पाप का समाधान - उद्धार - 10
आज से हम अपने तीसरे प्रश्न “इसके लिए यह इतना आवश्यक
क्यों हुआ कि स्वयं परमेश्वर प्रभु यीशु को स्वर्ग छोड़कर सँसार में बलिदान होने के
लिए आना पड़ा?” को देखना आरंभ करते हैं। पहले के लेख “पाप का परिणाम” में हम ने देखा था कि मनुष्य के पाप
ने परमेश्वर के सामने एक विडंबना लाकर रख दी - उसका न्यायी, निष्पक्ष
और खरा होना माँग करता था कि पाप करने वाले मनुष्य को उसके किए का दण्ड भुगतना
होगा; किन्तु मनुष्य के प्रति उसका प्रेम मनुष्य को “मृत्यु” अर्थात उससे अनन्त विछोह में, नरक में देखना नहीं चाहता था। अब उसे कोई ऐसा मार्ग चाहिए था जिससे उसका
न्याय की माँग भी पूरी हो जाए, और मनुष्य को नाश में भी न
जाना पड़े।
इस समाधान के लिए उसे कोई ऐसा मनुष्य चाहिए था हो जो
पूर्णतः निष्पाप और निष्कलंक हो, इतना सामर्थी हो कि मृत्यु उसे वश में न रख सके, और इतना कृपालु हो कि मनुष्यों के पापों को स्वेच्छा से अपने ऊपर लेकर,
उनके दण्ड को मनुष्यों के स्थान पर सह ले, और
फिर प्रतिफल को मनुष्यों में सेंत-मेंत बाँट दे। ऐसा मनुष्य पाप के दण्ड को सभी के
लिए चुका सकता था, और मनुष्य को मृत्यु से स्वतंत्र कर के,
उनका मेल-मिलाप परमेश्वर से करवा सकता था, अदन
की वाटिका में खोई गई स्थिति को मनुष्यों के लिए वापस बहाल कर सकता था।
मनुष्यों के पाप का समाधान प्रदान करने वाले में इन
बातों का होना अनिवार्य था:
- वह
एक मनुष्य हो
- वह
अपना जीवन और सभी कार्य परमेश्वर की इच्छा और आज्ञाकारिता में होकर, उसे समर्पित रहकर करे
- वह
अपने जीवन भर मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में पूर्णतः निष्पाप, निष्कलंक, और पवित्र रहा हो
- वह
स्वेच्छा से सभी मनुष्यों के पापों को अपने ऊपर लेने और उनके दण्ड - मृत्यु
को सहने के लिए तैयार हो
- वह
मृत्यु से वापस लौटने की सामर्थ्य रखता हो; मृत्यु उस पर जयवंत नहीं होने पाए
- वह
अपने इस महान बलिदान के प्रतिफलों को सभी मनुष्यों को सेंत-मेंत देने के लिए
तैयार हो
इन सभी बातों की पूर्ति किसी
मनुष्य के लिए कर पाना असंभव था। आदम और हव्वा के पाप ने उनमें और फिर उनकी संतान में
पाप करने के प्रवृत्ति डाल दी थी। हर मनुष्य पाप करने के स्वभाव के साथ ही जन्म
लेता है, जैसा दाऊद ने अपने एक भजन में कहा “देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा” (भजन
51:5); दाऊद ने यह नहीं कहा कि मैं पाप के द्वारा या पाप के
कारण अपनी माता के गर्भ में पड़ा, वरन माता के गर्भ में पड़ने
के समय से ही उस में पाप विद्यमान था। यह केवल कहने की बात नहीं है, एक व्यावहारिक तथ्य है; बच्चे पाप के स्वभाव के साथ
ही जन्म लेते हैं। एक शिशु जो अभी बोलना भी नहीं जानता है, वह
क्रोध करता है, लालच करता है - अपनी पसंद की चीज़ को छोड़ना या
किसी और देना नहीं चाहता है, अपने किए किसी अनुचित कार्य के
लिए इनकार करना, उसे अस्वीकार करना जानता है, आदि। किसी ने भी उसे ऐसा करना नहीं सिखाया है, वह
स्वतः ही ऐसा करने की समझ और क्षमता रखता है। हम अकसर इन बातों को “बाल-व्यवहार” कह और समझ कर, हंस
कर टाल देते हैं। किन्तु जब यही “बाल व्यवहार” की बातें कोई थोड़ा बड़ा बच्चा या वयस्क करता है तो इसी को हम ही बुरा,
आपत्तिजनक, अस्वीकार्य कहते हैं; और जो बारंबार ऐसा करता रहता है उसे बुरा या पापी मानते हैं। व्यवहार और
मनसा वही है, केवल आयु का अंतर है। इसलिए हम उस मनसा और
व्यवहार को संज्ञा चाहे कोई भी दे लें, वास्तविकता तो
अपरिवर्तनीय है, बनी ही रहेगी - प्रत्येक मनुष्य पाप की
प्रवृत्ति, पाप के दोष के साथ जन्म लेता है। यह प्रवृत्ति और
मनसा सभी के मन में बनी रहती है, और समय तथा अवसर के अनुसार
प्रकट होकर व्यवहार में दिखने लगती है। तब हम व्यक्ति को पापी कहना आरंभ कर देते
हैं।
मनुष्य अपने प्रयासों से अपनी इस प्रवृत्ति को दबा
सकता है, नियंत्रित
कर सकता है, बाहर प्रकट होने से रोक सकता है; किन्तु मन-ध्यान-विचारों में इस प्रकार का पाप आने को नहीं रोक सकता है।
हम देख चुके हैं कि परमेश्वर की दृष्टि में मन के अप्रत्यक्ष पाप भी, व्यवहार में किए गए प्रत्यक्ष पापों के समान ही दण्डनीय हैं। इसीलिए बाइबल
