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सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (6)

 

उपदेशक / शिक्षक


पिछले कुछ लेखों में हम इफिसियों 4:11 से देखते आ रहे हैं कि प्रभु ने अपनी कलीसिया के कार्यों के लिए, कलीसिया में कुछ कार्यकर्ताओं, कुछ सेवकों को नियुक्त किया है। मूल यूनानी भाषा में इन सेवकों और उनकी सेवकाई के संबंध में प्रयोग किए गए शब्द दिखाते हैं कि ये सेवकाइयां कलीसिया में परमेश्वर के वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। आज हम इफिसियों 4:11 में दी गई सूची में प्रभु यीशु द्वारा नियुक्त किए जाने वाले, प्रभु यीशु की कलीसिया के पाँचवें कार्यकर्ता, उपदेशक, के बारे में देखेंगे। मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “उपदेशक” किया गया है, उसका शब्दार्थ है “शिक्षक” या “वचन की शिक्षा देने वाले”। परमेश्वर के वचन बाइबल की बातों और शिक्षाओं का प्रचार करने में, और उनके आधार पर कोई संदेश देने में, और वचन को सिखाने में अंतर है; प्रचार करना और शिक्षा देना भिन्न सेवकाइयां हैं, जैसा 1 कुरिन्थियों 12:28-29 से भी पता चलता है। प्रभु यीशु की पृथ्वी की सेवकाई के दिनों में यहूदी धर्म के अगुवे उन्हें परमेश्वर की ओर से भेजा गया एक शिक्षक मानते थे (यूहन्ना 3:2); अनन्त जीवन पाने की लालसा रखने वाले धनी जवान ने भी प्रभु को “उत्तम गुरु/शिक्षक” कहकर संबोधित किया (मरकुस 10:17); और सुसमाचारों में अनेकों स्थानों पर लोग, विशेषकर यहूदी अगुवे प्रभु को “रब्बी”, जिसका अर्थ होता है शिक्षक, कहकर संबोधित किया करते थे। प्रभु यीशु के लिए यह संबोधन उचित और सही भी था, क्योंकि प्रभु लोगों को सिखाता था (मत्ती 13:54; मरकुस 1:21; 2:13), परमेश्वर के राज्य की बातें भी बता था, और साथ ही सुसमाचार भी सुनाता था (मरकुस 1:15; लूका 4:43; लूका 8:1; लूका 20:1), और लोगों को जगत के अंत तक की भविष्यवाणी की बातें भी बताईं और सिखाईं।  


हमें इन सेवकाइयों के संदर्भ में एक और तथ्य का भी ध्यान रखना है; यद्यपि इफिसियों 4:11 में पाँच प्रकार के सेवक और सेवकाइयां दी गई हैं, किन्तु यह आवश्यक नहीं कि अलग-अलग व्यक्ति ही कलीसिया में इन अलग-अलग सेवकाइयों को करें। प्रभु यीशु के समान ही, एक ही व्यक्ति, भिन्न समयों पर, आवश्यकतानुसार, इन भिन्न सेवकाइयों का निर्वाह कर सकता था, और करता भी था, जैसा हमने ऊपर प्रभु यीशु के जीवन से देखा है। पौलुस ने लिखा, कि वह भिन्न सेवकाइयों को करता था: “मैं सच कहता हूं, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया” (1 तीमुथियुस 2:7); “जिस के लिये मैं प्रचारक, और प्रेरित, और उपदेशक भी ठहरा” (2 तीमुथियुस 1:11)। याकूब ने, पतरस ने, यूहन्ना ने, नए नियम के सभी लेखकों ने, अपनी रचनाओं में सुसमाचार प्रचार भी किया, शिक्षाएं भी दीं, और भविष्य के समय से संबंधित भविष्यवाणियाँ भी लिखीं, तथा कलीसियाओं की अगुवाई भी की और उन के द्वारा हम कलीसिया के लोगों की देखभाल और रखवाली के बारे में भी देखते हैं। अर्थात, एक ही व्यक्ति एक या अधिक प्रकार की सेवकाइयां कर सकता है; सेवक की कार्य के लिए नियुक्ति नहीं, अपितु, कलीसिया में इन पाँचों प्रकार की सेवकाइयों का किया जाना, वचन की इन बातों का निर्वाह होना ही कलीसिया और मसीही जीवन की उन्नति के लिए आवश्यक है। 


 यह रोचक बात है कि इस पद में प्रभु यीशु द्वारा की गई सेवकाइयों में से उन सेवकाइयों के लिए जिन से अपने आप को प्रमुख, या महत्वपूर्ण, या विशिष्ट दिखाया जा सके, जैसे कि प्रेरित, भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी करना, वर्तमान में उनके लिए तो सामान्यतः लोग बहुत लालसा रखते हैं, उन्हें उपाधियों के समान प्रयोग करते हैं। किन्तु आज अपने आप ही या मनुष्यों और संस्थाओं द्वारा कलीसियाओं में उच्च पद और आदरणीय स्थानों पर आसीन होने की लालसा रखने वाले और उससे सांसारिक लाभ अर्जित करने वाले इन लोगों में सुसमाचार प्रचारक और शिक्षक होने के लिए सामान्यतः कोई रुचि नहीं होती है। आज शायद ही कोई ऐसा जन मिलेगा जो अपने आप को सुसमाचार प्रचारक या वचन का शिक्षक कहता हो। ऐसा संभवतः इसलिए है क्योंकि इन सेवकाइयों के सच्चाई और खराई से निर्वाह के लिए परमेश्वर के साथ बैठना और बहुत समय बिताना पड़ता है, लोगों के मध्य बड़े धैर्य के साथ परिश्रम करना पड़ता है, किन्तु तब भी इन से समाज में वह प्रशंसा और आदर का स्थान नहीं मिलता है जो प्रेरित और भविष्यद्वक्ता कहलाने से मिलता है। वरन, बहुधा यह भी देखा जाता है कि सामान्य लोगों को उनकी पापी होने की दशा का बोध होना, उनकी अपनी धारणाओं के स्थान पर परमेश्वर के वचन की वास्तविकता और उसकी खरी बातें सुनना रास नहीं आता है, इसलिए इन सेवकाइयों को करने वालों को संसार तथा समाज में आदर, ओहदा, और उच्च स्थान तो कम ही मिलते हैं, किन्तु तिरस्कार और विरोध अधिक मिलता है। संभवतः इसीलिए आज के मसीही विश्वासियों में इन सेवकाइयों के लिए चाह बहुत कम है। 


प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को सचेत किया कि लोग खरे उपदेश और शिक्षा के स्थान पर अपनी पसंद के लुभावने उपदेश और शिक्षा देने वालों को एकत्रित कर लेंगे। ऐसे में उसे सुसमाचार प्रचार करने के लिए, लोगों को वचन की सही शिक्षा देने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ेगा, साथ ही दुख भी उठाना पड़ेगा (2 तिमुथियुस 4:1-5)। पतरस ने भी अपने पाठकों को चिताया कि मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं में झूठे उपदेशक या शिक्षक भी उठ खड़े होंगे और नाश करने वाले पाखण्ड तथा विनाश की बातों को छिप-छिप कर कलीसियाओं में फैलाएंगे (2 पतरस 2:1)। प्रभु यीशु मसीह ने पहले से ही अपने शिष्यों को उनके मध्य ऐसे लोगों के आ जाने के विषय सचेत कर दिया था, और उन्हें यह भी बात दिया था कि इन गलत शिक्षा देने और प्रचार करने वाले लोगों को कैसे पहचानें - उनके “फलों” से; अर्थात, उन लोगों के जीवन की गवाही, उनकी शिक्षाओं के प्रभाव (वास्तव में दुष्प्रभाव) से पता चल जाएगा कि कौन सही उपदेशक है और कौन नहीं (मत्ती 7:16-20; लूका 6:43-45)।


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और यदि प्रभु परमेश्वर ने आपको अपनी कलीसिया के लोगों के मध्य वचन की शिक्षा देने ज़िम्मेदारी दी है, तो आपकी उन्नति और आशीष अपने मसीही जीवन तथा प्रभु परमेश्वर द्वारा सौंपी गई ज़िम्मेदारी को भली भांति निभाने और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली सही रीति से उसका निर्वाह करते रहने से ही है। परमेश्वर के वचन के सच्चाइयों को सीखने और सिखाने में समय लगाएं, शैतान द्वारा गलत शिक्षाओं को फैलाने वाले झूठे प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की गलत शिक्षाओं को समझने, जाँचने-परखने और उनसे बच कर चलने, तथा औरों को सचेत करने में संलग्न रहें। आप जितना अधिक समय परमेश्वर और उसके वचन के साथ बिताएंगे, उसकी आज्ञाकारिता में चलेंगे, वचन को उतनी गहराई से परमेश्वर पवित्र आत्मा आपको सिखाएगा, और उतना अधिक प्रभावी बनाकर प्रयोग करेगा। 


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • लैव्यव्यवस्था 1-3      

  • मत्ती 24:1-28


रविवार, 6 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (5)

 

रखवाले   

पिछले कुछ लेखों में हम इफिसियों 4:11 से देखते आ रहे हैं कि प्रभु ने अपनी कलीसिया के कार्यों के लिए, कलीसिया में कुछ कार्यकर्ताओं, कुछ सेवकों को नियुक्त किया है। मूल यूनानी भाषा में इन सेवकों और उनकी सेवकाई के संबंध में प्रयोग किए गए शब्द दिखाते हैं कि ये सेवकाइयां कलीसिया में परमेश्वर के वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। इन सेवकों और उनकी सेवकाइयों के संबंध में हम यह भी देख चुके हैं कि वर्तमान में इन दायित्वों और सेवकाइयों को अपने नाम के साथ जोड़ कर एक उपाधि के समान प्रयोग करने की सामान्यतः देखी जाने वाली प्रवृत्ति का बाइबल में कोई समर्थन नहीं है। इन सभी दायित्वों और सेवकाइयों के लिए प्रभु ने ही नियुक्ति की है, किसी मनुष्य अथवा संस्था या डिनॉमिनेशन ने नहीं; यह तथ्य वर्तमान में इन “उपाधियों” पर मनुष्यों द्वारा स्वयं ही या फिर किसी संस्था अथवा डिनॉमिनेशन द्वारा इन सेवकाइयों से संबंधित की जाने वाली नियुक्तियों की परंपरा का भी समर्थन नहीं करता है। साथ ही वर्तमान में एक और बहुत गलत प्रवृत्ति भी देखी जाती है कि लोग इन सेवकाइयों का प्रयोग परमेश्वर के वचन का पालन करना सीखने और सिखाने के स्थान पर, अपनी ही बातों और शिक्षाओं को सिखाने और पालन करवाने के लिए प्रयोग करते हैं, चाहे उनकी वे बातें और शिक्षाएं बाइबल से मेल न भी खाती हों, बाइबल की शिक्षाओं के अतिरिक्त हों। ऐसा करके ये लोग परमेश्वर के वचन में जोड़ने या घटाने, उसे अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार बदलने का अस्वीकार्य और दण्डनीय कार्य करते हैं (प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। यह वही पाप है जो प्रभु यीशु की पृथ्वी की सेवकाई के समय फरीसियों, सदूकियों, और शास्त्रियों ने किया, और जिसके लिए प्रभु ने उनकी तीव्र भर्त्सना की, उन्हें दण्डनीय ठहराया (मत्ती 15:3-9, 12-14)। 


आज हम इफिसियों 4:11 में दी गई सूची में प्रभु यीशु द्वारा नियुक्त किए जाने वाले प्रभु यीशु की कलीसिया के चौथे कार्यकर्ता, रखवाले, के बारे में देखेंगे। मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “रखवाले” किया गया है, उसका शब्दार्थ है “चरवाहे” या “भेड़ों की रखवाली और चरवाही करने वाले”। प्रभु यीशु मसीह के जन्म के समय, लूका 1:9 में जहाँ स्वर्गदूतों ने मैदान में अपने झुण्ड की पहरेदारी और देखभाल करने वाले लोगों को प्रभु के जन्म का समाचार सुनाया, उन गड़रियों के लिए भी मूल यूनानी भाषा में यही शब्द प्रयोग किया गया है, जिसका अनुवाद यहाँ “रखवाले” किया गया है। तात्पर्य यह कि कलीसिया के रखवाले वे हैं जो एक गड़रिये या चरवाहे के समान अपने “झुण्ड” या उसे सौंपे गए लोगों की देखभाल और सुरक्षा प्रदान करते हैं। बाइबल में प्रभु यीशु मसीह को “प्रधान रखवाला” भी कहा गया है (इब्रानियों 13:20; 1 पतरस 5:4); अर्थात वही अपनी विश्व-व्यापी कलीसिया का मुख्य देखभाल और सुरक्षा करने वाला है, शेष सभी उसी की अधीनता और उसके निर्देशों के अनुसार कार्य करते हैं। साथ ही बाइबल यह भी स्पष्ट बताती है कि प्रभु ने जिन्हें अपनी कलीसिया की देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंपी है, जिन्हें अपने “झुण्ड” के अगुवे बनाया है, उन्हें अन्ततः प्रभु को इस ज़िम्मेदारी का हिसाब भी देना होगा, और उनके कार्य के अनुसार उन्हें प्रतिफल मिलेगा (इब्रानियों 13:17; 1 पतरस 5:1-4)। अर्थात, कलीसिया में “रखवाला” या चरवाहा होना बहुत ज़िम्मेदारी का कार्य है, यह लोगों पर अधिकार रखने के लिए नहीं (1 पतरस 5:3), वरन विनम्रता तथा सहनशीलता के साथ प्रभु के लिए उसके लोगों की देखभाल के लिए है (1 पतरस 5:2)। यह सेवकाई केवल नए नियम में ही दी जाने वाली सेवकाई नहीं है, वरन, जैसा हम अभी देखेंगे, पुराने नियम में भी इस्राएल के अगुवों को यही ज़िम्मेदारी, यही सेवकाई सौंपी गई थी।

 

प्रभु के लोगों में, एक रखवाले या चरवाहे के क्या कार्य होते हैं, उसे प्रभु के “झुण्ड” की चरवाही करने की इस ज़िम्मेदारी को कैसे निभाना है? परमेश्वर के वचन बाइबल में इसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार से, पुराने नियम में ही बता दिया गया था। जैसा हमने ऊपर देखा है, प्रभु यीशु को ही कलीसिया का प्रधान रखवाला बताया गया है। इसलिए स्वाभाविक है कि प्रभु परमेश्वर के जीवन और उदाहरण से ही हम इस ज़िम्मेदारी के सर्वश्रेष्ठ निर्वाह के बारे में सीख सकते हैं। इसका सकारात्मक और सर्वोत्तम उदाहरण दाऊद द्वारा लिखित भजन 23 है, जो संक्षेप में किन्तु प्रत्येक बिन्दु का ध्यान करते हुए चरवाहे के कार्य को बता देता है। भजन 23 का आरंभ यहोवा परमेश्वर को चरवाहा बताने के साथ होता है; फिर इससे आगे परमेश्वर द्वारा चरवाहे के रूप में किए गए कार्यों का उल्लेख है:

  • पद 1 - वह अपनी भेड़ों को कुछ घटी नहीं होने देता है। पौलुस ने परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में अपने जीवन के उदाहरण से सीखने को बताते हुए लिखा कि जैसे हर दशा में प्रभु उसकी देखभाल करता है, उसे सब कुछ बहुतायत से उपलब्ध है और परमेश्वर उसकी हर आवश्यकता को पूरा करता है - फिलिप्पियों 4 अध्याय पढ़िए, और विशेषकर पद 13, 18, और 19 पर ध्यान कीजिए, वैसे ही प्रभु पौलुस के पाठकों के लिए भी करेगा। कलीसिया के रखवाले को भी उसके झुण्ड के लोगों की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उन को उनकी आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त सहायता और प्रावधान उपलब्ध करवाते रहना है जिससे उन्हें कुछ घटी न हो। 

  • पद 2 - वह अपनी भेड़ों को उत्तम भोजन और जल उपलब्ध करवाता है - प्रभु यीशु स्वयं हमारे लिए “जीवन की रोटी” और “जीवन का जल” है (यूहन्ना 4:10, 14; 5:33, 35)। कलीसिया के रखवाले को प्रभु यीशु के वचन और शिक्षाओं के उत्तम आत्मिक भोजन को लोगों तक पहुँचाते रहना है जिससे उनका आत्मिक स्वास्थ्य अच्छा रहे, वे किसी गलत शिक्षा या सांसारिक बातों में भटक कर प्रभु से दूर न चले जाएं। 

  • पद 3 - वह अशान्ति के समय में अपनी भेड़ों को शांति प्रदान करता है, और परमेश्वर के मार्गों में चलने की अगुवाई प्रदान करता है। कलीसिया के रखवाले को भी उसकी कलीसिया के लोगों को शांति, ढाढ़स, सांत्वना, दुख के समय में सहारा और निराशाओं में प्रोत्साहन देने वाला, और संसार की बातों की मिलावट से बचाकर परमेश्वर के खरे मार्गों में अपने झुण्ड को लिए चलने वाला होना चाहिए। 

