कुछ मसीही सेवक अपने मसीही विश्वास में आने के बारे में बातचीत कर रहे थे। अधिकांश ने बड़े नाटकीय ढंग से हुए अपने परिवर्तन के बारे में बताया, और उन्हें वह समय और स्थान याद था जब उन्होंने मसीह पर विश्वास किया और अपना जीवन उसे समर्पित किया। लेकिन उनमें एक ऐसा था जो एक मसीही घराने में पैदा-पला-बड़ा हुआ था; उसने कहा "मुझे जहां तक याद आता है, मैंने सदा ही मसीह को जाना है और उससे प्रेम किया है; लेकिन मुझे यह भी याद है कि कब मेरे लिये मजबूरी एक स्वेच्छा और प्रेम का कार्य बन गयी।"
यही हमारे विश्वास की वास्तविक्ता की परख है - परमेश्वर का आत्मा जो मसीही विश्वासी के अन्दर निवास करता है, उसे परमेश्वर के प्रति ऐसे प्रेम से भर देता है कि फिर परमेश्वर की आज्ञाकारिता उसके लिये मजबूरी या बन्धन नहीं वरन हृदय के नये हो जाने से प्रेम के प्रत्युतर में किया गया कार्य हो जाती है। जब पौलुस ने २ कुरिन्थियों ३:६ में लिखा "... शब्द के सेवक नहीं वरन आत्मा के, क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है" तो उसका यही अर्थ था।
यदि परमेश्वर के लिये हमारी सेवा केवल किसी मजबूरी या बन्धन या रीति के अन्तर्गत या किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिये है और उसमें प्रेम की स्वेच्छा नहीं है तो वह सच्ची सेवा नहीं; वह फिर मनुष्यों के बनाए नियमों के अन्तर्गत किया गया मजबूरी का पालन है, जिससे मनुष्य तो प्रसन्न या सन्तुष्ट हो सकते हैं परन्तु परमेश्वर नहीं।
मसीही विश्वासी होने के नाते, यदि कभी परमेश्वर की सेवा स्वेच्छा नहीं मजबूरी लगने लगे तो हमें थोड़ा ठहर कर प्रभु यीशु द्वारा हमारे उद्धार के लिये चुकाई गई कीमत पर विचार करना चाहिये। हमारे प्रति अपने प्रेम के कारण परमेश्वर ने अपने पुत्र के ऊपर वह दण्ड रख दिया जिसका हमें भागी होना चाहिये था। क्या इतने महान प्रेम और इतने बड़े बलिदान के सामने कोई भी आज्ञाकारिता मजबूरी बन सकती है?
जब हम अपने और परमेश्वर के संबंधों के बीच में आने वाले पापों को मान कर परमेश्वर से क्षमा मांग लेते हैं और परमेश्वर के आत्मा से विनती करते हैं कि वह हमें अपनी उपस्थिति से भर दे, तो परमेश्वर के अद्भुत प्रेम का एक नया अनुभव हमें मिलता है और पुनः हमारे लिये "मजबूरी" स्वेच्छा में बदल जाती है। - डेनिस डी हॉन
...क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। - २ कुरिन्थियों ३:६
बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ३:१-१०
क्या हम फिर अपनी बड़ाई करने लगें या हमें कितनों कि नाईं सिफारिश की पत्रियां तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं?
हमारी पत्री तुम ही हो, जो हमारे ह्रृदयों पर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहिचानते और पढ़ते है।
यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिस को हम ने सेवकों की नाई लिखा; और जो सियाही से नहीं, परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्तु ह्रृदय की मांस रूपी पटियों पर लिखी है।
हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं।
यह नहीं, कि हम अपने आप से इस योग्य हैं, कि अपनी ओर से किसी बात का विचार कर सकें, पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।
जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है।
और यदि मृत्यु की यह वाचा जिस के अक्षर पत्थरों पर खोद गए थे, यहां तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुंह पर के तेज के कराण जो घटता भी जाता था, इस्त्राएल उसके मुंह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे।
तो आत्मा की वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी?
क्योंकि जब दोषी ठहराने वाली वाचा तेजोमय थी, तो धर्मी ठहराने वाली वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी?
और जो तेजोमय था, वह भी उस तेज के कारण जो उस से बढ़ कर तेजामय था, कुछ तेजोमय न ठहरा।
एक साल में बाइबल:
यही हमारे विश्वास की वास्तविक्ता की परख है - परमेश्वर का आत्मा जो मसीही विश्वासी के अन्दर निवास करता है, उसे परमेश्वर के प्रति ऐसे प्रेम से भर देता है कि फिर परमेश्वर की आज्ञाकारिता उसके लिये मजबूरी या बन्धन नहीं वरन हृदय के नये हो जाने से प्रेम के प्रत्युतर में किया गया कार्य हो जाती है। जब पौलुस ने २ कुरिन्थियों ३:६ में लिखा "... शब्द के सेवक नहीं वरन आत्मा के, क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है" तो उसका यही अर्थ था।
यदि परमेश्वर के लिये हमारी सेवा केवल किसी मजबूरी या बन्धन या रीति के अन्तर्गत या किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिये है और उसमें प्रेम की स्वेच्छा नहीं है तो वह सच्ची सेवा नहीं; वह फिर मनुष्यों के बनाए नियमों के अन्तर्गत किया गया मजबूरी का पालन है, जिससे मनुष्य तो प्रसन्न या सन्तुष्ट हो सकते हैं परन्तु परमेश्वर नहीं।
मसीही विश्वासी होने के नाते, यदि कभी परमेश्वर की सेवा स्वेच्छा नहीं मजबूरी लगने लगे तो हमें थोड़ा ठहर कर प्रभु यीशु द्वारा हमारे उद्धार के लिये चुकाई गई कीमत पर विचार करना चाहिये। हमारे प्रति अपने प्रेम के कारण परमेश्वर ने अपने पुत्र के ऊपर वह दण्ड रख दिया जिसका हमें भागी होना चाहिये था। क्या इतने महान प्रेम और इतने बड़े बलिदान के सामने कोई भी आज्ञाकारिता मजबूरी बन सकती है?
जब हम अपने और परमेश्वर के संबंधों के बीच में आने वाले पापों को मान कर परमेश्वर से क्षमा मांग लेते हैं और परमेश्वर के आत्मा से विनती करते हैं कि वह हमें अपनी उपस्थिति से भर दे, तो परमेश्वर के अद्भुत प्रेम का एक नया अनुभव हमें मिलता है और पुनः हमारे लिये "मजबूरी" स्वेच्छा में बदल जाती है। - डेनिस डी हॉन
"नियम" हमें बाध्य करते हैं, प्रेम हमें स्वतंत्र करता है।
...क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। - २ कुरिन्थियों ३:६
बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ३:१-१०
क्या हम फिर अपनी बड़ाई करने लगें या हमें कितनों कि नाईं सिफारिश की पत्रियां तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं?
हमारी पत्री तुम ही हो, जो हमारे ह्रृदयों पर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहिचानते और पढ़ते है।
यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिस को हम ने सेवकों की नाई लिखा; और जो सियाही से नहीं, परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्तु ह्रृदय की मांस रूपी पटियों पर लिखी है।
हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं।
यह नहीं, कि हम अपने आप से इस योग्य हैं, कि अपनी ओर से किसी बात का विचार कर सकें, पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।
जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है।
और यदि मृत्यु की यह वाचा जिस के अक्षर पत्थरों पर खोद गए थे, यहां तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुंह पर के तेज के कराण जो घटता भी जाता था, इस्त्राएल उसके मुंह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे।
तो आत्मा की वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी?
क्योंकि जब दोषी ठहराने वाली वाचा तेजोमय थी, तो धर्मी ठहराने वाली वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी?
और जो तेजोमय था, वह भी उस तेज के कारण जो उस से बढ़ कर तेजामय था, कुछ तेजोमय न ठहरा।
एक साल में बाइबल:
- व्यवस्थाविवरण ११-१३
- मरकुस १२:१-२७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें