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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

मार्गदर्शन



      मैं एक युवक को जानता हूँ जो प्रार्थनाओं में परमेश्वर से चिन्ह माँगता है। आवश्यक नहीं कि यह गलत हो, परन्तु उसकी प्रार्थनाएं बहुधा उसकी भावनाओं की पुष्टि के लिए होती हैं। उदाहरण के लिए, वह प्रार्थना करेगा, “परमेश्वर यदि आप चाहते हैं कि मैं ‘यह’ करूँ, तो आप ‘ऐसा’ कर दीजिए, और मैं समझ जाऊँगा कि यह आपकी इच्छानुसार है।”

      इससे दुविधा उत्पन्न होती है। जैसी वह प्रार्थनाएं करता है, और जैसा उसे लगता है कि परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया है, उससे उसकी धारणा बनी है कि उस अपने भूतपूर्व प्रेमिका के पास लौट जाना चाहिए; परन्तु उसकी भूतपूर्व प्रेमिका उतनी ही दृढ़ता से यह मानती है कि ऐसा करना परमेश्वर की इच्छानुसार नहीं है।

      परमेश्वर के वचन बाइबल में हम पाते हैं कि प्रभु यीशु के समय के धार्मिक अगुवों ने प्रभु से माँग की, कि वह किसी चिन्ह देने के द्वारा अपने दावों को प्रमाणित करें “फरीसियों और सदूकियों ने पास आकर उसे परखने के लिये उस से कहा, कि हमें आकाश का कोई चिन्ह दिखा” (मत्ती 16:1)। वे परमेश्वर से मार्गदर्शन नहीं चाह रहे थे, वे प्रभु के ईश्वरीय अधिकार को चुनौती दे रहे थे। प्रभु ने उन लोगों को उत्तर दिया, “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूंढ़ते हैं पर यूनुस के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा, और वह उन्हें छोड़कर चला गया” (मत्ती 16:4)। प्रभु यीशु का उन्हें दिया गया यह कड़ा प्रत्युत्तर, सामान्य रीति से लागू किए जाने के लिए परमेश्वर से चिन्ह माँगने की निषेधाज्ञा नहीं थी। वरन प्रभु उन्हें अपने वचन में उनके मसीहा होने के विषय दी गई स्पष्ट भविष्यवाणियों की अवहेलना करने का दोषी ठहरा रहे थे।

      परमेश्वर चाहता है कि हम प्रार्थनाओं के द्वारा उससे मार्गदर्शन प्राप्त करें (याकूब 1:5)। उसने हमारे मार्गदर्शन के लिए हम मसीही विश्वासियों को अपना पवित्र आत्मा भी प्रदान किया है (यूहन्ना 14:26); और उसका वचन भी हमें सही मार्ग दिखाता है (भजन 119:105)। हमारे मार्गदर्शन के लिए प्रभु यीशु का जीवन भी उदाहरण है, और प्रभु अपने भक्त बुद्धिमान परामार्श्दाताओं तथा अगुवों के द्वारा भी हमारा मार्गदर्शन करता है।

      हम अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा परमेश्वर के साथ और निकट संबंध बना सकते हैं, उसे और उसकी इच्छाओं को निकटता से जान सकते हैं। परमेश्वर से स्पष्ट मार्गदर्शन माँगना बुद्दिमता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि हम जिस रीति से या जिस रूप में उस मार्गदर्शन की अपेक्षा करें परमेश्वर वैसे ही हमें मार्गदर्शन प्रदान करे। परन्तु वह हमें असहाय कभी नहीं छोड़ता है, किसी-न-किसी रीति से सही मार्गदर्शन अवश्य प्रदान करता है। - टिम गुस्ताफ्सन


परमेश्वर की इच्छा जानने का सर्वोत्तम तरीका है परमेश्वर के आज्ञाकारी बने रहना।

और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो। - रोमियों  12:2

बाइबल पाठ: मत्ती 16:1-4
Matthew 16:1 और फरीसियों और सदूकियों ने पास आकर उसे परखने के लिये उस से कहा, कि हमें आकाश का कोई चिन्ह दिखा।
Matthew 16:2 उसने उन को उत्तर दिया, कि सांझ को तुम कहते हो कि खुला रहेगा क्योंकि आकाश लाल है।
Matthew 16:3 और भोर को कहते हो, कि आज आन्‍धी आएगी क्योंकि आकाश लाल और धुमला है; तुम आकाश का लक्षण देखकर भेद बता सकते हो पर समयों के चिन्‍हों का भेद नहीं बता सकते?
Matthew 16:4 इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूंढ़ते हैं पर यूनुस के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा, और वह उन्हें छोड़कर चला गया।


एक साल में बाइबल: 
  • यिर्मयाह 46-47
  • इब्रानियों 6



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