प्रभु भोज - गणित का समीकरण?
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पिछले लेखों में हम देख रहें हैं कि मसीही विश्वास के स्थान पर मसीही या ईसाई धर्म का निर्वाह करने वाले प्रेरितों 2:42 में दी गई मसीही विश्वासियों के लिए ‘लौलीन’ रहने वाली चार बातों (वचन की शिक्षा पाना, संगति रखना, प्रभु-भोज में सम्मिलित होना, प्रार्थना करना) को उद्धार या नया जन्म प्राप्त कर लेने के लिए गणित के एक समीकरण के समान, एक रस्म के समान मान तथा मना लेते हैं; और इनके वास्तविक महत्व को समझने और उसके आधार पर उनका निर्वाह करने की बजाए इनकी औपचारिकता को पूरा करने के द्वारा समझते हैं कि वे भी नया जन्म या उद्धार पाए हुए हैं। किन्तु बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार यह मान्यता रखना गलत धारणा ही है, और यह करना धर्म-कर्म-रस्म के निर्वाह द्वारा प्रभु परमेश्वर को स्वीकार्य होने के व्यर्थ एवं निष्फल प्रयास हैं। पिछले लेख में हम प्रेरितों 2:42 की चार में से तीन बातों, बाइबल अध्ययन, प्रार्थना करना, और संगति रखना के औपचारिक निर्वाह के बारे में देख चुके हैं। आज हम प्रेरितों 2:42 की शेष एक बात, प्रभु-भोज में सम्मिलित होने के बारे में कुछ और विस्तार से देखेंगे।
4. प्रभु-भोज में
भाग लेना: प्रभु यीशु मसीह ने अपने पकड़वाए जाने से पहले
अपने शिष्यों के साथ फसह का पर्व मनाया, और उस भोज को खाने
के दौरान उन्होंने अपने शिष्यों के लिए प्रभु-भोज की स्थापना की, जैसा कि पौलुस ने लिखा: “क्योंकि यह बात मुझे
प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया रोटी ली। और धन्यवाद कर के उसे
तोड़ी, और कहा; कि यह मेरी देह है,
जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो। इसी रीति से
उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा; यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो
मेरे स्मरण के लिये यही किया करो” (1 कुरिन्थियों 11:23-25)। उद्धार, या नया जन्म, तथा
पापों की क्षमा पाया हुआ व्यक्ति, प्रभु की आज्ञा के अनुसार
अपने आप को जाँचते हुए प्रभु भोज में भाग लेता है। किन्तु जैसे अन्य तीनों बातों
के साथ है, वैसे ही प्रभु भोज के साथ भी है, कि बहुत से लोग इसे केवल एक रस्म के समान समझकर, केवल
एक रीति को पूरी करने के लिए प्रभु-भोज में भाग लेते हैं, इस
विचार से कि इसके द्वारा वे परमेश्वर के दृष्टि में धर्मी ठहरेंगे, और अपने लिए स्वर्ग में कुछ प्रतिफल अर्जित कर लेंगे। जबकि यह उसी
“समीकरण” वाली मानसिकता के अधीन, केवल उनकी धारणा ही है, यथार्थ, या बाइबल की अथवा प्रभु यीशु की शिक्षा नहीं।
जब प्रभु ने अपने पकड़वाए जाने से ठीक
पहले प्रभु भोज की स्थापना की, उस समय केवल उसके चुने हुए वे बारह शिष्य ही उसके साथ थे,
जिनमें से एक यहूदा इस्करियोती भी था, जो उसे
पकड़वाने का निर्णय ले चुका था और यह करने के लिए पूर्णतः तैयार था। भोजन के
आरंभ होने पर प्रभु यीशु ने उसे भोजन का पहला टुकड़ा दिया, जो उसके प्रति प्रभु के प्रेम का प्रतीक था, और तब
यहूदा वहाँ से चला गया (यूहन्ना 13:26-30)। प्रभु-भोज
के लिए रोटी तोड़ कर शिष्यों को देना और प्याला लेकर उन शिष्यों को देना प्रभु ने
भोजन के दौरान, बियारी के पीछे (‘बियारी’
का अर्थ मुख्य भोजन है) किया (मत्ती 26:26-29; मरकुस 14:22, 23; लूका 22:20)।
अर्थात प्रभु-भोज की स्थापना किए जाने के समय यहूदा इस्करियोती उनके मध्य में नहीं
था। उसे मुख्य भोजन में तो हिस्सा मिला, अपितु उस मुख्य भोजन
का पहला टुकड़ा प्रभु ने उसे ही दिया; किन्तु उसे मुख्य भोज
के बाद स्थापित प्रभु-भोज में भाग नहीं मिला, वह तब तक प्रभु
को छोड़ कर उसे पकड़वाने के लिए जा चुका था। अर्थात, मन में या
व्यवहार में पाप रखने वाले व्यक्ति के लिए प्रभु-भोज में भाग नहीं है। इसीलिए 1
कुरिन्थियों 11:17-34, जो प्रभु भोज से
संबंधित व्याख्या है, में 28 पद में
स्पष्ट कहा गया है कि प्रभु-भोज में भाग लेने से पहले प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को
व्यक्तिगत रीति से जाँच ले, और अपने आप को प्रभु के सामने सही
करके, अपने पापों को मान कर, उनके लिए
पश्चाताप करके ही इसमें भाग ले। फिर पद 29-32 बताते हैं कि
जो अपने आप को जाँचे और सुधारे बिना प्रभु भोज में भाग लेते हैं वे दंड के भागी
हैं, और इस कारण कई तो “सो” भी गए अर्थात उन्हें अनुचित भाग लेते रहने के कारण मृत्यु को भी सहना पड़ा।
किन्तु प्रभु भोज में भाग लेने से पहले
अपने आप को और अपने जीवन को प्रभु के सम्मुख जाँचना और सभी बातों को प्रभु के साथ
ठीक करके, सही
रीति से भाग लेना भी आज एक औपचारिकता बन कर रह गई है। बिना उद्धार या नया जन्म,
और पापों की क्षमा पाए हुए लोग भी अपने धार्मिक अगुवे के पीछे-पीछे
उनकी किताबों में छपी हुई रीतियों को बोलते और दोहराते हैं, और
समझते हैं कि सब सही हो गया, फिर जाकर प्रभु भोज में भाग ले
लेते हैं; और फिर वहाँ से बाहर निकलकर जीवन वैसा ही सांसारिकता
में चलता रहता है जैसा पहले चल रहा था। साथ ही हम यह भी देखते हैं कि पहली मण्डली
के लोग प्रतिदिन घर-घर मन की सिधाई से रोटी तोड़ते थे (प्रेरितों 2:46); जो फिर सप्ताह के पहले दिन जब वे लोग आराधना और उपासना के लिए एकत्रित
होते थे, तब होने लगा (प्रेरितों 20:7)।
किन्तु आज अधिकांश चर्च में यह महीने में एक बार किया जाता है, जिसका बाइबल में कोई समर्थन नहीं है; और कहीं-कहीं
तो वर्ष में एक बार भी किया जाता है, जिसका भी बाइबल से कोई
समर्थन अथवा औचित्य नहीं है। यदि व्यक्ति को प्रभु भोज में भाग लेने से पहले अपने
आप को जाँचना है, अपने जीवन का पुनःअवलोकन करके अपनी कमियों
और बुराइयों को प्रभु के सामने मानना है, तो प्रतिदिन अथवा सप्ताह
में एक बार प्रभु-भोज का औचित्य समझ में आता है, क्योंकि
इतना समय-अंतराल जीवन के पुनःअवलोकन करने के लिए उपयुक्त है। किन्तु महीने या वर्ष
में एक बार यदि यह करना है, तो व्यक्ति कैसे सभी कुछ स्मरण
कर सकता है और फिर गलतियों को पहचान कर उन्हें मान सकता है? ऐसे
में तो प्रभु-भोज का औचित्य तथा कारण व्यर्थ हो जाते हैं और यह मात्र एक औपचारिकता
ही रह जाता है - जिसका निर्वाह इसी रूप में अधिकांशतः किया भी जाता है, न कि उसकी गंभीरता और उसके सही अभिप्राय के साथ।
फिर वही गणित के समीकरण की मानसिकता, मसीही विश्वासी को प्रभु
भोज में भाग लेना है; इसलिए प्रभु भोज में भाग लेने वाला भी
मसीही विश्वासी है। ऐसे लोगों में इस भोज के महत्व की कोई समझ नहीं, इसके प्रति कोई गंभीरता नहीं; एक रस्म पूरी करनी थी,
सो कर ली, इसलिए अब यह मान लिया जाता है कि
क्योंकि उन्होंने प्रभु-भोज में भाग ले लिया है इसलिए प्रभु भी उन्हें स्वीकार
करने और आशीष देने के लिए बाध्य हो गया है। किन्तु प्रभु परमेश्वर किसी मनुष्य के
कर्म से कुछ करने के लिए बाध्य नहीं होता है, और न मनुष्य के
चलाए चलता है। यह मानसिकता रखने वाले लोग 1 कुरिन्थियों 11:29
के अनुसार, अपने लिए आशीष नहीं, श्राप कमा रहे हैं, और उन्हें एक दिन इसके लिए बहुत
गंभीर परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा।
आज प्रभु भोज में सम्मिलित होने के बारे
में देखने के बाद, अगले
लेख में परमेश्वर के वचन बाइबल की शिक्षाओं में से हम ऐसे ही बड़ी लगन से किन्तु
गलत मानसिकता के साथ निभाए जाने वाली एक अन्य बात, बपतिस्मे
को देखेंगे। किन्तु यदि आपने अभी तक अपने आप को प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में
समर्पित नहीं किया है, और आप अभी भी अपने जन्म अथवा संबंधित
धर्म तथा उसकी रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं,
तो आपको भी अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकल कर सच्चाई को स्वीकार करने
और उसका पालन करने की आवश्यकता है। आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को
सुधारने का अवसर है; प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा
माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता
में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको
स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है,
और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना
और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं
आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को
अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही,
गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन
जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे
पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता
हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके
वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को,
अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल
पढ़ें:
- यशायाह
32-33
- कुलुस्सियों 1
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