भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप
पिछले लेखों में हमने इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में
से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं
को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत
उपदेशों के बारे में देखना आरंभ किया था। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के बारे में
परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा कुरिन्थुस की मंडली को लिखी
दूसरी पत्री में जो लिखवाया है, हम उससे देखेंगे और समझेंगे।
इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, जिनके बारे में
परमेश्वर पवित्र आत्मा ने 2 कुरिन्थियों 11:3-4 में उल्लेख किया है “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे
सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे
मन उस सिधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं।
यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे,
जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले;
जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे
तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”। यहाँ, पद 3 में पौलुस पहले
अपनी आशंका को व्यक्त कर रहा है कि जैसे हव्वा शैतान की चतुराई से बहकाई गई और पाप
में गिर गई, वैसे ही मसीही विश्वासियों के मन भी भ्रष्ट न कर
दिए जाएं। शैतान की चतुराई और उसके द्वारा बहकाए जाने की पद 3 की इस बात को हम पिछले लेख में देख चुके हैं। आज से हम यहाँ पद 4 में दी गई बातों से, उन भ्रामक या गलत शिक्षाओं एवं
संदेशों के तीन मुख्य स्वरूपों को देखना आरंभ करेंगे।
परमेश्वर पवित्र आत्मा ने 2 कुरिन्थियों 11:4
में, शैतान द्वारा लोगों को मसीही विश्वास के
बारे में, तथा मसीही विश्वासियों और कलीसिया को परमेश्वर के
मार्गों और वचन से बहकाने, भटकाने के लिए प्रयोग की जाने
वाली तीन प्रकार की गलत शिक्षाओं की युक्तियों के बारे में सचेत किया है। ये तीन
प्रकार की युक्तियाँ हैं:
- कोई
तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार
हम ने नहीं किया;
- या
कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था;
- या
और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था
साथ ही इसी 2 कुरिन्थियों 11 अध्याय
में पवित्र आत्मा ने इसके बारे में भी सचेत किया है कि यह गलत प्रचार, शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक,
और ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों
का रूप धारण कर के करते हैं, “क्योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और
छल से काम करने वाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले
हैं। और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का
रूप धारण करता है। सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उन का अन्त उन के कामों के अनुसार होगा”
(2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ध्यान कीजिए,
पौलुस प्रेरित में होकर पवित्र आत्मा यह नहीं कह रहा कि ऐसा भविष्य
में होगा, वरन इस बात के लिखे जाने के समय, उस आरंभिक कलीसिया के समय में ही जब अभी नए नियम की पत्रियां लिखी ही जा
रही थीं, सभी लिखी भी नहीं गईं थीं, और
न ही बाइबल की पुस्तकें संकलित होकर एक पुस्तक बनी थी, तब से
ही शैतान और उसके दूतों का यह कार्य आरंभ हो चुका था। शैतान ने प्रभु के कार्य में
अवरोध डालने, उसे भ्रष्ट करने, उसके
लोगों को बहकाने में कोई विलंब नहीं किया। जैसा प्रभु यीशु ने मत्ती 13 अध्याय में कहे परमेश्वर के राज्य से संबंधित दृष्टांतों में से दूसरे
दृष्टांत, खेत में जंगली बीजों के बोए जाने के दृष्टांत
(मत्ती 13:24-30, 36-42) में कहा है, शैतान
के ये लोग आरंभ से ही कलीसिया में घुसकर अपनी गलत शिक्षाएं डालते चले आ रहे हैं।
इसीलिए, नए नियम की पत्रियों को लिखे जाने के
समय से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा ने उन गलत शिक्षाओं को पहचानने की विधि और उन गलत
शिक्षाओं के गुण भी लिखवा दिए हैं। शैतान द्वारा भरमाने
भटकाने के लिए प्रयोग की जाने वाली युक्तियों के संबंध में 2 कुरिन्थियों 11:4 की उपरोक्त तीनों बातों पर
ध्यान कीजिए। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता
दिया गया है। अर्थात सही “यीशु” वही है
जिसका प्रचार प्रभु के शिष्यों और प्रेरितों द्वारा किया गया है; पवित्र आत्मा से संबंधित सही शिक्षाएं वही हैं जो पहले दी जा चुकी हैं;
सुसमाचार का सही स्वरूप वही है जिसे पहले दिया और माना गया।
परमेश्वर के वचन में इन पहले से प्रचार की गई और सिखाई गई बातों के अतिरिक्त,
अन्य जो कुछ भी है, वह परमेश्वर की ओर से नहीं
है, शैतान की ओर से है; सत्य नहीं
असत्य है; उसे स्वीकार नहीं, उसका
तिरस्कार किया जाना है।
इन तीनों युक्तियों का आधार वही है, जो पहले पाप को करवाने
के लिए शैतान द्वारा हव्वा के विरुद्ध प्रयोग किया गया था - परमेश्वर के वचन,
निर्देश, और बातों को लेकर, उनमें कुछ जोड़ना-घटाना; उनमें कुछ अपनी बातें मिलाना;
और परमेश्वर तथा उसके वचन के सही और उचित होने के प्रति संदेह
उत्पन्न करना, और मनुष्यों के प्रति परमेश्वर की योजनाओं और
मनसाओं के भले एवं उत्तम होने पर प्रश्न-चिह्न लगाना। अपनी बातों के द्वारा शैतान,
परमेश्वर द्वारा नियुक्त जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह पर,
मनुष्यों को प्रदान किए गए परमेश्वरीय सहायक पवित्र आत्मा पर,
और प्रभु यीशु में विश्वास लाने के द्वारा उद्धार प्राप्त करने के
सुसमाचार पर, इन बातों और उनसे संबंधित शिक्षाओं पर तीखा
हमला करता है। इन बातों की गलत समझ और भ्रष्ट शिक्षाओं के द्वारा शैतान का प्रयास
रहता मनुष्यों के उद्धार पाने और फिर परमेश्वर को भावता हुआ जीवन जीने में बाधाएं
उत्पन्न कर सके, मसीही विश्वास और विश्वासियों को निष्क्रिय
एवं निष्फल कर सके। किन्तु जैसा पवित्र आत्मा ने पौलुस के द्वारा लिखवाया है,
“कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम
उस की युक्तियों से अनजान नहीं” (2 कुरिन्थियों 2:11),
यदि हम शैतान की इन युक्तियों को समझ लें, उसके
द्वारा उन्हें अपने जीवन या कलीसिया में कार्यान्वित होते हुए देखने को ताड़ लें, तो शैतान के ये प्रयास
व्यर्थ हो जाएंगे। अगले लेख से हम इन तीनों प्रकार की युक्तियों को बारी-बारी और
विस्तार से देखेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए अभी अवसर और
समय है कि आप अपने मसीही विश्वास के जीवन को, उस कलीसिया की
बातों को जिसमें आप संगति करते हैं, ध्यान से देख-परख लें कि
कहीं आपके जीवन में, या आपकी कलीसिया में शैतान द्वारा बोए गए जंगली दाने तो नहीं
उग और पनप रहे हैं? यदि जंगली दाने हैं, तो उन्हें पहचान कर, उनसे बचकर रहिए; उनकी भ्रामक शिक्षाओं और गलत संदेशों में मत पड़िए। उन से मत उलझिए; प्रभु
अपने समय में, अपनी विधि से उन्हें हटाएगा। तब तक आपको उनसे
सचेत रहकर, उनसे दूरी बनाए रखनी है, और
परमेश्वर के वचन और विश्वास में उन्नत होते जाना है।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- लैव्यव्यवस्था
23-24
- मरकुस 1:1-22
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