भ्रामक शिक्षाओं के
स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (2) - सुसमाचार क्या है?
हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि
बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता
से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक
शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक,
और ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं
(2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग,
और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक,
रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ
तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु
साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं।
जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2
कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि
कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे,
जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले;
जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार
जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”,
इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः
तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई
को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है,
कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने,
जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने
के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा
देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत
शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर
पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की
वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और पिछले लेख से हमने
सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, इस विषय के परिचय को देखा है। इस परिचय में हमने देखा है कि प्रभु यीशु का
सुसमाचार परमेश्वर के राज्य में मनुष्य के प्रवेश प्राप्त करने के बारे में है,
और इस प्रवेश के लिए सबसे पहला कदम है प्रत्येक व्यक्ति द्वारा
व्यक्तिगत रीति से अपने पापों से पश्चाताप करना, जो सभी के
लिए समान रीति से अनिवार्य है, चाहे वे किसी भी धर्म,
धारणा, मान्यता, या
समुदाय के हों, चाहे अपने आप को पिछली कई पीढ़ियों “प्रभु के लोग” अर्थात ईसाई या मसीही होना ही क्यों न समझते हों। आज हम यहाँ से आगे बढ़ेंगे और देखेंगे कि
सुसमाचार क्या है।
सुसमाचार क्या है?
जैसा हम पिछले लेख में देख चुके हैं, सुसमाचार शब्द का अर्थ
है भला समाचार या अच्छी खबर। यह लोगों को प्रदान की जाने वाली जानकारी है, कोई प्रथा, परंपरा, या विधि
नहीं है जिसे करने के द्वारा व्यक्ति धार्मिकता के किसी विशेष स्तर पर पहुँच जाता
है, और परमेश्वर फिर उसे अपने राज्य में प्रवेश देने के लिए
बाध्य हो जाता है। सुसमाचार अच्छा समाचार तब ही हो सकता है, जब
उसकी तुलना में कुछ बुरा समाचार भी हो, और वह बुरा समाचार
सारे संसार के सभी लोगों पर लागू हो; अन्यथा सुसमाचार वास्तव
में सुसमाचार हो ही नहीं सकता है। इस “बुरे समाचार” को हम परमेश्वर के वचन बाइबल के कुछ पदों से देखते हैं:
- रोमियों
5:12 इसलिये
जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के
द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों
में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।
- रोमियों
3:23 इसलिये
कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।
- रोमियों
6:23 क्योंकि
पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान
हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।
अर्थात, संसार का प्रत्येक मनुष्य, उस पाप के दोष के साथ जन्म लेता है, जो अदन की
वाटिका में आदम और हव्वा के पाप करने से मनुष्य जाति में प्रवेश कर गया था, अनुवांशिक रीति
से उनमें बस गया था और एक से दूसरी पीढ़ी में फैलने वाला
दोष था। उस पाप के कारण
मृत्यु ने सृष्टि में प्रवेश किया, और मृत्यु सभी मनुष्यों में फैल गई। यह मृत्यु दो प्रकार
की है - आत्मिक और शारीरिक। आत्मिक मृत्यु के कारण मनुष्य परमेश्वर की संगति और
सहभागिता से दूर है; और शारीरिक मृत्यु के कारण वह अन्ततः एक
दिन मरेगा ही। परिणामस्वरूप मनुष्य जन्म लेते ही मारना आरंभ कर देता है, और उसकी आयु पूरी हो जाने पर मर जाता है। मनुष्य अपनी स्वाभाविक पापमय दशा
में ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता है जिसके द्वारा अपनी इस परिस्थिति को पलट सके,
परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी और उसे स्वीकार्य बन सके। हम इस विषय
को विस्तार से पहले के कुछ लेखों में देख चुके हैं, इसलिए
यहाँ इन पर और अधिक चर्चा नहीं करेंगे। अर्थात, बुरी खबर या
बुरा समाचार यह है कि संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वाभाविक
पापी दशा के कारण परमेश्वर से दूर, और अनन्त मृत्यु, यानि कि हमेशा के लिए परमेश्वर से दूर नरक में रहने की दशा में है।
इसीलिए भला समाचार या अच्छी खबर सभी
मनुष्यों के लिए है कि परमेश्वर ने ही मनुष्यों के लिए इस अनन्त मृत्यु, सदा काल के नरक से बचने
का मार्ग बनाकर दे दिया है, संसार के सभी लोगों के लिए उसे
सेंत-मेंत उपलब्ध करवा दिया है, और सभी को उसमें आने का खुला
निमंत्रण दे रखा है। अब केवल मनुष्य को परमेश्वर के इस प्रयोजन पर विश्वास करके,
उसे स्वीकार करना है। इस संदर्भ में एक बार फिर बाइबल में रोमियों
की पत्री से कुछ पद देखिए:
- रोमियों
5:15 पर
जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं,
क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लोगों पर अवश्य ही
अधिकाई से हुआ।
- रोमियों
5:17 क्योंकि
जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया,
तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे
एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही
अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।
- रोमियों
5:18 इसलिये
जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी
ठहराए जाने का कारण हुआ।
- रोमियों
5:19 क्योंकि
जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।
तो सभी मनुष्यों के लिए, समस्त मानव जाति के
लिए, सुसमाचार, या भला समाचार, यानि कि अच्छी खबर यह है कि किसी को भी उसकी पाप की दशा में बने रहने और पाप के उस दण्ड
को भुगतने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमेश्वर ने इससे छुटकारे का मार्ग बनाकर, उस मार्ग को सभी के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध करवा दिया है। अब निर्णय
प्रत्येक व्यक्ति को लेना है कि वो परमेश्वर के इस प्रयोजन को स्वीकार करेगा या
अस्वीकार; परमेश्वर द्वारा धर्मी और पाप के दोष से मुक्त
बनाया जाएगा, या फिर इसके लिए अपने ही व्यर्थ और निष्फल
प्रयासों में पड़ा रहेगा, और अनन्तकाल की मृत्यु में चला
जाएगा। परमेश्वर किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता है। वह हर एक को उसकी स्वेच्छा पर
छोड़ देता है; वह उसे उसके जीवन भर याद दिलाता रहता है,
पुकारता रहता है, समझाता रहता है कि जैसे भी
हो, जिस भी दशा में हो, तुमने कुछ भी
क्यों न किया हो, अपने व्यर्थ और निष्फल प्रयासों को छोड़कर
तैयार किए गए आशीषित मार्ग पर आ जाओ, क्योंकि शरीर से निकल
जाने के बाद फिर निर्णय कभी बदला नहीं जा सकेगा, इसलिए अभी
सही निर्णय कर लो। किन्तु जो परमेश्वर की इस पुकार को अस्वीकार कर देते हैं,
उसके मार्ग का तिरस्कार कर देते हैं, परमेश्वर
उनके इस निर्णय, उनकी इस स्वेच्छा का आदर करता है, और उन्हें उनके द्वारा निर्णय लिए हुए स्थान पर भेज देता है। जिन्होंने
अपने शारीरिक जीवन में पश्चाताप के साथ परमेश्वर के साथ हो जाने का निर्णय लिया है,
वे उसके साथ स्वर्ग में रहने के लिए ले जाए जाएंगे; और जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी, अवसर मिलने पर भी
परमेश्वर से दूर रहने का निर्णय लिया, वो हमेशा के लिए उससे
दूर नरक में डाले जाएंगे।
संक्षेप में, यही सुसमाचार है,
कि परमेश्वर का राज्य निकट है; आज, अभी समय और अवसर रहते अपने लिए सही निर्णय कर लो, और
अपने कैसे भी कर्मों या धर्म-कर्म आदि के द्वारा नहीं वरन सच्चे और समर्पित मन से
किए गए पापों से पश्चाताप तथा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा अपने
अनन्त काल को सुरक्षित एवं आशीषित कर लो। इस सुसमाचार की योजना के बारे में हम
अगले लेख में देखेंगे। किन्तु यहाँ पर बहुत ध्यान से इस बात को देख और समझ लीजिए -
सुसमाचार का केंद्र-बिन्दु और उसका मर्म है “अपने कैसे भी
कर्मों या धर्म-कर्म आदि के द्वारा नहीं वरन सच्चे और समर्पित मन से किए गए पापों
से पश्चाताप तथा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा”; यदि यह नहीं है, तो सुसमाचार कार्यकारी, प्रभावी, परमेश्वर की ओर से दिया गया नहीं है।
इसीलिए शैतान सुसमाचार के इसी केंद्र-बिन्दु, इसी मर्म पर
विभिन्न प्रकार से हमला करता है, उसमें तरह-तरह की बातें मिला
कर उसे भ्रष्ट करता है, उस पर ध्यान लगाने की बजाए इधर-उधर
की बातों में भटकाता है, जिससे व्यक्ति सुसमाचार की सिधाई और
सच्चाई से हट कर और ही बातों में पड़ जाए, और
उद्धार पाने से रह जाए। उसकी इन्हीं युक्तियों को हम आगे के लेखों में देखेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना
और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत
शिक्षाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण
तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं।
न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए।
लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई
बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से
मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- गिनती
34-36
- मरकुस 9:30-50
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