नॉर्फोक वन्स्पति उद्यान में लगे एक कैमरे से बड़ा रोचक घटनाक्रम दिखाया जा रहा था - उस उद्यान में चील के एक घोंसले में चील के तीन चूज़े भूखे थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके माता-पिता इस बात कि अन्देखी कर रहे हैं। उन चूज़ों में से एक ने स्वयं ही अपनी भूख की समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया - वह अपने पास की घोंसले की लकड़ी को चबाने का प्रयास करने लगा। किंतु शीघ्र ही उसने यह करना छोड़ दिया - संभवतः उसे वह स्वादिष्ट नहीं लगी, या वह उसे चबा नहीं पाया।
लेकिन जिस बात ने मुझे विस्मित किया वह चूज़े का लकड़ी चबाने का प्रयास नहीं था, वरन यह कि उन चूज़ों के पीछे ही एक बड़ी मछली घोंसले में पड़ी हुई थी, लेकिन वे उसे अपना पेट भरने के लिए उपयोग नहीं कर रहे थे। उन चूज़ों ने अब तक अपना भोजन आप लेना नहीं सीखा था; वे अभी भी अपने माता-पिता द्वारा भोजन छोटे छोटे टुकड़ों में बना कर उनके मुँह में डाले जाने के आदी थे। संभवतः चूज़ों के माता-पिता उन चूज़ों को अपनी निगरानी में भूखा रख कर प्रयास कर रहे थे कि चूज़े भोजन को पहचानें और अपना भोजन आप ही खाना सीखें - क्योंकि यदि वे अपना भोजन आप जुटाना और खाना नहीं सीखेंगे तो फिर उनका जीवित बने रहना खतरे में पड़ जाएगा।
आत्मिक जीवन में भी यह बात इतनी ही महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग आत्मिक संगति तो करते हैं परन्तु सदा ही आत्मिक शिक्षाओं और उससे होने वाली आत्मिक बढ़ोतरी के लिए दूसरों पर ही निर्भर रहते हैं। परमेश्वर अपने प्रत्येक सन्तान को व्यक्तिगत रीति से सिखाना चाहता है, उनसे संपर्क रखना चाहता है, किंतु लोग इस बात को अन्देखा कर, परमेश्वर की बजाए अन्य मनुष्यों पर ही निर्भर रहते हैं। यह समस्या आज की नहीं है, यही प्रवृति पुराने नियम में इस्त्राएली समाज में और फिर नए नियम में प्राथमिक मसीही विश्वासी मण्डली में भी देखी जाती थी तथा आज भी मसीही विश्वासी मण्डलियों में विद्यमान है। बजाए परमेश्वर की उपस्थिति में परमेश्वर के वचन बाइबल के साथ बैठ कर उस पर स्वयं मनन करने के, वे सदा दूसरों के मनन और प्रवचन से सीखने की प्रवृति रखते हैं। आत्मिक भोजन उनके पास है, परन्तु उसे ग्रहण करना वे नहीं जानते, और इस कारण आत्मिक रीति से कमज़ोर रहते हैं। इब्रानियों की मण्डली को लिखी अपनी पत्री में लेखक के द्वारा परमेश्वर का आत्मा कहता है: "समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए" (इब्रानियों 5:12)।
प्रचारकों और वचन के शिक्षकों से परमेश्वर के वचन को सीखना अच्छा है और कई बातों में लाभप्रद भी है, किंतु यह कभी स्वयं परमेश्वर के वचन पर मनन के द्वारा परमेश्वर से सीखने का स्थान नहीं ले सकता। आत्मिक सामर्थ और बढ़ोतरी के लिए अपना आत्मिक भोजन आप जुटाना भी आवश्यक है। - जूली ऐकरमैन लिंक
आत्मिक बढ़ोतरी परमेश्वर के वचन के ठोस भोजन से ही संभव है।
समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। - इब्रानियों 5:12
बाइबल पाठ: इब्रानियों 5:12-6:2
Hebrews 5:12 समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए।
Hebrews 5:13 क्योंकि दूध पीने वाले बच्चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है।
Hebrews 5:14 पर अन्न सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।
Hebrews 6:1 इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़ कर, हम सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने।
Hebrews 6:2 और बपतिस्मों और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्तिम न्याय की शिक्षारूपी नेव, फिर से न डालें।
एक साल में बाइबल:
- 2 शमूएल 21-22
- लूका 18:24-43
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