प्रेम केवल सँसार को चलाता ही नहीं है, वरन वह
हमें भावनात्मक और चोट खाने के लिए खुला भी कर देता है। हम समय-समय पर अपने आप से
कहते हैं, “क्यों प्रेम करें जब दूसरे कोई सराहना नहीं करते हैं?” या “क्यों प्रेम
में पड़कर मैं अपने आप को दुखी होने के लिए खुला करूँ?” परन्तु परमेश्वर के वचन
बाइबल में प्रेरित पौलुस प्रेम करते रहने का स्पष्ट और सीधा कारण देता है: “पर अब
विश्वास,
आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है। प्रेम का अनुकरण करो...” (1 कुरिन्थियों 13:13-14:1)।
बाइबल के व्याख्याकर्ता सी. के. बैरट लिखते
हैं, “प्रेम क्रिया है, स्वयं परमेश्वर की क्रिया; और जब मनुष्य उससे या अन्य
मनुष्यों से प्रेम करते हैं, तब वे (चाहे जितने भी असिद्ध रीति से) वही करते हैं
जो परमेश्वर करता है। और जब हम परमेश्वर के समान कार्य करते हैं, तो परमेश्वर
प्रसन्न होता है।
प्रेम के मार्ग का अनुकरण करने के लिए,
विचार कीजिए कि आप 1 कुरिन्थियों 13:4-7 में दिए गए गुणों को अपने जीवन में
कार्यशाली किस प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं? उदाहरण के लिए, अपने आप से पूछिए,
जैसा धैर्य परमेश्वर मेरे प्रति दिखाता है, मैं अपनी सन्तान के प्रति वैसा ही
धैर्य कैसे दिखा सकता हूँ? मैं अपने माता-पिता के प्रति आदर और दया कैसे दिखा सकता
हूँ? अपने कार्य-स्थल पर कार्य करते समय
मैं औरों के हित के बारे में कैसे ध्यान कर सकता हूँ? जब मेरे किसी मित्र के साथ
कुछ अच्छा होता है तो क्या मैं उसके साथ आनन्दित होता हूँ या ईर्ष्या करता हूँ?
जब हम “प्रेम का अनुकरण” करेंगे, तो हम
पाएँगे कि हम बहुधा प्रेम के स्त्रोत, परमेश्वर, तथा प्रभु यीशु, जो प्रेम का सबसे
महान उदाहरण है, की ओर मुड़ते हैं। और तब ही हम सच्चे प्रेम की गहरी जानकारी
प्राप्त कर सकते हैं, तथा परमेश्वर के समान औरों से प्रेम करने की सामर्थ्य पा
सकते हैं। - पो फैंग चिया
हे
प्रियों,
हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम
परमेश्वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से
जन्मा है; और परमेश्वर को जानता है। - 1 यूहन्ना 4:7
बाइबल
पाठ: 1 कुरिन्थियों 13
1
Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और
सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1
Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और
मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं,
परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1
Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला
दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1
Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्त है, और
कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम
अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1
Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह
अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा
नहीं मानता।
1
Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
1
Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब
बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1
Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां
हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो
तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट
जाएगा।
1
Corinthians 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
1
Corinthians 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो
अधूरा मिट जाएगा।
1
Corinthians 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं
बालकों के समान बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी
समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो
बालकों की बातें छोड़ दी।
1
Corinthians 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है;
परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय
मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से
पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
1 Corinthians
13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा
प्रेम है।
एक साल में
बाइबल:
- एस्तेर 3-5
- प्रेरितों 5:22-42
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