सुसमाचार प्रचारक
इफिसियों 4:11 में कलीसिया की उन्नति के लिए
प्रभु द्वारा नियुक्त किए गए पाँच प्रकार के सेवकों या कार्यकर्ताओं और उनकी
सेवकाई या कार्यों की सूची दी गई है, कलीसिया में उनकी
सेवकाई के विषय बताया गया है। मूल यूनानी भाषा में इन सेवकों के लिए प्रयोग किए गए
शब्दों के आधार पर, ये पाँचों कार्यकर्ता और उनके कार्य,
वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। इनमें से पहले दो, प्रेरित और भविष्यद्वक्ता और इनकी सेवकाइयों के विषय हम पिछले लेखों में
देख चुके हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गई इनकी सेवकाई के हवालों से यह प्रकट
है कि आज जो प्रेरित और भविष्यद्वक्ता होने का दावा करते हैं, उनमें, उनके कार्यों में और बाइबल में इन सेवकाइयों
के बारे में दी गई बातों में कोई सामंजस्य नहीं है। अधिकांशतः ये लोग उन मत,
समुदाय, डिनॉमिनेशंस में देखे जाते हैं जो
परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाओं को मानते, मनवाते,
और उन गलत शिक्षाओं का प्रचार एवं प्रसार करते हैं। ये लोग अपने आप
ही, या कुछ अन्य मनुष्यों या किसी संस्था अथवा मत के अगुवों
द्वारा प्रेरित या भविष्यद्वक्ता बन बैठते हैं, और इसे एक
पदवी के समान औरों पर अधिकार रखने तथा सांसारिक लाभ की बातों को अर्जित करने के
लिए प्रयोग करते हैं। जबकि वचन इफिसियों 4:11 में, और अन्य स्थानों पर यह स्पष्ट कहता है कि कलीसिया में यह नियुक्ति केवल
प्रभु के द्वारा की जाती है, किसी मनुष्य के द्वारा नहीं।
इन लोगों की बातों और विशेषकर “भविष्यवाणियों” के लिए एक और बात ध्यान में रखनी बहुत आवश्यक है - प्रभु परमेश्वर द्वारा
नियुक्त प्रेरितों और प्रथम कलीसिया के अगुवों का समय समाप्त होते-होते, नए नियम की सभी पत्रियां और पुस्तकें लिखी जा चुकी थीं, और स्थान-स्थान पर
पहुँचा दी गई थीं। अर्थात, परमेश्वर का वचन लिखित रूप में
पूर्ण हो चुका था; अब केवल उसे संकलित करके एक पुस्तक के रूप
में लाना शेष था। उन प्रेरितों और आरंभिक कलीसिया के अगुवों में होकर परमेश्वर
पवित्र आत्मा ने जो वचन लिखवा दिया, वही संकलित होकर
अनन्तकाल के लिए बाइबल के रूप में परमेश्वर का वचन स्थापित हो गया है। इसके बाद
उसमें न कुछ जोड़ा जा सकता है, और न घटाया जा सकता है,
न बदला जा सकता है; जिसने भी ऐसा कुछ भी करने
का प्रयास किया, उसे बहुत भारी दण्ड भोगना पड़ेगा (प्रकाशितवाक्य
22:18-19)। इसलिए आज, जो यह अपनी ओर से
“भविष्यवाणी” करके परमेश्वर के वचन में अपनी
ओर से बातें जोड़ने या वचन की बातों को बदलने या सुधारने के प्रयास करते हैं,
वह उनके लिए, और उनकी बातों को मानने वालों के
लिए बहुत हानिकारक होगा।
इफिसियों 4:11 में दिए गए तीसरे प्रकार की
कार्यकर्ता हैं “सुसमाचार सुनाने वाले”। ध्यान कीजिए, सुसमाचार सुनाना प्रभु ने अपनी सभी
शिष्यों के लिए रखा था (मत्ती 28:18-20; मरकुस 16:15;
प्रेरितों 1:8)। पौलुस ने अपनी मसीही सेवकाई
में सुसमाचार प्रचार करने की अनिवार्यता को 1 कुरिन्थियों 9:16-17,
23 में व्यक्त किया, तथा अपने सहकर्मी
तीमुथियुस को भी दुख उठाकर भी बड़ी सहनशीलता के साथ सुसमाचार प्रचार में लगे रहने
के लिए कहा (2 तीमुथियुस 4:5)। प्रभु
यीशु की कलीसिया के लिए प्रयुक्त विभिन्न रूपकों (metaphors) के अध्ययन में भी, और प्रेरितों 2:42 की चार बातों में से “रोटी तोड़ने” के बारे में वचन की बातों को देखते समय हमने देखा था कि कलीसिया का एक उद्देश्य,
उसका एक कर्तव्य है प्रभु यीशु की गवाही देते रहना। जहाँ प्रभु यीशु
की गवाही होगी, वहीं साथ ही सुसमाचार प्रचार भी होगा। जिस भी
स्थानीय कलीसिया की गतिविधियों में सुसमाचार प्रचार नहीं है, वह कलीसिया या तो प्रभु की कलीसिया नहीं है, अन्यथा
प्रभु के मार्गों, कार्यों, और
उद्देश्यों से भटक गई है, प्रभु के लिए कार्य नहीं कर रही
है। जैसा हम पहले के 1 फरवरी के लेख में देख चुके हैं,
प्रभु यीशु की कलीसिया और उसके सदस्यों के मसीही जीवनों की उन्नति
वचन की सही आज्ञाकारिता के साथ जुड़ी हुई है। जहाँ वचन का पालन नहीं है, वहाँ परमेश्वर की आशीष और सुरक्षा भी नहीं है।
सुसमाचार प्रचार मसीही जीवन और कलीसिया
के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य है, क्योंकि सुसमाचार ही विश्वास में होकर परमेश्वर की
धार्मिकता को प्रकट करता है (रोमियों 1:16-17)। शैतान यह
जानता है कि जो भी व्यक्ति या कलीसिया सुसमाचार प्रचार में लगे होंगे, वे उसके लिए एक बड़ा सिरदर्द बन जाएंगे, क्योंकि
उनमें होकर परमेश्वर की सामर्थ्य उसके विरुद्ध कार्य करेगी। इसलिए वह सुसमाचार
प्रचार में हर संभव बाधा डालता है। शैतान लोगों को सुसमाचार प्रचार के प्रति
उदासीन करता है, भयभीत करता है, उनके
अपने जीवन की गवाही को बिगाड़ता है जिससे प्रभु के उन लोगों का जीवन उनके प्रचार के
अनुरूप न दिखे और अप्रभावी रहे, कलीसिया को औपचारिकताओं तथा
परंपराओं, रीति-रिवाज़ों आदि के निर्वाह में फंसे रखता है। अर्थात, किसी न किसी प्रकार से मसीही
विश्वासी और प्रभु की कलीसिया को सुसमाचार प्रचार करने से अक्षम या दुर्बल बनाए
रखता है। और परमेश्वर पवित्र आत्मा चाहता है कि हम शैतान
की इन युक्तियों के प्रति सचेत रहें, उन्हें पहचानें,
और उनसे बचाकर चलें (2 कुरिन्थियों 2:11)।
शैतान का सुसमाचार प्रचार को प्रभाव रहित
करने का एक अन्य बहुत कारगर हथियार है सुसमाचार की सच्चाई और मूल स्वरूप को बिगाड़
कर, एक मिलावटी या मन-गढ़ंत
सुसमाचार को लोगों द्वारा प्रचार करवाना। शैतान द्वारा इस प्रकार के भ्रष्ट किए गए
सुसमाचार में लोगों के भले कामों और धार्मिक गतिविधियों को मानने-मनाने के द्वारा
परमेश्वर को स्वीकार्य होने की शिक्षाएं दी जाती हैं। जो लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट
किए गए इस सुसमाचार के पालन और प्रचार में लगे होते हैं, उन्हें
लगता है कि वे प्रभु के लिए अच्छा कार्य कर रहे हैं, किन्तु
वास्तव में वे प्रभु के विरुद्ध और शैतान के लिए अच्छा कार्य कर रहे होते हैं। इस
भ्रष्ट सुसमाचार के प्रभावहीन होने की गंभीरता को हम पवित्र आत्मा द्वारा पौलुस
प्रेरित से गलातियों की मसीही मण्डली को लिखी बात से समझ सकते हैं: “मुझे आश्चर्य होता है, कि जिसने तुम्हें मसीह के
अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर
झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। परन्तु
यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है,
कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो। जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर
कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है,
यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित
हो। अब मैं क्या मनुष्यों को मनाता हूं या परमेश्वर को? क्या
मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूं?” (गलातियों 1:6-9)।
इसीलिए अपनी कलीसिया और उसके लोगों की
उन्नति के लिए प्रभु ने सुसमाचार प्रचार को इतना महत्व दिया है, और आवश्यक ठहराया है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो ध्यान कीजिए कि प्रभु यीशु के सुसमाचार प्रचार के
प्रति आपका क्या रवैया है? क्या आप उस सच्चे सुसमाचार को,
उसके मूल स्वरूप में समझते और जानते हैं? क्या
आप उस सुसमाचार को ग्रहण करने और उसके निर्वाह के द्वारा मसीही विश्वासी बने हैं,
या अन्य किसी विधि से? यदि आप उस सच्चे
सुसमाचार के द्वारा प्रभु में नहीं आए हैं, उसके आधार पर
प्रभु की कलीसिया के अंग नहीं बने हैं, तो आप शैतान द्वारा
फैलाए गए भ्रम-जाल में फंसे हुए हैं, और आपको अभी समय तथा
अवसर रहते अपनी स्थिति को ठीक करना अनिवार्य है, नहीं तो
शैतान द्वारा आपकी अनन्तकाल की हानि आपके लिए तैयार है।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता
हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- निर्गमन
36-38
- मत्ती 23:1-22
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