प्रभु यीशु की कलीसिया संबंधी रूपकों में होकर
कलीसिया के लिए प्रभु के प्रयोजन समझें - 4
हम पिछले कुछ
लेखों में हम प्रभु यीशु की कलीसिया के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम खंड में प्रयोग किए गए विभिन्न रूपक (metaphors), जैसे कि -
प्रभु का परिवार या घराना; परमेश्वर का निवास-स्थान या
मन्दिर; परमेश्वर का भवन; परमेश्वर की
खेती; प्रभु की देह; प्रभु की दुल्हन;
परमेश्वर की दाख की बारी, इत्यादि के बारे में
देखते आ रहे हैं। हमने देखा है कि किस प्रकार से इन रूपकों में होकर परमेश्वर
पवित्र आत्मा ने प्रभु द्वारा अपनी कलीसिया, अर्थात, अपने सच्चे और समर्पित शिष्यों का धर्मी और पवित्र किए जाना, परमेश्वर के साथ कलीसिया के संबंध, संगति, एवं सहभागिता की बहाली, तथा कलीसिया के लोगों के
व्यवहार और जीवनों में परमेश्वर के प्रयोजन, उन से उसकी
अपेक्षाएं, आदि को समझाया है। इनमें
से प्रत्येक रूपक, एक सच्चे, समर्पित,
आज्ञाकारी मसीही विश्वासी के प्रभु यीशु और पिता परमेश्वर के साथ
संबंध को, तथा उसके मसीही जीवन, और
दायित्वों के विभिन्न पहलुओं को दिखाता है।
इन सभी रूपकों
में सामान्य बात है कि प्रत्येक रूपक यह भी बिलकुल स्पष्ट और निश्चित कर देता है
कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के किसी भी मानवीय प्रयोजन, कार्य, मान्यता या धारणा के निर्वाह आदि के द्वारा,
अपनी अथवा किसी अन्य मनुष्य की ओर से परमेश्वर की कलीसिया का सदस्य
बन ही नहीं सकता है; वह चाहे कितने भी और कैसे भी प्रयास
क्यों न कर ले। अगर व्यक्ति प्रभु यीशु की कलीसिया का सदस्य होगा, तो वह केवल प्रभु की इच्छा से, उसके माप-दंडों के
आधार पर, उसकी स्वीकृति से होगा, अन्यथा
कोई चाहे कुछ भी कहता रहे, वह चाहे किसी मानवीय कलीसिया अथवा
किसी संस्थागत कलीसिया का सदस्य हो जाए, किन्तु प्रभु की
वास्तविक कलीसिया का सदस्य हो ही नहीं सकता है। और यदि वह अपने आप को प्रभु की
कलीसिया का सदस्य समझता या कहता भी है, तो भी प्रभु उसकी
वास्तविकता देर-सवेर प्रकट कर देगा, और अन्ततः वह अनन्त
विनाश के लिए प्रभु की कलीसिया से पृथक कर दिया जाएगा। इसलिए अपने आप को मसीही
विश्वासी कहने वाले प्रत्येक जन के लिए अभी समय और अवसर है कि अभी अपने ‘मसीही विश्वासी’ होने के आधार एवं वास्तविक स्थिति
को भली-भांति जाँच-परख कर, उचित कदम उठा ले और प्रभु के साथ
अपने संबंध ठीक कर ले। हर व्यक्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह किसी
मानवीय कलीसिया अथवा किसी संस्थागत कलीसिया का नहीं, परंतु
प्रभु यीशु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य है।
(4) परमेश्वर की खेती
परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में, पौलुस प्रेरित ने कुरिन्थुस
के मसीही विश्वासियों की मण्डली को लिखी अपनी पहली पत्री में लिखा, “क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर
की खेती और परमेश्वर की रचना हो” (1 कुरिन्थियों 3:9); इसे इसके संदर्भ में पद 1 से देखना अधिक उचित है।
संदर्भ के साथ देखने से स्पष्ट हो जाता है कि पवित्र आत्मा पौलुस में होकर कुरिन्थुस
की मण्डली के लोगों को उलाहना दे रहा है क्योंकि उन्होंने अपने आप को एकता में
रखने की बजाए, अपने आप को उनके मध्य सेवकाई करने वाले सेवकों
के अनुसार विभाजित करना आरंभ कर दिया था। विभाजन की इस प्रवृत्ति की भर्त्सना करते
हुए, पवित्र आत्मा ने लिखवाया कि न तो पौलुस कुछ है, और न ही अपुल्लोस कुछ है। वे केवल प्रभु के सेवक हैं जिन्हें प्रभु ने
अपने लोगों के मध्य कार्य के लिए प्रयोग किया, किन्तु उनके
कार्य को सफल और फलवंत करने वाला परमेश्वर है, जिसके कार्य
के बिना उन सेवकों का परिश्रम व्यर्थ है। इस बात को समझाने के लिए पवित्र आत्मा ने
खेती-किसानी से संबंधित बातों को रूपकों के समान प्रयोग किया। पद 6-8 में मजदूरों द्वारा खेत में बीज के बोने और उगने वाली फसल के पौधों को
सींचने वाले को मात्र सेवक, जिन्हें उनके परिश्रम के अनुसार
प्रतिफल दिया जाएगा कहा गया है। साथ ही यह बताया गया है कि
परमेश्वर ही उनके परिश्रम को स्वामी के लिए फसल का प्रत्यक्ष स्वरूप एवं परिणाम
देने वाला है। और तब पद 9 में
मण्डली या कलीसिया को परमेश्वर की खेती, परमेश्वर की रचना
बताया गया है।
इसी रूपक से संबंधित दो अलग-अलग दृष्टांत
प्रभु यीशु ने मत्ती 13 अध्याय
में भी दिए हैं; जिन्हें परस्पर एक समान लेकर भ्रम में नहीं
पड़ना चाहिए। इन में से पहला, बीज बोने वाले का दृष्टांत,
चार प्रकार की भूमियों के बारे में है। उन चारों भूमियों पर एक ही
बीज बोने वाले - प्रभु यीशु (मत्ती 13:37) ने एक ही समान
गुणवत्ता के बीज - परमेश्वर का वचन (लूका 8:11) बोया। किन्तु
इन चार प्रकार की “भूमि” में से केवल
एक ही प्रकार की भूमि “अच्छी” है,
जिसमें बोया गया बीज अन्ततः फलवंत हुआ (मत्ती 13:23)। दूसरा दृष्टांत दो भिन्न प्रकार के बीजों के विषय में है। इस दृष्टांत
की व्याख्या करते समय, प्रभु यीशु ने बताया कि “खेत” संसार है (मत्ती 13:38), और
इसमें दो प्रकार के बीज बो दिए गए हैं - अच्छे बीज, अर्थात,
परमेश्वर के राज्य की सन्तान, और बुरे बीज,
अर्थात, दुष्ट अर्थात शैतान की सन्तान या लोग
(मत्ती 13:38 )। परमेश्वर ने अपने खेत में अच्छे बीज बोए,
किन्तु शैतान ने आकर अपने बुरे बीज भी उसी खेत में बो दिए (मत्ती 13:39),
जिन्हें फिर जगत के अन्त, कटनी के समय,
पृथक करके, अपने-अपने स्थानों पर पहुँचा दिया
जाएगा (मत्ती 13:40-42)।
प्रत्येक स्थानीय कलीसिया या मण्डली के
लोग, प्रभु यीशु द्वारा दिए
गए प्रथम दृष्टांत की चार प्रकार की भूमियों के समान हैं; जिन्हें
परमेश्वर के द्वारा नियुक्त उसके सेवक प्रभु की ओर से, परमेश्वर
के एक ही वचन से, एक ही समान शिक्षाएं देते हैं। किन्तु हर
एक सदस्य उन शिक्षाओं को समान रीति से ग्रहण तथा अपने जीवन में उपयोग नहीं करता है,
और परिणामस्वरूप, कलीसिया के विभिन्न लोगों
में आत्मिकता के भिन्न स्तर पाए जाते हैं। यहाँ तक कि अन्त के समय जब प्रतिफल
मिलने की बारी आएगी, तब ऐसे भी लोग होंगे जो परमेश्वर के
राज्य में खाली हाथ प्रवेश करेंगे, क्योंकि उनका जीवन और
कार्य किसी प्रतिफल के योग्य ही नहीं रहे; किन्तु उनका
उद्धार या प्रभु की कलीसिया का जन होना उनसे कदापि नहीं छीना जाएगा (1 कुरिन्थियों 3:13-15)। किन्तु उस समय की उनकी दश की
कल्पना कीजिए, उन्हें स्वर्ग में प्रवेश तो मिला, किन्तु अनन्त काल के लिए वे खाली हाथ ही रहेंगे, उनके
पास स्वर्ग में उपयोग के लिए कोई प्रतिफल नहीं होंगे, और न
ही कोई अवसर होगा कि अपनी इस स्थिति को सुधार सकें। वे परमेश्वर की खेती तो हैं,
किन्तु “अच्छी भूमि” नहीं
बने, पृथ्वी पर अपने समय और योग्यताओं को प्रभु के लिए
प्रयोग करने के स्थान पर उन्हें नश्वर संसार और संसार के लोगों, अधिकारियों, तथा नाशमान बातों के लिए लगाते रहे,
और प्रभु के खेती होते हुए भी अपने समय, अवसर,
और वरदानों को व्यर्थ कर दिया (1 यूहन्ना 2:15-17)।
इसी प्रकार से, प्रभु द्वारा बताए गए
दूसरे दृष्टांत के अनुरूप, प्रत्येक स्थानीय कलीसिया में
प्रभु के लोग और उनके मध्य शैतान के द्वारा घुसा दिए गए लोग, अर्थात दोनों ही प्रकार के लोग होते हैं। और जैसा हम पहले 8 जनवरी के “प्रभु यीशु अपनी कलीसिया स्वयं ही बना रहा
है” लेख में देख चुके हैं, प्रभु शैतान
द्वारा उसकी कलीसिया या मण्डली में घुस आए शैतान के लोगों को अलग करता भी रहता है
तथा जगत के अन्त के समय के अलग किए जाने के समय वे सभी जो प्रभु की वास्तविक
कलीसिया के नहीं हैं, अनन्त विनाश में भेज दिए जाएंगे।
यदि आप मसीही
विश्वासी हैं तो ध्यान कीजिए कि एक बार फिर यह रूपक स्पष्ट कर देता है कि कोई भी
मनुष्य अपनी अथवा किसी अन्य मनुष्य या संस्था की बातों के निर्वाह के द्वारा प्रभु
की खेती, उसकी रचना नहीं बन सकता है। और न ही कोई परमेश्वर
के वचन की अवहेलना करके, संसार, संसार
के लोगों, संसार की बातों और लालसाओं को अपने जीवन में
प्राथमिकता देकर, प्रभु की कलीसिया का सदस्य होने पर भी,
कोई प्रभु से कुछ प्रतिफल पा सकता है। प्रभु ही अपनी कलीसिया को
बनाता है, उसकी देखभाल करता है, और
उसमें से उनको जो उसके द्वारा सम्मिलित नहीं किए गए हैं, शैतान
के लोगों को निकाल देता है। इसलिए ध्यान कीजिए कि आपकी प्रभु की कलीसिया में, और प्रभु के वचन की
आज्ञाकारिता में तथा अपने जीवन में उसके वचन को दी गई प्राथमिकता की दशा क्या है?
यदि कुछ सुधारे जाने की आवश्यकता है, तो अभी,
समय और अवसर रहते यह कर लीजिए; विलंब या
लापरवाही बहुत हानिकारक हो सकती है। प्रभु अपने विश्वासियों, अपनी
वास्तविक कलीसिया के सच्चे सदस्यों को अपनी खेती, अपनी रचना
के समान, अपने लिए भी, तथा उनके
अनन्तकाल के लिए भी फलवन्त और आशीषित देखना चाहता है; यदि वे
उसके वचन को अपने जीवनों में प्राथमिकता तथा आज्ञाकारिता का उचित स्थान प्रदान
करते रहें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- उत्पत्ति
36-38
- मत्ती 10:21-42
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें