प्रभु यीशु की कलीसिया संबंधी रूपकों में होकर
कलीसिया के लिए प्रभु के प्रयोजन समझें - 5
पिछले कुछ लेखों में हम प्रभु यीशु की
कलीसिया के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम खंड में प्रयोग किए गए विभिन्न
रूपक (metaphors), जैसे कि - प्रभु का परिवार या घराना; परमेश्वर का
निवास-स्थान या मन्दिर; परमेश्वर का भवन; परमेश्वर की खेती; प्रभु की देह; प्रभु की दुल्हन; परमेश्वर की दाख की बारी, इत्यादि के बारे में देखते आ रहे हैं। हमने देखा है कि किस प्रकार से इन
रूपकों में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रभु द्वारा अपनी कलीसिया, अर्थात, अपने सच्चे और समर्पित शिष्यों का धर्मी और
पवित्र किए जाना, परमेश्वर के साथ कलीसिया के संबंध, संगति, एवं सहभागिता की बहाली, तथा कलीसिया के लोगों के व्यवहार और जीवनों में परमेश्वर के प्रयोजन,
उन से उसकी अपेक्षाएं, आदि को समझाया है। यहाँ पर ये रूपक किसी विशिष्ट क्रम, आधार, अथवा रीति से सूची-बद्ध नहीं किए गए हैं। कलीसिया के लिए बाइबल में प्रयोग
किए गए सभी रूपक समान रीति से, एक सच्चे, समर्पित, आज्ञाकारी मसीही विश्वासी के प्रभु यीशु और
पिता परमेश्वर के साथ संबंध को, तथा उसके मसीही जीवन,
और दायित्वों के विभिन्न पहलुओं को दिखाते हैं।
साथ ही, इन सभी रूपकों में एक और सामान्य बात
है कि प्रत्येक रूपक यह भी बिलकुल स्पष्ट और निश्चित कर देता है कि कोई भी व्यक्ति
किसी भी प्रकार के किसी भी मानवीय प्रयोजन, कार्य, मान्यता या धारणा के निर्वाह आदि के द्वारा, अपनी
अथवा किसी अन्य मनुष्य की ओर से परमेश्वर की कलीसिया का सदस्य बन ही नहीं सकता है;
वह चाहे कितने भी और कैसे भी प्रयास अथवा दावे क्यों न कर ले। अगर व्यक्ति प्रभु यीशु
की कलीसिया का सदस्य होगा, तो वह केवल प्रभु की इच्छा से, उसके
माप-दंडों के आधार पर, उसकी स्वीकृति से होगा, अन्यथा कोई चाहे कुछ भी कहता रहे, वह चाहे किसी
मानवीय कलीसिया अथवा किसी संस्थागत कलीसिया का सदस्य हो जाए, किन्तु प्रभु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य हो ही नहीं सकता है। और यदि वह
अपने आप को प्रभु की कलीसिया का सदस्य समझता या कहता भी है, तो
भी प्रभु उसकी वास्तविकता देर-सवेर प्रकट कर देगा, और अन्ततः
वह अनन्त विनाश के लिए प्रभु की कलीसिया से पृथक कर दिया जाएगा। इसलिए अपने आप को
मसीही विश्वासी कहने वाले प्रत्येक जन के लिए अभी समय और अवसर है कि अभी अपने
‘मसीही विश्वासी’ होने के आधार एवं वास्तविक
स्थिति को भली-भांति जाँच-परख कर, उचित कदम उठा ले और प्रभु
के साथ अपने संबंध ठीक कर ले। हर व्यक्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह
किसी मानवीय कलीसिया अथवा किसी संस्थागत कलीसिया का नहीं, परंतु
प्रभु यीशु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य है।
पिछले लेखों में हम उपरोक्त सूची के पहले चार रूपकों को देख चुके हैं। जैसा ऊपर कहा गया है, हमने यहाँ पर इन लेखों में रूपकों को किसी निर्धारित अथवा विशेष क्रम में
नहीं लिया अथवा रखा है; सभी
रूपक समान ही महत्वपूर्ण हैं, सभी में मसीही जीवन से संबंधित
कुछ आवश्यक शिक्षाएं हैं। आज हम इस सूची के पाँचवें रूपक, कलीसिया
के प्रभु की देह होने के संबंध में देखेंगे।
(5) प्रभु
की देह
परमेश्वर के वचन बाइबल में कलीसिया को
प्रभु यीशु की देह भी कहा गया है। इस रूपक से संबंधित बाइबल के कुछ वचनों पर ध्यान
कीजिए:
