मसीही विश्वासी के गुण (5) - प्रभु के लिए सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार होता है
सुसमाचारों में दिए गए प्रभु यीशु मसीह
के शिष्य के गुणों में से यह पाँचवाँ गुण, पहले कहे गए दूसरे गुण के समान, शिष्य,
अर्थात मसीही विश्वासी में एक अलगाव की माँग करता है। प्रभु यीशु ने
कहा, “इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न
दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:33)। मसीही विश्वासी का दूसरा गुण पारिवारिक
संबंधों में अलगाव की माँग करता है, और यह पाँचवाँ गुण,
प्रभु यीशु के पक्ष में शिष्य द्वारा भौतिक, या
सांसारिक और नश्वर वस्तुओं से अलगाव से की माँग करता है। इसी गुण के एक दूसरा स्वरूप पर नए नियम में काफी ज़ोर दिया गया है, पत्रियों में उसे बहुधा दोहराया गया है - अपने आप को संसार में परदेशी और
यात्री जानकर संसार की बातों के मोह में पड़ने से बचे रहना (इब्रानियों 11:13;
1 पतरस 2:11)। यूहन्ना और याकूब ने तो पवित्र
आत्मा की अगुवाई में यहाँ तक लिखा है कि भौतिक या सांसारिक बातों से प्रेम रखना ,
स्वतः और अनिवार्यतः व्यक्ति में परमेश्वर के प्रति प्रेम न होने का
सूचक है, उसको परमेश्वर का बैरी बना देता है; उनके द्वारा लिखे पदों को देखें:
“तुम न तो संसार
से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है,
तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है,
अर्थात शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा
और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते
जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा” (1 यूहन्ना 2:15-17)।
“हे व्यभिचारिणयों,
क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता
करनी परमेश्वर से बैर करना है सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है” (याकूब 4:4)।
जब प्रभु ने अपने आरंभिक शिष्यों को
बुलाया, तो वे
अपने व्यवसाय, अपने परिवार आदि को छोड़ कर प्रभु के पीछे हो
लिए: “वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो
लिए” (मत्ती 4:22); “और व नावों
को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए” (लूका 5:11); “वहां से आगे बढ़कर यीशु ने मत्ती
नाम एक मनुष्य को महसूल की चौकी पर बैठे देखा, और उस से कहा,
मेरे पीछे हो ले। वह उठ कर उसके पीछे हो लिया” (मत्ती 9:9)। जब एक व्यक्ति ने प्रभु से उसका शिष्य
बनने की इच्छा व्यक्त की, “जब वे मार्ग में चले जाते थे,
तो किसी न उस से कहा, जहां जहां तू जाएगा,
मैं तेरे पीछे हो लूंगा। यीशु ने उस से कहा, लोमडिय़ों
के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के
पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं” (लूका 9:57-58)
- अर्थात प्रभु के पीछे चलने के लिए इस अनिश्चितता को स्वीकार करके
चलना होगा कि यह आवश्यक नहीं है कि इस सेवकाई में रहने के लिए स्थान और खाने के
लिए भोजन मिलेगा। जब, जो, जैसा मिल जाए,
उसे ही स्वीकार करके प्रभु द्वारा दिए गए कार्य में लगे ही रहना है।
पौलुस ने तिमुथियुस को लिखा, “पर तू सब बातों में सावधान
रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम
कर और अपनी सेवा को पूरा कर” (2 तीमुथियुस 4:5)। लेकिन जो यह सब जानते हुए, इन बातों को स्वीकार
करते हुए, प्रभु के पीछे चल निकले थे, अपने
उन शिष्यों को प्रभु यीशु ने प्रतिज्ञा दी, “यीशु ने कहा,
मैं तुम से सच कहता हूं, कि ऐसा कोई नहीं,
जिसने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहिनों या माता या
पिता या लड़के-बालों या खेतों को छोड़ दिया हो। और अब इस समय सौ गुणा न पाए,
घरों और भाइयों और बहिनों और माताओं और लड़के-बालों और खेतों को पर
उपद्रव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन” (मरकुस 10:29-30)।
प्रभु यीशु द्वारा दिए गए बीज बोने वाले
के दृष्टांत को स्मरण करें (मत्ती 13:3-9)। यहाँ पर तीसरी प्रकार की भूमि, झाड़ियों के स्थान, पर गिरने और उगने वाला बीज वह है जो उगा और बढ़ा, किन्तु संसार की बातों और धन के धोखे
ने उसे दबा कर निष्फल कर दिया “जो झाड़ियों में बोया गया,
यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता” (मत्ती 13:22)। जो धनी जवान व्यक्ति (मत्ती 19:16-24) प्रभु के
पास अनन्त जीवन का मार्ग प्राप्त करने के लिए आया था, वह
निराश और असफल इसलिए लौट गया, क्योंकि वह अपने धन और सांसारिक
वस्तुओं से अपने आप को अलग नहीं करने पाया था; वह प्रभु की शिष्यता
की यह कीमत नहीं चुकाना चाहता था, और जीवन के जल के सोते के
पास आकर भी प्यासा और बिना अनन्त जीवन पाए चला गया।
यदि आप प्रभु यीशु मसीह के शिष्य हैं, तो क्या आपने अपने आप को
भौतिक, नश्वर सांसारिक बातों के मोह से पृथक किया है?
इसका यह अभिप्राय नहीं है कि प्रभु के शिष्य को सन्यासी बनकर
विरक्ति का जीवन जीना चाहिए। अभिप्राय यह है कि प्रभु का शिष्य अपने जीवन में
प्राथमिक स्थान प्रभु और उसके वचन की आज्ञाकारिता को देता है, न कि सांसारिक उपलब्धियों और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में लगे रहने को।
प्रभु यीशु की शिष्यता की इस कसौटी पर आज अपने आप को कहाँ खड़ा हुआ पाते हैं?
क्या अपने आप को प्रभु यीशु का शिष्य कहना आप के लिए एक औपचारिकता
निभाना है, या आप सच्चे मन से उसके समर्पित और आज्ञाकारी
शिष्य हैं?
और यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
18-19
- 2 तिमुथियुस 3
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