मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की
कार्य-विधि (यूहन्ना 16:12-13) - 3.
पिछले लेख में हमने देखा था कि एक बार
फिर प्रभु यीशु मसीह ने परमेश्वर पवित्र आत्मा को “सत्य का आत्मा” कह कर संबोधित किया; अर्थात पवित्र आत्मा से संबंधित
और उनकी हर बात केवल सत्य ही होगी, और वे केवल सत्य ही का
मार्ग बताएंगे; वे किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष अथवा
अप्रत्यक्ष असत्य के साथ कभी किसी रूप में सम्मिलित नहीं होंगे। साथ ही हमने यह भी
देखा था कि परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार ‘सत्य’ प्रभु यीशु मसीह और उनका वचन है। तात्पर्य यह हुआ कि परमेश्वर पवित्र
आत्मा की हर बात प्रभु यीशु मसीह और उनके वचन की बातों में से होगी, उन शिक्षाओं और बातों के साथ संगत होगी, कभी उनसे भिन्न
अथवा अतिरिक्त नहीं होगी। साथ ही हमने यह भी देखा था कि बाइबल से संबंधित
किसी भी सिद्धांत को स्वीकार करने से पहले, उसे तीन बातों के आधार पर जाँच लेना चाहिए; ये बातें हैं - i.
सुसमाचारों में प्रचार किया गया; ii. प्रेरितों
के काम में व्यावहारिक मसीही या मण्डली के जीवन में प्रदर्शित किया गया; iii. पत्रियों
में उसकी व्याख्या की गई या उसके विषय सिखाया गया। जिस बात में ये तीनों गुण नहीं
हैं, उसे तुरंत स्वीकार नहीं करना चाहिए; बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) वचन से यह देखना चाहिए कि जो कहा और
बताया जा रहा है, वास्तव
में पवित्र शास्त्र में वैसा ही लिखा है या नहीं - यह खरे आत्मिक ज्ञान का चिह्न
है 1 कुरिन्थियों 2:15।
यूहन्ना 16:13 में परमेश्वर पवित्र आत्मा
द्वारा ‘तुम्हें’ अर्थात प्रभु यीशु के
शिष्यों की सार्वजनिक मसीही सेवकाई से संबंधित तीन बातों का उल्लेख है:
(i) वह सब सत्य का मार्ग
बताएगा;
(ii) वह अपनी ओर से नहीं
कहेगा, परंतु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा;
(iii) वह आने वाली बातें
बताएगा।
(i) आज परमेश्वर पवित्र
आत्मा के नाम से बहुतायत से किए जाने वाले भ्रामक प्रचार, गलत
शिक्षाओं, और मन-गढ़न्त बातों के संदर्भ में, उन बातों और शिक्षाओं को जाँचने और परखने, उनकी
सत्यता को जानने और पहचानने के लिए, ऐसी शिक्षाओं और उनके
प्रचारकों को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिए, ये तीनों बातें बहुत सहायक तथा
महत्वपूर्ण हैं। ऐसे सभी प्रचारक सामान्यतः परमेश्वर के वचन की शिक्षा (1 यूहन्ना 2:15-17) के विपरीत, सांसारिक
सुख-समृद्धि-संपत्ति और शारीरिक चंगाई या लाभ प्राप्त करने ही की बातें करते हैं।
उनके प्रचार में पापों के लिए पश्चाताप करने (प्रेरितों 2:38), प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास द्वारा उद्धार (प्रेरितों 15:11;
16:31), प्रभु यीशु के शिष्य बनने और उससे आने वाले मन-परिवर्तन के
बारे में (रोमियों 12:1-2; 2 कुरिन्थियों 5:17), और अपने आप को संसार में यात्री और परदेशी होकर सांसारिक नहीं वरन
स्वर्गीय वस्तुओं पर मन लगाने (1 पतरस 2:11; कुलुस्सियों 3:1-2), मसीही विश्वास और सेवकाई में दुख आने और उठाने की
अनिवार्यता (फिलिप्पियों 1:29; 2 तिमुथियुस 3:12),
आदि, सुसमाचार की बातें या तो
होती ही नहीं हैं, अथवा बहुत कम होती हैं। उनका प्रचार,
और जीवन मुख्यतः पार्थिव, नश्वर, शारीरिक सुख-सुविधा की बातों से ही संबंधित होता है। और फिर वे यह सब पवित्र आत्मा की ओर से अथवा
उनकी अगुवाई में होकर कहने का दावा करते हैं। वे शरीरों के विचित्र हाव-भाव-हरकतों और
मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें निकालकर लोगों को प्रभावित करने और यह विश्वास दिलाने के
प्रयास करते हैं कि यह सब पवित्र आत्मा उनमें होकर कर रहा है या उनसे करवा रहा है।
जबकि पवित्र आत्मा के संबंध में ऐसी कोई शिक्षा, कोई बात परमेश्वर के वचन में कहीं
नहीं दी गई है। तो फिर वह ‘सत्य का आत्मा’ जो केवल सत्य अर्थात परमेश्वर के वचन और प्रभु यीशु की बातों का मार्ग
बताता है, वह यह सब कैसे कर सकता है? या
तो प्रभु यीशु की कही यूहन्ना 16:13 की बात झूठ है, अन्यथा पवित्र आत्मा के नाम पर किए जा रहे ये भ्रामक एवं नाटकीय प्रचार और
व्यवहार झूठ हैं।
(ii) इस प्रकार का गलत
प्रचार करने वालों में एक और बात बहुधा देखी जाती है - वे पवित्र आत्मा की ओर से
नए दर्शन, नई शिक्षाएं, नई बातें बोलने
के दावे करते हैं। किन्तु प्रभु यीशु मसीह ने यहाँ पर परमेश्वर पवित्र आत्मा के
विषय स्पष्ट कहा है कि वे “अपनी ओर न कहेगा,
परंतु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा”; साथ ही प्रभु यीशु मसीह ने इससे पहले कहा था “परन्तु
सहायक अर्थात पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह
तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा
है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा”
(यूहन्ना 14:26)। अब जब परमेश्वर का वचन अपनी
पूर्णता में लिखा जा चुका है, अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में
स्थापित हो चुका है (भजन 119:89), साथ ही प्रभु यीशु द्वारा
कही गई उपरोक्त बातों को भी ध्यान में रखते हुए, तो फिर यह
कैसे संभव है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा उस वचन के अतिरिक्त और कुछ नया किसी मनुष्य
को बताए या सिखाए? यह तो उपरोक्त बातों के विरुद्ध होगा,
उन्हें झूठ दिखाएगा - जो ‘सत्य के आत्मा’
पवित्र आत्मा के गुणों के विरुद्ध है। एक और बार हमारे समान फिर वही
आँकलन आ जाता है - या तो परमेश्वर का वचन सही है, तो फिर ये
प्रचारक और उनकी शिक्षाएं और व्यवहार झूठे होंगे; अन्यथा ये
प्रचारक और उनके दावे सही हैँ, तो
फिर परमेश्वर के वचन की शिक्षाएं स्थिर, स्थापित और सच्ची
नहीं हैं, वरन परिवर्तनीय हैं, अविश्वासयोग्य
हैं क्योंकि लिखा कुछ है और हो कुछ और ही रहा है! आप किस पर विश्वास करेंगे -
परमेश्वर और परमेश्वर के वचन पर या मनुष्य और उसके वचन, व्यवहार,
और दावों पर?
(iii) एक और बात जिसका
दावा ये भ्रामक एवं नाटकीय प्रचार और व्यवहार करने वाले अकसर करते हैं, वह है “भविष्यवाणियाँ”। अवश्य
ही प्रभु यीशु ने शिष्यों से कहा कि पवित्र आत्मा 'तुम्हें'
अर्थात प्रभु यीशु के शिष्यों को आने वाली बातें बताएगा। किन्तु यदि
नए नियम की बातों के आधार पर इस बात को देखें, तो इस बात का
जो अर्थ सामने आता है वह है कि पवित्र आत्मा मसीही सेवकाई और सुसमाचार प्रचार के
दौरान शिष्यों को आने वाली बातों को बताता है, अर्थात
उन्हें सचेत रखता था। ऐसा बिलकुल नहीं था कि पवित्र आत्मा लोगों को अपना ढिंढोरा
पीटने और अपने आप को लोगों के सामने भविष्यद्वक्ता दिखा कर वाह-वाही लूटने के लिए
कहता था। वरन वह सुसमाचार प्रचार में लगे प्रभु के शिष्यों को हर परिस्थिति के लिए
तैयार और आगाह रखता था, जो
शिष्यों की सेवकाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात थी (प्रेरितों 9:16; 13:4;
20:22-23; 21:4, 11; 23:16)। दूसरी बात, यदि
लोगों द्वारा “पवित्र आत्मा की ओर से” मिली
और की जा रही भविष्यवाणियों के विषयों को देखें, और उनके
पूरा होने का आँकलन करें, तो स्पष्ट हो जाता है कि उन
“भविष्यवाणियों” के विषय और सामग्री, सामान्यतः परमेश्वर के वचन से बाहर या अतिरिक्त होते हैं - जो, जैसा हम ऊपर देख चुके हैं, पवित्र आत्मा की ओर से
किया जाना संभव नहीं है। साथ ही यदि उनके पूरे होने के आधार पर आँकलन करने के लिए
उन्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षा से देखें, तो लिखा है ,
“और यदि तू अपने मन में कहे, कि जो वचन
यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहचानें? तो पहचान यह
है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न
घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं;
परन्तु उस नबी ने वह बात अभिमान कर के कही है, तू उस से भय न खाना” (व्यवस्थाविवरण 18:21-22)। अर्थात दोनों ही रीति से ऐसे लोगों द्वारा की जा रही “भविष्यवाणियों” के परमेश्वर की ओर से होने की पुष्टि
नहीं होती है। फिर भी ये लोग, बेधड़क होकर, परमेश्वर पवित्र आत्मा के नाम से कुछ भी कहते और करते रहते हैं; तथा लोग सच्चाई की पहचान करने और फिर स्वीकार करने के स्थान पर, उनकी बातों में आकर मूर्ख बनते रहते हैं, उनके पीछे
चलते रहते हैं।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके
लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को
गंभीरता से सीखें, समझें
और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और
उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। आपको
अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)।
जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और
परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए उन गलत
शिक्षाओं में बने रहने के लिए कोई उत्तर नहीं दे सकेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त
आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि आप जैसी भी दशा में हैं, उसी में परमेश्वर आपको
स्वीकार कर लेगा, और सदा काल के लिए अपना बना लेगा। साथ ही
क्या किसी पापी मनुष्य के लिए कहीं और यह संभव है कि परमेश्वर स्वयं आप में आ कर
सर्वदा के लिए निवास करे; आपको धर्मी बनाए; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और
हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे? और फिर,
आप में होकर अपने आप को तथा अपनी धार्मिकता को औरों पर प्रकट करे,
आपको खरा आँकलन करने और सच्चा न्याय करने वाला बनाए; तथा आप में होकर पाप में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने
के अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय
आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों
को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ
प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन
है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे
मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से
क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और
पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने
ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही,
गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन
जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे
पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता
हूँ।” प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप
और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए
स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यहेजकेल
5-7
- इब्रानियों 12
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