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गुरुवार, 12 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – अनुपम एवं विशिष्ट – 8


8. जीवन, साहित्य, कला, और सभ्यताओं पर प्रभाव में अनुपम

            बाइबल के द्वारा जिस प्रकार से लोगों के जीवन परिवर्तित हुए और हो रहे हैं, वह विलक्षण है। संसार भर में अनगिनत लोग हैं, जिन्होंने बाइबल को पढ़ा, परमेश्वर को पहचाना, और उसे अपना जीवन समर्पित कर दिया। यह परिवर्तन संसार के हर स्थान, हर धर्म, हर विचारधारा के लोगों में देखा जाता है, नास्तिकों में भी। बाइबल के वचन लोगों को उनके पापों के लिए कायल करते हैं, बेचैन करते हैं। जो संवेदनशील होकर अपने विवेक की आवाज़ को सुनते हैं, अपने कायल होने के अनुसार, विचार-विमर्श करते हैं, सच्चाई को पहचानने का प्रयास करते हैं, परमेश्वर का वचन उनसे बात करता है, उन्हें सही मार्ग दिखाता है, और उन्हें उनके पापों के लिए पश्चाताप में लेकर आता है। यह सिलसिला लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व, प्रभु यीशु के शिष्य पतरस द्वारा यरूशलेम में धार्मिक पर्व मनाने के लिए एकत्रित हुए धर्मी यहूदियों के मध्य किए गए प्रचार से आरंभ हुआ था; जिसके विषय लिखा है: "तब सुनने वालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे भाइयों, हम क्या करें? पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे" (प्रेरितों 2:37-38), और परमेश्वर के वचन के उस एक प्रचार परिणामस्वरूप "सो जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए" (प्रेरितों 2:41)। और तब से लेकर आज दिन तक, तब यरूशलेम से लेकर आज संसार के हर स्थान में, यह सिलसिला अविरल, नियमित चलता चला आ रहा है,

            प्रतिदिन, प्रतिपल, संसार भर में लोगों के जीवन बदले जा रहे हैं। जिन्होंने परमेश्वर के वचन के सत्य को पहचाना, वो फिर उसके लिए अपने घर-बार, जमीन-जायदाद तथा नौकरी-व्यवसाय छोड़ने, यहाँ तक कि प्राणों की भी आहुति देने के लिए तैयार हो गए, किन्तु बाइबल द्वारा उनके जीवनों में आए परिवर्तन से फिर मुंह नहीं मोड़ा। जो बाइबल के आज्ञाकारी हो गए, उनके जीवन की दिशा और प्राथमिकताएं  बदल गईं; जिन बुरी आदतों और व्यवहारों को वो छोड़ नहीं पा रहे थे, या जो बातें पहले उन्हें बुरी लगती भी नहीं थीं, वे बाइबल की आज्ञाकारिता में आ जाने के बाद स्वतः ही उनके जीवनों से जाती रहीं। उन्हें बहुधा अपने इस विश्वास और निर्णय की एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, समाज और परिवार का बहुत विरोध सहन करना पड़ा, किन्तु सत्य की पहचान हो जाने के बाद, फिर वे उस सत्य पर बने ही रहे, सहते रहे, निभाते रहे, और परमेश्वर की शांति तथा आशीषों का अनुभव करने वाले, तथा औरों को उसके बारे में बताने वाले बन गए।

            संसार भर के साहित्य और कला पर बाइबल की बातों, घटनाओं, शिक्षाओं, और पात्रों ने बहुत गहरी छाप छोड़ी है। बाइबल से संबंधित बातों को लेकर जितनी पुस्तकें, लेख, कहानियाँ, उपन्यास, गीत, कविताएं, नाटक आदि लिखे गए हैं उतने किसी भी अन्य पुस्तक के द्वारा कभी भी प्रेरित होकर नहीं रचे या लिखे गए हैं। साहित्य में अनेकों मुहावरे बाइबल की शिक्षाओं और बातों से निकले हैं। कला के क्षेत्र में भी जितनी कलाकृतियाँ बाइबल की बातों के आधार पर बनाई गई हैं, उतनी संसार की किसे भी अन्य पुस्तक की बातों के आधार पर नहीं बनी हैं - वे चाहे शिल्प कला और मूर्तियाँ हों, विभिन्न प्रकार के चित्र हों, या संगीत कला में स्तुति गीत और भजन आदि हों। इस प्रकार की प्रेरणा पाई हुई कृतियाँ अन्य हर धर्म और विश्वास और स्थान में भी पाई जाती हैं, किन्तु वे अधिकांशतः किसी एक विशेष स्थान या क्षेत्र, और भाषा, संस्कृति आदि तक ही सीमित रहती हैं। किन्तु जितनी संख्या और विविधता में बाइबल की प्रेरणा से संसार भर में हर प्रकार के साहित्य और कला पर प्रभाव निरंतर चलता चला आ रहा है, वह अभूतपूर्व है, अनुपम है, विलक्षण है; उसका कोई सानी नहीं है।

