भ्रामक शिक्षाओं में
बहकाए जाने को समझें
पिछले लेख से हमने इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में
से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं
को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत
उपदेशों के बारे में देखना आरंभ किया था। हमने देखा था कि यह परमेश्वर के वचन की
शिक्षा है, परमेश्वर का निर्देश है कि कोई भी शिक्षा या
शिक्षक बिना वचन से जाँचें और परखे स्वीकार न किया जाए। उपदेशकों और उनके उपदेशों
को जाँचना और परखना वचन के अनुसार है, विरुद्ध नहीं। आरंभिक
कलीसिया में भी, वचन के विषय हमारी तुलना में उनके पास बहुत
ही सीमित संसाधनों के होते हुए भी, बेरिया के विश्वासियों के
समान लोग थे जो पौलुस तक की शिक्षाओं को वचन से जाँचने के बाद ही स्वीकार करते थे,
और इसके लिए परमेश्वर के वचन में उनकी सराहना की गई, उन्हें उत्तम कहा गया (प्रेरितों 17:11)। साथ ही
हमने यह भी देखा था कि परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पौलुस द्वारा पहले ही लिखवा दिया
था कि ऐसा समय भी आएगा जब लोग ही स्वयं अपने लिए भ्रामक उपदेश और शिक्षाओं को देने
वाले बटोर लेंगे। वे परमेश्वर के वचन की खराई की बातों पर नहीं, अपितु इधर-उधर की बातों, मन-गढ़ंत किस्से-कहानियों से
संतुष्ट और प्रसन्न रहेंगे, उन्हें ही सुनना चाहेंगे। किन्तु
वचन की सेवकाई करने वालों को ऐसों को भी खरा सुसमाचार सुनाना है, चाहे उसके लिए दुख ही क्यों न उठाने पड़ें (2 तिमुथियुस
4:1-5)।
इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः
तीन स्वरूप होते हैं, जिनके बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा
ने 2 कुरिन्थियों 11:3-4 में उल्लेख
किया है “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी
चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सिधाई और
पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं। यदि कोई तुम्हारे
पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने
पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”। यहाँ, पद 3 में पौलुस पहले
अपनी आशंका को व्यक्त कर रहा है कि जैसे हव्वा शैतान की चतुराई से बहकाई गई और पाप
में गिर गई, वैसे ही मसीही विश्वासियों के मन भी भ्रष्ट न कर
दिए जाएं। शैतान ने यह कार्य अपनी चतुराई के द्वारा किया, और
इफिसियों 4:14 का पहला दुष्प्रभाव भी अपरिपक्व विश्वासियों
के ठग विद्या तथा चतुराई की बातों में फँस जाने के लिए बताता है। अर्थात, जो मसीही विश्वासी परमेश्वर के वचन में दृढ़ और स्थापित, परमेश्वर के प्रति पूर्णतः समर्पित और उसकी आज्ञाकारी नहीं होंगे, वे शैतान की चतुराई की बातों, उसकी ठग विद्या का
शिकार हो जाएंगे।
यहाँ 2 कुरिन्थियों 11:3 की यह बात हम मसीही विश्वासियों के लिए ध्यान देने और समझने की बात है,
क्योंकि इसमें शैतान की इस युक्ति को पहचानने और उसमें फँसने से
बचने का मार्ग दिया गया है। शैतान की बातें चतुराई की बातें होती हैं, जो उसी प्रकार से मसीही विश्वासियों के मनों में भी परमेश्वर, उसके प्रेम, उसके वचन, उसकी
योजनाओं, उसकी भलाई, आदि के विषय में
संदेह उत्पन्न करती हैं, जैसे हव्वा में कीं। उसकी ये चतुराई की बातें लोगों को वचन
के पालन के स्थान पर अपनी बुद्धि और समझ के अनुसार कार्य करने को उकसाती हैं, चाहे उनके ये कार्य
परमेश्वर के निर्देशों के विरुद्ध ही क्यों न हों, जैसा उसने
हव्वा के साथ किया था। इसकी तुलना में, जो शिक्षा, जो उपदेश प्रभु यीशु मसीह के विषय खरा होगा, परमेश्वर
पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और मार्गदर्शन में दिया जाएगा, उसमें
शांति, प्रेम, आपस में गठे रहने,
मसीह की पहचान और परमेश्वर के भेदो की बातें होंगी, लुभाने वाली बातें नहीं (कुलुस्सियों 2:2-4)। पवित्र
आत्मा की अगुवाई में संदेश देने वाला सच्चा मसीही शिक्षक या उपदेशक, अपने प्रचार और शिक्षाओं में कोई नई बात नहीं लाएगा। वरन वह वचन में दी गई
बातों में ही बने रहने और चलते रहने के लिए सिखाएगा, उन
बातों से किसी हाल न हटने की, विशेषकर सांसारिक बातों,
परंपराओं, तत्व-ज्ञान की बातों से बचकर चलने
की शिक्षा देगा (कुलुस्सियों 2:6-8)।
अपनी इन 2 कुरिन्थियों 11:3 की धोखे और चतुराई की बातों को लोगों में फैलाने और उनके मध्य में बैठाने
के लिए शैतान भ्रम और युक्तियों का प्रयोग करता है। वह अपने इस भ्रम और युक्ति का
प्रचार और प्रसार करने के लिए अपने आप को और अपने लोगों को
मसीह-विरोधी नहीं, वरन मसीहियों के समान बनाता और दिखाता है
“क्योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से
काम करने वाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले हैं।
और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप
धारण करता है। सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उन का अन्त उन के कामों के अनुसार होगा”
(2 कुरिन्थियों 11:13-15)। इसलिए इन झूठे
उपदेशकों और शिक्षकों और उनकी शिक्षाओं को पहचान लेने के लिए सभी शिक्षकों और वचन
की सेवकाई करने वालों के संदेशों को वचन के अनुसार जाँचना, परखना,
तथा पिछले लेख में दी गई पहचान करने की बातों के अनुसार उनका आँकलन
करना और सही पहचान करने बाद ही स्वीकार करना अनिवार्य है। अन्यथा शैतान हव्वा के
समान बहका और पाप में गिरा देगा। हम अगले लेख में 2 कुरिन्थियों
11:4 में उल्लेख किए गए गलत शिक्षाओं के तीन प्रकार के
स्वरूपों पर विचार आरंभ करेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए प्रभु
द्वारा यह समय और अवसर दिया गया है कि आप अपने मसीही जीवन, विश्वास,
और परिपक्वता को जाँच लें, तथा आवश्यक सुधार
कर लें। ध्यान करें कि जब हव्वा शैतान द्वारा बहकाई और पाप में गिराई गई, और उसके बाद आदम भी, तब पृथ्वी पर पाप नहीं था,
कोई बुराई नहीं थी, आदम और हव्वा पवित्र थे और
परमेश्वर से संगति रखते थे, उससे वार्तालाप करते थे। किन्तु
फिर भी शैतान की चतुराई में फंस गए, उसके भ्रम की युक्ति में
आ गए, पाप में गिर गए। ऐसा कोई मसीही विश्वासी नहीं है जो कह
सके कि “मैं पाप नहीं करता हूँ” - जो
यह कहता है, वह सत्य से अनभिज्ञ है और परमेश्वर को झूठा
ठहराता है (1 यूहन्ना 1:8-10)। इसलिए
अभी, समय और अवसर रहते, अपने आप को
जाँच कर, ठीक करके, परमेश्वर द्वारा 1
यूहन्ना 1:9 में दिए गए आश्वासन को उससे माँग
लीजिए और अपना लीजिए।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- लैव्यव्यवस्था
21-22
- मत्ती 28
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