अभी तक हमने नए नियम में से चार भक्त स्त्रियों, फीबे, सामरी स्त्री, मरियम मगदलीनी, और प्रिस्किल्ला के बारे में देखा है, जिन्हें बहुधा इस धारणा को सही दिखाने के लिए कि स्त्रियों को कलीसियाओं में प्रचार करने और पास्टर बनने की अनुमति है, उदाहरण के लिए उपयोग किया जाता है। किन्तु उनके बारे में परमेश्वर के वचन में दी गई जानकारी का विश्लेषण करने पर हम देखते हैं कि उनके बारे में वचन में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया है जो इस मिथ्या धारणा की पुष्टि तो दूर की बात है, इसके पक्ष में कोई संकेत भी करे। पहले, 5 जुलाई के लेख में यह उल्लेख किया गया था कि ऐसी कई स्त्रियाँ थीं जो प्रभु यीशु के साथ रहती थीं, उसकी, तथा उसके शिष्यों की सेवा किया करती थीं (मरकुस 15:40-41; लूका 8:2-3), किन्तु फिर भी उनमें से किसी को भी कभी भी किसी कलीसिया की सभा में प्रचार की ज़िम्मेदारी नहीं दी गई, और न ही उनमें से किसी को किसी भी कलीसिया में पास्टर नियुक्त किया गया। उसी लेख में यह भी दिखाया गया था कि कलीसियाओं के कार्यों तथा संचालन के लिए जो अगुवे थे, उनमें कभी भी किसी भी स्त्री के होने का भी कोई उल्लेख नहीं है। आज हम नए नियम में उल्लेख की गई कुछ अन्य स्त्रियों के बारे में देखेंगे जो भक्ति के साथ प्रभु परमेश्वर की सेवा करती थीं, और उनकी श्रद्धा तथा सेवा के लिए परमेश्वर के वचन में उनका आदरणीय उल्लेख किया गया है, किन्तु उनमें से किसी को भी, कभी भी, कलीसिया में प्रचार या पास्टर होने की ज़िम्मेदारी नहीं दी गई।
इनमें से पहली स्त्री है हन्नाह भविष्यद्वक्तिन, जिसका उल्लेख हम लूका 2:36-38 में, प्रभु यीशु के जन्म से संबंधित बातों के सन्दर्भ में पाते हैं। लूका उसके बारे में लिखता है, “वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर कर के रात-दिन उपासना किया करती थी” (लूका 2:37)। लूका द्वारा लिखे गए उसके वर्णन से हम देखते हैं कि हन्नाह भविष्यद्वक्तिन थी, चौरासी वर्ष से विधवा थी, मंदिर को नहीं छोड़ती थी, और रात-दिन प्रार्थनाओं तथा उपवास के साथ उपासना किया करती थी। आज जो स्त्रियाँ कलीसिया में पुलपिट से प्रचार करना और पास्टर नियुक्त होना ही सेवा और अपना अधिकार समझती हैं, वे हन्नाह के जीवन से बहुत कुछ सीख सकती हैं। बिना कभी किसी पुलपिट पर खड़े हुए, बिना कभी किसी को एक भी संदेश का प्रचार किए, परमेश्वर से उच्च आदर प्राप्त किया जा सकता है, परमेश्वर के लिए भविष्यद्वक्तिन भी बना जा सकता है। पुलपिट से प्रचार करने की मनोकामना रखने वाली स्त्रियाँ इस उदाहरण से देख सकती हैं कि कलीसिया में पुलपिट से प्रचार करना और पास्टर बनना ही परमेश्वर की सेवा करने, उससे स्वीकृति और आशीष पाने के तरीके नहीं हैं। आप परमेश्वर की सेवा हन्नाह के समान रात-दिन उपवास और प्रार्थनाओं के द्वारा, और यदि चाहें तो कलीसिया में रहने, तथा फीबे के समान कलीसिया की देखभाल और सेवा करने के द्वारा भी कर सकते हैं। और यह करना वास्तव में परमेश्वर के वचन की भक्त स्त्रियों के जीवनों के उदाहरणों का सच्चा अनुसरण करना होगा, बजाए इसके कि उन भक्त स्त्रियों के उदाहरणों का दुरुपयोग किया जाए, और उनके नाम के सहारे मनगढ़ंत और बाइबल के विपरीत धारणाओं को बढ़ावा दिया जाए।
जो परमेश्वर के वचन में आदर का स्थान पाती हैं, उन स्त्रियों में एक अन्य उल्लेख है सुसमाचार प्रचारक फिलिप्पुस की चार पुत्रियों का (प्रेरितों 21:8-9)। उनके बारे में केवल पद – पद 9, में ही लिखा गया है; इसका कोई उल्लेख नहीं है कि वे किस बारे में भविष्यवाणी करती थीं, कब और कहाँ पर करती थीं, आदि। किन्तु उनके द्वारा कभी किसी कलीसिया में कोई प्रचार करने का उल्लेख भी नहीं है, यद्यपि उनका पिता आरंभिक कलीसिया के समय में एक बहुत जाना-माना, प्रभावी, और प्रमुख सुसमाचार प्रचारक था। परमेश्वर के वचन में फिलिप्पुस को न केवल सुसमाचार प्रचारक के रूप में पहचाना प्राप्त है, वरन चार भविष्यवाणी करने वाली पुत्रियों का पिता होने का अभी आदर प्राप्त है – जो इस बात की गवाही है कि उसने उनका पालन-पोषण परमेश्वर के भय और अगुवाई में किया होगा। यह भी प्रभु की सेवा करने का एक तरीका है – बच्चों की ऐसी परवरिश करना कि उससे परमेश्वर की महिमा हो, उसे आदर मिले।
अगले लेख में हम स्त्रियों के कलीसियाओं में प्रचार करने तथा पास्टर बनने की इस श्रृंखला का सार तथा निष्कर्ष को देखेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- क्रमशः
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So far, from the New Testament we have seen about four godly women, Phoebe, the Samaritan Woman, Mary Magdalene, and Priscilla who are often used as examples to justify the notion that women have the permission to preach in Churches and become Pastors. But analyzing the information given about them in God’s Word the Bible, we could see that there was nothing mentioned about them that could affirm, or even indirectly support this false notion. In an earlier article of 5th July, there was a mention of women who were associated with the Lord Jesus, accompanied Him, and ministered to him and His disciples during their ministry (Mark 15:40-41; Luke 8:2-3), but still none of them were ever given this responsibility of preaching to the congregation in a Church gathering, nor was any of them made the Pastor of any Church. In the same article a mention had also been made that the amongst the elders who deliberated and decided about the various matters concerning the Church, there is no mention of any woman ever being a part of those elders. Today we will see about some other women mentioned in the New Testament, who devoutly served the Lord God, and have an honorable mention in God’s Word for their reverence and commitment, but did not have the ministry of preaching in the Churches or of being Pastors of any Church.
The first of these women is the prophetess Anna, whose honorable mention we find in Luke 2:36-38, associated with the events related to the Lord Jesus’s birth. Luke says about her, “and this woman was a widow of about eighty-four years, who did not depart from the temple, but served God with fastings and prayers night and day” (Luke 2:37). What we see from Luke’s account about her is that Anna was a prophetess, was a widow of about eighty-four years, did not depart from the Temple, and served God with fastings and prayers night and day. Those women who today insist on preaching from the pulpit and becoming Pastors in the Churches, have a lot to learn from Anna. Without ever standing on any pulpit, or preaching any sermon to anyone, you can still have great honor from God, can be a prophetess for God. Moreover, preaching from the pulpit and becoming Pastors in the Church are not the only ways to serve God and be acknowledged and blessed by Him. You can serve the Lord like Anna, through fastings and prayers, night and day, and, if desired, by staying in the Church like Anna, and looking after its needs, serving it like Phoebe used to do, thereby actually and honestly emulating the examples set by these godly women, instead of misusing their examples to propagate contrived unBiblical notions.
Another set of women who are honorably mentioned in God’s Word are the four daughters of Philip the evangelist (Acts 21:8-9). That one verse – verse 9 is the only mention of them in God’s Word; nothing is said about what they prophesied about, to whom did they prophesy, when and where they prophesied, etc. But there is no mention of them ever preaching in any Church or any of them being a Pastor, despite their father being a well-known, effective, and prominent servant of God in the initial Church period. In the Word of God, Philip, besides his own well-known ministry as an evangelist, is also known as the father of four daughters who prophesied – a testimony to the godly upbringing that he would have given them. This is another way to serve the Lord – bringing up the children in a manner that glorifies God, brings honor to Him.
In the next article we will summarize and conclude this series on women being given the ministry of preaching and becoming Pastors in Churches.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued
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