मेरी पोती ऐड्डी, एक छोटी सी बच्ची, कुछ दिन के लिए हमारे घर रहने आई हुई थी। वहाँ रहते हुए वह मुझसे बार बार एक प्रश्न करने लगी: "आप क्या कर रहे हैं?" चाहे मैं कंप्यूटर पर कार्य कर रहा होता या कहीं बाहर जाने के लिए जूते पहन रहा होता, या बैठ कर कुछ पढ़ रहा होता या रसोई के कार्य में अपनी पत्नि की सहायता कर रहा होता, वह मेरे पास आकर मुझ से चिपक कर खड़ी हो जाती और बड़ी मासूमियत से यही प्रश्न पूछती। अनेकों बार उसके प्रश्न के उत्तर में "मैं बिल चुका रहा हूँ", "मैं बाज़ार जा रहा हूँ", "मैं अखबार पढ़ रहा हूँ", "मैं दादी की सहायता कर रहा हूँ" आदि कहने के बाद मुझे समझ में आया कि वह बच्ची जो प्रश्न मुझ से बार बार पूछ रही है वह मेरे जीवन और आत्मिक दशा के लिए भी एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है।
एक छोटी सी उम्र की जिज्ञासु लड़की को अपनी हर गतिविधि के बारे में उत्तर देना एक बात है लेकिन हर बात के बारे में परमेश्वर को इसी प्रश्न का उत्तर देना एक अलग ही बात है, और बहुत महत्वपूर्ण भी। ज़रा विचार कीजिए यदि मेरी पोती के समान ही परमेश्वर भी हमारे समीप आ कर खड़ा हो जाए और हर बात में, अपनी हर गतिविधि के लिए हमें परमेश्वर को लगातार उत्तर देते रहना पड़े तो कितनी ऐसी गतिविधियाँ होंगी जिन्हें हम ज़ारी रखना चाहेंगे, या कितने ऐसे उत्तर होंगे जिनके कारण हम शर्मिंदा होंगे: "मैं सारी शाम टी०वी० देखने में बर्बाद कर रहा हूँ", "मैं अपनी आवश्यकता से अधिक खाकर, खाना और अपनी सेहत, दोनो बरबाद रहा हूँ", "मैं एक और दिन बिना आपसे बातचीत किए बिताने जा रहा हूँ", "मैं अपने जीवन-साथी के साथ बहस कर रहा हूँ" - यह सूची और भी बड़ी हो सकती है और साथ ही हमारी शर्मिंदगी भी। परमेश्वर तो परमेश्वर, यदि किसी मनुष्य को भी लगातार हमें इस प्रश्न का उत्तर देते रहना पड़े तो कितनी ही बातें ऐसी होंगी जिन्हें हम करने से बचते रहेंगे। परिणामस्वरूप हमारे जीवनों तथा संबंधों में कितना भारी परिवर्तन आ जाएगा और हमारे जीवन तथा समाज कितना सुधर जाएंगे।
परमेश्वर अभी हम से यह प्रश्न करे या ना करे, लेकिन एक दिन तो हमें हर बात और हर कार्य का हिसाब उसे देना ही होगा: "और मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे" (मत्ती 12:36); "क्योंकि परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा" (सभोपदेशक 12:14); "फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्थात जीवन की पुस्तक; और जैसे उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, उन के कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया" (प्रकाशितवाक्य 20:12)। इसीलिए परमेश्वर ने हमें अपने वचन बाइबल में कुछ निर्देश दिये हैं जिससे हम अपने समय का सदुपयोग करें - परमेश्वर की इच्छा और महिमा को ध्यान में रखते हुए (1 कुरिन्थियों 10:31; कुलुस्सियों 3:23) और अपनी जीवनशैली के विषय में सचेत रहें (इफिसियों 5:15) और शर्मिंदा होने से बचे रह सकें।
"आप क्या कर रहे हैं?" - हम सब के लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है और परमेश्वर चाहता है कि इस प्रश्न का उत्तर उसे देने के लिए हम सदा सचेत और सजग रहें। - डेव ब्रैनन
महत्वहीन बातों पर समय बर्बाद करने से सावधान रहें।
इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं चलो। - इफिसियों 5:15
बाइबल पाठ: कुलुस्सियों 3:12-17
Colossians 3:12 इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
Colossians 3:13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।
Colossians 3:14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।
Colossians 3:15 और मसीह की शान्ति जिस के लिये तुम एक देह हो कर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।
Colossians 3:16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ।
Colossians 3:17 और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।
एक साल में बाइबल:
- अय्युब 22-24
- प्रेरितों 11
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