- “क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं। वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह हो कर आपस में एक दूसरे के अंग हैं” (रोमियों 12:4-5)।
- “इसी प्रकार तुम सब मिल कर मसीह की देह हो, और
अलग अलग उसके अंग हो” (1 कुरिन्थियों 12:27);
देखें 1 कुरिन्थियों 12:12-27।
- “और उसने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया। जिस से पवित्र
लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए” (इफिसियों 4:11-12)।
- “क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है;
और आप ही देह का उद्धारकर्ता है” (इफिसियों
5:23)।
- “इसलिये कि हम उस की देह के अंग हैं” (इफिसियों
5:30)।
बाइबल में
प्रभु की कलीसिया को, अर्थात उसके प्रति सच्चे, समर्पित, उसे अपना उद्धारकर्ता और प्रभु स्वीकार करने वाले लोगों को, उसकी देह और प्रभु यीशु
को उस देह का सिर कहा गया है। एक देह के साथ एक ही सिर होता है; और एक सिर के साथ एक ही देह होती है। यदि किसी कारण से देह के साथ एक से
अधिक सिर हों, या सिर के साथ एक से अधिक देह हों, तो वह असामान्य, विकृत, और ठीक
से कार्य न कर पाने वाला हो जाता है। इस रूपक के द्वारा संसार भर के
सभी मसीही विश्वासियों को कुल मिलाकर, एक साथ मिलकर, प्रभु की एक देह के विभिन्न अंग बताया गया है। देह
में प्रत्येक अंग की अलग-अलग स्थिति होती है, भिन्न स्वरूप होता है, भिन्न कार्य,
भिन्न कार्य कुशलता, भिन्न कार्य क्षमता,
भिन्न ‘स्वभाव’, आदि
होते हैं। किन्तु देह उन सभी अंगों के एक साथ गठित होने और मिलकर कार्य करने से ही
पूर्ण होती है। कोई भी अंग अपनी स्थिति अथवा कार्य, व्यवहार,
या उपयोगिता स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता है। जैसा जिस अंग को
परमेश्वर ने बनाया है, जहाँ रखा है, और
जो कार्य उसे सौंपा है, उसे वहीं पर उसे ही करना होता है। सभी अंगों को
एक-दूसरे का सहायक और पूरक होकर देह में एक साथ मिलकर कार्य करना होता है।
यदि एक अंग अस्वस्थ होता है तो उसका दुष्प्रभाव सारी देह पर आता है और सारी
देह दुखी होती है; यदि एक अंग ठीक से कार्य नहीं करता है तो
सारी देह के कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अन्ततः, सभी अंग सिर के द्वारा संचालित और
नियंत्रित किए जाते हैं। यदि किसी अंग का सिर के साथ संबंध ठीक न हो,
या बाधित हो जाए, या टूट जाए, तो फिर वह अंग ठीक से कार्य नहीं करने पाता है, निर्बल, सुन्न, या मृतक समान हो जाता है। वह देह के साथ
जुड़ा हुआ तो है, किन्तु
देह के लिए उपयोगी नहीं है, वरन देह के लिए कष्ट उत्पन्न
करने वाला और उसके कार्यों को बाधित करने वाला हो जाता है।
यही स्थिति प्रभु की देह, उसकी कलीसिया में भी है,
और इसे परमेश्वर पवित्र आत्मा ने 1 कुरिन्थियों 12:12-27
में बड़ी स्पष्टता से समझाया है; और रोमियों 12:6-8
में कलीसिया के प्रत्येक अंग से आग्रह किया गया है कि वह अपने
आत्मिक वरदान के द्वारा अपने कार्य को सुचारु रीति से करे। जब प्रभु के द्वारा
अपनी-अपनी विशिष्ट स्थिति और सेवकाई में स्थापित लोग, ठीक से
अपने दायित्वों का निर्वाह करते हैं, तो पवित्र लोग सिद्ध
होते हैं, सेवा का काम उचित और कुशल रीति से किया जाता है,
और मसीह की देह अर्थात उसकी कलीसिया उन्नति पाती है (इफिसियों 4:11-12)।
किन्तु हर किसी को प्रभु को अपना
“सिर” स्वीकार करके, उसके अधीनता
में ही अपनी सेवकाई के कार्यों को करना होता है, क्योंकि वचन में लिखा है कि वही “कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है” (इफिसियों 5:23)। यह इस बात को बिलकुल स्पष्ट और प्रकट कर देता है कि जो प्रभु की कलीसिया
है, वह प्रभु ही के निर्देशों के अनुसार, उसकी अधीनता और
आज्ञाकारिता में ही चलेगी। जहाँ भी प्रभु द्वारा अपने वचन में दिए गए निर्देशों और
नियमों के स्थान पर, ‘कलीसिया’ के
लोगों के कार्यों और दायित्वों आदि के निर्वाह के लिए किसी समुदाय या डिनॉमिनेशन
ने अपने ही नियम और कार्य-विधि बना लिए हैं, और जहाँ भी परमेश्वर के वचन बाइबल के स्थान पर उन
नियमों, विधियों,
परंपराओं आदि को प्राथमिकता दी जाती है, उनके
आधार पर किसी के ‘कलीसिया’ में कार्य करने अथवा सम्मिलित होने या न होने का निर्धारण
किया जाता है, उनके
अनुसार व्यक्ति को जाँचा जाता है, आदि, तो वह फिर प्रभु यीशु की कलीसिया नहीं है। जिस कलीसिया, जिस देह का सिर, उसे नियंत्रित और संचालित करने वाला
प्रभु यीशु नहीं है, वह देह प्रभु के साथ जुड़ी हुई भी नहीं
है। वह कहने को ‘प्रभु की कलीसिया’ हो
सकती है, किन्तु उसका वास्तविक ‘प्रभु’
यीशु मसीह नहीं वरन कोई मनुष्य या मानवीय संस्था है। जो ‘कलीसिया’ प्रभु के वचन के अनुसार, और परमेश्वर पवित्र आत्मा के चलाए नहीं चलती है, वह
वास्तविकता में प्रभु की अधीनता में भी नहीं है, प्रभु यीशु
की कदापि नहीं है। ऐसी किसी भी ‘कलीसिया’ को इफिसियों 5:23 के अंतिम वाक्यांश के अनुसार अपने
आप को बारीकी से जाँच-परख कर देखने की आवश्यकता है कि उस ‘कलीसिया’
का, उन प्रभु के नाम से कहलाए जाने वाले लोगों
का, उद्धार हुआ भी है कि नहीं; प्रभु यीशु मसीह उनका
उद्धारकर्ता है भी कि नहीं? कहीं वे एक भ्रम में ही जीवन जीते रहें, और जब तक वास्तविकता को पहचानें, उसे सुधार पाने के
समय और अवसर से चूक जाएं और अनन्त विनाश में चले जाएं।
प्रभु यीशु अपने सच्चे
विश्वासियों अपनी वास्तविक कलीसिया को अपनी अधीनता में, अपने नियंत्रण
में निरंतर बनाए रखता है, जिससे कि कलीसिया अपने लिए आशीष का
और प्रभु की महिमा तथा आदर का कारण ठहरे। कलीसिया के इस प्रकार से प्रभु की देह
के समान प्रभु के नीचे और नियंत्रण में रहने के कारण वह किसी भी प्रकार से शैतान
की अधीनता और नियंत्रण में जाने से सुरक्षित रहती है। जो
प्रभु की अधीनता और नियंत्रण में रहकर जीवन व्यतीत करेंगे, कलीसिया
के अन्य लोगों के साथ मिलकर उनके साथ सहयोगी और उनके साथ एक मन होकर अपनी
मसीही सेवकाई का निर्वाह करेंगे, वे अपने मसीही जीवन में
स्वयं भी उन्नति करने पाएंगे, साथ ही कलीसिया भी उन्नति करने
पाएगी, और प्रभु यीशु की भी महिमा होगी।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो, कृपया सुनिश्चित कर
लीजिए कि क्या आप प्रभु की कलीसिया, उसकी देह के एक अंग के
समान अपने निर्धारित कार्य और सेवकाई को ठीक से निभा रहे हैं? कहीं आपके जीवन और व्यवहार से प्रभु की देह दुखी, और
प्रभु का कार्य बाधित तो नहीं हो रहा है? जाँच और पहचान
लीजिए कि आपका “सिर” कौन है? अर्थात, क्या आप प्रभु के वचन और निर्देशों के
अनुसार, प्रभु की कलीसिया में रहते हुए कार्य करते हैं,
या आप किसी मानवीय संस्था या डिनॉमिनेशन और उसके नियमों की अधीनता में
होकर, प्रभु के वचन से भिन्न निर्देशों के अनुसार कार्य करते
हैं?
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- उत्पत्ति
39-40
- मत्ती 11
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