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सोमवार, 29 मई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न - 22c - Bible & Other Ancient Religious Writings / बाइबल और अन्य प्राचीन धार्मिक लेख - (3)

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अन्य प्राचीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के धार्मिक लेखों की तुलना में बाइबल - भाग - 3

पृथ्वी पर के मनुष्य के जीवन का अंत होने के साथ ही, उनके अनंतकाल से संबंधित उनके द्वारा पृथ्वी के जीवन काल में लिए गए निर्णय लागू हो जाते हैं और अब वे अपरिवर्तनीय हैं। जिन्होंने प्रभु यीशु को और उनके द्वारा दिए जा रहे पापों की क्षमा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया हैऔर उसके अनुसार अपने पापों से पश्चाताप कर लिया हैउससे अपने पापों की क्षमा मांग ली हैअपने जीवन उसे समर्पित कर दिए हैंऔर उसकी तथा उसके वचन – बाइबल की आज्ञाकारिता में जीने का निर्णय ले लिया है, “तब सुनने वालों के हृदय छिद गएऔर वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगेकि हे भाइयोंहम क्या करेंपतरस ने उन से कहामन फिराओऔर तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेतो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुमऔर तुम्हारी सन्‍तानोंऔर उन सब दूर दूर के लोगों के लिये भी है जिन को प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा। उसने बहुत और बातों में भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ। सो जिन्हों ने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लियाऔर उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए। और वे प्रेरितों से शिक्षा पानेऔर संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे (प्रेरितों 2:37-42), वेपरमेश्वर की संतान होने के नाते से “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण कियाउसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दियाअर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू सेन शरीर की इच्छा सेन मनुष्य की इच्छा सेपरन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं (यूहन्ना 1:12-13), अपने पिता के पास उसके निवास-स्थान – स्वर्ग में रहने के लिए जाएंगे (कृपया रोमियों अध्याय 5 पढ़िए)। जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह को और उसके साथ अनन्त जीवन स्वर्ग में व्यतीत करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया हैपृथ्वी पर उनके द्वारा किए गए उनके इस निर्णय के अनुसारउन्हें फिर अनंतकाल के लिएपरमेश्वर की उपस्थिति से बाहर नरक भेज दिया जाएगा – जो कि शैतान और उसके दूतों का स्थान है: “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगाहे श्रापित लोगोमेरे साम्हने से उस अनन्त आग में चले जाओजो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है” (मत्ती 25:41  आयतें 31 से 46 देखिए)

इस तथ्य से कदापि मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि, जैसा उस का दावा है, केवल बाइबल ही एक मात्र परमेश्वर का वचन है जिसके इस दावे की पुष्टि के लिए संसार के प्राचीन लेखों से, जिनमें गैर-मसीही लेख तथा वर्णन भी हैं, ऐतिहासिक प्रमाणों, और पुरातत्व विज्ञान से भी अटल और अकाट्य प्रमाण विद्यमान हैं। स्वयं बाइबल भी अपने विषय यही कहती है:
2 शमूएल 23:1-2 दाऊद के अन्तिम वचन ये हैं: यिशै के पुत्र की यह वाणी हैउस पुरुष की वाणी है जो ऊंचे पर खड़ा किया गयाऔर याकूब के परमेश्वर का अभिषिक्तऔर इस्राएल का मधुर भजन गाने वाला है: यहोवा का आत्मा मुझ में हो कर बोलाऔर उसी का वचन मेरे मुंह में आया।
2 तीमुथियुस 3:15-17 और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ हैजो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है। हर एक पवित्रशास्‍त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेशऔर समझानेऔर सुधारनेऔर धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बनेऔर हर एक भले काम के लिये तत्‍पर हो जाए।
पतरस 1:21 क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जा कर परमेश्वर की ओर से बोलते थे

केवल बाइबल ही वह एकमात्र पूर्णतः दोषरहितअचूक एवं अटलअनन्तकालीनअपरिवर्तनीयपरमसिद्धपरमेश्वर का वचन है, “तेरा सारा वचन सत्य ही हैऔर तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है” (भजन 119:160) जो सदा काल के लिए स्वर्ग में स्थापित है, “हे यहोवातेरा वचनआकाश में सदा तक स्थिर रहता है” (भजन 119:89) – इसलिए वह किसी के भी द्वारा कभी भी न तो बदला जा सकता है और न ही कभी नष्ट किया जा सकता हैकिसी भी प्रकार से नहींकोई चाहे कुछ भी कहता रहे या कैसे भी दावे करता रहे। बाइबल प्रभु यीशु का लिखित प्रगटीकरण हैजो कि बाइबल की विषय-वस्तु और अंतर्वस्तु हैं, और इसीलिए बाइबल को ‘जीवित वचन’ भी कहा जाता है: “आदि में वचन थाऔर वचन परमेश्वर के साथ थाऔर वचन परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ हैउस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई। उस में जीवन थाऔर वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी” (यूहन्ना 1:1-4)। केवल प्रभु यीशु ही एक मात्र हैं जो परमेश्वर होते हुए भी, अपने आप को शून्य करके मानव जाति के उद्धार के लिए संसार में देहधारी हो कर आए, और एक सामान्य मनुष्य के समान जीवन बिताया तथा दुःख उठाएवरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दियाऔर दास का स्‍वरूप धारण कियाऔर मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन कियाऔर यहां तक आज्ञाकारी रहाकि मृत्युहांक्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:7-8); परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण कियाउसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दियाअर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लोहू सेन शरीर की इच्छा सेन मनुष्य की इच्छा सेपरन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। और वचन देहधारी हुआऔर अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा कियाऔर हम ने उस की ऐसी महिमा देखीजैसी पिता के एकलौते की महिमा” (यूहन्ना 1:12-14); “सो जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक हैजो स्‍वर्गों से हो कर गया हैअर्थात परमेश्वर का पुत्र यीशुतो आओहम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामें रहे। क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहींजो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सकेवरन वह सब बातों में हमारी समान परखा तो गयातौभी निष्‍पाप निकला। इसलिये आओहम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्‍धकर चलेंकि हम पर दया होऔर वह अनुग्रह पाएंजो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे” (इब्रानियों 4: 14-16)। क्योंकि परमेश्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता हैउसे कभी भी किसी भी प्रकार से बदला, या झूठा अथवा कपटी, या नष्ट नहीं किया जा सकता है इसी लिए उसके लिखित प्रगटीकरण बाइबल को भी कभी भी, किसी के भी द्वाराबदला, या झूठा अथवा दोगला, या नष्ट नहीं किया जा सकता है।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- क्रमशः
अगला लेख: बाइबल, अन्य लेखों की तुलना में 

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The Bible, in Comparison to the Religious Writings of Other Ancient Civilizations & Cultures - Part - 3

Once men's life on earth comes to an end, their individual decisions for their eternity immediately come in to effect and they now are irrevocable. Those who have accepted the Lord Jesus and His offer of forgiveness of sins, and accordingly have repented of their sins, having asked forgiveness of their sins from Him, have submitted their lives to Him, to live in obedience to Him and His Word – the Bible Now when they heard this, they were cut to the heart, and said to Peter and the rest of the apostles, "Men and brethren, what shall we do?" Then Peter said to them, "Repent, and let every one of you be baptized in the name of Jesus Christ for the remission of sins; and you shall receive the gift of the Holy Spirit. For the promise is to you and to your children, and to all who are afar off, as many as the Lord our God will call." And with many other words he testified and exhorted them, saying, "Be saved from this perverse generation." Then those who gladly received his word were baptized; and that day about three thousand souls were added to them. And they continued steadfastly in the apostles' doctrine and fellowship, in the breaking of bread, and in prayers” (Acts 2:37-42), they will, as the children of God But as many as received Him, to them He gave the right to become children of God, to those who believe in His name: who were born, not of blood, nor of the will of the flesh, nor of the will of man, but of God” (John 1:12-13), go to be with their Father God in His abode – Heaven (please read Romans chpt. 5). Those who have rejected the Lord Jesus Christ and His offer of eternal life with Him in heaven, will, as per their choice and decision made on earth, be sent away for all eternity, from the presence of God into hell – the place of the devil and his angels: “Then He will also say to those on the left hand, 'Depart from Me, you cursed, into the everlasting fire prepared for the devil and his angels” (Matthew 25:41 – see verses 31 to 46).

There is no escaping the fact that, as it claims to be, The Bible is the one and only Word of God, that has irrefutable ancient textual, even from non-Christian texts and records, historical accounts and archeological proofs to back its claims. The Bible too states this for itself:
2 Samuel 23:1-2 Now these are the last words of David. Thus says David the son of Jesse; Thus says the man raised up on high, The anointed of the God of Jacob, And the sweet psalmist of Israel: "The Spirit of the Lord spoke by me, And His word was on my tongue.
2 Timothy 3:15-17 and that from childhood you have known the Holy Scriptures, which are able to make you wise for salvation through faith which is in Christ Jesus. All Scripture is given by inspiration of God, and is profitable for doctrine, for reproof, for correction, for instruction in righteousness, that the man of God may be complete, thoroughly equipped for every good work.
2 Peter 1:21 for prophecy never came by the will of man, but holy men of God spoke as they were moved by the Holy Spirit.

The Bible is the one and only inerrant, infallible, eternal, irrevocable, absolute, Word of God, “The entirety of Your word is truth, And every one of Your righteous judgments endures forever” (Psalms 119:160) that is settled in heaven for all times, “Forever, O Lord, Your word is settled in heaven” (Psalms 119:89) – therefore it can never ever be altered or destroyed by any one, through any means, no matter what any one might say or claim. The Bible is the written revelation of the Lord Jesus Christ, who is the theme and content of the Bible and therefore the Bible is also known as the ‘Living Word’: “In the beginning was the Word, and the Word was with God, and the Word was God. He was in the beginning with God. All things were made through Him, and without Him nothing was made that was made. In Him was life, and the life was the light of men” (John 1:1-4). Lord Jesus is the one and only God who made Himself of no reputation and came to earth in the flesh, lived and suffered as any other common man of earth, all for the salvation of the whole of mankind: but made Himself of no reputation, taking the form of a bondservant, and coming in the likeness of men. And being found in appearance as a man, He humbled Himself and became obedient to the point of death, even the death of the cross” (Philippians 2:7-8); But as many as received Him, to them He gave the right to become children of God, to those who believe in His name: who were born, not of blood, nor of the will of the flesh, nor of the will of man, but of God. And the Word became flesh and dwelt among us, and we beheld His glory, the glory as of the only begotten of the Father, full of grace and truth.” (John 1:12-14); “Seeing then that we have a great High Priest who has passed through the heavens, Jesus the Son of God, let us hold fast our confession. For we do not have a High Priest who cannot sympathize with our weaknesses, but was in all points tempted as we are, yet without sin. Let us therefore come boldly to the throne of grace, that we may obtain mercy and find grace to help in time of need” (Hebrews 4: 14-16). Since God can never change, never in any way be altered by any onenor be falsified or made a liarnor be destroyed, therefore neither can His written revelation the Bible ever be changed, be altered, falsified or made hypocritical, or be destroyed by anyone.

If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued
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