवार उस विशाल स्टेडियम में अमेरिका को स्विटज़रलैंड के विरुद्ध खेलते देखने गया; यह हमारे जीवनों की एक अविस्मर्णीय घटना थी। बस एक समस्या थी, हमारे चार बच्चों में से एक, 9 वर्षीय मेलिस्सा हमारे साथ नहीं जा सकी थी और उसकी कमी हमें खल रही थी; हमने खेल और उस माहौल का आनन्द तो लिया, किन्तु मेलिस्सा के बिना वह पूरा नहीं था।

   जब भी मैं उस दिन को याद करता हूँ, मुझे यह भी एहसास होता है कि जैसे उस दिन जीवन के आनन्द में एक कमी थी, आज भी वैसी ही कमी हमारे जीवनों में बनी हुई है, क्योंकि अब मेलिस्सा हमारे साथ नहीं है; उस खेल के 8 वर्ष पश्चात एक कार दुर्घटना में मेलिस्सा का देहांत हो गया। जब कभी परिवार के लोग किसी अवसर पर एकत्रित होते हैं मेलिस्सा की खाली कुर्सी हमारे जीवनों में उसके जाने से बने खाली स्थान को दिखाती है। सब प्रकार की शांति और दया के परमेश्वर (2 कुरिन्थियों 1:3) ने हमें भी अनुग्रह दिया कि हम उसकी कमी से उभर सकें, और आज भी हमारी उदासी के समय में हमें सांत्वना देता है, हमारे आँसू पोंछता है - जो उसके अपनी हर सन्तान से किए गए वायदे की पुष्टि है कि वह हर हमेशा हमारे प्रति विश्वासयोग्य है और हर परिस्थिति में हमें सांत्वना देगा। उसके इसी अनुग्रह और प्रेम ने हमें इस दुख का सामना करने और उस से उभरने की सामर्थ दी है। यही नहीं, अन्य अनेक परिस्थितियों में भी हमने अपने प्रेमी परमेश्वर पिता की निकटता और सांत्वना को अनुभव किया है।

   यदि आप का भी कोई प्रीय जाता रहा है या अन्य कोई भी दुख आप के जीवन में है तो बिना किसी हिचकिचाहट परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर आसरा लें, उससे उसकी सांत्वना को प्राप्त करें। अपने दुख से चिंतित ना हों, परमेश्वर के सामने अपने दुख को स्वीकार करने से हिचकिचाएं नहीं और ना ही लज्जाएं क्योंकि दुखी होना स्वाभाविक है और परमेश्वर इस बात को भली-भाँति जानता और समझता है। जैसे हम सांसारिक माता-पिता अपनी सन्तान को उनके दुख में उन्हें झिड़कते नहीं वरन अपनी गोद या आलिंगन में लेकर उन्हें भरसक सांत्वना देते हैं और दुख निवारण के उपाय करते हैं, हमारा परमेश्वर पिता भी हमसे वैसे ही प्रेम और सांत्वना का व्यवहार करता है - मैंने अपने व्यक्तिगत दुख के अनुभव से यह सीखा है।

   परिस्थिति कोई भी हो परमेशवर सदा विश्वासयोग्य है और उसकी सांत्वना सदा उपलब्ध है। - डेव ब्रैनन


पृथ्वी पर ऐसा कोई दुख नहीं है जिसका आभास स्वर्ग नहीं करता।

हंसी के समय भी मन उदास होता है, और आनन्द के अन्त में शोक होता है। - नीतिवचन 14:13 

बाइबल पाठ: 2 कुरिन्थियों 1:3-11
2 Corinthians 1:3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्‍ति का परमेश्वर है।
2 Corinthians 1:4 वह हमारे सब क्‍लेशों में शान्‍ति देता है; ताकि हम उस शान्‍ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्‍ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्‍लेश में हों।
2 Corinthians 1:5 क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्‍ति भी मसीह के द्वारा अधिक होती है।
2 Corinthians 1:6 यदि हम क्‍लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्‍ति और उद्धार के लिये है और यदि शान्‍ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्‍ति के लिये है; जिस के प्रभाव से तुम धीरज के साथ उन क्‍लेशों को सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं।
2 Corinthians 1:7 और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखों के वैसे ही शान्‍ति के भी सहभागी हो।
2 Corinthians 1:8 हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्‍लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे।
2 Corinthians 1:9 वरन हम ने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, वरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है।
2 Corinthians 1:10 उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।
2 Corinthians 1:11 और तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे, कि जो वरदान बहुतों के द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 28-29 
  • यूहन्ना 9:24-41



शनिवार, 25 मई 2013

वास्तविक पुरस्कार


   मेरे बच्चों के जीवन पर मेरी पत्नि के गहरे प्रभाव से मैं बहुत प्रभावित हूँ। मातृत्व के समान शायद ही कोई अन्य जिम्मेदारी होगी जो बिना किसी शर्त या प्रतिफल की आशा रखे, सभी कष्ट सहते हुए भी इतनी लगन, धीरज और सहिष्णुता के साथ निर्वाह की माँग करती हो। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूँ कि मेरा चरित्र और मेरा मसीही विश्वास मेरी माँ के द्वारा ही स्थापित और स्वरूपित किया गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि अच्छी माताएं और पत्नियाँ ना होतीं तो संसार में अच्छे इन्सान भी ना होते।

   इस बात से मुझे खेल इतिहास की एक मार्मिक घटना स्मरण आती है। सन 2010 की मास्टर्स गोल्फ टूर्नमेंट में फिल मिकल्सन गोल्फ के सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार को तीसरी बार जीतने के लिए खेल रहे थे, और उन्होंने वह स्पर्धा जीत भी ली। लेकिन उस जीत की जो याद मेरे मन में बस गई वह जीतने वाला शॉट लगाने के बाद आनन्द के साथ लगाई गई उनकी छलांग नहीं वरन तुरंत ही देखने वालों की भीड़ में उपस्थित उनका अपनी पत्नि के पास जाना और उसे देर तक अपने आलिंगन में लिए रखना था - उनकी पत्नि उस समय जानलेवा कैंसर से जूझ रही थीं। टेलिविज़न कैमरा द्वारा यह पल कैद कर लिया गया और कैमरे के माध्यम से हम फिल के गाल पर बहकर आए आँसू को भी देख सके।

   मसीही विश्वास में मसीह यीशु की कलीसिया अर्थात मण्डली को उसकी दुल्हन कह कर भी संबोधित किया गया है और पति-पत्नि के आपसी प्रेम और समर्पण के द्वारा मसीह यीशु के अपनी मण्डली के प्रति प्रेम को भी दर्शाया गया है। इसी संदर्भ में परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रेरित पौलुस की लिखी एक पत्री में कहा गया है: "हे पतियों, अपनी अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम कर के अपने आप को उसके लिये दे दिया" (इफिसीयों 5:25)। हम पति-पत्नियों को आपस में ऐसे ही प्रेम को दिखाना है जैसा हमारे उद्धारकर्ता और प्रेमी प्रभु यीशु ने हमारे प्रति दिखाया है।

   पुरस्कार तो आते-जाते रहेंगे, लेकिन वास्तविक पुरस्कार है वह प्रेम है जो हम एक दुसरे के प्रति ना केवल रखते हैं वरन प्रदर्शित करते हैं जैसे हमारे प्रभु यीशु ने हमारे प्रति रखा और प्रदर्शित किया। - जो स्टोवैल


जीवन जीते गए पुरस्कारों से नहीं जीते गए दिलों से बनता है।

हे पतियों, अपनी अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम कर के अपने आप को उसके लिये दे दिया। - इफिसीयों 5:25

बाइबल पाठ: इफिसीयों 5:22-33
Ephesians 5:22 हे पत्‍नियों, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के।
Ephesians 5:23 क्योंकि पति पत्‍नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है।
Ephesians 5:24 पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्‍नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें।
Ephesians 5:25 हे पतियों, अपनी अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम कर के अपने आप को उसके लिये दे दिया।
Ephesians 5:26 कि उसको वचन के द्वारा जल के स्‍नान से शुद्ध कर के पवित्र बनाए।
Ephesians 5:27 और उसे एक ऐसी तेजस्‍वी कलीसिया बना कर अपने पास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्तु हो, वरन पवित्र और निर्दोष हो।
Ephesians 5:28 इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखें। जो अपनी पत्‍नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है।
Ephesians 5:29 क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है
Ephesians 5:30 इसलिये कि हम उस की देह के अंग हैं।
Ephesians 5:31 इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।
Ephesians 5:32 यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूं।
Ephesians 5:33 पर तुम में से हर एक अपनी पत्‍नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्‍नी भी अपने पति का भय माने।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 25-27 
  • यूहन्ना 9:1-23


शुक्रवार, 24 मई 2013

चिन्ता से मुक्त


   एक रेडियों साक्षात्कार में एक बास्केटबॉल के उत्कृष्ठ खिलाड़ी से निर्णायक और जटिल परिस्थितियों में उसकी खेल जिताने वाले अंक बना लेने के कौशल के बारे में प्रश्न किया गया। प्रश्नकर्ता ने उससे जानना चाहा कि इन तनावपूर्ण स्थितियों में वह अपने आप को शांत कैसे रखता है। उस खिलाड़ी का उत्तर था उस परिस्थिति को अपने लिए सरल बना लेने के द्वारा; वह अपने आप से कहता था कि बस एक यही शॉट ही तो खेलना है, केवल एक शॉट। वह ना तो अपनी टीम और ना ही अपने प्रशिक्षक की उससे लगी आशाओं के बारे में सोचता था, बस उस अवसर पर जो सामने है अपना पूरा ध्यान लगा देता था। जो सामने है, जो विद्यमान है बस उसी की ओर ध्यान लगाना उसके लिए स्थिति को सरल और तनावरहित कर देता था।

   इस प्रकार से केवल वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करके अपने लिए स्थिति को सरल करना कोई नई बात नहीं है। जीवन की जटिल और अभिभूत कर देने वाली समस्याओं पर विजयी होने के लिए प्रभु यीशु ने भी अपने चेलों को यही मार्ग दिया था। उन्हों ने चेलों को सिखाया कि भविष्य की चिन्ता छोड़कर केवल वर्तमान पर ध्यान लगाएं: "इसलिये तुम चिन्‍ता कर के यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? सो कल के लिये चिन्‍ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्‍ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुख बहुत है" (मत्ती 6:31,34)। 

   चिन्ता की दुर्बल कर देने वाली सामर्थ पर विजयी होने के लिए प्रभु यीशु की यह शिक्षा थी। चिन्ता करने से हम कुछ सकारात्मक अर्जित नहीं कर पाते हैं; बस अपनी समस्याओं में विवश होकर डूबते चले जाने की भावना को बढ़ावा ही देते हैं। चिन्ता के फन्दे से बाहर निकलना है तो परमेश्वर पर भरोसा रखें; परमेश्वर के संसाधनों और आपूर्ति की क्षमता पर विश्वास रखें और समस्या को परमेश्वर के हाथों में समर्पित करें, उससे समस्या का सामना करने की सामर्थ और समझ माँगें और फिर समस्या को पूरा का पूरा अपने सामने रखने की बजाए, उसे उसके भागों में विभाजित करके बारी बारी एक एक भाग का हल परमेश्वर द्वारा दी गई सामर्थ और समझ के द्वारा निकालते जाएं। परमेश्वर पर भरोसा रखकर और उसके दिखाए मार्ग पर कदम कदम चलकर ही आप चिन्ता से मुक्त और जयवन्त जीवन व्यतीत कर सकते हैं। - बिल क्राउडर


भविष्य की चिन्ता वर्तमान के आनन्द को भी नष्ट कर देती है।

सो कल के लिये चिन्‍ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्‍ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुख बहुत है। - मत्ती 6:34

बाइबल पाठ: मत्ती 6:25-34
Matthew 6:25 इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्‍ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे? क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्‍त्र से बढ़कर नहीं?
Matthew 6:26 आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तौभी तुम्हारा स्‍वर्गीय पिता उन को खिलाता है; क्या तुम उन से अधिक मूल्य नहीं रखते।
Matthew 6:27 तुम में कौन है, जो चिन्‍ता कर के अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है
Matthew 6:28 और वस्‍त्र के लिये क्यों चिन्‍ता करते हो? जंगली सोसनों पर ध्यान करो, कि वै कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न कातते हैं।
Matthew 6:29 तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उन में से किसी के समान वस्‍त्र पहिने हुए न था।
Matthew 6:30 इसलिये जब परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्‍त्र पहिनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्योंकर न पहिनाएगा?
Matthew 6:31 इसलिये तुम चिन्‍ता कर के यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे?
Matthew 6:32 क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्‍तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्‍वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिएं।
Matthew 6:33 इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।
Matthew 6:34 सो कल के लिये चिन्‍ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्‍ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुख बहुत है।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 22-24 
  • यूहन्ना 8:28-59



गुरुवार, 23 मई 2013

निर्भर


   हमारे परिवार में एक नए शिशु का आगमन हुआ और मैं उस शिशु और उस परिवार के लोगों के लिए आनन्दित तथा धन्यवादी थी। उस शिशु की देखभाल होते देख मुझे स्मरण हो आया कि नवजात शिशु की देखभाल करना कितनी लगन और मेहनत का कार्य है और एक माँ बिना अपनी कुछ भी परवाह किया कितने आनन्द के साथ उसकी देखभाल करती है, उसके लिए कष्ट उठाती रहती है। यह छोटी सी सृष्टि अपनी देखभाल ज़रा भी नहीं कर पाती और उसका पेट भरा रखने, उसे कपड़े पहनाए और गर्म रखने, उसकी साफ-सफाई करने आदि सभी कार्यों के लिए वह अपने आस-पास के व्यसक और अनुभवी लोगों पर पूर्णतया निर्भर है। यदि यह देखभाल उपलब्ध ना हो तो उसका जीवित रह पाना भी संभव नहीं होगा।

   कुछ यही दशा संसार में रहकर संसार को परमेश्वर के जीवन को दिखाने के लिए हम मसीही विश्वासीयों की भी है - परमेश्वर पिता पर पूरी तरह से निर्भर। हम उसी में जीवित रहते और चलते फिरते हैं (प्रेरितों 17:28); हमारा जीवन और हमारी हर श्वास उसी की दी हुई है (प्रेरितों 17:25); वह ही हमारी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है (फिलिप्पियों 4:19)। 

   हमें अपने स्वर्गीय प्रेमी पिता परमेश्वर कि आवश्यकता रहती है:
  • परेशानियों में शांति के लिए (यूहन्ना 16:33)
  • प्रेम के लिए (1 यूहन्ना 3:1)
  • आवश्यकताओं में सहायता के लिए (भजन 46:1; इब्रानियों 4:16)
  • परीक्षा और प्रलोभनों पर विजय के लिए (1 कुरिन्थियों 10:13)
  • अपराधों की क्षमा के लिए (1 यूहन्ना 1:9)
  • उद्देश्यों की पूर्ति के लिए (यर्मियाह 29:11)
  • अनन्त जीवन के लिए (यूहन्ना 10:28)


   बिना परमेश्वर की सहायता के हम कुछ नहीं कर सकते (यूहन्ना 15:5); उससे ही हमने बार बार अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्त किया है और करते रहते हैं (यूहन्ना 1:16)।

   यदि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार और परमेश्वर को भावता हुआ, उसे प्रसन्न करने वाला जीवन व्यतीत करना है तो कभी अपने या अपनी योग्यताओं और क्षमताओं, अपनी बल-बुद्धि-ज्ञान पर भरोसा ना करें। परमेश्वर पिता पर पूरी तरह से निर्भर और समर्पित रहें, और वह दिन प्रति दिन आपकी हर आवश्यकता को पूरा करता रहेगा, एक नवजात शिशु के समान आपको संभाले रहेगा, आपकी देख-भाल और सुरक्षा करता रहेगा और आपको अपने लिए उपयोगी तथा कार्यकारी बनाए रखेगा और इस पृथ्वी पर भी तथा अनन्त जीवन में भी अपनी आशीषों से परिपूर्ण करता रहेगा।  - ऐनी सेटास


परमेश्वर पर निर्भर रहना दुर्बलता नहीं वरन उसकी सामर्थ को अपने में प्रवाहित और कार्यकारी होने देने का माध्यम है।

न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्‍वास और सब कुछ देता है। - प्रेरितों 17:25

बाइबल पाठ: 1 यूहन्ना 2:24-3:3
1 John 2:24 जो कुछ तुम ने आरंभ से सुना है वही तुम में बना रहे: जो तुम ने आरंभ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे, तो तुम भी पुत्र में, और पिता में बने रहोगे।
1 John 2:25 और जिस की उसने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है।
1 John 2:26 मैं ने ये बातें तुम्हें उन के विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं।
1 John 2:27 और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उस की ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इस का प्रयोजन नहीं, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन जैसे वह अभिषेक जो उस की ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह सच्चा है, और झूठा नहीं: और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उस में बने रहते हो।
1 John 2:28 निदान, हे बालकों, उस में बने रहो; कि जब वह प्रगट हो, तो हमें हियाव हो, और हम उसके आने पर उसके साम्हने लज्ज़ित न हों।
1 John 2:29 यदि तुम जानते हो, कि वह धार्मिक है, तो यह भी जानते हो, कि जो कोई धर्म का काम करता है, वह उस से जन्मा है।
1 John 3:1 देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएं, और हम हैं भी: इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उसने उसे भी नहीं जाना।
1 John 3:2 हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है।
1 John 3:3 और जो कोई उस पर यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है, जैसा वह पवित्र है।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 19-21 
  • यूहन्ना 8:1-27