में अय्यूब की पुस्तक में लिखा गया है:
- “अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं” (अय्यूब 14:4)
- “मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो
स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके? देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता,
और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है। फिर मनुष्य अधिक घिनौना और मलीन है जो कुटिलता को पानी के समान
पीता है” (अय्यूब 15:14-16)
- “फिर मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धमीं क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है?
देख, उसकी दृष्टि में चन्द्रमा भी अन्धेरा
ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते। फिर मनुष्य की क्या गिनती जो कीड़ा है, और आदमी कहां रहा जो केंचुआ है!” (अय्यूब 25:4-6)
और यशायाह नबी ने लिखा,
“हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं,
और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के
सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों
ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है” (यशायाह 64:6)।
तो अब परमेश्वर को एक ऐसा
मनुष्य चाहिए था जो गर्भ में पड़ने के समय से लेकर जीवन पर्यंत
मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में निष्पाप, पवित्र, और निष्कलंक रहा हो। मनुष्य की स्वाभाविक जन्म-प्रणाली के अनुसार यह असंभव
था।
इसीलिए बाइबल और मसीही
विश्वास की यह शिक्षा है कि प्रत्येक मनुष्य पापी है; प्रत्येक
मनुष्य को पापों की क्षमा और उद्धार की आवश्यकता है। यदि आप ने अभी भी उद्धार नहीं
पाया है, अपने पापों के लिए प्रभु यीशु से क्षमा नहीं मांगी
है, तो अभी आपके पास अवसर है। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के
प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटे प्रार्थना, “हे प्रभु
यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार
और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं
मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड
को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी
कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना
शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।” आपका
सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को
स्वर्गीय जीवन बना देगा।
बाइबल पाठ: अय्यूब 14:1-10
अय्यूब 14:1 मनुष्य जो स्त्री से
उत्पन्न होता है, वह थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।
अय्यूब 14:2 वह फूल के समान खिलता,
फिर तोड़ा जाता हे; वह छाया की रीति पर ढल
जाता, और कहीं ठहरता नहीं।
अय्यूब 14:3 फिर क्या तू ऐसे पर
दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपने साथ कचहरी में घसीटता है?
अय्यूब 14:4 अशुद्ध वस्तु से
शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
अय्यूब 14:5 मनुष्य के दिन
नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनों की गिनती तेरे पास लिखी
है, और तू ने उसके लिये ऐसा सिवाना बान्धा है जिसे वह पार
नहीं कर सकता,
अय्यूब 14:6 इस कारण उस से अपना
मुंह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि
वह मजदूर के समान अपना दिन पूरा न कर ले।
अय्यूब 14:7 वृक्ष की तो आशा रहती
है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी
फिर पनपेगा और उस से नर्म नर्म डालियां निकलती ही रहेंगी।
अय्यूब 14:8 चाहे उसकी जड़ भूमि
में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए,
अय्यूब 14:9 तौभी वर्षा की गन्ध
पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे के समान उस से शाखाएं फूटेंगी।
अय्यूब 14:10 परन्तु पुरुष मर
जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण
छूट गया, तब वह कहां रहा?
एक साल में बाइबल:
· नीतिवचन 3-5
· 2 कुरिन्थियों 1
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