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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

इच्छा


   मेरी पत्नि की युवावस्था में उनके पड़ौसी, पास्टर और पारिवारिक मित्र थे डॉ. कार्लाय्ल मार्नी। कार्लाय्ल मार्नी का एक कथन मेरी पत्नि के परिवार के लिए बहुधा प्रयोग होने वाला वाक्य बन गया था; वह वाक्य था: "जैसा कि डॉ. मार्नी कहते हैं, हमें बस अपने इच्छा-यंत्र को ठीक करवाने की आवश्यकता है।"

   अपनी आवश्यकताओं से अधिक को पाने की चाह रखना तथा देने की बजाए लेने पर ध्यान केंद्रित रखना बहुत सरल होता है। लेकिन इसका परिणाम होता है कि कुछ ही समय में हमारी इच्छाएं हमें और हमारी आवश्यकताओं को नियंत्रित करने लग जाती हैं।

   जब प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीही विश्वासियों को पत्र लिखा तो उसने उन्हें कहा, "यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं। मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है" (फिलिप्पियों 4:11-12)। डॉ. मार्नी के कथन के संदर्भ में, पौलुस फिलिप्पी के मसीही विश्वासियों से कह रहा था, "मैंने अपने इच्छा-यंत्र को ठीक करवा लिया है"। यहाँ यह जानना तथा समझना महत्वपूर्ण है कि पौलुस जन्म से ही संतुष्ट नहीं था, वरन उसने जीवन की परिस्थित्यों और अपने मसीही जीवन के कठिन अनुभवों में होकर सन्तोष करना सीखा था।

   वर्ष के अन्त के इस क्रिसमस-समय में जब अनेक देशों और संस्कृतियों में उपहार खरीदना, लेना और देना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, हमें प्रयास करना चाहिए कि जो कुछ हमारे पास है, हम उसी में संतुष्ट रहना सीखें। ऐसा करना सरल तो नहीं होगा, लेकिन हम पौलुस से ही ऐसा करने की विधि भी सीख सकते हैं; पौलुस ने मसीह यीशु से मिलने वाली सामर्थ को ध्यान रख कर अपनी पत्री में आगे लिखा, "जो मुझे सामर्थ देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूं" (फिलिप्पियों 4:13)।

   अपनी इच्छाओं और इच्छा-यंत्र, अर्थात इच्छाएं उत्पन्न करने वाली मनसाओं को प्रभु यीशु के हाथों में समर्पित करें, प्रभु से प्रार्थना में मांगे कि वह आपको सही एवं उचित इच्छा को छोड़ बाकी सभी व्यर्थ बातों और इच्छाओं से बचाए रखे; फिर प्रभु की इच्छानुसार निर्णय लेने का संकल्प करें, उसका पालन करें। - डेविड मैक्कैसलैंड


संतुष्टि का आरंभ इच्छाओं को नियंत्रित करने से होता है। 

मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूं। - यिर्मयाह17:9-10

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 4:4-13
Philippians 4:4 प्रभु में सदा आनन्‍दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्‍दित रहो। 
Philippians 4:5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। 
Philippians 4:6 किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। 
Philippians 4:7 तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।
Philippians 4:8 निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्‍हीं पर ध्यान लगाया करो। 
Philippians 4:9 जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्‍हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्‍ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
Philippians 4:10 मैं प्रभु में बहुत आनन्‍दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्‍चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 
Philippians 4:11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं। 
Philippians 4:12 मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 
Philippians 4:13 जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।

एक साल में बाइबल: 
  • दानिय्येल 1-2
  • 1यूहन्ना 4


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