ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शनिवार, 29 अगस्त 2015

प्रेम


   कुछ समय पहले मैंने अपनी पत्नि मर्लीन की चक्कर आने की बीमारी के साथ उसके संघर्ष के बारे में एक लेख लिखा था। उस लेख के छपने के पश्चात जो पाठकों द्वारा प्रोत्साहन के प्रत्युत्तरों की बाढ़ आई, मैं उसके लिए कतई तैयार नहीं था। पाठकों ने ना केवल प्रोत्साहन, वरन सलाह, सहायता और उसके स्वास्थ्य को लेकर उनकी चिंता को अपने प्रत्युत्तर में व्यक्त किया। ये सन्देश सारे संसार से आए, जीवन के सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों से आए। प्रेम भरी चिंता के ये सन्देश संख्या में इतने अधिक थे कि हमारे लिए उन सभी का व्यक्तिगत उत्तर देना संभव नहीं रहा। एक अंग के परेशानी में पड़ने के कारण मसीह की देह द्वारा उसको इस प्रकार प्रेम से संभालना, हमारे लिए भलाई से भरा अपरिहार्य अनुभव था, जिसके लिए हम अति कृतज्ञ थे और सदा रहेंगे।

   यथार्त में मसीह की देह अर्थात मसीही विश्वासियों की मण्डली को इसी प्रकार कार्य करना चाहिए; मसीह यीशु में अपने भाई-बहिनों के प्रति प्रेम भरी चिंता रखना इस बात का प्रमाण है कि हमने मसीह के प्रेम को चखा है। प्रभु यीशु ने पकड़वाए जाकर क्रूस पर चढ़ा दिए जाने से पहले अपने चेलों के साथ किए गए अंतिम भोज के दौरान अपने चेलों से कहा, "मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो" (यूहन्ना 13:34-35)।

   मैंने और मर्लीन ने मसीह के समान किए गए प्रेम और चिंता का स्वाद उन संदेशों द्वारा चखा। हम सब मसीही विश्वासियों का यह कर्तव्य है कि हम अपने तथा सारे जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के प्रेम को दूसरों को दिखाएं और अपनी इस गवाही से अपने प्रभु की आराधना तथा बड़ाई करें। - बिल क्राउडर


एक दूसरे के प्रति रखे गए हमारे प्रेम की गहराई ही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम की ऊंचाई को दिखाती है। - मोर्ली

क्योंकि यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना; चोरी न करना; लालच न करना; और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। - रोमियों 13:9 

बाइबल पाठ: यूहन्ना 13:31-35 मत्ती 22:37-40
John 13:31 जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा; अब मनुष्य पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उस में हुई। 
John 13:32 और परमेश्वर भी अपने में उस की महिमा करेगा, वरन तुरन्त करेगा। 
John 13:33 हे बालकों, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूं: फिर तुम मुझे ढूंढोगे, और जैसा मैं ने यहूदियों से कहा, कि जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूं। 
John 13:34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो। 
John 13:35 यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।

Matthew 22:37 उसने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। 
Matthew 22:38 बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। 
Matthew 22:39 और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। 
Matthew 22:40 ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 126-128
  • 1 कुरिन्थियों 10:19-33


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें