एक छोटे बच्चे ने घोषणा करी, "मेरा कद ९ फुट है, मैं गोलियत के समान हूँ।" उसकी माँ ने पूछा, "तुम यह किस आधार पर कह सकते हो?" बच्चा बोला, "मैंने कद नापने का अपना पैमाना बनाया है और उसके अनुसार मेरा कद ९ फुट का है।" उस बच्चे ने नापा तो सही था पर जिस पैमाने से नापा था, वही गलत था।
कुछ ऐसा ही लोगों के साथ होता है जब वे अपनी धार्मिकता का स्तर अन्य लोगों की धार्मिकता से नापते हैं। दूसरों के व्यवहार की तुलना में अपने व्यवहार को रख कर उन्हें लगता है कि उनमें कोई कमी नहीं है, इसलिए उन्हें अपने आप में कोई पाप का बोध नहीं होता और न ही पाप की क्षमा पाने तथा उद्धार की कोई आवश्यक्ता महसूस होती है। लेकिन उनके अपनी धार्मिकता नापने के गलत पैमाने की सच्चाई तब सामने आती है जब वे अपने आप को धार्मिकता के सम्पूर्ण, सिद्ध और कभी न बदलने वाले स्तर - परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह के सामने रखते हैं।
परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता यशायाह ने जब परमेश्वर का दर्शन उसके वैभव और महिमा में पाया तो वह पुकार उठा, "... हाय! हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं, क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!" जब प्रभु यीशु के चेले और प्रेरित युहन्ना ने प्रभु यीशु का दर्शन उसके ईश्वरीय स्वरूप में पाया, तो उसका अनुभव यशायाह के अनुभव से भिन्न नहीं था; यूहन्ना लिखता है, "जब मै ने उसे देखा, तो उसके पैरों पर मुर्दा सा गिर पड़ा और उस ने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रखकर यह कहा, कि मत डर मैं प्रथम और अन्तिम और जीवता हूं" (प्रकाशितवाक्य १:१७)। जब यह हाल उनका है जो परमेश्वर के भक्त और चुने हुए धर्मी जन हैं, तो हम साधारण मनुष्यों का, जिनके लिए लिखा है कि "सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं" (रोमियों ३:२३) उस सिद्ध के सामने क्या हाल होगा?
जब हम अपनी धार्मिकता को अपने समान ही अन्य पापी लोगों से तुलना द्वारा आंकते हैं तो ना तो हम सही होते हैं और ना ही हमारे निष्कर्श, क्योंकि हमारा नापने का मानदण्ड ही गलत है। चाहे हम मनुष्यों की नज़रों में इस गलत पैमाने द्वारा धर्मी माने जा सकते हैं, लेकिन इस गलत पैमाने द्वारा हम कभी परमेश्वर के समक्ष धर्मी नहीं ठहर सकते। परन्तु परमेश्वर ने हमें धर्मी ठहराने के लिए हमारे लिए केवल एक ही मार्ग दिया है, वह मार्ग जो समस्त संसार के प्रत्येक जन के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध है - किसी भी प्रकार के कर्मों द्वारा नहीं वरन साधारण विश्वास द्वारा।
प्रभु यीशु द्वारा क्रूस पर दिये गए उसके बलिदान में विश्वास करके और साधारण विश्वास से उस से अपने पापों की क्षमा माँगने भर से ही कोई भी व्यक्ति कभी भी कहीं भी किसी भी समय परमेश्वर की धार्मिकता को प्राप्त कर सकता है और अनन्त काल तक उस अविनाशी धार्मिकता के भले परिणामों का आनन्द ले सकता है। - मार्ट डी हॉन
क्योंकि हमें यह हियाव नहीं कि हम अपने आप को उन में से ऐसे कितनों के साथ गिनें, या उन से अपने को मिलाएं, जो अपनी प्रशंसा करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौल कर एक दूसरे से मिलान कर के मूर्ख ठहरते हैं। - २ कुर्न्थियों १०:१२
बाइबल पाठ: रोमियों ३:१०-२४
Rom 3:10 जैसा लिखा है, कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
Rom 3:11 कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं।
Rom 3:12 सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।
Rom 3:13 उन का गला खुली हुई कब्र है: उन्हों ने अपनी जीभों से छल किया है: उन के होठों में सापों का विष है।
Rom 3:14 और उन का मुंह श्राप और कड़वाहट से भरा है।
Rom 3:15 उन के पांव लोहू बहाने को फुर्तीले हैं।
Rom 3:16 उन के मार्गों में नाश और क्लेश है।
Rom 3:17 उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
Rom 3:18 उन की आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।
Rom 3:19 हम जानते हैं, कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के आधीन हैं: इसलिये कि हर एक मुंह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।
Rom 3:20 क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।
Rom 3:21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं।
Rom 3:22 अर्थात परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है; क्योंकि कुछ भेद नहीं।
Rom 3:23 इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है।
Rom 3:24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
एक साल में बाइबल:
कुछ ऐसा ही लोगों के साथ होता है जब वे अपनी धार्मिकता का स्तर अन्य लोगों की धार्मिकता से नापते हैं। दूसरों के व्यवहार की तुलना में अपने व्यवहार को रख कर उन्हें लगता है कि उनमें कोई कमी नहीं है, इसलिए उन्हें अपने आप में कोई पाप का बोध नहीं होता और न ही पाप की क्षमा पाने तथा उद्धार की कोई आवश्यक्ता महसूस होती है। लेकिन उनके अपनी धार्मिकता नापने के गलत पैमाने की सच्चाई तब सामने आती है जब वे अपने आप को धार्मिकता के सम्पूर्ण, सिद्ध और कभी न बदलने वाले स्तर - परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह के सामने रखते हैं।
परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता यशायाह ने जब परमेश्वर का दर्शन उसके वैभव और महिमा में पाया तो वह पुकार उठा, "... हाय! हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं, क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!" जब प्रभु यीशु के चेले और प्रेरित युहन्ना ने प्रभु यीशु का दर्शन उसके ईश्वरीय स्वरूप में पाया, तो उसका अनुभव यशायाह के अनुभव से भिन्न नहीं था; यूहन्ना लिखता है, "जब मै ने उसे देखा, तो उसके पैरों पर मुर्दा सा गिर पड़ा और उस ने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रखकर यह कहा, कि मत डर मैं प्रथम और अन्तिम और जीवता हूं" (प्रकाशितवाक्य १:१७)। जब यह हाल उनका है जो परमेश्वर के भक्त और चुने हुए धर्मी जन हैं, तो हम साधारण मनुष्यों का, जिनके लिए लिखा है कि "सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं" (रोमियों ३:२३) उस सिद्ध के सामने क्या हाल होगा?
जब हम अपनी धार्मिकता को अपने समान ही अन्य पापी लोगों से तुलना द्वारा आंकते हैं तो ना तो हम सही होते हैं और ना ही हमारे निष्कर्श, क्योंकि हमारा नापने का मानदण्ड ही गलत है। चाहे हम मनुष्यों की नज़रों में इस गलत पैमाने द्वारा धर्मी माने जा सकते हैं, लेकिन इस गलत पैमाने द्वारा हम कभी परमेश्वर के समक्ष धर्मी नहीं ठहर सकते। परन्तु परमेश्वर ने हमें धर्मी ठहराने के लिए हमारे लिए केवल एक ही मार्ग दिया है, वह मार्ग जो समस्त संसार के प्रत्येक जन के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध है - किसी भी प्रकार के कर्मों द्वारा नहीं वरन साधारण विश्वास द्वारा।
प्रभु यीशु द्वारा क्रूस पर दिये गए उसके बलिदान में विश्वास करके और साधारण विश्वास से उस से अपने पापों की क्षमा माँगने भर से ही कोई भी व्यक्ति कभी भी कहीं भी किसी भी समय परमेश्वर की धार्मिकता को प्राप्त कर सकता है और अनन्त काल तक उस अविनाशी धार्मिकता के भले परिणामों का आनन्द ले सकता है। - मार्ट डी हॉन
यदि किन्ही कर्मों द्वारा मनुष्य स्वयं धर्मी बन सकता तो प्रभु यीशु मसीह को इसके लिए अपने प्राण बलिदान करने की कदापि आवश्यक्ता नहीं पड़ती।
क्योंकि हमें यह हियाव नहीं कि हम अपने आप को उन में से ऐसे कितनों के साथ गिनें, या उन से अपने को मिलाएं, जो अपनी प्रशंसा करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौल कर एक दूसरे से मिलान कर के मूर्ख ठहरते हैं। - २ कुर्न्थियों १०:१२
बाइबल पाठ: रोमियों ३:१०-२४
Rom 3:10 जैसा लिखा है, कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
Rom 3:11 कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं।
Rom 3:12 सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं।
Rom 3:13 उन का गला खुली हुई कब्र है: उन्हों ने अपनी जीभों से छल किया है: उन के होठों में सापों का विष है।
Rom 3:14 और उन का मुंह श्राप और कड़वाहट से भरा है।
Rom 3:15 उन के पांव लोहू बहाने को फुर्तीले हैं।
Rom 3:16 उन के मार्गों में नाश और क्लेश है।
Rom 3:17 उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
Rom 3:18 उन की आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।
Rom 3:19 हम जानते हैं, कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के आधीन हैं: इसलिये कि हर एक मुंह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।
Rom 3:20 क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।
Rom 3:21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं।
Rom 3:22 अर्थात परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है; क्योंकि कुछ भेद नहीं।
Rom 3:23 इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है।
Rom 3:24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
एक साल में बाइबल:
- भजन ४-६
- प्रेरितों १७:१६-३४
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