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सोमवार, 10 जुलाई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न – 42m – Examples from New Testament / नए नियम के उदाहरण – 4

 

क्या बाइबल के अनुसार, क्या मसीही कलीसियाओं में स्त्रियों को पुलपिट से प्रचार करने और पास्टर की भूमिका निभाने की अनुमति है? 


भाग 13 – नए नियम की स्त्रियों के उदाहरणों का विश्लेषण – 4  प्रिस्‍किल्ला

 

    एक अन्य भक्त स्त्री, जिसका नाम और उदाहरण स्त्रियों के कलीसियाओं में प्रचार करने और पास्टर बनने की अनुमति होने को दिखाने के लिए बहुधा लिया जाता है, प्रिस्किल्ला है। बाइबल में प्रिस्किल्ला और उसके पति का उल्लेख नए नियम में कुल पाँच बार आया है (प्रेरितों 18:2, 18, 26; रोमियों 16:3; 1 कुरिन्थियों16:19)। इन 5 उल्लेखों में से रोमियों और कुरिन्थियों के उल्लेख, पौलुस द्वारा उन्हें अपनी इन पत्रियों का अन्त करते हुए किया गया अभिनन्दन है। कुरिन्थियों वाले उल्लेख में पौलुस उनके घर में होने वाली कलीसिया का भी उल्लेख करता है, लेकिन इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि उस कलीसिया में कौन प्रचार करता था और कौन उसका संचालन करता था। प्रेरितों 18 में आए तीनों उल्लेखों में से पद 2 उनके परिचय का है, पद 18 उनके पौलुस के साथ सूरिया तक यात्रा करने को बताता है, और केवल पद 26 ही वह एकमात्र पद है जिसमें उनका एक स्पष्ट परमेश्वर के वचन की सेवकाई से संबंधित कार्य लिखा गया है; और वह भी उनके द्वारा एक व्यक्ति को परमेश्वर का वचन “ठीक-ठीक बताया” गया है, किसी कलीसिया की सभा में कोई प्रचार करना नहीं।


    अपुल्लोस को समझाने का यह उल्लेख, अर्थात प्रेरितों 18:26, ही एकमात्र है जो परमेश्वर के वचन की सेवकाई से सीधे से संबंधित है, और इसमें केवल प्रिस्किल्ला अकेली का ही नाम नहीं आया है, वरन उसका नाम उसके पति अक्विला के नाम के साथ आया है, अर्थात, अपुल्लोस को समझाने वाली वह अकेली नहीं थी वरन वह और उसके पति दोनों ने मिलकर अपुल्लोस को समझाया था, जैसा कि वचन में भी सफाई से लिखा हुआ है, “...पर प्रिस्‍किल्ला और अक्‍विला उस की बातें सुनकर, उसे अपने यहां ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसको और भी ठीक ठीक बताया।” ध्यान कीजिए, लिखा है “ठीक ठीक बताया”, न कि प्रचार किया। और उन्होंने यह काम किसी आराधनालय में नहीं किया, किसी कलीसिया की सभा में नहीं किया, वरन उसे आराधनालय से अलग ले जाकर किया। यह भी नहीं लिखा गया है कि यह उनके द्वारा उन सभाओं में बारंबार किया जाने वाला काम था; वचन में इसे उनके द्वारा बस इस एक ही बार किए जाने का उल्लेख है। और इसे अक्विला और प्रिस्किल्ला ने मिल कर किया था, न कि केवल प्रिस्किल्ला अकेली ने किया। साथ ही, यद्यपि यह पद बताता है कि अक्विला और प्रिस्किल्ला ने अपुल्लोस को आराधनालय में बोलते हुए सुना था, किन्तु यह पद न तो कहता है और न ही कोई संकेत देता है कि उस आराधनालय में उन दोनों को वचन की सेवकाई के लिए उपयोग किया जाता था, या वे वहाँ पर नियमित जाया करते थे। पद बस इतना ही कहता है कि जिस समय अपुल्लोस उस आराधनालय की सभा में प्रचार कर रहा था, वे दोनों भी वहाँ पर थे और उसे सुन रहे थे। बल्कि, यदि अक्विला और प्रिस्किल्ला उस आराधनालय में प्रचार के लिए उपयोग किए जा रहे होते, वहाँ पर नियमित जाया करते, तो उन्हें फिर अपुल्लोस को वहाँ से अलग ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं होती, वे वहीं पर और अधिकार के साथ उसे समझाने के काम को कर सकते थे। इसलिए किसी भी रीति से, कैसी भी कल्पना के द्वारा, इस पद से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि प्रिस्किल्ला स्थानीय आराधनालय में या उसके सदस्यों को प्रचार किया करती थी।


    1 कुरिन्थियों 16:19 में उनके घर में कलीसिया के होने का उल्लेख यह नहीं कहता है कि उनमें से कोई एक भी वहाँ प्रचारक अथवा संचालक था, वचन बस यही कहता है कि कलीसिया उनके घर में आयोजित की जाती थी, उन्होंने अपने घर को कलीसिया के लिए उपलब्ध करवा रखा था। इसलिए इस वाक्य में अपनी ही बातें जोड़ने के द्वारा, इस पद को दोनों ही पक्ष के समर्थन के लिए उपयोग किया जा सकता है। जो यह दिखाना चाहते हैं कि प्रिस्किल्ला अपने घर में आयोजित होने वाली कलीसिया में प्रचार किया करती थी, अपनी इस धारणा को इसमें जोड़ सकते हैं। और दूसरी ओर, जो यह दिखाना चाहते हैं कि यद्यपि उसके पास अवसर था किन्तु फिर भी प्रिस्किल्ला अपने घर की कलीसिया में प्रचार नहीं किया करती थी, वे भी कुछ अधिक बल के साथ अपनी बात को रख सकते हैं और कह सकते हैं कि यद्यपि प्रिस्किल्ला के घर में कलीसिया आयोजित होती थी और उसके पास अवसर था, फिर भी परमेश्वर का वचन यह नहीं कहता है कि वह उसमें प्रचार किया करती थी, जिसका तात्पर्य है कि वह प्रचार नहीं करती थी। क्योंकि इस पद के आधार पर किसी भी पक्ष की ओर दलील दी जा सकती है, इसलिए इस पद को किसी भी एक ओर का समर्थन करने के लिए दावे के साथ उपयोग नहीं किया जा सकता है।


    कुछ लोगों ने प्रेरितों 18:18 का अपने पक्ष में अनुचित लाभ उठाने का प्रयास किया है। वे कहते हैं कि इस पद में प्रिस्किल्ला का नाम उसके पति, अक्विला के नाम से पहले लिखा गया है, जो इस बात का संकेत है कि उन दोनों में से प्रिस्किल्ला की भूमिका या सेवकाई अधिक महत्वपूर्ण थी। किन्तु यह भी वचन का दुरुपयोग कर के केवल एक विशेष विचारधारा का समर्थन दिखाने का प्रयास है, वास्तविकता नहीं। नए नियम में जो 5 बार उन दोनों के नामों का उल्लेख आया है, उनमें से दो बार, प्रेरितों 18:18 तथा रोमियों 16:3 में प्रिस्किल्ला का नाम अक्विला के नाम से पहले लिखा गया है; जब कि शेष तीन बार – प्रेरितों 18:2, 26, और 1 कुरिन्थियों 16:19 में अक्विला का नाम पहले लिखा गया है। तो अब बाइबल के इन तथ्यों के आधार पर, उन लोगों की इस दलील का क्या महत्व रह जाता है? क्या यह शैतान की कुटिलता और चालाकी से लोगों को भरमाने, उनसे परमेश्वर के वचन का दुरुपयोग करवाने को नहीं दिखता है? बजाए इसके कि ये लोग परमेश्वर के वचन की सभी बातों, सभी तथ्यों को देखें और उनके आधार पर एक सच्चा निष्कर्ष निकालें, ये शैतान के बहकावे में आकर वचन को तोड़-मरोड़ कर अपनी ही धारणा में बैठाने, अपने आप को सही ठहराने का प्रयास करते हैं। जबकि हमेशा परमेश्वर के वचन के साथ निष्पक्ष होकर ईमानदारी के साथ व्यवहार करना चाहिए और सच्चे निष्कर्ष निकाल कर प्रस्तुत करने चाहिएँ, न कि अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए मन-गढ़ंत निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाएँ।  


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

-  क्रमशः

 

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According to the Bible, Do Women Have the Permission to Serve as Pastors and Preach from the Pulpit in the Church?

 

Part 13 – Analysis of Examples of Women of the New Testament – 4 Priscilla

 

    Another godly woman, whose name and example is often used to try to justify women preaching in the Churches and becoming Pastors is Priscilla. In the Bible, Priscilla and her husband are mentioned in the New Testament a total of 5 times (Acts 18:2, 18, 26; Romans 16:3; 1 Corinthians16:19). Of these 5 occasions, the mention in Romans and 1 Corinthians, is Paul’s greetings to them, as he concludes his letters. In the mention in Corinthians Paul also mentions that the Church used to gather in their house, but there is no mention of who did the preaching and who conducted the service there. And of the 3 mentions in Acts 18, in verse 2 is the introduction about them, verse 18 mentions their going on a journey with Paul to Syria, and only in verse 26 is the solitary mention of their helping Apollos to understand the way of God more accurately. Thus, out of the 5 mentions about them in the Bible, only one verse has a clear unambiguous mention of an activity related to the ministry of God’s Word; and that too is of “explaining” God’s Word to one person, not preaching to any congregation.

    

    In this one instance, i.e., Acts 18:26, that directly relates to the ministry of God’s Word, i.e., explaining to Apollos, the name of Priscilla has not come alone, but along with the name of her husband Aquila, i.e., it was not she alone but both of them who explained to Apollos, as it clearly says in the verse, “…they took him aside and explained to him the way of God more accurately.” Notice, this “explaining”, not any preaching, was not done in any place of worship, nor during any Church meeting, but as an aside. It was an activity involving only one single person, namely Apollos, and not the whole congregation. It was a one-time action, and not a regular or recurring thing done by them in that congregation. And it was an activity that was jointly carried out by both Aquila and Priscilla, not exclusively by Priscilla. Moreover, though this verse says that Aquila and Priscilla heard Apollos speak in the synagogue, but it does not indicate or imply that they were being used in that synagogue, amongst that congregation there, to preach or teach to them, or that they regularly used to go that Synagogue. All it says is that they were present there at the time when Apollos was preaching in that Synagogue, to its congregation. Rather, if they were being used in that Synagogue to teach and preach God’s Word, had been going there regularly, then they would have had no need to take Apollos aside to explain things to him; they could have done this easily and authoritatively in that Synagogue itself. Therefore, by no stretch of imagination can this verse be used to infer that Priscilla preached in the local Synagogue or to its members.


    The mention of the local Church assembling in their house, in 1 Corinthians 16:19, does not say that either or both of them preached or managed the affairs of the Church in their home. All that the Word says is that they had made their home available for the Church. Therefore, by reading things into this statement, this argument can be used both ways. Those who want to use it to show that Priscilla preached in the Church in her house, can do so under their own assumption, but the Word of God does not say so. On the other hand, those who want to show that Priscilla did not preach in the Church in her house, can more certainly say and argue their point that although there was a Church in their house, yet God’s Word does not specifically state that Priscilla preached there, though she had the opportunity, thereby implying that Priscilla did not. Therefore, this verse can be used by either side in favor of their stand on the issue, and hence cannot be accepted as categorically saying one thing or the other, for or against this notion.


    Some people have tried to take undue advantage of Acts 18:18, by saying that since Priscilla’s name is mentioned before her husband Aquila’s name, therefore this indicates that between the two of them she had the more important role or ministry. This is again a misuse of the Scriptures to make it suit one’s particular point of view, and not the realty. Of the 5 times their name has come in the New Testament, twice in Acts 18:18 and Romans 16:3, has Priscilla’s name been written before Aquila’s; while in the other 3 instances – Acts 18:2, 26; 1 Corinthians 16:19, it is Aquila’s name that is mentioned before Priscilla’s; so, where does this fact of the matter leave this line of argument? Does it not expose the devious ways in which Satan induces people to take liberty with God’s Word, to twist and turn it to make it suit their particular opinion, instead of looking at and considering all the facts given in God’s Word impartially, in an unbiased manner to come to honest conclusions, instead of contrived ones?


    So, as for the preceding three godly women mentioned in the Bible, even this fourth one, Priscilla, on the basis of the information given about her in God’s Word, cannot be used to say that God’s Word permits women to preach in the Churches and become Pastors. In the next article, we will look about some more godly women mentioned in the New Testament.


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

- To Be Continued

 

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