दक्षिणपूर्व
एशिया के एक क्षेत्र में उत्तरी अमेरिका का एक शिक्षक अतिथि बनकर गया, जहाँ उस
अतिथि शिक्षक ने एक महत्वपूर्ण सबक सीखा। अमेरिका से आए उस शिक्षक ने अपनी कक्षा
को बहु-विकल्प प्रश्न-पत्र दिया, और उसे देख कर अचम्भा हुआ कि बहुत से
विद्यार्थियों ने कई प्रशों को अनुत्तरित छोड़ रखा था। प्रश्न-पत्र को जाँचने के
पश्चात विद्यार्थियों को वापस करते समय उसने उन्हें सुझाव दिया कि अगली बार
अनुत्तरित छोड़ने की बजाए उन्हें अनुमान लगा कर उत्तर पर चिन्ह लगा देना चाहिए। यह
सुनकर अचंभित होकर एक विद्यार्थी ने पूछा, “ऐसे में यदि गलती से मेरे अनुमान
द्वारा कोई उत्तर सही हो जाए तो इससे क्या मैं यह नहीं जताऊँगा कि मुझे उत्तर आता
है, जबकि वास्तव में मुझे उत्तर आता ही नहीं है?” शिक्षक और विद्यार्थी के
दृष्टिकोण और कार्यविधि बहुत फर्क थे।
नए
नियम के दिनों में, जब यहूदी और गैर-यहूदी लोग परिवर्तित होकर मसीही हो रहे थे, तो
उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण भी बहुत भिन्न थे। कुछ ही समय में उनमें मतभेद होने लग
गए, भिन्न बातों पर, जैसे कि, आराधना का कौन सा दिन होना चाहिए, या, मसीही
विश्वासी को क्या खाने या पीने की स्वतंत्रता है, आदि। पौलुस प्रेरित ने आग्रह
किया कि वे एक महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखें: कोई भी किसी अन्य के हृदय को जानने
या जाँचने की स्थिति में नहीं है।
अन्य
मसीही विश्वासियों के साथ सामंजस्य बनाए रखने के लिए, परमेश्वर चाहता है कि हम इस
बात का ध्यान रखें कि हम सभी अपने-अपने जीवन और कार्यों के लिए व्यक्तिगत रीति से
उसके प्रति उत्तरदायी हैं; और केवल वह ही है जो हमारे हृदयों के भाव को जाँचता है
(रोमियों 14:4-7)। - मार्ट डीहान
हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने
में धीरा और क्रोध में धीमा हो। - याकूब 1:19
बाइबल पाठ: रोमियों 14:1-12
Romans 14:1 जो विश्वास में निर्बल है,
उसे अपनी संगति में ले लो; परन्तु उसकी शंकाओं
पर विवाद करने के लिये नहीं।
Romans 14:2 क्योंकि एक को विश्वास है,
कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास
में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है।
Romans 14:3 और खानेवाला न-खाने वाले को
तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खाने वाले पर दोष न लगाए;
क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है।
Romans 14:4 तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर
दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही
से सम्बन्ध रखता है, वरन वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।
Romans 14:5 कोई तो एक दिन को दूसरे से
बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है: हर एक अपने ही
मन में निश्चय कर ले।
Romans 14:6 जो किसी दिन को मानता है,
वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह
प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता
है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये
नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
Romans 14:7 क्योंकि हम में से न तो कोई
अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है।
Romans 14:8 क्योंकि यदि हम जीवित हैं,
तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं,
तो प्रभु के लिये मरते हैं; सो हम जीएं या
मरें, हम प्रभु ही के हैं।
Romans 14:9 क्योंकि मसीह इसी लिये मरा और
जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों, दोनों का प्रभु हो।
Romans 14:10 तू अपने भाई पर क्यों दोष
लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है?
हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।
Romans 14:11 क्योंकि लिखा है, कि प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक
घुटना मेरे साम्हने टिकेगा, और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार
करेगी।
Romans 14:12 सो हम में से हर एक परमेश्वर
को अपना अपना लेखा देगा।
एक साल में बाइबल:
- यहोशू 22-24
- लूका 3
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