  • पद 4 - परमेश्वर के लोग उसकी उनके साथ निरंतर बनी उपस्थिति से आश्वस्त और सुरक्षित रहते हैं; अपने सोंटे और लाठी के द्वारा परमेश्वर अपनी भेड़ों को हाँकता भी है, जो इधर-उधर होने लगती हैं, उन्हें हांक कर वापस सही मार्ग में ले आता है; और भक्षक पशुओं से उनकी रक्षा करता है। कलीसिया के रखवाले को वचन रूपी लाठी और सोंटे से अपनी कलीसिया के लोगों को समझाना, सुधारना, सिखाना है, और जहाँ आवश्यक हो उलाहना देना और डांटना भी है (2 तीमुथियुस 3:16; 4:2-4)। 

  • पद 5 - परमेश्वर अपने लोगों की कठिनाइयों में उनकी रक्षा और सहायता करता है; उनके लिए आवश्यक भली वस्तुएं उन्हें उपलब्ध करवाता है। कलीसिया के रखवाले को भी अपने लोगों के साथ हर परिस्थिति में खड़े रहकर उनकी सहायता करते रहना है, उन्हें सुरक्षा प्रदान करनी है, इधर-उधर भटकने और लज्जित होने से रोक कर रखना है, बचाना है। 

  • पद 6 - परमेश्वर अपने साथ रहने और उस पर भरोसा रखने वाले लोगों को न केवल इस जीवन में उनकी भलाई के लिए आश्वस्त रखता है वरन साथ ही उनके परलोक के अनन्त जीवन के विषय भी आश्वस्त रखता है। कलीसिया के रखवाले को भी अपने लोगों को इस लोक और परलोक के विषय बताना और सिखाना है, तथा उन्हें इस जीवन में तथा परलोक के अनन्त जीवन में सही स्थान पर और सुरक्षित रहना सिखाना है। 

    

    कलीसिया के रखवाले के लिए भजन 23 के इस सकारात्मक उदाहरण की तुलना में, यहेजकेल 34 अध्याय में इस्राएल के चरवाहों की अनेकों प्रकार की परमेश्वर की भेड़ों के प्रति लापरवाही और परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता के नकारात्मक व्यवहार का उदाहरण और परमेश्वर द्वारा उनकी भर्त्सना, और उन्हें दण्ड देने, तथा अपनी भेड़ों को संभालने का वर्णन है। यहेजकेल 34 अध्याय में इस्राएल के उन चरवाहों ने जो कुछ किया, आज, कलीसिया के रखवाले को वह नहीं करना है, वरन परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार कलीसिया के लोगों की रखवाली करनी है। 


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और यदि प्रभु परमेश्वर ने आपको अपनी कलीसिया के लोगों के मध्य कोई ज़िम्मेदारी दी है, तो आपकी उन्नति और आशीष अपने मसीही जीवन तथा प्रभु परमेश्वर द्वारा सौंपी गई ज़िम्मेदारी को भली भांति निभाने और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली सही रीति से उसका निर्वाह करते रहने से ही है। परमेश्वर के वचन के सच्चाइयों को सीखने और सिखाने में समय लगाएं, शैतान द्वारा गलत शिक्षाओं को फैलाने वाले झूठे प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की गलत शिक्षाओं को समझने, जाँचने-परखने और उनसे बच कर चलने, तथा औरों को सचेत करने में संलग्न रहें।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 39-40      

  • मत्ती 23:23-29


शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (4)


सुसमाचार प्रचारक

इफिसियों 4:11 में कलीसिया की उन्नति के लिए प्रभु द्वारा नियुक्त किए गए पाँच प्रकार के सेवकों या कार्यकर्ताओं और उनकी सेवकाई या कार्यों की सूची दी गई है, कलीसिया में उनकी सेवकाई के विषय बताया गया है। मूल यूनानी भाषा में इन सेवकों के लिए प्रयोग किए गए शब्दों के आधार पर, ये पाँचों कार्यकर्ता और उनके कार्य, वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। इनमें से पहले दो, प्रेरित और भविष्यद्वक्ता और इनकी सेवकाइयों के विषय हम पिछले लेखों में देख चुके हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गई इनकी सेवकाई के हवालों से यह प्रकट है कि आज जो प्रेरित और भविष्यद्वक्ता होने का दावा करते हैं, उनमें, उनके कार्यों में और बाइबल में इन सेवकाइयों के बारे में दी गई बातों में कोई सामंजस्य नहीं है। अधिकांशतः ये लोग उन मत, समुदाय, डिनॉमिनेशंस में देखे जाते हैं जो परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाओं को मानते, मनवाते, और उन गलत शिक्षाओं का प्रचार एवं प्रसार करते हैं। ये लोग अपने आप ही, या कुछ अन्य मनुष्यों या किसी संस्था अथवा मत के अगुवों द्वारा प्रेरित या भविष्यद्वक्ता बन बैठते हैं, और इसे एक पदवी के समान औरों पर अधिकार रखने तथा सांसारिक लाभ की बातों को अर्जित करने के लिए प्रयोग करते हैं। जबकि वचन इफिसियों 4:11 में, और अन्य स्थानों पर यह स्पष्ट कहता है कि कलीसिया में यह नियुक्ति केवल प्रभु के द्वारा की जाती है, किसी मनुष्य के द्वारा नहीं। 

इन लोगों की बातों और विशेषकरभविष्यवाणियोंके लिए एक और बात ध्यान में रखनी बहुत आवश्यक है - प्रभु परमेश्वर द्वारा नियुक्त प्रेरितों और प्रथम कलीसिया के अगुवों का समय समाप्त होते-होते, नए नियम की सभी पत्रियां और पुस्तकें लिखी जा चुकी थीं, और स्थान-स्थान पर पहुँचा दी गई थीं। अर्थात, परमेश्वर का वचन लिखित रूप में पूर्ण हो चुका था; अब केवल उसे संकलित करके एक पुस्तक के रूप में लाना शेष था। उन प्रेरितों और आरंभिक कलीसिया के अगुवों में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा ने जो वचन लिखवा दिया, वही संकलित होकर अनन्तकाल के लिए बाइबल के रूप में परमेश्वर का वचन स्थापित हो गया है। इसके बाद उसमें न कुछ जोड़ा जा सकता है, और न घटाया जा सकता है, न बदला जा सकता है; जिसने भी ऐसा कुछ भी करने का प्रयास किया, उसे बहुत भारी दण्ड भोगना पड़ेगा (प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। इसलिए आज, जो यह अपनी ओर सेभविष्यवाणीकरके परमेश्वर के वचन में अपनी ओर से बातें जोड़ने या वचन की बातों को बदलने या सुधारने के प्रयास करते हैं, वह उनके लिए, और उनकी बातों को मानने वालों के लिए बहुत हानिकारक होगा। 

इफिसियों 4:11 में दिए गए तीसरे प्रकार की कार्यकर्ता हैंसुसमाचार सुनाने वाले। ध्यान कीजिए, सुसमाचार सुनाना प्रभु ने अपनी सभी शिष्यों के लिए रखा था (मत्ती 28:18-20; मरकुस 16:15; प्रेरितों 1:8)। पौलुस ने अपनी मसीही सेवकाई में सुसमाचार प्रचार करने की अनिवार्यता को 1 कुरिन्थियों 9:16-17, 23 में व्यक्त किया, तथा अपने सहकर्मी तीमुथियुस को भी दुख उठाकर भी बड़ी सहनशीलता के साथ सुसमाचार प्रचार में लगे रहने के लिए कहा (2 तीमुथियुस 4:5)। प्रभु यीशु की कलीसिया के लिए प्रयुक्त विभिन्न रूपकों (metaphors) के अध्ययन में भी, और प्रेरितों 2:42 की चार बातों में सेरोटी तोड़नेके बारे में वचन की बातों को देखते समय हमने देखा था कि कलीसिया का एक उद्देश्य, उसका एक कर्तव्य है प्रभु यीशु की गवाही देते रहना। जहाँ प्रभु यीशु की गवाही होगी, वहीं साथ ही सुसमाचार प्रचार भी होगा। जिस भी स्थानीय कलीसिया की गतिविधियों में सुसमाचार प्रचार नहीं है, वह कलीसिया या तो प्रभु की कलीसिया नहीं है, अन्यथा प्रभु के मार्गों, कार्यों, और उद्देश्यों से भटक गई है, प्रभु के लिए कार्य नहीं कर रही है। जैसा हम पहले के 1 फरवरी के लेख में देख चुके हैं, प्रभु यीशु की कलीसिया और उसके सदस्यों के मसीही जीवनों की उन्नति वचन की सही आज्ञाकारिता के साथ जुड़ी हुई है। जहाँ वचन का पालन नहीं है, वहाँ परमेश्वर की आशीष और सुरक्षा भी नहीं है। 

सुसमाचार प्रचार मसीही जीवन और कलीसिया के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य है, क्योंकि सुसमाचार ही विश्वास में होकर परमेश्वर की धार्मिकता को प्रकट करता है (रोमियों 1:16-17)। शैतान यह जानता है कि जो भी व्यक्ति या कलीसिया सुसमाचार प्रचार में लगे होंगे, वे उसके लिए एक बड़ा सिरदर्द बन जाएंगे, क्योंकि उनमें होकर परमेश्वर की सामर्थ्य उसके विरुद्ध कार्य करेगी। इसलिए वह सुसमाचार प्रचार में हर संभव बाधा डालता है। शैतान लोगों को सुसमाचार प्रचार के प्रति उदासीन करता है, भयभीत करता है, उनके अपने जीवन की गवाही को बिगाड़ता है जिससे प्रभु के उन लोगों का जीवन उनके प्रचार के अनुरूप न दिखे और अप्रभावी रहे, कलीसिया को औपचारिकताओं तथा परंपराओं, रीति-रिवाज़ों आदि के निर्वाह में फंसे रखता है। अर्थात, किसी न किसी प्रकार से मसीही विश्वासी और प्रभु की कलीसिया को सुसमाचार प्रचार करने से अक्षम या दुर्बल बनाए रखता है और परमेश्वर पवित्र आत्मा चाहता है कि हम शैतान की इन युक्तियों के प्रति सचेत रहें, उन्हें पहचानें, और उनसे बचाकर चलें (2 कुरिन्थियों 2:11) 

शैतान का सुसमाचार प्रचार को प्रभाव रहित करने का एक अन्य बहुत कारगर हथियार है सुसमाचार की सच्चाई और मूल स्वरूप को बिगाड़ कर, एक मिलावटी या मन-गढ़ंत सुसमाचार को लोगों द्वारा प्रचार करवाना। शैतान द्वारा इस प्रकार के भ्रष्ट किए गए सुसमाचार में लोगों के भले कामों और धार्मिक गतिविधियों को मानने-मनाने के द्वारा परमेश्वर को स्वीकार्य होने की शिक्षाएं दी जाती हैं। जो लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए इस सुसमाचार के पालन और प्रचार में लगे होते हैं, उन्हें लगता है कि वे प्रभु के लिए अच्छा कार्य कर रहे हैं, किन्तु वास्तव में वे प्रभु के विरुद्ध और शैतान के लिए अच्छा कार्य कर रहे होते हैं। इस भ्रष्ट सुसमाचार के प्रभावहीन होने की गंभीरता को हम पवित्र आत्मा द्वारा पौलुस प्रेरित से गलातियों की मसीही मण्डली को लिखी बात से समझ सकते हैं:मुझे आश्चर्य होता है, कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैंपरन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो। जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित हो। अब मैं क्या मनुष्यों को मनाता हूं या परमेश्वर को? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूं?” (गलातियों 1:6-9) 

इसीलिए अपनी कलीसिया और उसके लोगों की उन्नति के लिए प्रभु ने सुसमाचार प्रचार को इतना महत्व दिया है, और आवश्यक ठहराया है। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो ध्यान कीजिए कि प्रभु यीशु के सुसमाचार प्रचार के प्रति आपका क्या रवैया है? क्या आप उस सच्चे सुसमाचार को, उसके मूल स्वरूप में समझते और जानते हैं? क्या आप उस सुसमाचार को ग्रहण करने और उसके निर्वाह के द्वारा मसीही विश्वासी बने हैं, या अन्य किसी विधि से? यदि आप उस सच्चे सुसमाचार के द्वारा प्रभु में नहीं आए हैं, उसके आधार पर प्रभु की कलीसिया के अंग नहीं बने हैं, तो आप शैतान द्वारा फैलाए गए भ्रम-जाल में फंसे हुए हैं, और आपको अभी समय तथा अवसर रहते अपनी स्थिति को ठीक करना अनिवार्य है, नहीं तो शैतान द्वारा आपकी अनन्तकाल की हानि आपके लिए तैयार है।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 36-38      
  • मत्ती 23:1-22

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (3)


भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी (2)

इफिसियों 4:11 में कलीसिया की उन्नति के लिए प्रभु द्वारा नियुक्त किए गए पाँच प्रकार के सेवकों या कार्यकर्ताओं और उनकी सेवकाई या कार्यों के विषय में सूची दी गई है, कहा गया है। मूल यूनानी भाषा में इनके लिए प्रयोग किए गए शब्दों के आधार पर, ये पाँचों कार्यकर्ता और उनके कार्य, वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। इनमें से पहले, प्रेरितों, के बारे में हम पहले विस्तार से देख चुके हैं कि वर्तमान में जो लोग अपने आप को प्रेरित घोषित करते हैं, और इसे उपाधि के अनुसार प्रयोग करके ईसाई या मसीही समाज में आदर, सम्मान, और उच्च स्थान प्राप्त करने या दिखाने का यत्न करते हैं, वहप्रेरितशब्द के परमेश्वर के वचन बाइबल में किए गए प्रयोग और अभिप्राय के अनुरूप नहीं है। सूची के दूसरे कार्यकर्ता या सेवक हैं भविष्यद्वक्ता, जिनके बारे में हमने पिछले लेख से देखना आरंभ किया है। हमने देखा है कि परमेश्वर के वचन बाइबल में परमेश्वर के लोगों के मध्य भावी कहने या भविष्य की बातें बताने वाले परमेश्वर की ओर से नियुक्त किए गए भविष्यद्वक्ता, अन्य सेवकाइयों की तुलना में बहुत कम रहे हैं। परमेश्वर ने जब अपने लोगों के मध्य इन भविष्यद्वक्ताओं को खड़ा किया, तब ऐसा परमेश्वर और उसके वचन से विमुख हो चुके उसके लोगों पर, उनके किए के कारण उन पर आने वाले परमेश्वर के प्रकोप और दण्ड के विषय सचेत करने और उन लोगों को अवसर एवं समय रहते परमेश्वर की ओर लौट आने के लिए उकसाने के लिए किया। परमेश्वर के ये भविष्यद्वक्ता लोगों के मनोरंजन के लिए, उनकी मन-पसंद बातें सुनाने, उनके कानों की खुजली मिटाने (2 तीमुथियुस 4:3) के लिए कार्य नहीं करते थे। बाइबल में उल्लेखित सभी भविष्यद्वक्ता परमेश्वर द्वारा खड़े और नियुक्त किए गए थे, और बहुतेरे तो ऐसे भी थे जो इस कार्य को करना ही नहीं चाहते थे, उन्होंने भरसक प्रयास किया कि परमेश्वर उन्हें इस दायित्व से मुक्त कर दे। बाइबल के परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई भी ऐसा नहीं था, जिसने स्वयं ही इस सेवकाई को अपना लिया हो, या फिर अपनी या कुछ अन्य मनुष्यों, अथवा किसी मत या समुदाय के कहने पर भविष्यद्वक्ता बन बैठा हो। 

पुराने और नए नियम की मूल इब्रानी और यूनानी भाषाओं के जिन शब्दों का अनुवाद भविष्यद्वक्ता या Prophet और भविष्यवाणी या Prophesy किया गया है, आम धारणा के विपरीत उनका शब्दार्थ हमेशा ही भावी कहना या भविष्य के बातें बताना ही नहीं होता है। मोटे तौर पर इन शब्दों का अभिप्राय होता हैसामने बोलना”, जहाँसामनेसेआने वाले समय के बारे मेंनहीं वरन अभिप्रायसमक्षका रहता है; अर्थात किसी व्यक्ति या समूह के सामने, या समक्ष, या सम्मुख खड़े होकर उन्हें संबोधित करना, उनसे कुछ कहना। साथ ही आवश्यक नहीं कि जो बोला जाए वह लेख के समान गद्य ही हो, वह गीत या कविता/पद्य भी हो सकता है। और बाइबल में ये शब्द केवल यहोवा परमेश्वर के सेवकों और उनकी सेवकाइयों के लिए ही प्रयोग नहीं किए गए हैं; वरन अन्य देवी-देवताओं के उपासकों और उनके कार्य के लिए भी प्रयोग किए गए हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल से भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी शब्दों के प्रयोग के कुछ उदाहरण देखते हैं:

  • किसी देवी-देवता को पुकारना:  1 राजा 18:29 “वे दोपहर भर ही क्या, वरन भेंट चढ़ाने के समय तक नबूवत करते रहे, परन्तु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया” - एल्लियाह से मिली चुनौती के अंतर्गत बाल देवता के नबी अपने देवता को भरसक पुकारते रहे।
  • अपने शब्दों के द्वारा लोगों को आश्वस्त करना, शांत या सांत्वना देना: 1 कुरिन्थियों 14:3 “परन्तु जो भविष्यवाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है
  • परमेश्वर द्वारा दी गई आज्ञा को बोलना और मानना: 
    • यहेजकेल 37:4 “तब उसने मुझ से कहा, इन हड्डियों से भविष्यवाणी कर के कह, हे सूखी हड्डियों, यहोवा का वचन सुनो
    • यहेजकेल 37:9-10 तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान सांस से भविष्यवाणी कर, और सांस से भविष्यवाणी कर के कह, हे सांस, परमेश्वर यहोवा यों कहता है कि चारों दिशाओं से आकर इन घात किए हुओं में समा जा कि ये जी उठें। उसकी इस आज्ञा के अनुसार मैं ने भविष्यवाणी की, तब सांस उन में आ गई, ओर वे जीकर अपने अपने पांवों के बल खड़े हो गए; और एक बहुत बड़ी सेना हो गई
  • परमेश्वर की ओर से आने वाली घटनाओं और बातों के बारे में बताना:
    • यहेजकेल 36:1, 3 “फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के पहाड़ों से भविष्यवाणी कर के कह, हे इस्राएल के पहाड़ों, यहोवा का वचन सुनोइस कारण भविष्यवाणी कर के कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता हे, लोगों ने जो तुम्हें उजाड़ा और चारों ओर से तुम्हें ऐसा निगल लिया कि तुम बची हुई जातियों का अधिकार हो जाओ, और लुतरे तुम्हारी चर्चा करते और साधारण लोग तुम्हारी निन्दा करते हैं;
    • यहेजकेल 37:12-14 इस कारण भविष्यवाणी कर के उन से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, हे मेरी प्रजा के लोगों, देखो, मैं तुम्हारी कब्रें खोल कर तुम को उन से निकालूंगा, और इस्राएल के देश में पहुंचा दूंगा। सो जब मैं तुम्हारी कब्रें खोलूं, और तुम को उन से निकालूं, तब हे मेरी प्रजा के लोगों, तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ। और मैं तुम में अपना आत्मा समाऊंगा, और तुम जीओगे, और तुम को तुम्हारे निज देश में बसाऊंगा; तब तुम जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने यह कहा, और किया भी है, यहोवा की यही वाणी है
  • परमेश्वर के प्रभाव में आकर उसके निर्देश के अनुसार बोलना: 
    • अमोस 3:8 “सिंह गरजा; कौन न डरेगा? परमेश्वर यहोवा बोला; कौन भविष्यवाणी न करेगा”?
    • यहेजकेल 36:6 इस कारण इस्राएल के देश के विषय में भविष्यवाणी कर के पहाड़ों, पहाडिय़ों, नालों, और तराइयों से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, देखो, तुम ने जातियों की निन्दा सही है, इस कारण मैं अपनी बड़ी जलजलाहट से बोला हूँ
  • आराधना, स्तुति करना, और आराधना के लिए संगीत वाद्य बजाना: 1 इतिहास 25:1-6  “फिर दाऊद और सेनापतियों ने आसाप, हेमान और यदूतून के कितने पुत्रों को सेवकाई के लिये अलग किया कि वे वीणा, सारंगी और झांझ बजा बजाकर नबूवत करें। और इस सेवकाई के काम करने वाले मनुष्यों की गिनती यह थी: अर्थात आसाप के पुत्रों में से तो जक्कूर, योसेप, नतन्याह और अशरेला, आसाप के ये पुत्र आसाप ही की आज्ञा में थे, जो राजा की आज्ञा के अनुसार नबूवत करता था। फिर यदूतून के पुत्रों में से गदल्याह, सरीयशायाह, हसब्याह, मत्तित्याह, ये ही छ: अपने पिता यदूतून की आज्ञा में हो कर जो यहोवा का धन्यवाद और स्तुति कर कर के नबूवत करता था, वीणा बजाते थे। और हेमान के पुत्रों में से, मुक्किय्याह, मत्तन्याह, लज्जीएल, शबूएल, यरीमोत, हनन्याह, हनानी, एलीआता, गिद्दलती, रोममतीएजेर, योशबकाशा, मल्लोती, होतीर और महजीओत। परमेश्वर की प्रतिज्ञानुकूल जो उसका नाम बढ़ाने की थी, ये सब हेमान के पुत्र थे जो राजा का दर्शी था; क्योंकि परमेश्वर ने हेमान को चौदह बेटे और तीन बेटियां दीं थीं। ये सब यहोवा के भवन में गाने के लिये अपने अपने पिता के आधीन रह कर, परमेश्वर के भवन, की सेवकाई में झांझ, सारंगी और वीणा बजाते थे। और आसाप, यदूतून और हेमान राजा के आधीन रहते थे
  • किसी गुप्त या अनजानी बात को बताना: लूका 22:64 “और उस की आंखे ढांपकर उस से पूछा, कि भविष्यवाणी कर के बता कि तुझे किसने मारा” - प्रभु यीशु मसीह को पकड़ने के बाद उसका का ठट्ठा करते समय उससे उपहास करते हुए पूछना।  

साथ ही ध्यान कीजिए कि बाइबल में भविष्यद्वक्ताओं और उनकी बातों के उदाहरणों के आधार पर यह भी प्रकट और स्पष्ट है कि परमेश्वर द्वारा नियुक्त भविष्यद्वक्ता की कही हर बात भीभविष्यवाणीनहीं होती थी। बाइबल मेंभविष्यवाणीकेवल उसे ही कहा गया है जो परमेश्वर के उस भविष्यद्वक्ता ने परमेश्वर के कहे पर और उसकी ओर से कहा है। कई बार भविष्यद्वक्ताओं ने अपनी भावनाएं और विचार भी व्यक्त किए, किन्तु उन सभी बातों कोभविष्यवाणीनहीं कहा गया है। और न ही यह अनिवार्य है कि परमेश्वर का नियुक्त भविष्यद्वक्ता यदि कुछ कहेगा, तो परमेश्वर उसकी हर बात को मानने और पूरा करने के लिए बाध्य है। इन बातों का एक अच्छा उदाहरण है 2 शमूएल 7 अध्याय में दाऊद द्वारा परमेश्वर के लिए भवन बनवाने की लालसा रखना, उसे व्यक्त करना, और नातान नबी द्वारा दाऊद की इस इच्छा का अनुमोदन करना। किन्तु परमेश्वर ने दाऊद और नातान दोनों ही की इस बात को अस्वीकार कर दिया, यद्यपि वे दोनों उसके जन थे, उससे प्रेम करते थे, और परमेश्वर के आदर एवं महिमा के लिए कुछ करने की इच्छा रखते थे। परमेश्वर ने उन दोनों को अपने लोग, अपने नबी होने से तिरस्कार नहीं किया, किन्तु उनकी लालसा को स्वीकार करने और मानने के लिए भी परमेश्वर बाध्य नहीं बना। इसलिए हरभविष्यद्वक्ताकी हर बातभविष्यवाणीनहीं है, चाहे वह बात परमेश्वर के आदर और महिमा के लिए ही क्यों न कही गई हो; और न ही हर बात परमेश्वर की ओर से पूरी होगी, जब तक कि उसभविष्यद्वक्ताने परमेश्वर की ओर से और उसकी अधीनता में होकर वह बात न कही हो।

आज ईसाई या मसीही समाज में, विशेषकर उन समुदायों और डिनॉमिनेशंस में जो परमेश्वर पवित्र आत्मा के बारे में गलत शिक्षाएं बताते और सिखाते रहते हैं, ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने आप कोनबीयाभविष्यद्वक्ताकहते हैं, और परमेश्वर के नाम से कुछ भी कहते रहते हैं। उनका मुख्य ध्येय अपने आप को उच्च और प्रशंसनीय बनाना तथा परमेश्वर के नाम, काम, और उसके वचन के द्वारा अपने लिए सांसारिक लाभ, संपत्ति, यश, ओहदा, आदि एकत्रित करना होता है।  यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की गलत समझ और गलत उपयोग से बचें। वचन की सही समझ और सही उपयोग आपके लिए आत्मिक उन्नति और आशीष का कारण होगा, किन्तु गलत समझ और गलत उपयोग बहुत हानिकारक होगा। इसलिए यदि आप किसी गलत शिक्षा अथवा धारणा में पड़े हुए हैं, तो स्थिति को जाँच-परखकर अभी समय और अवसर के रहते उससे बाहर निकल आएं, आवश्यक सुधार कर लें।

  यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 34-35      
  • मत्ती 22:23-46 

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (2)


भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी (1)

 पिछले लेख से हमने इफिसियों 4:11 से उन पाँच प्रकार के सेवकों और उनकी सेवकाइयों के विषय देखना आरंभ किया है, जिन्हें प्रभु ने अपनी कलीसिया की उन्नति के लिए स्थानीय कलीसियाओं में नियुक्त किया है। जैसा शैतान का स्वभाव और कार्य है, वह प्रभु की हर बात के विषय लोगों में असमंजस, गलत शिक्षाएं, और विरोधाभास डालता रहता है। इन पाँच प्रकार के सेवकों और उनकी सेवकाई को लेकर भी उसने मसीही विश्वासियों, कलीसियाओं, तथा ईसाई समाज में यही कर रखा है। इसी कारण प्रभु के वचन की इन बातों और इन सेवकों के लिए प्रयोग किए गए संज्ञात्मक शब्दों को लेकर लोगों में आज बहुत सी गलत धारणाएं, मान्यताएं, और शिक्षाएं देखी जाती हैं। शैतान द्वारा डाली गई इन भ्रामक बातों की वास्तविकता को समझ कर, इन बातों के विषय वचन की सच्चाई को जानना और समझना हमारे लिए अनिवार्य है। मूल यूनानी भाषा में इन पाँचों सेवकाइयों के लिए प्रयोग किए गए शब्द, वचन की सेवकाई के विभिन्न स्वरूपों को दिखाते हैं। 

पिछले लेख में हमने पहले प्रकार के सेवक - प्रेरितों और उनकी सेवकाई के बारे में, वचन में दी गई शिक्षाओं से देखा था कि प्रभु ने ही प्रेरितों को नियुक्त किया, प्रभु का हर शिष्य प्रेरित नहीं कहलाया जाता था, वचन में किसी मनुष्य द्वारा प्रेरितों की नियुक्ति के लिए कोई निर्देश नहीं दिए गए, और आरंभिक कलीसिया में, जब परमेश्वर का वचन बाइबल अपनी संपूर्णता में नहीं लिखी गई थी, तब प्रभु के वचन की शिक्षाओं का दायित्व प्रेरितों को सौंपा गया। प्रभु ने अपने वचन को परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में अपने प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखवाया, और हमें उपलब्ध करवा दिया, और मसीही सेवकों को यह दायित्व सौंपा कि इस वचन को पवित्र आत्मा की अगुवाई और मार्गदर्शन में औरों को सिखाएं, विशेषकर ऐसे लोगों को जो फिर इसे अन्य लोगों को भी सिखा सकें। इस रीति से आज भी प्रेरित और भविष्यद्वक्ता, उनके द्वारा लिखे गए वचन में होकर, हमें प्रभु के वचन की शिक्षाएं देने का कार्य कर रहे हैं। वचन में उन पहले प्रेरितों की सेवकाई और उनके समय के बाद प्रभु द्वारा किसी और के प्रेरित नियुक्त किए जाने का कोई उल्लेख, उदाहरण, या शिक्षा नहीं है। किन्तु शैतान के लिए अवश्य लिखा है कि उसके दूत झूठे प्रेरित बनकर लोगों को बहकाते और भरमाते रहते हैं। इसलिए जो आज अपने आप को प्रेरित कहते हैं, इस सेवकाई को एक उपाधि के समान यश और प्रशंसा प्राप्ति के लिए प्रयोग करते हैं, उनसे सावधान रहने, और उन्हें पिछले लेख में दिए गए प्रेरितों के गुणों और चिह्नों के आधार पर जाँचने, परखने, और तब ही उनके दावे को स्वीकार करना अति-आवश्यक है।  

आज के इस लेख में हम इन पाँच में से दूसरे सेवक, भविष्यद्वक्ताओं और उनकी सेवकाई के बारे में वचन के तथ्य देखेंगे। प्रेरितों और उनकी सेवकाई के समान, भविष्यद्वक्ताओं की इस सेवकाई को लेकर भी शैतान ने बहुत सी गलत शिक्षाएं, धारणाएं, और बातें फैला रखी हैं। सामान्यतः, लोग यही समझते और मानते हैं कि बाइबल के अनुसार भविष्यद्वक्ता होने, या भविष्यवाणी करने का अर्थ है भावी कहना या भविष्य की बातें बताना। निःसंदेह परमेश्वर ने अपने लोगों के मध्य कुछ लोगों को भविष्य की बातें बताने के लिए सक्षम किया और इसके लिए खड़ा किया; किन्तु परमेश्वर द्वारा नियुक्त और खड़े किए गए ये भविष्यद्वक्ता, अन्य सेवकों और सेवकाइयों की तुलना में, संख्या में बहुत कम और केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही देखे जाते हैं। परमेश्वर के वचन में परमेश्वर द्वारा नियुक्त ये भविष्यद्वक्ता सामान्यतः हर समय और हर स्थान पर इस्राएली या मसीही समाज में नहीं देखे जाते हैं। पुराने नियम में परमेश्वर के लोगों में, इस्राएली या यहूदियों में, और नए नियम में मसीही विश्वासियों और प्रभु यीशु की मण्डली में इन भविष्यद्वक्ताओं की सेवकाई मुख्यतः ऐसे समयों पर देखी जाती है जब परमेश्वर के लोग पाप में भ्रष्ट होकर बिगड़ते चले जा रहे थे, परमेश्वर से दूर होते जा रहे थे, और इस बात के लिए उनके आते दण्ड और विनाश के लिए उन्हें चेतावनियाँ देने, उन्हें वापस परमेश्वर की ओर लौट आने के लिए उकसाने को इन भविष्यद्वक्ताओं की सेवकाई चेतावनी के वचन के रूप में रही है। उस दण्ड और विनाश के साथ, परमेश्वर ने अपने प्रेम, उनकी बहाली और आशीषों आदि के विषय भी भविष्यवाणियों में आश्वस्त किया; किन्तु संपूर्ण बाइबल में सभी भविष्यद्वक्ताओं की सेवकाई परमेश्वर से भटके हुए लोगों को परमेश्वर की ओर वापस मुड़ने अन्यथा भारी दण्ड और ताड़ना का सामना से संबंधित ही रही है। नए नियम में भविष्यवाणी की और बाइबल की अंतिम पुस्तक, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में भी सारे संसार के सभी लोगों के लिए इसी विषय की बातों को देखा जाता है। अर्थात, बाइबल के आधार पर, भविष्यवाणी करना और भविष्यद्वक्ता की ज़िम्मेदारी निभाना कोई हल्की या आम बात नहीं थी; उसके गंभीर अभिप्राय थे। 

 किन्तु आज के ईसाई समाज या मसीहियों में, विशेषकर उन में जो परमेश्वर पवित्र आत्मा के नाम से अनेकों प्रकार की गलत शिक्षाओं और धारणाओं को मानते और मनाते हैं, औरों को बताते तथा सिखाते हैं, परमेश्वर के नाम से कुछ भीभविष्यवाणीके रूप में कह देना एक आम बात हो गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर के वचन में प्रयोग किए गए “भविष्यद्वक्ता” और “भविष्यवाणी” शब्दों की सही समझ उन्हें नहीं है। “भविष्यद्वक्ता” और “भविष्यवाणी” शब्दों का यह दुरुपयोग न केवल वचन के विरुद्ध है, वरन परमेश्वर की ओर से इसकी भर्त्सना की गई है, और इसे परमेश्वर द्वारा दण्डनीय बताया गया है। इस संदर्भ में परमेश्वर के वचन से कुछ पद देखिए:

  • व्यवस्थाविवरण 18:21-22 “और यदि तू अपने मन में कहे, कि जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहचानें? तो पहचान यह है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं; परन्तु उस नबी ने वह बात अभिमान कर के कही है, तू उस से भय न खाना
  • यहेजकेल 13:2-3 हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के जो भविष्यद्वक्ता अपने ही मन से भविष्यवाणी करते हैं, उनके विरुद्ध भविष्यवाणी कर के तू कह, यहोवा का वचन सुनो। प्रभु यहोवा यों कहता है, हाय, उन मूढ़ भविष्यद्वक्ताओं पर जो अपनी ही आत्मा के पीछे भटक जाते हैं, और कुछ दर्शन नहीं पाया!”
  • यहेजकेल 13:6-9 “वे लोग जो कहते हैं, यहोवा की यह वाणी है, उन्होंने भावी का व्यर्थ और झूठा दावा किया है; और तब भी यह आशा दिलाई कि यहोवा यह वचन पूरा करेगा; तौभी यहोवा ने उन्हें नहीं भेजा। क्या तुम्हारा दर्शन झूठा नहीं है, और क्या तुम झूठमूठ भावी नहीं कहते? तुम कहते हो, कि यहोवा की यह वाणी है; परन्तु मैं ने कुछ नहीं कहा है। इस कारण प्रभु यहोवा तुम से यों कहता है, तुम ने जो व्यर्थ बात कही और झूठे दर्शन देखे हैं, इसलिये मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है। जो भविष्यद्वक्ता झूठे दर्शन देखते और झूठमूठ भावी कहते हैं, मेरा हाथ उनके विरुद्ध होगा, और वे मेरी प्रजा की गोष्ठी में भागी न होंगे, न उनके नाम इस्राएल की नामावली में लिखे जाएंगे, और न वे इस्राएल के देश में प्रवेश करने पाएंगे; इस से तुम लोग जान लोगे कि मैं प्रभु यहोवा हूँ
  • यिर्मयाह 5:31 “भविष्यद्वक्ता झूठमूठ भविष्यवाणी  करते हैं; और याजक उनके सहारे से प्रभुता करते हैं; मेरी प्रजा को यह भाता भी है, परन्तु अन्त के समय तुम क्या करोगे?”
  • यिर्मयाह 14:14 “और यहोवा ने मुझ से कहा, ये भविष्यद्वक्ता मेरा नाम ले कर झूठी भविष्यवाणी  करते हैं, मैं ने उन को न तो भेजा और न कुछ आज्ञा दी और न उन से कोई भी बात कही। वे तुम लोगों से दर्शन का झूठा दावा कर के अपने ही मन से व्यर्थ और धोखे की भविष्यवाणी  करते हैं
  • यिर्मयाह 23:21-22 “ये भविष्यद्वक्ता बिना मेरे भेजे दौड़ जाते और बिना मेरे कुछ कहे भविष्यवाणी  करने लगते हैंयदि ये मेरी शिक्षा में स्थिर रहते, तो मेरी प्रजा के लोगों को मेरे वचन सुनाते; और वे अपनी बुरी चाल और कामों से फिर जाते
  • यिर्मयाह 23:30-32 “यहोवा की यह वाणी है, देखो, जो भविष्यद्वक्ता मेरे वचन औरों से चुरा चुराकर बोलते हैं, मैं उनके विरुद्ध हूँ। फिर यहोवा की यह भी वाणी है कि जो भविष्यद्वक्ताउसकी यह वाणी है”, ऐसी झूठी वाणी कहकर अपनी अपनी जीभ डुलाते हैं, मैं उनके भी विरुद्ध हूँ। यहोवा की यह भी वाणी है कि जो बिना मेरे भेजे या बिना मेरी आज्ञा पाए स्वप्न देखने का झूठा दावा कर के भविष्यवाणी  करते हैं, और उसका वर्णन कर के मेरी प्रजा को झूठे घमण्ड में आकर भरमाते हैं, उनके भी मैं विरुद्ध हूँ; और उन से मेरी प्रजा के लोगों का कुछ लाभ न होगा
  • यिर्मयाह 27:15 “यहोवा की यह वाणी है कि मैं ने उन्हें नहीं भेजा, वे मेरे नाम से झूठी भविष्यवाणी  करते हैं; और इसका फल यही होगा कि मैं तुझ को देश से निकाल दूंगा, और तू उन नबियों समेत जो तुझ से भविष्यवाणी करते हैं नष्ट हो जाएगा

       हम अगले लेख में परमेश्वर के वचन में प्रयोग किए गए “भविष्यद्वक्ता” और “भविष्यवाणी” शब्दों की सही अर्थ को, और उनके आधार पर भविष्यवाणी की सेवकाई की सही समझ देखेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की गलत समझ और गलत उपयोग से बचें। वचन की सही समझ और सही उपयोग आपके लिए आत्मिक उन्नति और आशीष का कारण होगा, किन्तु गलत समझ और गलत उपयोग बहुत हानिकारक होगा। इसलिए यदि आप किसी गलत शिक्षा अथवा धारणा में पड़े हुए हैं, तो स्थिति को जाँच-परखकर अभी समय और अवसर के रहते उससे बाहर निकल आएं, आवश्यक सुधार कर लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 31-33      
  • मत्ती 22:1-22

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (1)

प्रेरित 

पिछले लेख में हमने इफिसियों 4:11 से उन पाँच प्रकार के सेवकों और सेवकाइयों के विषय देखा था, जिन्हें प्रभु ने अपनी कलीसिया की उन्नति के लिए स्थानीय कलीसियाओं में नियुक्त किया है। मूल यूनानी भाषा में इन पाँचों सेवकाइयों के लिए प्रयोग किए गए शब्द, वचन की सेवकाई के विभिन्न स्वरूपों को दिखाते हैं। हम बारी-बारी इन पाँचों को कुछ विस्तार से देखेंगे। पिछले लेख में हमने बाइबल की प्रेरितों के काम पुस्तक में से आरंभिक कलीसिया के प्रसार और बढ़ोतरी के इतिहास, तथा कुछ अन्य पदों से, और प्रकाशितवाक्य 2 और 3 अध्याय में उल्लेखित सात कलीसियाओं के उदाहरणों से देखा था कि कलीसिया तथा मसीही जीवन की उन्नति और बढ़ोतरी तब ही देखी गई जब वे प्रभु और उसके वचन की आज्ञाकारिता में बने रहे। वचन में मिलावट करना, उसके साथ समझौता करना, और सच्चे समर्पण के स्थान पर किसी मत या डिनॉमिनेशन के नियमों, रीतियों, परंपराओं आदि की औपचारिकता के निर्वाह पर उतर आना और उसे मसीही विश्वास एवं जीवन का निर्वाह समझ लेना, सदा ही हानि और विनाश का कारण रहा है। 


पिछले लेख के अंत में हमने यह भी देखा था कि मत्ती 28:19-20, और प्रेरितों 2:42 के आरंभिक वाक्यांश के अनुसार, मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं में प्रभु यीशु के वचन की शिक्षा देने का दायित्व प्रभु के शिष्यों, प्रभु द्वारा नियुक्त प्रेरितों (लूका 6:13) को दिया गया था। इसी प्रकार से, इफिसियों 4:11 में वचन से संबंधित प्रथम सेवकाई भी “प्रेरितों” की कही गई है। वर्तमान में, शब्द “प्रेरित” को लेकर बहुत असमंजस और कई प्रकार की गलत शिक्षाएं देखने को मिलती हैं। आज अधिकांश लोगों ने अपने आप को “प्रेरित” कहना आरंभ कर दिया है, और इसे वे अपने लिए एक सम्मान के स्थान, मसीही समाज एवं चर्च में उच्च-स्तर और आदर का स्थान एवं सूचक होने के लिए प्रयोग करते हैं। इसलिए, आज हम “प्रेरित” शब्द को परमेश्वर के वचन बाइबल से कुछ विस्तार से देखेंगे। 


मूल यूनानी भाषा में प्रयुक्त जिस शब्द का अनुवाद प्रेरित किया गया है, उस शब्द का अर्थ है “विशेष अधिकार के साथ नियुक्त किया हुआ”, और यह संज्ञा सर्वप्रथम स्वयं प्रभु ने ही अपने कुछ शिष्यों को दी थी। यह एक सामान्यतः अनदेखी की जाने वाली, किन्तु वास्तव में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि प्रभु ने अपने सभी शिष्यों को कभी भी, कहीं भी प्रेरित नहीं कहा; वरन अपने सभी शिष्यों में से जिन बारह को उसने विशेषकर चुना था, उन्हें ही यह संज्ञा दी (चुनाव - लूका 6:12-16; पद 13); और सुसमाचारों में अन्त तक उन्हीं बारह के लिए ही “प्रेरित” शब्द प्रयोग किया गया (पकड़वाए जाने से पहले फसह का पर्व – लूका 22:14; पुनरुत्थान के बाद एकत्रित लोगों को बताना – लूका 24:9-10)। अर्थात, स्वयं प्रभु यीशु द्वारा इस शब्द के प्रयोग के अनुसार, प्रभु का प्रत्येक शिष्य, प्रभु यीशु की ओर से, “प्रेरित” नहीं था। और इन बारह को चुनने के पीछे, उनके लिए प्रभु का विशेष अभिप्राय था। जिन्हें प्रभु ने “प्रेरित” कहा था, उन्हें उसके अन्य शिष्यों से कुछ भिन्न होना था, जैसा कि मरकुस 3:13-15 में उनके लिए दिया गया है:

–       वे उसके साथ रहें;

–       वे उसके द्वारा भेजे जाने के लिए तैयार रहें – जब और जहाँ प्रभु भेजे;

–       वे प्रभु के कहे के अनुसार प्रचार करें; और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार रखें।

        

इन तीनों बातों के कहे जाने के क्रम का भी महत्व है; अकसर लोग अंतिम बात, प्रचार करने और आश्चर्यकर्म करने की सेवकाई के पीछे भागते हैं, किन्तु प्रभु के साथ समय बिताने, और उसके कहे के अनुसार जाकर उसके द्वारा बताए गए कार्य को करने की इच्छा नहीं रखते हैं। किन्तु यहाँ दिए गए क्रम में प्रेरित को, या प्रभु के उस विशिष्ट शिष्य को, सबसे पहले प्रभु के साथ रहने वाला होना है, फिर उसके कहे के अनुसार करने वाला होना है, और तब ही प्रभु से प्रचार या आश्चर्यकर्मों को करने की सामर्थ्य पाने की लालसा रखनी है।


 बाद में नए नियम में शब्द “प्रेरित” का प्रयोग दूसरे रूप में भी किया गया है – एक तो प्रेरित वे थे जिन्हें प्रभु ने नियुक्त किया था; और इस शब्द का दूसरा प्रयोग उनके लिए आया है जो विशेष सन्देश-वाहक थे, जैसे कि बरनबास (प्रेरितों 14:14), प्रभु का भाई याकूब (गलातियों 1:19), संभवतः सिलास (1 थिस्सलुनीकियों 2:6 और 1:1 को साथ देखें), आदि। किन्तु प्रभु के प्रत्येक सेवक को कभी भी प्रेरित नहीं कहा गया – जैसे कि तिमुथियुस, तीतुस, फिलेमोन, उनेसिमुस, इपफ्रूदितुस, आदि महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय कार्य करने वाले, महत्वपूर्ण भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियाँ निभाने वाले सेवकों के लिए प्रेरित शब्द नहीं प्रयोग किया गया है।


कलीसिया के कार्यों और देखभाल के लिए नियुक्त किए गए लोगों में भी परमेश्वर के द्वारा प्रेरितों को नियुक्त करने का उल्लेख है (1 कुरिन्थियों 12:28-29; इफिसियों 4:11)। कलीसिया के कार्यों से संबंधित “प्रेरितों” के लिए इन दोनों पत्रियों – कुरिन्थियों और इफिसियों, में स्पष्ट आया है कि उन्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया था; वे किसी मनुष्य की नियुक्ति नहीं थे – यह भी बहुत संभव है कि ये प्रेरित, प्रभु द्वारा आरंभ में नियुक्त किए गए वे शिष्य रहे हों, जिन्हें तब प्रभु ने “प्रेरित” कहा था, और अब उन्हें प्रभु द्वारा कलीसियाओं की रखवाली की ज़िम्मेदारी भी दे दी गई।


वचन यह भी संकेत देता है कि उन आरंभिक प्रेरितों की नियुक्ति के पश्चात, फिर कभी कोई अन्य प्रेरित नियुक्त नहीं  किए गए। कलीसियाओं के बढ़ने के साथ, बाद में तीतुस और तिमुथियुस को लिखी गई पत्रियों में जब कलीसिया के कार्यों को संभालने के लिए, कलीसियाओं के सदस्यों द्वारा, अगुवों की नियुक्ति करने के लिए, कलीसिया के उन सेवकों या अगुवों या प्राचीनों के गुणों के बारे में बताया गया (1 तिमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:6-9), तब वहाँ कलीसिया के कार्यों के लिए मनुष्यों द्वारा प्रेरितों के चुनाव के लिए न तो कहा गया (तीतुस 1:5), और न ही तब प्रेरित नियुक्त होने के लिए कोई विशेष गुण लिखवाए गए। रोमियों 16 में, जो पत्री का अंतिम अध्याय है, पौलुस कई सहयोगियों, मित्रों, सहकर्मियों, लोगों को स्मरण करता है, पहले ही पद में फीबे को डीकनेस भी कहता है, किन्तु 16:7 में अपने साथ के पुराने प्रेरितों को छोड़, पौलुस और किसी को प्रेरित नहीं कहता है। इसी प्रकार 1 कुरिन्थियों 16 में भी किसी के प्रेरित होने का उल्लेख नहीं है, जबकि कई लोगों की उनके मसीही जीवन और कार्यों के लिए सराहना की गई है।


प्रेरितों 1:2-3 में हमें प्रभु द्वारा नियुक्त प्रेरितों की पहचान के लिए दिए गए तीन गुण देखते हैं:

1.     प्रभु द्वारा चुने हुए (पद 2)

2.     प्रभु द्वारा आज्ञा पाए हुए (पद 2)

3.     जिन्होंने पुनरुत्थान हुए प्रभु को देखा (पद 3)

पौलुस के जीवन में भी दमिश्क के मार्ग पर उसे मिले प्रभु यीशु के दर्शन के द्वारा ये तीनों बातें पूरी हुई; और इस बात का दावा वह 1 कुरिन्थियों 9:1-2; 15:9 में करता है।


 जैसे सच्चे प्रेरित थे, वैसे ही शैतान ने अपने लोगों को झूठे प्रेरित बना कर मण्डलियों में मिला दिया (2 कुरिन्थियों 11:13) जिससे प्रभु के कार्य को बिगाड़ सकें, लोगों को सच्चाई के मार्ग से भटका सकें। ये झूठे प्रेरित व्यावसायिक प्रचारक थे, जो लोग-लुभावनी बातों का प्रचार करके (2 तिमुथियुस 4:3-4), श्रोताओं से पैसे लेते थे। ये लोगों से सिफारिश की पत्रियाँ या अपनी प्रशंसा के पत्र लिखवाकर ले आए थे, और पौलुस द्वारा दी गई शिक्षाओं का विरोध करते थे (2 कुरिन्थियों 3:1-3)। प्रभु यीशु ने कहा था कि सच्चे और झूठे भविष्यद्वक्ताओं में भिन्नता उनके फलों से पता चल जाएगी (मत्ती 7:16-20)। प्रभु की इसी बात को आधार बनाकर, पौलुस कुरिन्थियों से कहता है कि तुम ही हमारे प्रशंसा-पत्र, हमारे सिफारिशी पत्र हो – तुम्हें देखकर लोग पहचानते हैं कि उन झूठे प्रेरितों की तुलना में तुम्हारे शिक्षक कौन और कैसे थे। अर्थात, प्रभु द्वारा नियुक्त उन आरंभिक प्रेरितों के अतिरिक्त, बाद की “प्रेरित” नाम से नियुक्तियाँ, संभवतः शैतान द्वारा की गई थीं, प्रभु द्वारा नहीं। उन आरंभिक प्रेरितों के साथ ही प्रेरितों का समय और सेवकाई पूर्ण हो गए। उन प्रेरितों द्वारा परमेश्वर का वचन लिखा गया, सिखाया गया, और उचित प्रयोग के लिए अगली पीढ़ी को सौंप दिया गया (इफिसियों 2:20; 2 तीमुथियुस 2:2, 14-16)। आज वचन की शिक्षा पाना, प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखे गए वचन से सीखना ही है, जो वर्तमान में भी प्रेरितों 2:42 की आरंभिक बात की पूर्ति है। 


सच्चे और झूठे प्रेरितों की पहचान करने के लिए हम आज उन्हें मरकुस 3:13-15 तथा प्रेरितों 1:1-2 में दिए गए प्रेरित कहलाने वाले शिष्यों के गुणों और बातों के आधार पर, तथा प्रभु द्वारा मत्ती 7:16-20 की पहचान – उनके फलों के द्वारा जाँच सकते हैं। जिस में ये बाते नहीं हैं, वह मसीही सेवकाई के लिए प्रभु द्वारा नियुक्त सच्चा प्रेरित भी नहीं है। आज भी यदि कोई अपने आप को प्रेरित कहते हैं, तो उनके जीवनों में इन बातों को भी होना चाहिए, अन्यथा उनका दावा गलत है; वे स्वयं या शैतान के द्वारा नियुक्त प्रेरित तो हो सकते हैं, किन्तु प्रभु द्वारा नियुक्त प्रेरित कदापि नहीं होंगे।


परमेश्वर ने हमें भेड़ की खाल में छिपे भेड़ियों की पहचान न कर पाने की स्थिति में नहीं छोड़ा है; उसने अपने वचन में सही पहचान दी है। वह चाहता है कि हम पहले जाँचें, सच्चाई को परखें, और तब स्वीकार करें (1 यूहन्ना 4:1; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)।


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो किसी के भी द्वारा किए जाने वाले किसी भी दावे को स्वीकार करने से पहले, उसे परमेश्वर के वचन से जाँच-परख कर देखने, और उसकी वास्तविकता या सच्चाई को स्थापित करने की आदत डाल लें, क्योंकि भटकाने भरमाने वाले लोगों की, प्रभु के नाम और उसकी कलीसिया को अपनी प्रशंसा और कमाई के लिए प्रयोग करने वालों की कोई कमी नहीं है। शैतान द्वारा खड़े किए गए ये “प्रेरित” प्रभु की ओर से नहीं हैं, और उनके जीवन, उनके फल ही उनकी सच्ची पहचान बता देते हैं। प्रभु ने अपने प्रत्येक विश्वासी को अपना पवित्र आत्मा अपने वचन को सिखाने के लिए और गलत शिक्षाओं में पड़ने से बचाने के लिए दिया है (1 यूहन्ना 2:27); उसकी सहायता से भरमाए और बहकाए जाएं से बचकर चलें। 


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 29-30      

  • मत्ती 21:23-46