मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की आवश्यकता एवं प्राप्ति (नवंबर 1 से 4 तक के लेखों का सारांश)
मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा
की भूमिका पर हमने पिछले अठारह लेखों में अध्ययन किया है। इन लेखों में जिन बातों
को हमने देखा और सीखा है, वे मसीही विश्वासी और उसकी मसीही सेवकाई के लिए बहुत
महत्वपूर्ण हैं। आज परमेश्वर पवित्र आत्मा को लेकर अनेकों ऐसी गलत शिक्षाएं और
व्यवहार देखे और सिखाए जाते हैं, जो परमेश्वर के वचन बाइबल
की बातों के अनुसार नहीं हैं, वरन, बाइबल
की कुछ बातों को उनके संदर्भ से बाहर लेकर, एक विचारधारा का
समर्थन करने के लिए; अनुचित धारणाओं को वैध ठहराने के लिए
प्रयोग किए जाते हैं। अगले लेखों में जाने से पहले इन महत्वपूर्ण शिक्षाओं को
दोहराने और स्मरण रखने में सरलता के लिए हम उन शिक्षाओं का एक सारांश देखेंगे,
जो हमने पिछले लेखों में देखी हैं।
आरंभ में हमने देखा था कि प्रभु ने अपने
शिष्यों से कहा कि वे मसीही सेवकाई पर निकलने से पहले पवित्र आत्मा की सामर्थ्य
प्राप्त करने की प्रतीक्षा करें, और तब ही सेवकाई पर निकलें। अर्थात, प्रभु
यीशु से लगभग साढ़े तीन वर्ष तक सीखने और उस दौरान प्रभु द्वारा सेवकाई पर भेजे जाने
के बावजूद शिष्य उनके साथ पवित्र आत्मा की उपस्थिति होने पर ही मसीही सेवकाई के
लिए सक्षम हो सकते थे। यह सेवकाई कुछ प्रशिक्षण या अनुभव प्राप्त कर लेने पर
निर्भर नहीं है; इसके लिए परमेश्वर की उपस्थिति साथ होना
अनिवार्य है।
फिर हमने देखा कि यह इसलिए आवश्यक है
क्योंकि मसीही सेवकाई आरंभ करते ही शिष्यों का सामना शैतान से होना था, जिसके वश में सारा संसार
पड़ा है (1 यूहन्ना 5:19)। शैतान अपनी
चतुराई से परमेश्वर के लोगों को बहका सकता है, धार्मिकता और
बाइबल की बातों के विषय में विश्वासियों को भरमा सकता है (2 कुरिन्थियों
11:3;, 13-15)। वह फाड़ खाने वाले सिंह के समान मसीही
विश्वासियों की हानि करने के लिए तैयार खड़ा है (1 पतरस 5:8)। इसलिए उसका सामना करने और उसकी युक्तियों पर जयवंत होने के लिए परमेश्वर
की सामर्थ्य साथ होना अनिवार्य है।
इसीलिए प्रभु परमेश्वर ने यह प्रयोजन करके
दे रखा है कि जैसे ही कोई व्यक्ति अपने पापों से पश्चाताप करता है, प्रभु यीशु से उनके लिए
क्षमा माँगता है, प्रभु यीशु द्वारा कलवरी के क्रूस पर दिए
गए बलिदान और उसके मृतकों में से पुनरुत्थान को स्वीकार करके, प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण कर लेता है, और
प्रभु की आज्ञाकारिता में चलते रहने के लिए अपना जीवन प्रभु यीशु को समर्पित कर
देता है, ठीक उसी पल से परमेश्वर पवित्र आत्मा उस उद्धार पाए
हुए नए विश्वासी में आकर निवास करने लगता है (प्रेरितों 11:17; इफिसियों 1:13-14;
गलातीयों 3:2)। वचन की इस सीधी सी स्पष्ट
शिक्षा को लेकर पवित्र आत्मा के नाम पर गलत और भ्रामक शिक्षा फैलाने वालों ने अपनी
ही धारणाएं बना रखी हैं, और उन गलत शिक्षाओं का प्रचार करते
हैं। वे सिखाते हैं कि उद्धार पा लेने के बाद पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए
अलग से कुछ विशेष प्रयास करने पड़ते हैं - जिसका वचन में कोई समर्थन अथवा शिक्षा
नहीं है। एक नवजात मसीही विश्वासी को प्रभु कैसे शैतान से हानि उठाने के लिए अकेला
छोड़ सकता है? साथ ही वे लोग “पवित्र
आत्मा से बपतिस्मे” को लेकर भी एक अलग ही सिद्धांत सिखाते
हैं, जबकि वचन में यह स्पष्ट लिखा गया है कि प्रभु यीशु मसीह
पर विश्वास करने के साथ ही पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा
प्राप्त करना एक ही बात हैं; एक ही तथ्य की दो अलग
अभिव्यक्तियाँ हैं (प्रेरितों 1:5, 8; 11:15-17)।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, और इन भ्रामक तथा गलत
शिक्षाओं फँसाए गए हैं, तो प्रभु परमेश्वर से प्रार्थना करें
कि वह आपको सही और गलत शिक्षा की पहचान दे, और गलत शिक्षाओं
से निकालकर बाइबल की सही शिक्षाओं में स्थापित करे; अपने वचन
को सिखाए, और अपने लिए उपयोगी पात्र बनाकर आप को अपनी सेवकाई
में प्रयोग करे। ध्यान रखिए, अन्ततः, पृथ्वी
के इस जीवन के बाद, आपका न्याय किसी व्यक्ति, मत, समुदाय, या डिनॉमिनेशन की
शिक्षाओं और बातों के अनुसार नहीं होगा, वरन परमेश्वर के वचन
के अनुसार होगा (यूहन्ना 12:47-48)। इसलिए किसी भी मनुष्य को
प्रसन्न करने की, या मनुष्य के द्वारा बनाए गए विचारों और
धारणाओं का पालन करते रहने की गलती ना करें (गलातियों 1:10); वरन देख-परख कर परमेश्वर के वचन के सत्य को ही थामें और निभाएं (1 थिस्सलुनीकियों 5:12; प्रेरितों 17:11-12)।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यहेजकेल
11-13
- याकूब 1
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