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सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 44 – Be Stewards of God’s Word / परमेश्वर के वचन के भण्डारी बनो – 30

परमेश्वर के वचन में फेर-बदल – 15

 

    पिछले लेख में हमने उन दो मुख्य कारणों को देखा था जिनके द्वारा शैतान परमेश्वर के वचन में फेर-बदल करने पाता है, और फिर उस बिगाड़े तथा भ्रष्ट किए हुए वचन के दुरुपयोग के द्वारा परमेश्वर के लोगों को सरलता से बहका और भरमा लेता है। इन दो में से पहला कारण है अधिकांश मसीहियों या ईसाइयों का परमेश्वर के वचन के प्रति उदासीन होना, उसे स्वयं अध्ययन नहीं करना। और परमेश्वर के वचन के प्रति अपनी इस घटी के समाधान के प्रयास में, प्रचारकों और शिक्षकों द्वारा कही गई बातों को बिना जाँचे-परखे, बिना उनकी पुष्टि करे, स्वीकार कर लेना। दूसरा कारण है कलीसिया के अगुवों, प्रमुख लोगों, प्रचारकों और शिक्षकों में, जैसे-जैसे उनकी ख्याति और स्तर बढ़ता जाता है, उनकी सेवकाई को लेकर उनमें एक छुपा हुआ घमण्ड आ जाना। चुपके से आए हुए इस अप्रत्यक्ष घमण्ड को बढ़ावा उनके उन अन्ध-भक्तों से मिलता है जो यह मान ही नहीं सकते हैं कि उनके अगुवे और प्रचारक कुछ गलत कह सकते हैं या कैसी भी कोई गलती कर सकते हैं।


    बाइबल में दो बातें दी गईं हैं, जो इस बात का निश्चित प्रमाण हैं कि परमेश्वर के धर्मी अगुवों, प्रमुख लोगों, प्रचारकों, और शिक्षकों आदि में ये गलतियाँ घुस आई हैं। पहली बात है उनके द्वारा बाइबल के शब्दों, लेखों, वाक्यांशों, आदि को उन अर्थों और अभिप्रायों के साथ स्वयं भी उपयोग करना तथा औरों को भी करना सिखाना, जैसे उन्हें बाइबल में कभी किया ही नहीं गया है। और दूसरी बात है उन अगुवों के द्वारा कलीसिया या मण्डली में न केवल व्यक्तित्व पर आधारित विभाजनों को स्वीकार करना वरन उन्हें करवाना, उन्हें बनाए रखना, और उन्हें बढ़ावा भी देना। इस प्रकार की गुट-बाज़ी सामान्यतः इसलिए होती है क्योंकि ये परमेश्वर के धर्मी अगुवे, प्रमुख लोग, प्रचारक, और शिक्षक ही, उन्हीं कारणों से जिनका उल्लेख 1 कुरिन्थियों 1:11-13; 3:3-4; 11:18-19 में किया गया है, स्वयं ही विभाजन खड़े करते हैं और फिर उन्हें बना कर भी रखते हैं। क्योंकि कलीसिया या मण्डली के लोग किसी एक अगुवे या प्रचारक को किसी अन्य से बढ़कर आदर देते हैं, उसके साथ जुड़ने लगते हैं, उसका अनुसरण करने लगते हैं, इसलिए अगुवों और प्रचारकों में अहम का टकराव और मतभेद उत्पन्न होने लगते हैं। फिर ये टकराव और मतभेद कलीसिया या मण्डली के लोगों में पहुँचा दिए जाते हैं, तथा लोगों से उनमें से किसी एक को चुनकर उसके तथा उसके गुट के लोगों के साथ रहने के लिए कहा जाता है। यह एक बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण तथा बाइबल के विरुद्ध बात है कि बजाए अपने मध्य के मतभेदों का समाधान करने और कलीसिया के लोगों में एकता बनाए रखने के, कलीसिया के ही अगुवे और प्रचारक न केवल विभाजन और बांटने वाली दीवारें खड़ी करते हैं, बल्कि ढिठाई से उन्हें बना कर भी रखते हैं। और यह सब उनके द्वारा प्रेम, सहनशीलता, क्षमा, और एक-मनता, आदि का, सुसमाचार का प्रचार करने और सिखाने के साथ होता है ।


    प्रेरित पौलुस ने पवित्र आत्मा की अगुवाई में इन दोनों बातों, अर्थात, वचन में जोड़ना तथा एक से बढ़कर दूसरे को देखना, का उल्लेख 1 कुरिन्थियों 4:6 किया है “हे भाइयों, मैं ने इन बातों में तुम्हारे लिये अपनी और अपुल्लोस की चर्चा, दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिये कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो, कि लिखे हुए से आगे न बढ़ना, और एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न करना” जैसा पौलुस ने इससे थोड़ा सा पहले (1 कुरिन्थियों 3:3-6) में किया था, वैसे ही यहाँ पर भी वह एक बार फिर से अपने आप को तथा अपुल्लोस को उदाहरण बनाने के द्वारा बता रहा है। इन पद में वह समस्या को, उसके कारण को, और उसके समाधान को बताता है। वह बहुत स्पष्ट और दृढ़ता से कहता है कि वे दोनों, पौलुस और अपुल्लोस, इस बात में सचेत और दृढ़ रहे कि वचन में जो लिखा है, उससे आगे न बढ़ें; अर्थात, उन्होंने कभी भी, किसी भी रीति परमेश्वर के वचन के लेख, उसके अर्थ, अथवा उसके अभिप्राय में कुछ भी नहीं जोड़ा। क्योंकि वे परमेश्वर के वचन की इस शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखने के प्रति दृढ़-निश्चय थे, इसीलिए, वे इस बात को कलीसिया को भी सिखा सके। और इसीलिए, वे यह भी दिखा सके कि लिखित वचन की सीमाओं में बने रहने के द्वारा, मण्डली मनुष्यों में घमण्ड करने, एक मनुष्य को दूसरे से बढ़कर समझने की गलती से बची रहेगी, जिस के कारण कलीसिया में विभाजन और गुट-बाज़ी होती है।


    ये दो बातें, अर्थात, वचन में जोड़ना तथा एक से बढ़कर दूसरे को देखना, ही वे दो संकेत हैं जो यह पहचान करवाते हैं कि कोई अगुवा या प्रचारक शैतान की युक्तियों में फँस गया है। इस गलती से बचने का परमेश्वर द्वारा दिया गया समाधान है 1 कुरिन्थियों 11:1 – किसी भी मनुष्य का नहीं, बल्कि केवल मसीह यीशु का ही अनुसरण करो, ठीक उसी तरह से जैसे पौलुस करता था। इसलिए मसीही विश्वासियों, अर्थात परमेश्वर के वचन के भण्‍डारियों को, किसी भी अगुवे, प्रमुख जन, प्रचारक, या शिक्षक के स्तर और प्रतिष्ठा से प्रभावित होकर कार्य करने की बजाए, जो भी प्रचार किया और सिखाया जाता है, पहले वचन से उसकी जाँच-परख करनी चाहिए, और उसके बाद ही स्वीकार करना तथा पालन करना चाहिए। किसी भी मनुष्य का, उसके शब्दों, उसकी शैली, उसके हाव-भाव का आँख मूंद कर अनुसरण करना देर-सवेर गलतियों तथा समस्याओं में पड़ने और आशीषों की हानि उठाने का कारण ठहरेगा।


    अगले लेख में हम देखेंगे कि शैतान इतने उद्यम से परमेश्वर के वचन में फेर-बदल करवाने, उसे भ्रष्ट करने और परमेश्वर के लोगों को पथ-भ्रष्ट करने के प्रयास में क्यों लगा रहता है।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


 

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Altering God’s Word – 15

 

    In the previous article we have seen the two main reasons of Satan being able to alter God’s Word, then have the distorted, corrupted Word spread and used so easily to misguide God’s people. The first of these two reasons is the very common apathy amongst the vast majority of Christians to not study God’s Word for themselves. Rather, to try and make up for their deficiency of learning God’s Word, they accept what preachers and teachers present to them, without cross-checking and verifying it. The second reason is the tendency of subtle arrogance that creeps into the leaders and Elders, the preachers and teachers about their ministry as they grow in eminence. This subtle arrogance is encouraged because of their blind-followers, who just cannot accept that those leaders and preachers can say anything wrong or make any mistakes.


    In the Bible there are given two definite indicators that these errors have crept into God’s committed Believers, Church leaders or elders, Bible preachers or teachers, etc. The first one is their using as well as teaching others also to use Biblical words, phrases, texts etc. in ways, with meanings and implications that have that have never been stated, or used, or implied in the Bible about them. And, the second is those leader’s tolerating, creating, maintaining and encouraging personality-based factionalism in the Churches and Assemblies. The groupism is usually because these committed Believers, Church leaders or elders, Bible preachers or teachers, etc., either allow, or are even instrumental in creating and maintaining factions and divisions within the Church or Assemblies because of the same reasons as are given in 1 Corinthians 1:11-13; 3:3-4; 11:18-19. Because the people of the congregation start associating with, honoring, or following one elder or preacher over another, it leads to personality clashes, and contentions amongst the elders and preachers. These differences and contentions are then passed on to the congregation, and the people of the congregation are asked to side either with one or the other of these leaders and others in their group. It is so unfortunate and unBiblical that instead of ironing out their differences, and encouraging unity in the Church congregation, the elders and preachers not only create divisions and walls of separation in the Churches or Assemblies, but even stubbornly maintain them. And, all of this happens along with their preaching and teaching about love, forbearance, forgiveness, and being one-minded etc., and the gospel.


    The apostle Paul, through the Holy Spirit, pointed out these two factors, i.e., adding to God’s Word and placing one leader over another, and decreed against them in 1 Corinthians 4:6 [NIV] “Now, brothers, I have applied these things to myself and Apollos for your benefit, so that you may learn from us the meaning of the saying, "Do not go beyond what is written." Then you will not take pride in one man over against another.” Here Paul, as he had done a little earlier (1 Corinthians 3:3-6), once again sets forth himself and Apollos as examples, and states the problem, its cause, and its solution. He categorically says that they both, Paul and Apollos made it a point not to go beyond what had already been written in the Scriptures; i.e., they never, in any manner, neither added to the text nor to its meaning, nor implied anything beyond what already had been written and given in God’s Word. Because they were particular about maintaining this sanctity of God’s Word, therefore they could teach the same to the Church. And therefore, they could also point out that by their staying within the limits of the written Word, the congregation will be able to avoid the trap of taking pride in men, putting one man over an another, which leads to factions and divisions in the Church.


    These two things, i.e., adding to God’s Word and placing one leader over another, are the two points which help in discerning that the elder or preacher has fallen prey to Satan’s ploy. The God given solution to falling for this error is 1 Corinthians 11:1 – emulate Christ Jesus, and not any man, in just the same way as Paul used to do. Therefore, Christian Believers, the stewards of God’s Word, instead of getting carried away by the eminence and stature of a leader or elder, or preacher, should make it a point to always cross-check and confirm the messages i.e, whatever is preached and taught to them, from God’s Word and only then accept and obey it. Blindly following any man, his words, style, and his mannerisms, will sooner or later result in getting involved in errors, falling into problems, and suffering a loss of blessings.


    In the next article we will see why Satan so desperately tries to alter and corrupt God’s Word, why he has been striving so hard through all these and other ploys to corrupt God’s Word and misguide people.


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


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शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न – 42j – Examples from New Testament / नए नियम के उदाहरण – 1

 

क्या बाइबल के अनुसार, क्या मसीही कलीसियाओं में स्त्रियों को पुलपिट से प्रचार करने और पास्टर की भूमिका निभाने की अनुमति है? 


भाग 10 – नए नियम की स्त्रियों के उदाहरणों का विश्लेषण – 1

 

    पिछले लेख में हमने पुराने नियम कि कुछ स्त्रियों के उदाहरणों को देखा था, जिन्हें परमेश्वर के वचन में “नबिया” कहा गया है, और जिन्हें अनुचित रीति से उदाहरण बनाकर यह प्रमाणित करने का दावा किया जाता है कि वचन महिलाओं को कलीसियाओं में प्रचारक और पास्टर होने की अनुमति देता है। उनके संबंध में दी गई वचन की बातों को देखने और विश्लेषण करने से यह प्रकट हो गया कि वचन ऐसी कोई अनुमति नहीं देता है, और न ही उनके उदाहरण को इस बात को प्रमाणित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। आज से हम नए नियम की स्त्रियों के उदाहरणों, और वचन में उनके विषय लिखी गई बातों को देखेंगे, और विश्लेषण करेंगे कि क्या उनके उदाहरण स्त्रियों के प्रचारक और पास्टर होने की अनुमति के दावे की पुष्टि करते हैं कि नहीं।


    एक बहुधा प्रयोग किया जाने वाला उदाहरण है फीबे का, जिसके बारे में प्रेरित पौलुस रोमियों 16:1 में लिखता है, “मैं तुम से फीबे की, जो हमारी बहिन और किंख्रिया की लीसिया की सेविका है, बिनती करता हूँ।” स्पष्ट है कि फीबे को सेविका कहा गया है, न तो प्रचारिका कहा गया है और न ही पास्टर। यहाँ जिस मूल यूनानी शब्द ‘डायाकनोस’ का अनुवाद ‘सेविका’ हुआ है, उसका अर्थ यही है – वह जो सेवा, अर्थात रख-रखाव या देखभाल करे। इसलिए इस शब्द को फीबे के लिए भी इसी अर्थ में लिया जाना चाहिए, न कि उसमें अपने ही अर्थ और अभिप्राय जोड़ कर वास्तविकता से भिन्न अर्थ दिया जाना चाहिए। इस शब्द को इस पद में “सेविका” अनुवाद किया गया है, जो इस शब्द Diakonos (डायकानोस) का वास्तविक और सही शब्दार्थ है; और यह शब्द इसी अर्थ एवं अभिप्राय के साथ नए नियम में अनेकों स्थानों पर भी प्रयोग हुआ है।


