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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

झूठ का धोखा

टेक्सस प्रदेश का एक कॉलेज का छात्र स्थानीय नायक बन गया जब उसके विषय में लोगों को पता चला कि उसने एक महिला को तीन आक्रमणकारियों से बचाया। लेकिन कुछ समय पश्चात सारे देश में उसके नाम की दुषचर्चा हो गई जब ज्ञात हुआ कि उसकी यह कहानी झूठी थी। उस लज्जित छात्र को मानना पड़ा कि, जैसे उसने पहले दावा किया था, उसने किसी महिला की रक्षा करने के लिये कोई लड़ाई नहीं करी, वरन उसके शरीर पर आए चोट के निशान उसकी किसी से अपनी व्यक्तिगत लड़ाई के कारण थे।

इस छात्र को मिली क्षणिक ख्याति और फिर उससे भी अधिक मिली लज्जा, राजा सुलेमान द्वारा नीतिवचन में कही गई बात का उदाहरण है कि झूठ की उम्र थोड़ी ही होती है। शर्म छिपाने के लिये बोला गया झूठ, और भी अधिक शर्म का कारण बन जाता है। सत्य को न बताना, उस अस्त्य के परिणामों को सामने आने में कुछ समय तो देता है परन्तु साथ ही झूठ बोलने वाले को और भी बुरे झूठ और धोखे के जाल में फंसा भी देता है।

सत्य तो अनततः उजागर हो ही जाता है, नीतिवचन १२ हमें बताता है कि ऐसा क्यों होता है। परमेश्वर झूठ से घृणा करता है (पद २२) और झूठ को हिंसा का कारण मानता है (पद १८)। इस कारण झूठ ज्यादा समय तक बना नहीं रहता (पद १९)। झूठ बुरी युक्ति करने वाले लोगों की कार्यविधि है (पद २०)।

हम परमेश्वर के वचन और उस लज्जित छात्र के अनुभव से शिक्षा ले सकते हैं कि झूठ, किसी परिस्थिति से बच निकलने का आसान तरीका तो प्रतीत हो सकता है, लेकिन वह किसी भी परिस्थिति से बचाता नहीं है, वरन और बुरा फंसा देता है। - मार्ट डी हॉन


झूठ, किसी परिस्थिति से बचने के लिये, कायरों का प्रयास है।

सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है। - नीतिवचन १२:१९

बाइबल पाठ: नीतिवचन १२:१७-२२

जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है, परन्तु जो झूठी साक्षी देता, वह छल प्रगट करता है।
ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच विचार का बोलना तलवार की नाई चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।
सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है।
बुरी युक्ति करने वालों के मन में छल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करने वालों को आनन्द होता है।
धर्मी को हानि नहीं होती है, परन्तु दुष्ट लोग सारी विपत्ति में डूब जाते हैं।
झूठों से यहोवा को घृणा आती है परन्तु जो विश्वास से काम करते हैं, उन से वह प्रसन्न होता है।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ३३-३५
  • मत्ती १०:१-२०

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