जब धार्मिक अगुवे व्यभिचार में पकड़ी गई उस स्त्री को लेकर प्रभु यीशु के पास आए और उससे पुछने लगे कि उस स्त्री के साथ क्या किया जाना चाहिए, तो प्रभु यीशु ने उन्हें तुरन्त उत्तर नहीं दिया; वरन वे नीचे झुककर भूमि पर कुछ लिखने लगे (यूहन्ना ८:६-११)। उन्होंने क्या लिखा यह तो हम नहीं जानते, परन्तु जब भीड़ उनसे पूछती ही रही तो एक छोटे वाक्य में प्रभु यीशु ने अपना उत्तर दे दिया: "...तुममें जो निष्पाप हो, वही पहिले उसको पत्थर मारे" (यूहन्ना ८:७)। इस छोटे से वाक्य के थोड़े से शब्द उन धार्मिक अगुवों को उनके अपने पाप दिखाने के लिए काफी थे, और वे सब एक एक करके वहां से चले गए। प्रभु यीशु के ये शब्द आज भी संसार भर में गूंज रहे हैं और लोगों को दूसरों पर दोष देने की बजाए स्वयं अपने पापों के प्रति सचेत रहने को प्रेरित कर रहे हैं।
इन थोड़े शब्दों के बड़े प्रभावी होने का कारण था प्रभु यीशु की अपने स्वर्गीय पिता पर सदा बने रहने वाली निर्भरता; उन्होंने अपने विषय में कहा, "...उस की आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं" (यूहन्ना १२:५०)। काश हम सब भी प्रभु यीशु के समान सदा अपने परमेश्वर पिता पर निर्भर रहते और उसकी बुद्धिमता पर निर्भर हो कर ही हर बात का उत्तर देने वाले होते।
यह बुद्धिमानी आरंभ होती है याकूब की पत्री में लिखे उपदेश के पालन के साथ: "...इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो" (याकूब १:१९)। जिस धीमेपन की बात यहां करी जा रहा है वह अज्ञानता, भीतरी खोखलेपन, कायरता, लज्जा या दोषी होने के कारण होने वाली मूँह और बुद्धि की खामोशी नहीं है। यह वह खामोशी है जो परमेश्वर पर विचारमग्न रहने और उस पर ध्यान लगाए रखने से आई बुद्धिमानी द्वारा उत्पन्न होती है।
हम से कई बार कहा जाता है कि बोलने से पहले ज़रा सा थम कर, विचार कर के, फिर बोलें। लेकिन मेरा मानना है कि उत्तर देने की प्रवृत्ति को इस स्तर से भी आगे ले जाकर, सदा परमेश्वर की सुनते रहें और उस पर निर्भर होकर उसके निर्देषों के अनुसार उत्तर देने को अपनी आदत बना लें। जब यह निर्भरता हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन जाएगी, तब हमारे सभी उत्तर भी बुद्धिमानी के उत्तर होंगे। - डेविड रोपर
परमेश्वर के लिए बोलने से पहले परमेश्वर की सुनने वाले बनें।
और मैं जानता हूं, कि उस की आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं। - यूहन्ना १२:५०
बाइबल पाठ: यूहन्ना ८:१-११
Joh 8:1 परन्तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया।
Joh 8:2 और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा।
Joh 8:3 तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए, जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उस को बीच में खड़ी करके यीशु से कहा।
Joh 8:4 हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है।
Joh 8:5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थरवाह करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?
Joh 8:6 उन्होंने उस को परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएं, परन्तु यीशु झुककर उंगली से भूमि पर लिखने लगा।
Joh 8:7 जब वे उस से पूछते रहे, तो उस ने सीधे होकर उन से कहा, कि तुम में जो निष्पाप हो, वही पहिले उसको पत्थर मारे।
Joh 8:8 और फिर झुककर भूमि पर उंगली से लिखने लगा।
Joh 8:9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई।
Joh 8:10 यीशु ने सीधे होकर उस से कहा, हे नारी, वे कहां गए? क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी।
Joh 8:11 उस ने कहा, हे प्रभु, किसी ने नहीं: यीशु ने कहा, मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।
एक साल में बाइबल:
- भजन १२३-१२५
- १ कुरिन्थियों १०:१-१८
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