    यहाँ पर असमंजस का और इस पद के अनुचित अर्थ के साथ उपयोग किए जाने कारण है मूल यूनानी भाषा का शब्द Diakonos (डायकानोस) की आज की समझ। वर्तमान में कलीसियाओं में यूनानी भाषा के इस शब्द Diakonos (डायकानोस) से बना शब्द “डीकन” एक अधिकार का और कलीसियाओं एवं पास्टरों के ऊपर नियंत्रण और प्रबंधन का स्थान रखने वाले के लिए उपयोग किया जाता है। पास्टरों में से ही तरक्की पा कर लोग डीकन बनते हैं और फिर वे कई कलीसियाओं पर तथा उनके पास्टरों पर अधिकार रखते हैं। इसलिए आज लोग यह समझते हैं कि यदि फीबे “डीकन” थी, तो वह पास्टरों पर अधिकार रखने वाली और अवश्य ही कलीसिया में प्रचार करने वाली रही होगी। किन्तु लगभग 2000 साल पहले, मूल यूनानी भाषा के सामान्य प्रयोग के अनुसार, पौलुस ने इस पत्री में इस शब्द का प्रयोग किया था, जिसके अनुसार फीबे अधिकारी और प्रचार करने वाली नहीं, कलीसिया की सेविका, वहाँ रख-रखाव और देखभाल करने वाली थी। समय के साथ शब्द के अर्थ और समझ में लोगों में आए परिवर्तन के कारण, शैतान ने यह भ्रम और गलत अभिप्राय फैला रखा है, और इसका अनुचित उपयोग करवा रहा है।


    कुछ लोग इसी Diakonos (डायकानोस) शब्द का एक और अभिप्राय, ध्यान कीजिए, अनुवाद नहीं वरन अभिप्राय, पास्टर भी बताते हैं; किन्तु यह मात्र उनके द्वारा दिया जाने वाला एक तात्पर्य है, वास्तविक अर्थ नहीं है। इफिसियों 4:11 में प्रभु द्वारा दी गई प्रचार से संबंधित तीन सेवकाइयों को बताया गया है – सुसमाचार सुनाने वाले, रखवाले (पास्टर) और उपदेशक (या शिक्षक), और इन तीनों में से किसी भी सेवकाई के लिए मूल यूनानी भाषा में Diakonos (डायकानोस) शब्द नहीं प्रयोग किया गया वरन उससे भिन्न तीन शब्द प्रयोग किए गए हैं। अंग्रेज़ी भाषा में पूरे नए नियम में, शब्द “pastor” केवल एक बार प्रयोग हुआ है, इफिसियों 4:11 में; और इस पद में मूल यूनानी भाषा में प्रयोग किया गया शब्द है poimen (पोइमेन), जिसका शब्दार्थ होता है एक चरवाहा या रखवाला। इसीलिए हिन्दी की बाइबल में इस पद में ‘पास्टर’ नहीं ‘रखवाला’ लिखा गया है; और नए नियम में अन्य स्थानों पर भी जहाँ यूनानी भाषा में poimen (पोइमेन) आया है, वहाँ हिन्दी एवं अंग्रजी में इसका अनुवाद केवल चरवाहा ही किया गया है। पूरे नए नियम के किसी भी अनुवाद में कहीं पर भी कभी भी Diakonos (डायकानोस) को पास्टर अनुवाद नहीं किया गया है, क्योंकि मूल यूनानी भाषा के अनुसार वह इसका अनुवाद है ही नहीं।


    फीबे चर्च की सेविका थी – चर्च और चर्च के लोगों की देखभाल, संयोजन, रख-रखाव आदि करने में उसकी भूमिका थी, न कि प्रचार करने में; सेविका का अर्थ प्रचारिका अथवा पास्टर नहीं होता है। इसलिए फीबे के उदाहरण को लेकर महिलाओं के कलीसिया में प्रचार करने या पास्टर होने को जायज़ ठहराना अनुचित है, वचन का दुरुपयोग है, और वास्तव में ‘गलत शिक्षा’ है। यदि इन महिलाओं को फीबे का अनुसरण करना है तो कलीसिया में आएँ और उसकी देख-भाल और रख-रखाव में भाग लें, जैसे फीबे करती थी, उसके नाम में पुल्पिट को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए प्रयोग क्यों करना चाहती हैं? अगले लेख में हम कुछ अन्य उदाहरणों का विश्लेषण करेंगे।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

- क्रमशः


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According to the Bible, Do Women Have the Permission to Serve as Pastors and Preach from the Pulpit in the Church?

 

Part 10 – Analysis of Examples of Women of the New Testament – 1

 

    In the previous article we had seen some examples of women of the Old Testament, who have been called “prophetess” in God’s Word, and whose example is being misinterpreted and misused to try to justify the false claims that women have the sanction from God’s Word to be preachers and pastors in the Church. When we saw the information given about them in God’s Word, and analyzed it, it became evident that the Scriptures do not give any such permission, and their example cannot be used to prove the point that is being attempted. From today, we will look at some examples of women from the New Testament, and analyze them to see if they provide the permission for women to preach and be pastors in the Church.


    One very commonly used example is that of Phoebe, about whom the Apostle Paul writes, “I commend to you Phoebe our sister, who is a servant of the church in Cenchrea.” It is very clear that Phoebe has been called a ‘servant’; she has neither been called a ‘preacher’, nor has she been called a ’pastor’. The word used here in the original Greek language is ‘Diakonos’, and it means just what it has been translated – one who serves, i.e., takes care, helps or attends to others. Therefore, for Phoebe too, this word should be taken with this very meaning; it should not be given any different meaning to give it a new implication, different from that in the original. This word has been translated as ‘servant’ in this verse, which is the correct meaning and translation of this word; and this word has been used at other places in the New Testament with this very meaning. Therefore, here too it should be understood and used with this actual meaning only.


    The cause of confusion and of this verse being misused is the meaning that is attached to this Greek word Diakonos today. In the present day Churches the word “Deacon” which is a word derived from this Greek word Diakonos, is a word that is used in the Churches for an office of authority and of having charge, of managing many Churches and their pastors. The Deacons are promoted from amongst the pastors, and then are appointed over them. Therefore, today people assume and understand that if Phoebe was a “deaconess”, then she would have been a pastor and preacher in the Church prior to being promoted as “Deaconess”. But in the Greek language usage of this word about 2000 years ago, the commonly used and understood sense of this word was for a servant, an attendant; not an officer holding authority and charge over others. It was with this sense that Paul wrote about her, using the word “deaconess” in the original Greek language of the letter to Romans. Phoebe was one who was taking care of, looking after, and serving the Church. With time, because of the change in understanding and usage of the word, a different meaning has come into the minds of people, and Satan has misused it to create this false impression and wrong ideas in the congregations.


    Some people ascribe another implication to this word Diakonos – take note, that is not the meaning, but an implication added on to the word; they imply that this word also means being a pastor. But this is not the real meaning of the word, just an understanding that some people want to convey. In Ephesians 4:11, three different ministries related to preaching have been given – evangelists, pastors and teachers. For none of these ministries, in the original Greek language, has the word Diakonos been used, but three other, different words have been used. In the English translations of the Bible, in the New Testament the word “pastor” has been used just once, only in this verse Ephesians 4:11. And the word used in the Greek language is ‘Poimen’, which has been translate as ‘pastor’ here. The word Poimen literally means “shepherd”, or one who takes care; and in the English translations of the Bible, wherever the Greek word Poimen has come, except for this one instance, at every other place it has always been translated only as “shepherd”. In the whole of the New Testament, never has the word Diakonos ever been translated as “pastor” in any English translation, since the actual meaning of this Greek word never can be a “pastor”.


    Phoebe was a servant of the Church; her role was in taking care of the Church and the congregation. The word ‘servant’ does not mean or imply ‘preacher’ or ‘pastor; and her role was never of a preacher or a pastor of the Church. Therefore, to take the example of Phoebe and try to use it to justify women being preachers and pastors in the church is to misuse God’s Word, is a wrong teaching. Those who want to use the example of Phoebe, should come into the Church as ‘servants’ and spend time looking after the Church, the congregation, serving them and attending to them, as Phoebe used to do. Why should they misuse her name and ministry to fulfill their selfish desire of using the pulpit? In the next article we will look at some other examples and analyze them.


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

- To Be Continued


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बुधवार, 28 जून 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न – 42a – Women Pastors and Preachers / महिला पास्टर और प्रचारक?

क्या बाइबल के अनुसार, क्या मसीही कलीसियाओं में स्त्रियों को पुलपिट से प्रचार करने और पास्टर की भूमिका निभाने की अनुमति है?

भाग 1 – प्रस्तावना

 

    आज से हम एक नए विषय पर विचार करने जा रहे हैं, जो वर्तमान में मण्डलियों में काफी असमंजस तथा वाद-विवाद का कारण है, और कलीसियाओं में मतभेदों का भी कारण बना हुआ है। जैसा उपरोक्त शीर्षक से प्रकट है, यह विषय है कलीसियाओं में महिलाओं द्वारा पास्टर और प्रचारक की भूमिकाओं को निभाना। यह विषय सहज नहीं है, और पाठकों से विनम्र निवेदन है कि धैर्य तथा शांत मन से, और किसी पूर्व धारणा के अनुसार उत्तेजित हुए बिना, बाइबल से संगत निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए, कृपया पूरी श्रृंखला को ध्यानपूर्वक पढ़ें और समझें। श्रृंखला के आरम्भ ही में यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि इन लेखों और इस श्रृंखला का उद्देश्य किसी भी रीति से स्त्रियों को पुरुषों से भिन्न दर्जे का या पुरुषों के अधीन दिखाना नहीं है। वरन, जैसा हमेशा ही पहले के अन्य विषयों एवं लेखों में रहा है, केवल परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार विषय का विश्लेषण करना और बाइबल के संबंधित हवाले आप के सामने रखना है। उस विश्लेषण और उन हवालों को स्वीकार अथवा अस्वीकार करना आप का व्यक्तिगत निर्णय है।


    आज हम प्रस्तावना के रूप में शैतान की कार्यविधि और षड्यंत्र रचना के आधार के साथ आरम्भ करेंगे, जिसके द्वारा उसने कलीसियाओं में इस विषय को लेकर वाद-विवाद और मतभेद डाले हुए हैं, और उन्हें बढ़ा रहा है। 2 कुरिन्थियों 2:11 में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस द्वारा लिखवाया है, “कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियों से अनजान नहीं”; अर्थात शैतान कलीसियाओं में तब ही सफलता के साथ कार्यकारी हो सकता है जब मसीही उसकी कार्यविधियों और युक्तियों से अनजान रहेंगे। यदि मसीही शैतान की कार्यविधियों और युक्तियों को पहचानने वाले होंगे तो वे उनके प्रति सचेत भी रहेंगे, और उन्हें सफल भी नहीं होने देंगे। फिर, 2 कुरिन्थियों 11:3 में लिखा है, “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सिधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्‍ट न किए जाएं।” कहने का तात्पर्य यह है कि शैतान की कार्यविधि है लोगों को चतुराई से बहकाना – अपने झूठ को परमेश्वर के वचन के सत्य में लपेट कर चुपके से हमारे अन्दर डाल देना, तथा उसके उस झूठ को हमारे अन्दर डाल और पनपा कर प्रभु के लोगों को उस सिधाई और पवित्रता से भ्रष्ट कर देना, जिससे वे मसीह के साथ बने न रह सकें । क्योंकि जहाँ झूठ, अनाज्ञाकारिता, परमेश्वर और उसके वचन को नहीं वरन मनुष्यों की गढ़ी हुई बातों को प्राथमिकता मिलना और पालन करना, और अपवित्रता है, परमेश्वर वहाँ साथ बना नहीं रह सकता है (यशायाह 59:2; मत्ती 15:7-9)।


    शैतान ने इसी कार्यविधि और षड्यंत्र का अदन की वाटिका में प्रयोग किया, हव्वा को बहका कर पाप को संसार में प्रवेश करवाया, और आज भी उसी युक्ति के द्वारा अपनी कुटिलता और दुष्टता को कलीसियाओं में घुसा और फैला रहा है। अगले लेख में हम शैतान की इस युक्ति को देखेंगे और समझेंगे।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

- क्रमशः

 

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According to the Bible, Do Women Have the Permission to Serve as Pastors and Preach from the Pulpit in the Church?
Part 1 – Introduction

 

    From today we are going to start pondering over a new topic, one that has become a cause of much confusion and debate, and also of divisions in the Churches. As is apparent from the above heading, this topic is women being permitted to function as Pastors and Preachers in the Churches. This is not an easy, straightforward topic, therefore a humble request to the readers, please go through the articles patiently and with a quiet heart, without getting excited because of any previous notions, and so as to reach conclusions consistent with the Bible, please go through and think over the whole series first. It would be appropriate at the very beginning of this series to clarify that the intention of this series is not to show women to be in any way of a different level than men, nor of women to be subservient to men. But, as has always been the case in all the previous articles, the purpose is to analyze the topic according to the Biblical facts, and to present the related Bible references before you. To accept or to reject the analysis and the Bible references is your personal decision.


    Today, in the Introduction, we will start by looking at the strategy and devices of Satan, through which he has brought much discord and divisions in the Churches, and is continuing to multiply it. God the Holy Spirit, through the Apostle Paul had it written in 2 Corinthians 2:11, “lest Satan should take advantage of us; for we are not ignorant of his devices”; i.e., Satan can be successful in the Churches only when the Christians are unaware of his strategies and devices. If the Christians learn to recognize his strategies and devices, they will also become alert and cautious towards them, and will keep them from being successful. Then, in 2 Corinthians 11:3 it is written, “But I fear, lest somehow, as the serpent deceived Eve by his craftiness, so your minds may be corrupted from the simplicity that is in Christ.” In other words, Satan’s strategy is to cleverly deceive the people – deceptively bring in his lies wrapped in the truth of God’s Word, and then make those lies take root and grow in us, and thereby corrupt us from the simplicity that is in Christ Jesus, so that we no longer can continue in fellowship with Christ. Since, wherever there are lies, deceit, disobedience, primacy and acceptance is given to man-made and contrived concepts instead of God and God’s Word, and corruption, there God cannot continue to fellowship with man (Isaiah 59:2; Matthew 15:7-9).


    Satan used this strategy and device in the Garden of Eden, deceived Eve, got sin to enter into the world, and even today, is using the same strategy and device, he is introducing and spreading his deviousness and evils in the Churches. In the next article, we will see and understand this device of Satan.


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

- To Be Continued

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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

आदर


   चर्च के पास्टरों को आलोचना का निशाना बनाना सहज है। प्रति सप्ताह वे हमारे सामने खड़े होते हैं, हमें परमेश्वर के वचन की बातें सिखाते और समझाते हैं, हमें चुनौती देते हैं कि हम प्रभु यीशु मसीह के समान जीवन व्यतीत करें। लेकिन अनेक बार हम उनके जीवनों में आलोचना करने योग्य बातों को ढ़ूँढ़ते रहते हैं। उन सारी अच्छाईयों को नज़रन्दाज़ करके जो पास्टर में पाई जाती हैं, केवल उसकी कुछ बातों पर ध्यान केंद्रित करना, फिर उन बातों के लिए उसकी आलोचना करना और उनके बारे में अपनी व्यक्तिगत राय को लोगों में फैलाना बहुत सरल होता है।

   हमें सदा यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारे पास्टर भी हम मनुष्यों के समान ही मनुष्य ही हैं और हमारे समान ही वे भी सिद्ध नहीं हैं। मैं यह नहीं कहता कि हमें आँखें मूँद कर उनकी कही हर बात को मान लेना चाहिए, ग्रहण कर लेना चाहिए; ना ही मैं यह कह रहा हूँ कि हमें उनकी गलतियों या कमज़ोरियों को नज़रन्दाज़ करना चाहिए; परन्तु जो मैं कह रहा हूं वह यह है कि यदि हमें उनमें कुछ कमी या त्रुटि नज़र आती है तो उसे सही रीति से, विनम्रता सहित उन तक पहुँचाना चाहिए। पास्टरों के प्रति, जो परमेश्वर का वचन सिखाने और मण्डली के अगुवे होने की सेवकाई करते हैं, परमेश्वर के वचन बाइबल में इब्रानियों को लिखी पत्री के कुछ भाग हमें सही दृष्टिकोण रखने में सहायक हो सकते हैं: "अपने अगुवों की मानो; और उनके आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले ले कर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं" (इब्रानियों 13:17)।

   इन वचनों के बारे में विचार कीजिए। परमेश्वर के सामने हमारे पास्टर हमें सही मार्गदर्शन देने के लिए जवाबदेह हैं; हमारा प्रयास होना चाहिए कि उनकी यह ज़िम्मेदारी आनन्दपूर्ण हो ना कि कष्टपूर्ण। इब्रानियों का यह खण्ड हमें यह भी सिखाता है कि पास्टर को तकलीफ देने से कोई लाभ नहीं होने वाला (पद 17)।

   जब हम उनका आदर करते हैं जिन्हें परमेश्वर ने हमारा अगुआ करके ठहराया है तो हम परमेश्वर का आदर करते हैं और अपने तथा मसीही मण्डली के लिए बातों को बेहतर तथा सुखदायी करते हैं। - डेव ब्रैनन


पास्टरों को, जो परमेश्वर का वचन प्रचार करते हैं, लोगों से अच्छे व्यवहार की आवश्यकता रहती है।

हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। इसलिए जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करने वाले दण्ड पाएंगे। - रोमियों 13:1-2

बाइबल पाठ: इब्रानियों 13:17-19
Hebrews 13:17 अपने अगुवों की मानो; और उनके आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले ले कर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं। 
Hebrews 13:18 हमारे लिये प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है; और हम सब बातों में अच्छी चाल चलना चाहते हैं। 
Hebrews 13:19 और इस के करने के लिये मैं तुम्हें और भी समझाता हूं, कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूं।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 19-20
  • मत्ती 27:51-66


सोमवार, 24 सितंबर 2012

आवाज़


   मैंने वियतनाम के युद्ध में वायुसेना के एक विमान चालक कप्तान रे बेकर के बारे में पढ़ा। युद्ध के समय में वायुसेना के प्रशिक्षण में उन विमान चालकों को प्रशिक्षित किया गया था कि चेतावनी की घंटी की आवाज़ सुनते ही वे अपने आवास स्थान या जहां कहीं भी वे हों वहां से भाग कर अपने अपने विमानों तक तुरंत उड़ान भरने के लिए पहुँचें। कई बार तो भोजन करते समय उन्हें भोजन और बर्तन छोड़कर भागना पड़ता था। उनका प्रशिक्षण उन्हें घंटी की आवाज़ सुनते ही कुछ सोचने के लिए रुकने का नहीं वरन तुरंत प्रतिक्रीया देने का था। यह प्रशिक्षण इतना उत्तम था कि एक दिन जब रे बेकर अपनी छुट्टी पर घूमने बाहर गया हुआ था और एक होटल में बैठा खाना खा रहा था, तो बाहर कहीं बजी किसी घंटी की आवाज़ सुनते ही वह अपना भोजन छोड़कर होटल से बाहर भाग निकला!

   जब प्रभु यीशु ने अपने पहले चेलों को बुलाया, उनके अन्दर भी उसकी आवाज़ को सुनकर उसके पीछे हो लेने की तत्परता थी। उन चेलों के लिए, जो व्यवसाय से मछुआरे थे, प्रभु की बुलाहट अनायास थी; परन्तु परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखा है कि "वे तुरन्‍त जालों को छोड़ कर उसके पीछे हो लिए" (मरकुस १:१८)। इस सुसमाचार लेख का लेखक, मरकुस, संभवतः अपने पाठकों पर प्रभु यीशु की बुलाहट और आवाज़ में विद्यमान अधिकार को दर्शाना चाह रहा था। जब प्रभु ने बुलाया तो ये लोग सब कुछ छोड़कर उसके हो लिए क्योंकि संभवतः परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने में लोगों की सहायता करना उन्हें मछली पकड़ने से अधिक रोचक और उत्तम लगा।

   जब प्रभु यीशु अपने पीछे हो लेने की आवाज़ किसी को देता है तो वह नहीं चाहता कि उसकी इस पुकार के पालन में कोई विलंब हो। सुसमाचार को दुसरों तक पहुँचाने के कार्य में वह तत्परता चाहता है। उसकी पुकार आज भी उसके सभी विश्वासियों के लिए यही है: "...स्‍वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्‍हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्‍हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्‍त तक सदैव तुम्हारे संग हूं" (मत्ती २८:१८-२०)। - मार्विन विलियम्स


प्रभु को आज भी संसार को सुसमाचार सुनाने वालों की आवश्यकता है।

वे तुरन्‍त जालों को छोड़ कर उसके पीछे हो लिए। - मरकुस १:१८

बाइबल पाठ: मरकुस १:१६-२०
Mar 1:16 गलील की झील के किनारे किनारे जाते हुए, उस ने शमौन और उसके भाई अन्‍द्रियास को झील में जाल डालते देखा, क्‍योंकि वे मछुवे थे। 
Mar 1:17  और यीशु ने उन से कहा, मेरे पीछे चले आओ, मैं तुम को मनुष्यों के मछुवे बनाऊंगा। 
Mar 1:18 वे तुरन्‍त जालों को छोड़ कर उसके पीछे हो लिए। 
Mar 1:19 और कुछ आगे बढ़कर, उस ने जब्‍दी के पुत्र याकूब, और उसके भाई यहून्ना को, नाव पर जालों को सुधारते देखा। 
Mar 1:20 उस ने तुरन्‍त उन्‍हें बुलाया, और वे अपने पिता जब्‍दी को मजदूरों के साथ नाव पर छोड़ कर, उसके पीछे चले गए।

एक साल में बाइबल: 
  • श्रेष्ठगीत ४-५ 
  • गलतियों ३

शनिवार, 22 सितंबर 2012

सत्य और सत्यापित


   मेरे पति को भूतपूर्व अमेरीकी राष्ट्रपति रौनल्ड रियगन द्वारा कही बात "विश्वास करो, परन्तु स्त्यापित भी करो" बहुत पसन्द है। जब रियगन राष्ट्रपति थे तो राजनैतिक आदान-प्रदान और व्यवहार में उनसे कही गई बातों का वे विश्वास करना तो चाहते थे; परन्तु क्योंकि उनके देश की सुरक्षा उन्हें बताई गई बात के सत्य होने पर निर्भर थी इसलिए वे हर बात को सत्यापित भी करवाते थे और सत्यापित सत्य के अनुसार ही कार्यवाही करते थे।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में, प्रेरितों १७:११ में, भी कुछ ऐसे लोगों का उल्लेख है जिन्होंने केवल इसलिए प्रचार किए हुए वचन को मान नहीं लिया क्योंकि परमेश्वर के नाम से एक नामी प्रचारक ने उनके मध्य आकर कुछ प्रचार किया। राष्ट्रपति रियगन ही के समान उनमें भी सत्यापित करने की लालसा थी, इसलिए "ये लोग तो थिस्‍सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्‍होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्‍त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों हीं हैं, कि नहीं।" अर्थात बेरिया के उन मसीही विश्वासियों ने वचन को सुना और ग्रहण किया, किंतु मानने से पहले स्वयं पवित्र-शास्त्र से प्रचार किए हुए वचन के बारे में जांचकर देखा और तब उसे स्वीकार किया; और ऐसा वे प्रतिदिन किया करते थे। उनके इस व्यवहार के कारण परमेश्वर का वचन उनकी आलोचना नहीं करता वरन उन्हें ’भले’ कह कर के संबोधित करता है।

  यह बात आज हम सभी के लिए भी अति आवश्यक है। हमें हमारी बाइबल शिक्षा चाहे किसी चर्च, सण्डे स्कूल, रेडियो या टी.वी. पर प्रचार या अन्य किसी भी माध्यम से मिले, जो हम सुनते हैं उसे परमेश्वर के वचन के समक्ष रखकर जांचना आवश्यक है, हमारी ज़िम्मेदारी है (२ तिमुथियुस ३:१६-१७)। हमें ऐसे मनुष्य बनना है जो "अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्‍न कर, जो लज्ज़ित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो" (२ तिमुथियुस २:१५)।

   यदि हम ऐसा करेंगे तो हम किसी गलत या दूसरे ही सुसमाचार के सुनाने वालों के शिकार नहीं बनेंगे जो परमेश्वर के वचन को बिगाड़ना चाहते हैं (गलतियों १:६-७) - ऐसे झूठे शिक्षक जो भेड़ के भेस में नाश करने वाले भेड़िए हैं (मत्ती ७:१५)।

   स्मरण रखिए - "विश्वास करो, परन्तु स्त्यापित भी करो।" सिंडी हैस कैसपर


सत्य को भली भांति जानना झूठ को पहचानने के लिए पहला कदम है।

ये लोग तो थिस्‍सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्‍होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्‍त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों हीं हैं, कि नहीं। - प्रेरितों १७:११

बाइबल पाठ: गलतियों १:१-१२
Gal 1:1   पौलुस की, जो न मनुष्यों की ओर से, और न मनुष्य के द्वारा, वरन यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा, जिस ने मरे हुओं में से जिलाया, प्रेरित है। 
Gal 1:2   और सारे भाइयों की आरे से, जो मेरे साथ हैं, गलतिया की कलीसियाओं के नाम। 
Gal 1:3  परमेश्वर पिता, और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्‍ति मिलती रहे। 
Gal 1:4  उसी ने अपने आप को हमारे पापों के लिये दे दिया, ताकि हमारे परमेश्वर और पिता की इच्‍छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए। 
Gal 1:5  उस की स्‍तुति और बड़ाई। युगानुयुग होती रहे। आमीन।
Gal 1:6  मुझे आश्‍चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। 
Gal 1:7  परन्‍तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। 
Gal 1:8  परन्‍तु यदि हम या स्‍वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो। 
Gal 1:9  जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित हो। अब मैं क्‍या मनुष्यों को मानता हूं या परमेश्वर को? क्‍या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूं? 
Gal 1:10  यदि मैं अब तक मनुष्यों को प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।
Gal 1:11  हे भाइयो, मैं तुम्हें जताए देता हूं, कि जो सुसमाचार मैं ने सुनाया है, वह मनुष्य का सा नहीं। 
Gal 1:12 क्‍योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।

एक साल में बाइबल: 
  • सभोपदेशक १०-१२ 
  • गलतियों १

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

कार्य बोलते हैं

   साधारणत्या हम उन्हें ही प्रचारक समझते हैं जो किसी मंच से प्रचार करते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि हम सब दिन प्रतिदिन "प्रचार" करते रहते हैं। हमारे विष्य में जो कुछ लोग देखते हैं, वही हमारा प्रचार है। किसी ने कहा, "आपके कार्य इतना ऊँचा बोलते हैं कि आप के मुँह से निकले बोल सुनाई ही नहीं देते।"

   सबसे अच्छा प्रचार कार्यों द्वारा ही होता है, मुख से नहीं। जब बिना कुछ कहे हम वह करते हैं जो सही है, तो भलाई के लिए उसका प्रभाव उस बात से कहीं अधिक होता है जो हम दुसरों से करने को केवल कहते भर हैं।

   बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को सिखाते समय इस महत्वपूर्ण बात को नज़रन्दाज़ कर देते हैं। कई मसीही माता-पिता भी अपने बच्चों को परमेश्वर, मसीह यीशु द्वारा उद्धार आदि के बारे में बताने के बाद उनसे भले कामों की आशा तो रखते हैं - लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनके व्यक्तिगत जीवन के उदाहरण, अपने बच्चों से करी गई उनकी आशा से मेल नहीं खाते। लेकिन कई मसीही परिवारों में माता-पिता यह सुनिश्चित करते हैं कि जो वे अपने बच्चों को सिखा रहे हैं, उनका निज जीवन भी उसी के अनुरूप हो। उनका यह अनुसरणीय जीवन उनके बच्चों के लिए कथनी को करनी में परिवर्तित करने का स्पष्ट मार्गदर्शक होता है।

   पौलुस प्रेरित ने थिस्सलुनीके के विश्वासियों की, उस उदाहरण के लिए जो उन्होंने प्रदर्शित किया था, सरहना करी (१ थिस्सलुनिकियों १:७)। उन विश्वासियों के कार्य उनके विश्वास के अनुरूप थे। उन के समान आज हमें भी अपने जीवनों में परमेश्वर की प्रगट इच्छा के अनुरूप कार्य करते रहने वाला होना चाहिए।

   आप मानिए या ना मानिए, लेकिन वास्तविकता यही है कि हमारे कार्य बोलते हैं। - रिचर्ड डी हॉन


प्रत्येक मसीही विश्वासी को एक चलता-फिरता "प्रचार" होना चाहिए।

यहां तक कि मकिदुनिया और आखया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने। - १ थिस्सलुनिकियों १:७

बाइबल पाठ: १ थिस्सलुनिकियों १
    1Th 1:1  पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्‍सलुनिकियों की कलीसिया के नाम जो परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह में है। अनुग्रह और शान्‍ति तुम्हें मिलती रहे।
    1Th 1:2  हम अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण करते और सदा तुम सब के विषय में परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
    1Th 1:3  और अपने परमेश्वर और पिता के साम्हने तुम्हारे विश्वास के काम, और प्रेम का परिश्रम, और हमारे प्रभु यीशु मसीह में आशा की धीरता को लगातार स्मरण करते हैं।
    1Th 1:4  और हे भाइयो, परमेश्वर के प्रिय लोगों हम जानतें हैं, कि तुम चुने हुए हो।
    1Th 1:5  क्‍योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में वरन सामर्थ और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्‍चय के साथ पहुंचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे।
    1Th 1:6  और तुम बड़े क्‍लेश में पवित्र आत्मा के आनन्‍द के साथ वचन को मान कर हमारी और प्रभु की सी चाल चलने लगे।
    1Th 1:7  यहां तक कि मकिदुनिया और आखया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने।
    1Th 1:8  क्‍योंकि तुम्हारे यहां से न केवल मकिदुनिया और आखया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फैल गई है, कि हमें कहने की आवश्यकता ही नहीं।
    1Th 1:9  क्‍योंकि वे आप ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ और तुम क्‍योंकर मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरे ताकि जीवते और सच्‍चे परमेश्वर की सेवा करो।
    1Th 1:10  और उसके पुत्र के स्‍वर्ग पर से आने की बाट जोहते रहो जिसे उस ने मरे हुओं में से जिलाया, अर्थात यीशु की, जो हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है।
 
एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह ३७-३८ 
  • कुलुस्सियों ३

मंगलवार, 29 मार्च 2011

प्रयास नहीं, केवल विश्वास द्वारा

सुसमाचार प्रचारक जॉर्ज नीडहैम एक प्रसिद्ध और अमीर व्यक्ति से मिलने गए। उस व्यस्त व्यक्ति से नीडहैम ने केवल एक प्रश्न किया, "क्या आपका उद्धार हो गया है?" अमीर व्यक्ति ने उत्तर दिया, "नहीं, परन्तु मैं मसीही बनने का प्रयत्न कर रहा हूँ।" नीडहैम ने पूछा, "कितने समय से आप यह प्रयास कर रहे हैं?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "१२ वर्ष से।" सुसमाचार प्रचारक नीडहैम बोले, "मुझे यह कहने की अनुमति दें कि आप बहुत बेवकूफ रहे हैं। इतने वर्ष प्रयास कर के भी आप सफल नहीं हो सके; यदि मैं आपके स्थान पर होता तो मैं प्रयास नहीं विश्वास करता।"

उस शाम को नीडहैम को अचंभा हुआ कि वह व्यक्ति उस चर्च में आया जहाँ नीडहैम प्रचार कर रहा था। उसके चेहरे पर ऐसा शान्ति और आनन्द झलक रहा था जो नीडहैम ने उससे दिन के समय की मुलाकात में नहीं देखा था। सभा के बाद उस व्यक्ति ने नीडहैम से कहा, "मैं वाकई में मूर्ख था, और अपने जीवन के १२ बहुमूल्य वर्ष व्यर्थ प्रयास में गवाँ दिये, जबकि उद्धार मुझे साधारण विश्वास से मिल सकता था।"

बाइबल हमें उद्धार पाने के लिए कुछ काम करने, या प्रयास करने के लिए नहीं कहती। प्रेरित पौलुस ने कहा, "परन्‍तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना जाता है।" (रोमियों ४:५)

अनन्त जीवन पाने का केवल एक ही मार्ग है, प्रयास करना छोड़कर मसीह यीशु पर विश्वास करना आरंभ कर दीजिए। - पौल वैन गोर्डर


उद्धार प्रयास से नहीं, विश्वास से है; उसके लिए कुछ करना नहीं, किए हुए पर विश्वास करना है।

...जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले। - प्रकाशितवाक्य २२:१७

बाइबल पाठ: रोमियों ४:१-८

Rom 4:1 सो हम क्‍या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को क्‍या प्राप्‍त हुआ?
Rom 4:2 क्‍योंकि यदि इब्राहीम कामों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्‍ड करने की जगह होती, परन्‍तु परमेश्वर के निकट नहीं।
Rom 4:3 पवित्र शास्‍त्र क्‍या कहता है? यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया।
Rom 4:4 काम करने वाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्‍तु हक समझा जाता है।
Rom 4:5 परन्‍तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना जाता है।
Rom 4:6 जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाउद भी धन्य कहता है।
Rom 4:7 कि धन्य वे हैं, जिन के अधर्म क्षमा हुए, और जिन के पाप ढ़ांपे गए।
Rom 4:8 धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।

एक साल में बाइबल:
  • न्यायियों ७-८
  • लूका ५:१-१६

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

परमेश्वर की योजना समझिए

एक युवती एक प्रचारक के पास आयी और उससे जानना चाहा कि वह कैसे अपनी उन इच्छाओं की समस्या का समाधान कर सकती है जो परमेश्वर की मन्सा के विरोध में हैं? प्रचारक ने एक छोटा कागज़ लिया, उसपर दो शब्द लिखे और उसे युवती को दे दिया। तब प्रचारक ने युवती से कहा, "इसपर दस मिनिट तक विचार करो, फिर इन में से एक शब्द काट दो और कागज़ मेरे पास वापस ले आओ।" उस युवती ने कागज़ पर लिखे शब्दों को देखा, एक था "नहीं" और दूसरा था "प्रभु"। विचार करने के थोड़े समय में ही वह समझ गयी कि यदि वह "नहीं" को, यानि कि इन्कार करने को चुनती है, तो फिर यीशु को प्रभु नहीं कह सकती; और अगर वह "प्रभु" को चुनती है तो फिर यीशु को "नहीं" यानि इन्कार नहीं कर सकती।

यही हमारे जीवनों के लिये परमेश्वर की इच्छा को समझने का भेद है। जब तक हम परमेश्वर के हाथों में अपने आप को पूर्णतः तथा बिना किसी शर्त के नहीं रख देते, हम अपने प्रति उसकी इच्छा के विकल्पों को नहीं जान सकते। हमें अपने सारे अधिकार उसके आधीन कर देने हैं, तब ही हम उससे मिलने वाले अधिकारों को जान और समझ पाएंगे। अपने शरीरों को "जीवित बलिदान करके चढ़ाना" प्रभु की प्रत्येक आज्ञा के लिए सहमत और समर्पित होना है।

जब हम परमेश्वर को पूर्णतः समर्पित हो जाते हैं, तब ही हम इससे अगला कदम, अर्थात अपने व्यवहार में बदलाव, को उठा पाते हैं। व्यवहार में यह बदलाव तब ही संभव है जब हम अपने सोच-विचार को अपने चारों ओर प्रचलित संसार के सिद्धांतों से हटा कर परमेश्वर के वचन के सिद्धांतों के अनुरूप कर दें; और यह वो ही कर सकता है जिसका तन, मन और बुद्धि संसार को नहीं परमेश्वर को समर्पित हो।

यदि आप अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को जानना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम अपने आप को परमेश्वर को समर्पित कीजीए। - डेनिस डी हॉन


जो अपनी इच्छा परमेश्वर की इच्छा के आधीन कर देते हैं, वे परमेश्वर से सर्वोत्तम ही पाते हैं।

इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरो को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। - रोमियों १२:१


बाइबल पाठ: रोमियों १२:१-८

Rom 12:1 इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरो को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
Rom 12:2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्‍तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्‍छा अनुभव से मालूम करते रहो।
Rom 12:3 क्‍योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
Rom 12:4 क्‍योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं।
Rom 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
Rom 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
Rom 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
Rom 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे, दान देने वाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्‍साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३२-३४
  • मरकुस १५:२६-४७

गुरुवार, 17 मार्च 2011

सच्चा उद्धारकर्ता

एक युवा विद्वान ने एक नया धर्म बनाया और उसके सिद्धांतों को समझाने के लिये एक पुस्तक लिखी। कुछ समय पश्चात वह ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक बैनजामिन डिज़्राएली के पास आया और कहने लगा कि उसे समझ नहीं आता कि लोग क्यों उसके धर्म में विश्वास करने को राज़ी नहीं होते, जबकि उसका धर्म मसीह की शिक्षाओं और क्रूस पर बलिदान से कहीं अधिक उत्तम है। बुज़ुर्ग बैनजामिन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "बेटा, लोग तब तक तुम्हारी पुस्तक को नहीं पढ़ेंगे और न ही तुम्हारे धर्म में विश्वास लाएंगे जब तक तुम्हारा भी किसी क्रूस पर चढ़ाए जाकर बलिदान न हो और तुम भी फिर मृतकों में से जी न उठो।"

एक अंग्रेज़ प्रचारक एलेक्ज़ैंडर मैक्लरेन ने मसीह यीशु के व्यक्तित्व के संदर्भ में प्रश्न किया, "ऐसा क्यों है कि संसार के इतिहास में केवल एक और सिर्फ एक ही ऐसा व्यक्ति है जो समय और स्थान से कभी बंधा नहीं रहा है; जो आज भी उन करोड़ों लोगों का, जिनके हृदय उसके प्रेम से धड़कते हैं, वैसा ही घनिष्ठ मित्र है, जैसा वह उनका था जो उसके साथ पृथ्वी पर रहते थे?" यह एक बड़ा गंभीर और वाजिब प्रश्न है, जिसपर विचार आवश्यक है। मैक्लैरन के इस प्रश्न का उत्तर बैनजामिन डिज़्राएली द्वारा उस युवक को दिये उत्तर में ही है।

केवल परमेश्वर का निष्कलंक और निर्दोष पुत्र ही उद्धार प्रदान कर सकता है। केवल वही उद्धारकर्ता हो सकता है और हमारे पापों का बोझ उठा सकता है जिसने अपने बलिदान की सार्थकता को अपने पुनरुत्थान द्वारा प्रमाणित किया हो। क्योंकि यीशु ने हमसे प्रेम किया और अपने आप को हमारे लिये दे दिया, हमें भी अपना हृदय उसके लिये खोल कर उसे अर्पित कर देना चाहिये।

यदि हमने उसपर विश्वास किया है, तो प्रभु के चेले थोमा की तरह हम भी थोमा के समान प्रेम और भक्ति में पुकार सकते हैं, "हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!" वही सच्चा उद्धारकर्ता है जो हमारी आराधना का सच्चा पात्र है। - पौल वैन गौर्डर


जब हम यीशु के प्रभुत्व को पहिचानेंगे तो उसे उसकी उपासना भी करेंगे।

यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर! - यूहन्ना २०:२८


बाइबल पाठ: यूहन्ना २०:२८

Joh 20:26 आठ दिन के बाद उस के चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उन के साथ था, और द्वार बन्‍द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, तुम्हें शान्‍ति मिले।
Joh 20:27 तब उस ने थोमा से कहा, अपनी उंगली यहां लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्‍तु विश्वासी हो।
Joh 20:28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!
Joh 20:29 यीशु ने उस से कहा, तू ने तो मुझे देख कर विश्वास किया है, धन्य हैं वे जिन्‍होंने बिना देखे विश्वास किया।
Joh 20:30 यीशु ने और भी बहुत चिन्‍ह चेलों के साम्हने दिखाए, जो इस पुस्‍तक में लिखे नहीं गए।
Joh 20:31 परन्‍तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३०-३१
  • मरकुस १५:१-२५