जब प्रभु यीशु से पूछा गया कि जीवन के लिए सबसे बड़ी आज्ञा क्या है तो उन्होंने कहा, "तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना" (मरकुस 12:30)। इन शब्दों में प्रभु यीशु ने हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा का सार बताया।
मैं सोचता हूँ कि कैसे मैं परमेश्वर से अपने सारे मन, प्राण और बुद्धि से प्रेम रख सकता हूँ? प्रभु यीशु द्वारा कही गई यह बात परमेश्वर के वचन बाइबल के पुराने नियम खण्ड की व्यवस्थाविवरण नामक पुस्तक से ली गई है, जहाँ परमेश्वर ने अपने लोगों को यह आज्ञा दी थी। नील प्लेनटिंगा इसे समझाने के लिए कहते हैं कि "तुम्हें परमेश्वर से अपने सर्वस्व से प्रेम रखना है - जो कुछ तुम्हारे पास है, जो कुछ तुम हो - सब कुछ।"
जब हम परमेश्वर के साथ अपने संबंध को इस दृष्टि से देखते हैं तो हमारी परिस्थितियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बिलकुल बदल जाता है। जब हम अपने सर्वस्व से परमेश्वर से प्रेम करते हैं तो हमें हमारे कष्ट क्षणिक और हलके प्रतीत होने लगते हैं और उनके कारण हमें मिलने वाले अनन्त के प्रतिफल का महत्व हमें समझ में आने लगता है, जैसा कि प्रेरित पौलुस ने कोरिन्थ के मसीही विश्वासियों को लिखी अपनी दूसरी पत्री में लिखा (2 कुरिन्थियों 4:17)।
जब हम अपने सर्वस्व से परमेश्वर के प्रति प्रेम के साथ प्रार्थना में उसके पास आते हैं तो हमारे जीवनों पर हमारी सभी शंकाओं और संघर्षों के दुषप्रभाव हलके हो जाते हैं, और जीवन से संबंधित हमारे अति आवश्यक लगने वाले सभी प्रश्न पृष्ठभूमि में विलीन हो जाते हैं क्योंकि हमें यह एहसास हो जाता है कि "हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उसने हम से प्रेम किया" (1 यूहन्ना 4:19)।
अपने सर्वस्व से परमेश्वर से प्रेम करने की प्रभु यीशु की आज्ञा, हमारे लिए जीवन को कठिन नहीं, वरन सरल और आशीषित बना देती है। - फिलिप यैन्सी
जो सबसे बहुमूल्य उपहार हम परमेश्वर को दे सकते हैं वह है हमारा प्रेम; यह वह उपहार है जो केवल स्वेच्छा से दिया जा सकता है, बाध्य होकर नहीं।
क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। - 2 कुरिन्थियों 4:17
बाइबल पाठ: मरकुस 12:28-34
Mark 12:28 और शास्त्रियों में से एक ने आकर उन्हें विवाद करते सुना, और यह जानकर कि उसने उन्हें अच्छी रीति से उत्तर दिया; उस से पूछा, सब से मुख्य आज्ञा कौन सी है?
Mark 12:29 यीशु ने उसे उत्तर दिया, सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; हे इस्राएल सुन; प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।
Mark 12:30 और तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।
Mark 12:31 और दूसरी यह है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना: इस से बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।
Mark 12:32 शास्त्री ने उस से कहा; हे गुरू, बहुत ठीक! तू ने सच कहा, कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं।
Mark 12:33 और उस से सारे मन और सारी बुद्धि और सारे प्राण और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।
Mark 12:34 जब यीशु ने देखा कि उसने समझ से उत्तर दिया, तो उस से कहा; तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं: और किसी को फिर उस से कुछ पूछने का साहस न हुआ।
एक साल में बाइबल:
- निर्गमन 34-35
- मत्ती 22:23-46
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