            बाइबल में दी गई परमेश्वर की दस आज्ञाएँ अपने आप में अनुपम और अनूठी हैं। पुराने नियम में निर्गमन 20:1-17 में दी गई इन दस आज्ञाओं में परमेश्वर के स्वरूप और चरित्र, मनुष्य और परमेश्वर के संबंध, तथा मनुष्य के साथ मनुष्य के पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों के विषय परमेश्वर की आज्ञाएँ दी गई हैं। और अद्भुत, विलक्षण बात यह है कि संसार के किसी भी देश के किसी भी संविधान में, वह चाहे कितना भी वृहत क्यों न हो, ऐसा कुछ नहीं है, जो इन दस आज्ञाओं की परिधि में न पाया जाता हो, या इनके अन्तर्गत न देखा जा सकता हो।

            प्रभु यीशु मसीह के प्रभाव के बारे में कहा गया है, "वे संसार के इतिहास के महानतम व्यक्ति हैं। उन्होंने कोई सेवक नहीं रखे, लेकिन लोगों ने उन्हें 'स्वामी' कहकर संबोधित किया। उनके पास कोई शैक्षिक योग्यता नहीं थी, किन्तु उनके समय के विद्वानों, धर्म-गुरुओं, और आम लोगों ने उन्हें 'हे गुरु' कहा। उनके पास कोई औषधि नहीं थी, किन्तु वे इतिहास के सबसे महान चंगाई देने वाले हुए। उनकी कोई सेना नहीं थी, किन्तु राजा उनसे थर्राते थे। उन्होंने कोई सैनिक अभियान अथवा युद्ध नहीं लड़े, फिर भी वे सारे विश्व पर जयवंत हैं। उन्होंने कोई पाप, कोई अपराध नहीं किया, फिर भी उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर मार डाल गया। उन्हें कब्र में गाड़ कर उसे भारी पत्थर से मुहरबंद कर दिया गया और सैनिकों का पहरा बैठा दिया गया, किन्तु वे तीसरे दिन जीवित होकर कब्र से बाहर आ गए और आज भी जीवित हैं, तथा हर उस हृदय में रहते हैं जो उन्हें स्वेच्छा से समर्पित होकर आमंत्रित करता है।"

            बाइबल की शिक्षाओं ने सभ्यताओं और समाजों के व्यवहारों को बदल डाला है - हजारों वर्ष पुरानी और प्राचीनतम सभ्यताओं की भी अनुचित तथा अनुपयुक्त बातों को सुधार दिया है, जिन्हें वे सभ्यताएं और उनके लोग स्वयं नहीं पहचान और सुधार पाए। बाइबल की शिक्षाओं के आधार पर संसार भर के अनेकों स्थानों में व्याप्त कुरीतियाँ, जैसे कि मनुष्यों में परस्पर भेद-भाव का व्यवहार और मनुष्यों को ऊंचा-नीचा देखना, बाल-विवाह, रंग-भेद, दास प्रथा, स्त्रियों का दमन और उनके साथ दुर्व्यवहार, नर-भक्षी प्रथाएं, शिक्षा को केवल कुछ विशेष लोगों तक ही सीमित रखना, आदि को बुराई के रूप में पहचाना तथा मिटाया गया है; यह करने के लिए संविधान बनाए अथवा बदले गए हैं या संशोधित किए गए हैं। संसार भर में जहाँ-जहाँ भी बाइबल के प्रचारक गए हैं, वहाँ उनके साथ समाज के सभी लोगों के लिए समान शिक्षा, सभी लोगों को हर प्रकार की शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए शिक्षा-संस्थान और विद्यालय, सभी को समाज में आदर का स्थान तथा समाज सुधार, सभी के लिए चिकित्सा सुविधाएं, महिलाओं का उत्थान आदि भी साथ ही होता चला गया है।

            क्या यह सब किसी मनुष्य की कल्पना या विचारों के द्वारा लिखी गई बातों से संभव है वास्तविकता तो यह कि बाइबल की बातों और शिक्षाओं ने ही मनुष्यों के विचारों और कल्पनाओं से लिखी गई बातों में पलने और बनी रहने वाली सामाजिक कुरीतियों को सुधार कर लोगों के जीवनों को एक नई दिशा, एक नया मार्गदर्शन प्रदान किया है।

 

बाइबल पाठ: भजन 119:97-105

भजन 119:97 अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।

भजन 119:98 तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं।

भजन 119:99 मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है।

भजन 119:100 मैं पुरनियों से भी समझदार हूं, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूं।

भजन 119:101 मैं ने अपने पांवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं।

भजन 119:102 मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है।

भजन 119:103 तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं!

भजन 119:104 तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूं, इसलिये मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।

भजन 119:105 तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 84 -86
  • रोमियों 1

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