सिंक्लेयर ल्युइस का उपन्यास ’मेन स्ट्रीट’ शहर में रहने वाली एक ऐसी महिला पर आधारित है जिसकी शादी गाँव मे रहने और काम करने वाले एक साधारण से स्वभाव के डॉक्टर से होती है। गाँव के साधाराण, सामान्य लोगों में आने के बाद, अपनी शहरी पृष्ठभूमि और रहन-सहन के कारण वह महिला अपने आप को वहाँ के अन्य सभी लोगों से श्रेष्ठ समझती है। परन्तु एक दिन एक चिकित्सीय संकट में उसके पति के नम्र व्यवहार से उसे अपने अभिमानपूर्ण व्यवहार और जीवन-शैली पर पुनःविचार करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। एक परदेशी किसान की बाँह चोटिल हो जाती है और उस बाँह को काटने का निर्णय लेना पड़ता है। वह महिला अचरज और आदर के साथ देखती है कि कैसे उसका पति उस घायल किसान और उसकी घबराई हुई पत्नि से सान्तवना भरे भाव में बातें करता है, उन्हें ढाढ़स देता है। उस चिकित्सक का संवेदनापूर्ण व्यवहार और नम्र आचरण, उसकी पत्नि के अभिमानी मन के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत करता है।
मसीही विश्वासी होने के कारण हम परमेश्वर की सन्तान भी हैं और उसके स्वर्गीय राज्य के वारिस भी; इसलिए इस संसार के अपने सभी संबंधों को लेकर हम या तो अपने आप को औरों से ऊँचा तथा श्रेष्ठ समझ सकते हैं, या फिर अपने प्रभु परमेश्वर के समान ही नम्रता के साथ औरों के भले के कार्य कर सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीही विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में उनसे आग्रह किया, "विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे" (फिलिप्पियों 2:3-4)।
आज हमें भी, प्रभु यीशु के अनुयायी होने के कारण, प्रभु यीशु के समान ही अपने हितों से अधिक औरों के हितों का धयान रखना चाहिए। जैसे प्रभु यीशु ने दास का सा स्वरूप धारण कर लिया और हमारे हित के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया, वैसे ही हमें भी नम्रता के साथ दूसरों की भलाई और हित के लिए कार्य करना है। - डैनिस फिशर
दूसरों की भलाई को अपनी भलाई से बढ़कर मानना आनन्दायक होता है।
भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। - रोमियों 12:10
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- अय्युब 3-4
- प्रेरितों 7:44-60
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें