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शनिवार, 6 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - 6

   

व्यक्तिगत जीवन में भूमिका (2) - यूहन्ना 14:17

परमेश्वर पवित्र आत्मा के मसीही विश्वासियों में आकर बस जाने से संबंधित बातों को देखते हुए, पिछले लेख में हमने देखा था इस विषय पर अपने शिष्यों के साथ सबसे विस्तृत चर्चा प्रभु ने अपने पकड़वाए जाने से ठीक पहले, फसह के पर्व के भोज के समय की, जो यूहन्ना 14 और 16 अध्याय में दी गई है। यूहन्ना रचित सुसमाचार के 14 अध्याय में दी गई पवित्र आत्मा से संबंधित बातें, मसीही विश्वासियों के व्यक्तिगत जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका के बारे में है, और 16 अध्याय में दी गई बातें विश्वासियों की सेवकाई में भूमिका के बारे में हैं। साथ ही हमने यूहन्ना 14:16 से तीन बातों को देखा था - पवित्र आत्मा परमेश्वर द्वारा प्रभु के शिष्यों को दिया जाता है; एक बार मसीही विश्वासी में आकर बस जाने के बाद वह सर्वदा विश्वासियों के साथ बना रहता है; और परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों का सहायक है, सेवक नहीं - वह उन्हें सिखाता है, मार्गदर्शन करता है, सामर्थी बनाता है किन्तु विश्वासियों के स्थान पर उनकी निर्धारित सेवकाई को कर के नहीं देता है। आज हम यूहन्ना 14:17 से परमेश्वर पवित्र आत्मा की मसीही विश्वासी के व्यक्तिगत जीवन में भूमिका के बारे में कुछ और बातों को देखेंगे। 

यूहन्ना 14:17 -अर्थात सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगाइस पद में दिए गए परमेश्वर पवित्र आत्मा के गुण हैं:

1.   वह 'सत्य का आत्मा' है; इस वाक्यांश के दो अभिप्राय हैं। एक तो यह कि परमेश्वर पवित्र आत्मा सत्य का स्वरूप है; वह किसी असत्य, छल, कपट, परमेश्वर के वचन से मेल न रखने वाली बात में न तो सम्मिलित होगा, न सहमत होगा, न उसकी सलाह देगा। और दूसरा, प्रभु यीशु मसीह ने कहा, “यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता” (यूहन्ना 14:6)। क्योंकि इस कथन के अनुसार प्रभु यीशु मसीह हीसत्यहैं, इसलिएसत्य का आत्माउनका आत्मा है। इन दोनों ही अभिप्रायों से यह स्पष्ट है कि जो भी शिक्षा परमेश्वर के वचन (यूहन्ना 1:1-2, 14), अर्थात प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं से पूर्णतः मेल नहीं रखती है, वह कदापि पवित्र आत्मा की ओर से नहीं हो सकती है। फिर चाहे वह शिक्षा किसी बहुत विख्यात व्यक्ति, या किसी बहुत नामी और प्रभावी प्रचारक के द्वारा ही क्यों न दी गई हो, तथा ऐसे व्यक्तियों और प्रचारकों के द्वारा चाहे कितने भी और कैसे भी आश्चर्यकर्म क्यों न किए गए हों - इस संदर्भ में मत्ती 7:21-23 तथा 2 थिस्सलुनीकियों 2:9-10 को कभी न भूलें। पौलुस ने गलातीयों 1:6-9 में गलातिया की मसीही मण्डली में फैलते जा रहे भ्रामक सुसमाचार प्रचार और गलत शिक्षाओं के विषय में लिखा, कि जो कोई मूल सुसमाचार से कुछ भी भिन्न सुसमाचार सुनाता है, वह श्रापित है, चाहे वहभिन्न सुसमाचारसुनाने वाला कोई स्वर्गदूत या फिर स्वयं पौलुस ही क्यों न हो:मुझे आश्चर्य होता है, कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो। जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित हो। अब मैं क्या मनुष्यों को मनाता हूं या परमेश्वर को? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूं?” हमें मसीही प्रचार को किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा अथवा किसी प्रचलित और आकर्षक मत या डिनॉमिनेशन की शिक्षाओं के आधार पर नहीं, वरन बेरिया के विश्वासियों के समान वचन से उस प्रचार और शिक्षा की सत्यता को परखने के बाद ही ग्रहण करना हैये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों ही हैं, कि नहीं। सो उन में से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से, और पुरुषों में से बहुतेरों ने विश्वास किया” (प्रेरितों 17:11-12)  

2.   इस पद में दिया गया परमेश्वर पवित्र आत्मा का दूसरा गुण है, कोई सांसारिक व्यक्ति उसे ग्रहण नहीं कर सकता है, क्योंकि न ऐसा व्यक्ति उसे देखता है और न ही जानता है। अर्थात, जब तक व्यक्तिसांसारिकहै, यानि कि, उद्धार पाया हुआ नहीं है, वह पवित्र आत्मा को प्राप्त नहीं कर सकता है। सांसारिक व्यक्ति चाहे जितनी भी उपवास-प्रार्थनाएं कर ले, प्रतीक्षा कर ले, कुछ भी अन्य विधि अपना ले; परमेश्वर पवित्र आत्मा व्यक्ति में तब ही आकर निवास करेगा जब वह सांसारिक से स्वर्गीय जन, अर्थात उद्धार पाया हुआ व्यक्ति बन जाएगा - और तब वह उस व्यक्ति में तुरंत ही, स्वतः ही आकर बस जाएगा, उस व्यक्ति को अलग से कुछ नहीं करना पड़ेगा। अभिप्राय यह कि यदि कोई व्यक्ति अपने आप को उद्धार पाया हुआ कहे, और उसमें पवित्र आत्मा के गुण और फल न दिखाई दें, तो फिर वह चाहे जितने भी प्रयास कर ले, उसे पवित्र आत्मा तब तक नहीं मिलेगा, जब तक वह वास्तविकता में उद्धार नहीं पा लेगा। इसलिए ऐसे व्यक्ति से पवित्र आत्मा पाने के लिए उपवास-प्रार्थना आदि करने के लिए नहीं, वरन सच्चे मन से पश्चाताप करके, प्रभु यीशु पापों की क्षमा माँगकर, अपना जीवन वास्तविकता में प्रभु को समर्पित कर देने और प्रभु की आज्ञाकारिता में बने रहने का निर्णय करने के लिए कहना चाहिए। 

3.   सांसारिक व्यक्ति की उपरोक्त तुलना में, प्रभु ने अपने शिष्यों से पवित्र आत्मा के विषय कहा कि वह 'तुम्हारे' अर्थात प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों के साथ है भी और उनमें रहेगा भी। ध्यान कीजिए, प्रभु ने फिर यहाँ पर शिष्यों को पवित्र आत्मा के उनमें आकर बसने के लिए अलग से कोई प्रयास या कार्य करने के लिए नहीं कहा, वरन स्पष्ट कहा कि वह उन शिष्यों के साथ है, और बना भी रहेगा। बारंबार वचन यह स्पष्ट दिखाता है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा किन्हीं मानवीय उपायों या प्रयासों से नहीं, वरन पापों से पश्चाताप करने और उद्धार पाने से ही प्रभु के जन में आकर बस जाता है। इससे हम यह शिक्षा भी प्राप्त करते हैं कि जो लोग, या मत अथवा डिनॉमिनेशन पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए उद्धार पाने के बाद अलग से कुछ विशेष करने के लिए कहते हैं, वे कितनी गलत शिक्षाएं लोगों में फैला रहे हैं। और यद्यपि वेपवित्र आत्माके नाम पर और उसे महत्व देने के लिए ऐसा करते हैं, किन्तुसत्य का आत्मावाली उपरोक्त पहली शिक्षा के अनुसार, पवित्र आत्मा उनके साथ हो ही नहीं सकता है, क्योंकि पवित्र आत्मा प्रभु यीशु के वचन की पुष्टि ही करेगा, कभी उससे अलग या उसके विरुद्ध बात नहीं करेगा। ऐसी सभी शिक्षाएं भ्रामक हैं, और जैसा पौलुस ने गलातीयों को लिखा, श्रापित है वह व्यक्ति जो इन गलत शिक्षाओं को मानता और सिखाता है।

 

यदि आप उद्धार पाए हुए मसीही विश्वासी, प्रभु के जन हैं, तो क्या आपके जीवन में पवित्र आत्मा के फल (गलातीयों 5:22-23) और गुण दिखाई देते हैं? क्या उद्धार पाने के बाद आपके जीवन में निरंतर परिवर्तन आता चला जा रहा है (रोमियों 12:1-2)? क्या आप धीरे-धीरे, किन्तु निश्चय ही प्रभु की समानता में बदलते चले जा रहे हैं (2 कुरिन्थियों 3:18)? क्या परमेश्वर का वचन और आज्ञाकारिता आपके जीवन की प्राथमिकता बन गए हैं (यूहन्ना 14:21, 23; 1 पतरस 2:1-2)? यदि नहीं, तो आपको 2 कुरिन्थियों 13:5 के अनुसार अपने आप को जाँच कर देखने की आवश्यकता है कि क्या आप विश्वास में हैं या नहीं; क्या आपने वास्तव में उद्धार पाया है? या आप इस भ्रम में पड़े हैं कि आपने उद्धार पाया है, किन्तु वास्तविकता में नहीं पाया है। अवसर रहते जाँच लीजिए और यदि कोई गलती है तो उसे सुधार लीजिए।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे, फिर आप में होकर अपने कार्य करे, जिससे आपको आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से पापों के लिए पश्चाताप करके प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

·        यिर्मयाह 37-39

·        इब्रानियों

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