ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 19 नवंबर 2017

निर्देष


   जब वस्तुओं को जोड़ कर बनाना होता है, वे चाहे इलैक्ट्रौनिक हों या अन्य कोई, तो मेरे और मेरे पुत्र स्टीव की कार्य विधि बहुत भिन्न है। स्टीव को यांत्रिक रीति से कार्य करना अच्छा लगता है; इसलिए मैं अभी उस वस्तु को जोड़ने और बनाने के निर्देषों को पढकर समझने का प्रयास ही कर रहा होता हूँ, कि इतने में वह निर्देषों को पढ़े बिना ही उसे लगभग आधा बना चुका होता है। कभी-कभी हम निर्देषों को जाने बिना या उन का पालन किए बिना ही काम चला सकते हैं। परन्तु यदि हमें एक ऐसा जीवन बनाना है जो परमेश्वर की भलाई और बुद्धिमता को दिखाता है तो परमेश्वर के वचन बाइबल में दिए गए उसके निर्देषों की अवहेलना कर के हम ऐसा कदापि नहीं कर सकते हैं।

   इस तथ्य का एक अच्छा उदाहरण बाबुल की बन्धुआई से लौट कर आने वाले इस्त्राएली हैं। अपनी मातृभूमि में लौट कर आने के पश्चात वे परमेश्वर की उपासना को पुनः स्थापित करने के प्रयास करने लगे; और इसके लिए उन्होंने "...कमर बान्ध कर इस्राएल के परमेश्वर की वेदी को बनाया कि उस पर होमबलि चढ़ाएं, जैसे कि परमेश्वर के भक्त मूसा की व्यवस्था में लिखा है" (एज़्रा 3:2)। सही प्रकार से वेदी बनाने और परमेश्वर द्वारा लैव्यवस्था 23:33-43 में दी गई विधि के अनुसार झोंपड़ियों का पर्व मनाने में उन्होंने वैसा ही किया जैसा परमेश्वर ने अपने वचन में निर्दिष्ट किया था।

   प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने अनुयायियों को कुछ निर्देष दिए हैं। प्रभु ने कहा, "...तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख"; और "...तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख" (मत्ती 22:37, 39)। जब हम प्रभु यीशु पर विश्वास लाते हैं और उसका अनुसरण करने का निर्णय लेते हैं, अपने जीवन उसे समर्पित करते हैं, तो वह सही रीति से जीवन जीने के लिए हमारा मार्गदर्शन भी करता है। वह हमारा सृष्टिकर्ता है और हमें तथा हमारे बारे में, हम से कहीं अधिक अच्छी रीति से जानता है; उसे हम से अधिक अच्छे से पता है कि जीवन को भली-भांति जीने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं; हमारे लिए क्या उपयुक्त एवं उचित है और क्या नहीं। इसलिए जब हम मसीह यीशु को अपना प्रभु मान लेते हैं तो उसके निर्देशों के अनुसार जीवन व्यतीत करने में ही हमारी भलाई है। - डेव ब्रैनन


यदि हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी अगुवाई करे, 
तो हमें उसका अनुसरण करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे हे प्रभु, हे प्रभु, कहते हो? - लूका 6:46

बाइबल पाठ: एज़्रा 3:1-6
Ezra 3:1 जब सातवां महीना आया, और इस्राएली अपने अपने नगर में बस गए, तो लोग यरूशलेम में एक मन हो कर इकट्ठे हुए। 
Ezra 3:2 तब योसादाक के पुत्र येशू ने अपने भाई याजकों समेत और शालतीएल के पुत्र जरूब्बाबेल ने अपने भाइयों समेत कमर बान्ध कर इस्राएल के परमेश्वर की वेदी को बनाया कि उस पर होमबलि चढ़ाएं, जैसे कि परमेश्वर के भक्त मूसा की व्यवस्था में लिखा है। 
Ezra 3:3 तब उन्होंने वेदी को उसके स्थान पर खड़ा किया क्योंकि उन्हें उस ओर के देशों के लोगों का भय रहा, और वे उस पर यहोवा के लिये होमबलि अर्थात प्रतिदिन सबेरे और सांझ के होमबलि चढ़ाने लगे। 
Ezra 3:4 और उन्होंने झोंपडिय़ों के पर्व को माना, जैसे कि लिखा है, और प्रतिदिन के होमबलि एक एक दिन की गिनती और नियम के अनुसार चढ़ाए। 
Ezra 3:5 और उसके बाद नित्य होमबलि और नये नये चान्द और यहोवा के पवित्र किए हुए सब नियत पर्वों के बलि और अपनी अपनी इच्छा से यहोवा के लिये सब स्वेच्छाबलि हर एक के लिये बलि चढ़ाए। 
Ezra 3:6 सातवें महीने के पहिले दिन से वे यहोवा को होमबलि चढ़ाने लगे। परन्तु यहोवा के मन्दिर की नेव तब तक न डाली गई थी।

एक साल में बाइबल: 
  • यहेजकेल 11-13
  • याकूब 1


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें