कुछ वैज्ञानिक अपना ध्यान आकाश की ओर लगा रहे हैं, परन्तु यह स्वर्ग और परमेश्वर की ओर नहीं है। उन्होंने अनुमन लगाया है कि अंतरिक्ष में लगभग ५ करोड़ सभ्यताएं विद्यमान हो सकती हैं, और उनका यह भी विश्वास है कि उनमें से कुछ ने जीवन को सुधारने और मृत्यु के समय को नियंत्रित करने के उपाय भी खोज लिये होंगे। नवम्बर १९७४ में इन वैज्ञानिकों ने एके सन्देश हमारी आकाशगंगा के छोर की ओर भेजा। समस्या यह है कि यदि वह सन्देश किसी को मिल भी जाए, और वे उसका उत्तर भी दें, तो भी उस उत्तर पृथ्वी तक आने में ४८००० वर्ष लग सकते हैं।
मसीही विश्वासियों को ये प्रयास चाहे बेतुके लगें, लेकिन वे वैज्ञानिक अपने इन प्रयासों को लेकर बहुत गंभीर हैं, जबकि हम विश्वासी, जो वास्तव में एक अलौकिक संसार से संबंध बना कर रखते हैं कभी कभी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे हमारी प्रार्थनाएं कोई नहीं सुनता। परमेश्वर के हर सन्तान को यह अधिकार और अवसर है कि वह परमेश्वर से कभी भी संपर्क कर सके। जिसने इस सृष्टि को बनाया और नक्षत्रसमूहों (galaxies) को आकार देकर स्थापित किया, हमें उसके साथ क्षण भर में संपर्क स्थापित करने का अधिकार और विधि है। जिस क्षण हम प्रार्थना में उसके पास आते हैं, वह हमारी सुनता है और अपनी इच्छा में उसका उत्तर भी देता है। प्रार्थना की अद्भुत सुविधा के माध्यम से प्रत्येक मसीही विश्वासी सर्वश्क्तिमान के सन्मुख आ सकता है, उसके जो स्वर्ग में होकर भी उनकी सुनता है और जो मनुष्यों की परिस्थितियों को बदलने की सामर्थ रखता है और उन्हें बदलता भी है।
परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के अनुसार हम स्वर्ग को अपने सन्देश पूरे विश्वास के साथ भेज सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि वह हमारी सुनता भी है और उत्तर भी देता है। - मार्ट डी हॉन
...तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यक्ता है। - मत्ती ६:८
बाइबल पाठ: मत्ती ६:५-८
और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये सभाओं में और सड़कों के मोड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उन को अच्छा लगता है; मैं तुम से सच कहता हूं, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।
परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर, और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
प्रार्थना करते समय अन्यजातियों की नाई बक बक न करो क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उन की सुनी जाएगी।
सो तुम उन की नाई न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यक्ता है।
एक साल में बाइबल:
मसीही विश्वासियों को ये प्रयास चाहे बेतुके लगें, लेकिन वे वैज्ञानिक अपने इन प्रयासों को लेकर बहुत गंभीर हैं, जबकि हम विश्वासी, जो वास्तव में एक अलौकिक संसार से संबंध बना कर रखते हैं कभी कभी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे हमारी प्रार्थनाएं कोई नहीं सुनता। परमेश्वर के हर सन्तान को यह अधिकार और अवसर है कि वह परमेश्वर से कभी भी संपर्क कर सके। जिसने इस सृष्टि को बनाया और नक्षत्रसमूहों (galaxies) को आकार देकर स्थापित किया, हमें उसके साथ क्षण भर में संपर्क स्थापित करने का अधिकार और विधि है। जिस क्षण हम प्रार्थना में उसके पास आते हैं, वह हमारी सुनता है और अपनी इच्छा में उसका उत्तर भी देता है। प्रार्थना की अद्भुत सुविधा के माध्यम से प्रत्येक मसीही विश्वासी सर्वश्क्तिमान के सन्मुख आ सकता है, उसके जो स्वर्ग में होकर भी उनकी सुनता है और जो मनुष्यों की परिस्थितियों को बदलने की सामर्थ रखता है और उन्हें बदलता भी है।
परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के अनुसार हम स्वर्ग को अपने सन्देश पूरे विश्वास के साथ भेज सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि वह हमारी सुनता भी है और उत्तर भी देता है। - मार्ट डी हॉन
जब हम प्रार्थना में अपने घुटने झुकाते हैं तो परमेश्वर हमारी सुनने के लिये अपने कान हमारी ओर झुकाता है।
...तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यक्ता है। - मत्ती ६:८
बाइबल पाठ: मत्ती ६:५-८
और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये सभाओं में और सड़कों के मोड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उन को अच्छा लगता है; मैं तुम से सच कहता हूं, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके।
परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर, और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
प्रार्थना करते समय अन्यजातियों की नाई बक बक न करो क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उन की सुनी जाएगी।
सो तुम उन की नाई न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यक्ता है।
एक साल में बाइबल:
- उत्पत्ति १३-१५
- मत्ती ५:१-२६
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