व्यक्तिगत जीवन में भूमिका (3) - यूहन्ना 14:26
हम प्रभु यीशु मसीह के सच्चे, आज्ञाकारी, और समर्पित शिष्य द्वारा उसकी मसीही सेवकाई में सहायता और मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका का अध्ययन कर रहे हैं, जो कि प्रत्येक मसीही विश्वासी में, उसके उद्धार पाते ही, तुरंत ही आकर निवास करने लगता है। हमने देखा है कि पवित्र आत्मा की यह भूमिका दो प्रकार की है, विश्वासी के व्यक्तिगत जीवन में, जो यूहन्ना 14 अध्याय में दी गई है; और उसकी सेवकाई के जीवन में, जो यूहन्ना 16 अध्याय में दी गई है। हम व्यक्तिगत जीवन में भूमिका को यूहन्ना 14:16-17 पदों से देख चुके हैं कि एक बार विश्वासी में आ जाने के बाद वह सर्वदा मसीही विश्वासियों के साथ आजीवन बना रहता है, मसीही जीवन के निर्वाह के लिए उनका सहायक होता है, सेवक नहीं। उसे किसी मनुष्य के प्रयास, विधियों, अथवा युक्तियों द्वारा प्राप्त नहीं किया जाता है, वरन परमेश्वर द्वारा स्वेच्छा से प्रदान किया जाता है। परमेश्वर पवित्र आत्मा सत्य का आत्मा है, कोई भी सांसारिक व्यक्ति, वह चाहे कितना भी “धर्मी” क्यों न हो, उसे ग्रहण नहीं कर सकता है; वह केवल वास्तविक मसीही विश्वासियों में ही रहता है। आज हम मसीही विश्वासी के व्यक्तिगत जीवन में परमेश्वर का वचन सीखने से संबंधित परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका को देखेंगे।
प्रभु यीशु मसीह ने फसह के पर्व के भोज के समय में अपने शिष्यों से चर्चा करते समय उनसे परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय, जिसे वे निकट भविष्य में प्राप्त करने वाले थे, आगे कहा, “परन्तु सहायक अर्थात पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा” (यूहन्ना 14:26)। इस पद से हम परमेश्वर पवित्र आत्मा (जिसे, जैसा कि यहाँ भी लिखा गया है, कोई मनुष्य नहीं वरन पिता परमेश्वर ही प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों में भेजेगा), द्वारा मसीही विश्वासी को प्रभु का वचन सिखाने की कार्य-विधि को देखते हैं:
“वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा” - पवित्र आत्मा ही 'तुम्हें' अर्थात प्रभु के शिष्यों को सब बातें सिखाता है। अर्थात वह बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के सभी शिष्यों को समानता से प्रभु की सभी बातें सिखाने के लिए है। ध्यान कीजिए यहाँ यह नहीं कहा गया है कि जो शिष्य अलग से कोई कार्य करेंगे या कोई रीति पूरी करेंगे उन्हें सिखाएगा; या उससे मिलने वाली वचन की यह शिक्षा कुछ विशेष चुने हुए शिष्यों ही के लिए है, अन्य के लिए नहीं। परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु के हर शिष्य को सभी बातें सिखाएगा। सीखना परिश्रम से, बारंबार अध्ययन करने और परस्पर चर्चा करने से ही होता है; पुस्तक हाथ में पकड़ लेने या उसका सिरहाना बना लेने, या लापरवाही से कभी-कभार पढ़ लेने से सीखना नहीं हो सकता है। बारंबार पढ़ना, लिखी बातों का पालन करना, दिए गए अभ्यास को करके शिक्षक को दिखाना और उसकी जाँच करवाना होता है। सीखना एक प्रक्रिया है, जिसका निर्वाह करना आवश्यक है; और इसके लिए पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों का शिक्षक है। सीखने में विद्यार्थियों द्वारा गलतियाँ होती हैं, उनके कार्य में कमी रह जाती है। तब शिक्षक उन गलतियों को सुधार कर संबंधित अध्ययन और निर्धारित कार्य को पुनः करने को देता है। इसमें समय और सतत प्रयास की आवश्यकता होती है; किन्तु इस प्रक्रिया से निकले बिना सीखना नहीं होने पाता है। ठीक इसी प्रक्रिया का निर्वाह पवित्र आत्मा की अगुवाई और सामर्थ्य से परमेश्वर के वचन के अध्ययन और मसीही सेवकाई से संबंधित बाइबल में दिए गए परमेश्वर के निर्देशों के पालन करने में भी किया जाता है। परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में निवास करता है, और जब तक वह विश्वासी उसके साथ सहयोग करता है, उसका आज्ञाकारी रहता है, पवित्र आत्मा उसका मार्गदर्शन करता है, उसे सिखाता है, सुधारता है, सक्षम तथा उन्नत करता रहता है।
“जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा” - आज बहुत से मत और डिनॉमिनेशंस में यह गलत शिक्षा और व्यवहार बहुत आम है कि उनके अनुयायी ये दावे करते हैं कि उन्हें पवित्र आत्मा ने कुछ विशिष्ट कहा है, या उन्हें कोई नई शिक्षा दी है, या उन्हें कोई नया दर्शन मिला है - ऐसी बातें और भविष्यवाणियाँ जो बाइबल में नहीं दी गई हैं, जिन्हें न प्रभु यीशु ने और न ही उनके शिष्यों अथवा प्रेरितों, या वचन की पुस्तकें लिखने वालों ने कहा और लिखा है। उनकी इन बातों से प्रभावित होकर बहुत से लोग भी ऐसे अनुभवों की लालसाएं करने लगते हैं, उनके समान करने के प्रयासों में लग जाते हैं। जबकि यह विचार, व्यवहार, और शिक्षा बाइबल के अनुसार सही नहीं है, सर्वथा अनुचित और गलत है। आज हमारे हाथों में जो परमेश्वर का वचन है वह अधूरा नहीं संपूर्ण है; हर स्थान, समय, और सभ्यता के लिए, सभी लोगों को जीवन और भक्ति से संबंधित सब कुछ सिखाने, संसार की सड़ाहट से बचाने, और ईश्वरीय स्वभाव का संभागी बनाने के लिए पर्याप्त है (2 पतरस 1:2-4)। उसमें और कुछ भी नया जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। वचन में चेतावनी है कि जो भी इसमें कुछ जोड़ेगा, या इस में से कुछ निकालेगा, उसे यह करने के लिए परमेश्वर के दंड का भागी होना पड़ेगा (व्यवस्थाविवरण 12:32; नीतिवचन 30:6; प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। इस पद में प्रभु यीशु मसीह ने स्पष्ट कहा है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा की शिक्षा का तरीका केवल प्रभु द्वारा कही गई बातों को स्मरण करवाने का; उनके आधार पर सिखाने का है; इससे अतिरिक्त या इससे पृथक नहीं। प्रभु यीशु ने यह नहीं कहा कि वह अपनी ओर से शिष्यों को कोई नई शिक्षाएं, कोई नए दर्शन देगा, स्थापित वचन में अपने द्वारा कोई नई बात जोड़ेगा। इसकी पुष्टि में, प्रभु यीशु मसीह ने अपनी महान आज्ञा में, अपने स्वर्गारोहण के समय शिष्यों से कहा कि वे जाकर और शिष्य बनाएं, तथा जो शिष्य बनते हैं उन्हें प्रभु यीशु की बातें सिखाएं (मत्ती 28:18-20); न कि उन्हें पवित्र आत्मा के द्वारा नई शिक्षाएं, नए दर्शन और नई भविष्यवाणियाँ प्राप्त करने के लिए लालसा, परिश्रम, और प्रयास करने वाले बनना सिखाएं।
तात्पर्य यह है कि पहले प्रभु की बातों को पढ़ो और मन में बसाओ (कुलुस्सियों 3:16)। जो और जितना मन में बसा हुआ है, पवित्र आत्मा उसे ही स्मरण करवाने के द्वारा सिखाएगा। इस पद से कुछ ऊपर यूहन्ना 14:21, 23 में प्रभु यीशु मसीह ने शिष्यों से कहा कि जो उसके वचन से प्रेम करता है, वही है जो वास्तविकता में प्रभु से प्रेम करता है, और प्रभु तथा पिता परमेश्वर ऐसे प्रेम करने वालों के साथ रहते हैं। यदि वचन अधिकाई से मन में बस हुआ होगा तो स्मरण करवाने और सिखाने के लिए अधिक सामग्री होगी, बेहतर सीखने पाएंगे। यदि वचन मन में कम होगा तो पवित्र आत्मा के पास स्मरण करवाने और सिखाने के लिए कम सामग्री होगी, और कम ही सीखने पाएंगे। जिस शिष्य ने वचन जितना अधिक अपने मन में बसा रखा है, समय, परिस्थिति, तथा आवश्यकता के अनुसार परमेश्वर पवित्र आत्मा को उसे उतना अधिक और अच्छा सिखाने, तथा उपयोग करवाने का अवसर रहेगा।
इसीलिए, यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो परमेश्वर के वचन, बाइबल को अपने जीवन में प्राथमिकता दीजिए। वचन को केवल औपचारिकता निभाते हुए पढ़ने वाले ही नहीं, वरन लगन एवं गंभीरता से वचन का अध्ययन तथा पालन करने वाले बनिए। मसीही विश्वासी के अंदर निवास करने वाला पवित्र आत्मा प्रत्येक विश्वासी को वचन सिखाने के लिए ही दिया गया है। यदि आप उसके साथ मिलकर प्रयास और परिश्रम करने के लिए तैयार हैं तो वह अवश्य ही आपको भी सिखाएगा क्योंकि वह तो सभी को सिखाना चाहता है और सभी मसीही विश्वासियों को सिखाता है (1 कुरिन्थियों 2:10-15; 2 तिमुथियुस 3:16-17)।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको अपना वचन सिखाए; फिर आप में होकर अपने आप को औरों पर प्रकट करे, अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे आपको आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
यिर्मयाह 40-41
इब्रानियों 4
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