ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें : rozkiroti@gmail.com / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

मुफ्त भोजन


   कॉलेज के छात्रों के पास पैसे की कमी अकसर होती है, इसलिए वे पैसा बचाने के प्रत्येक अवसर का भरपूरी से उपयोग करते हैं; तभी यदि किसी सभा में मुफ्त भोजन विज्ञापित किया गया हो तो छात्र वहाँ अवश्य आ जाते हैं। यदि किसी कम्पनी को नए कर्मचारी नियुक्त करने होते हैं तो वह कॉलेज में आयोजित अपनी कंपनी तथा वहाँ उपलब्ध नियुक्तियों की जानकारी देने वाली सभा के अन्त में मुफ्त पीट्ज़ा का प्रचार अवश्य करती है, जिससे छात्र सभा में उपस्थित रहने के लिए आकर्षित हों। कुछ छात्र तो इस मुफ्त मिलने वाले पीट्ज़ा के कारण एक के बाद एक, अनेक ऐसी सभाओं मे पहुँच जाते हैं; उनके लिए वर्तमान में मिलने वाला मुफ्त भोजन भविष्य के लिए उपयोगी नौकरी से अधिक महत्वपूर्ण होता है।

   प्रभु यीशु ने 5000 से अधिक की भीड़ को चम्तकारी रीति से भोजन खिलाया, और उसके अगले दिन बहुत से लोग प्रभु यीशु को ढूंढने निकल पड़े (यूहन्ना 6:10-11, 24-25)। प्रभु उनकी मनशा जानता था और उसने उनसे स्पष्ट कहा: "यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, तुम मुझे इसलिये नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिये कि तुम रोटियां खाकर तृप्‍त हुए" (यूहन्ना 6:26)। उन लोगों के लिए प्रभु यीशु से मिलने वाली पापों की क्षमा, उद्धार और अनन्त आशीष के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण था वह मुफ्त का भोजन जिसकी लालसा वे प्रभु यीशु से रखते थे। प्रभु यीशु ने उनसे कहा कि, "...जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा" (यूहन्ना 6:35)। कुछ ने तो उसपर इस बात के लिए विश्वास किया परन्तु बहुतेरों ने नहीं किया और उससे विवाद करने लगे, फिर अन्ततः उसे छोड़ कर चले गए (पद 66), क्योंकि वे प्रभु यीशु से मुफ्त भोजन तो चाहते थे परन्तु प्रभु को नहीं चाहते थे और ना ही उसके अनुयायी होना चाहते थे।

   प्रभु यीशु आज भी संसार के सभी लोगों को अपने पास बुला रहा है, नाशमान मुफ्त भोजन देने के लिए नहीं वरन प्रभु यीशु में मिलने वाली पापों की क्षमा से प्राप्त होने वाला अनन्त काल की स्वर्गीय आशीष से परिपूर्ण उद्धार पाया हुआ जीवन। आप प्रभु यीशु से क्या चाहते हैं - नाशमान पार्थिव आवश्यकताओं की पूर्ति या अनन्त अविनाशी आशीषें और बेबयान शान्ति? - ऐनी सेटास


केवल जीवन की रोटी प्रभु यीशु ही आत्मा की भूख को मिटा सकता है।

नाशमान भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है। - यूहन्ना 6:27 

बाइबल पाठ: यूहन्ना 6:26-41
John 6:26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, तुम मुझे इसलिये नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिये कि तुम रोटियां खाकर तृप्‍त हुए। 
John 6:27 नाशमान भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है। 
John 6:28 उन्होंने उस से कहा, परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें? 
John 6:29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो। 
John 6:30 तब उन्होंने उस से कहा, फिर तू कौन का चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरी प्रतीति करें, तू कौन सा काम दिखाता है? 
John 6:31 हमारे बाप दादों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है; कि उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी। 
John 6:32 यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है। 
John 6:33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है। 
John 6:34 तब उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर। 
John 6:35 यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। 
John 6:36 परन्तु मैं ने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तोभी विश्वास नहीं करते। 
John 6:37 जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, उसे मैं कभी न निकालूंगा। 
John 6:38 क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूं।
John 6:39 और मेरे भेजने वाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उस में से मैं कुछ न खोऊं परन्तु उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊं। 
John 6:40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा। 
John 6:41 सो यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिये कि उसने कहा था; कि जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूं।

एक साल में बाइबल: 
  • होशे 12-14 
  • प्रकाशितवाक्य 4


गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

प्रत्यक्ष परिवर्तन


   हाल ही एक हवाई यात्रा के दौरान एक विमान परिचारक ने मुझ से पूछा कि क्या मैं अकसर हवाई यात्रा करता हूँ; और मैंने उत्तर दिया हाँ। तब उसने फिर मुझ से पूछा, क्या आपने पिछले कुछ महीनों में ध्यान किया है कि हवाई यात्रा करने वाले कुछ अधिक आक्रमक और ज़बर्दस्ती करने वाले होते जा रहे हैं? मैंने थोड़ा सा विचार कर के उस से इस बात में सहमति जताई, और हम उन बातों के बारे में बात करने लगे जिन के कारण लोग ऐसा करने लगे हैं - जैसे कि हवाई अड्डों पर बढ़ी हुई सुरक्षा और उससे होने वाली परेशानी, हवाई यात्रा का महंगा और यात्रा में मिलने वाली सुविधाओं का कम होते चले जाना, यात्रा करने में सामान्यता होने वाली असंतुष्टता आदि। हम यह बातें कर ही रहे थे कि, मानो हमारे वार्तालाप की सच्चाई को प्रमाणित करने के लिए, एक यात्री ने बहस आरंभ कर दी क्योंकि वह अपनी निर्धारित सीट पर नहीं वरन किसी दूसरे की सीट पर बैठना चाहता था क्योंकि वह दूसरी सीट उसे अधिक अच्छी लग रही थी।

   जब कभी हमारा सामना क्रोध और आवेश में उत्तेजित किसी जन से होता है तो हम मसीही विश्वासियों के पास अवसर होता है कि हम, अपने प्रभु के समान, शांति लाने वाले बन सकें। प्रेरित पौलुस ने रोम की मसीही मण्डली को लिखी अपनी पत्री में उन्हें लिखा: "जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो" (रोमियों 12:18)। इस का क्या अर्थ है? इसका एक अर्थ तो यह हो सकता है कि जो कुछ हम नियंत्रित कर सकते हैं उसे नियंत्रित कर के रखें। हम दूसरों के व्यवहार को निर्धारित नहीं कर सकते, लेकिन अपने प्रत्युत्तर को अवश्य निर्धारित कर सकते हैं।

   जब कभी हम क्रोधपूर्ण और आक्रमक व्यवहार अपने आस-पास प्रदर्शित होते हुए देखते हैं, तो उसके प्रति अनुग्रह और शान्ति के व्यवहार द्वारा अपने तथा समस्त संसार के उद्धारकर्ता तथा शान्ति के राजकुमार प्रभु यीशु के चरित्र एवं व्यवहार को अपने जीवन से प्रदर्शित कर सकते हैं। यही वे अवसर होते हैं जब पाप के प्रभाव के कारण आक्रोश और असंतोष से भरा यह संसार उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के बारे में व्यावाहरिक रीति से जान सकता है और प्रभु से प्राप्त होने वाले उद्धार द्वारा जीवन में आए परिवर्तन को प्रत्यक्ष देख सकता है। - बिल क्राउडर


आज संसार को वह शान्ति चाहिए जो प्रत्येक गलतफहमी के दुष्प्रभाव पर जयवन्त है।

सब से मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिस के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा। - इब्रानियों 12:14

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 4:4-9
Philippians 4:4 प्रभु में सदा आनन्‍दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्‍दित रहो। 
Philippians 4:5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। 
Philippians 4:6 किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। 
Philippians 4:7 तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।
Philippians 4:8 निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्‍हीं पर ध्यान लगाया करो। 
Philippians 4:9 जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्‍हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्‍ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • होशे 9-11 
  • प्रकाशितवाक्य 3


बुधवार, 11 दिसंबर 2013

अर्थपूर्ण


   एक लोकप्रीय वाक्य है जिसे मैं अकसर टी-शर्ट्स पर छपा हुआ तथा कला एवं सजावट की वस्तुओं पर लिखा हुआ देखती हूँ; वह वाक्य है: "हमारे जीवन का मूल्याँकन हमारी साँसों की गिनती से नहीं वरन उन बातों से है जो हमें विस्मय से साँस रोक लेने पर बाध्य कर देती हैं।" यह वाक्य आकर्षक तो है लेकिन मेरा मानना है कि यह सत्य नहीं है।

   यदि हम जीवन का मूल्याँकन केवल उन ही बातों के आधार पर करेंगे जो हमारे लिए विस्मयकारी हैं तो फिर हम सामान्य और साधारण पलों के महत्व को खो देंगे। सामान्य बातें जैसे खाना, सोना, साँस लेना आदि ऐसी हैं जिन्हें हम बिना विचार किए लगातार करते रहते हैं; लेकिन वे "सामान्य" या महत्वहीन नहीं है। हमारा हर साँस लेना, भोजन का प्रत्येक कौर लेना आदि सब बहुत विशेष और अद्भुत कार्य हैं - यह हमें तब समझ आता है जब हम या तो इनकी बारीकियों का अध्ययन करें या फिर तब, जब किसी कारणवश अचानक ही इनमें से कोई बाधित होने लगे अथवा रुक जाए। वास्त्व में प्रत्येक साँस लेना, विस्मय में आकर साँस रोक लेने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

   राजा सुलेमान के पास विस्मय करने के बहुत ढेर अवसर रहे होंगे, क्योंकि उसने अपने लिए लिखा: "और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला" (सभोपदेशक 2:10)। लेकिन अन्ततः उसका निष्कर्ष इन सब के बारे में था कि "...सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है" (सभोपदेशक 2:17)।

   सुलेमान का अनुभव हमें स्मरण दिलाता है कि "सामान्य" बातों में आनन्द ढूंढना और आनन्दित होना महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे वास्तव में अद्भुत होती हैं। बड़ा सदा ही बेहतर नहीं होता; अधिक हमेशा उन्नत नहीं होता और हमारा व्यस्त रहना हमें अधिक महत्वपूर्ण नहीं बना देता। बजाए विस्मयकारी क्षणों को ढूंढने में समय बिताने के, हमें हर क्षण और हर साँस को परमेश्वर से मिले उपहार के रूप में स्वीकार करके उसका परमेश्वर की महिमा और आदर के लिए भरपूर उपयोग करना चाहिए, उसे अर्थपूर्ण बना लेना चाहिए; और यह हमारे जीवन को भी अर्थपूर्ण कर देगा। - जूली ऐकैरमैन लिंक


प्रत्येक साँस का सुचारू रीति से लेना विस्मय में साँस रोक लेने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्‍तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्‍वामी हो कर हाथ के बनाए हुए मन्‍दिरों में नहीं रहता। न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्‍वास और सब कुछ देता है। - प्रेरितों 17:24-25

बाइबल पाठ: सभोपदेशक 1:1-18
Ecclesiastes 1:1 यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपदेशक के वचन। 
Ecclesiastes 1:2 उपदेशक का यह वचन है, कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है। 
Ecclesiastes 1:3 उस सब परिश्रम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है? 
Ecclesiastes 1:4 एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है। 
Ecclesiastes 1:5 सूर्य उदय हो कर अस्त भी होता है, और अपने उदय की दिशा को वेग से चला जाता है। 
Ecclesiastes 1:6 वायु दक्खिन की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपने चक्करों में लौट आती है। 
Ecclesiastes 1:7 सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं; उधर ही को वे फिर जाती हैं। 
Ecclesiastes 1:8 सब बातें परिश्रम से भरी हैं; मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकता; न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं। 
Ecclesiastes 1:9 जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है। 
Ecclesiastes 1:10 क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में लोग कह सकें कि देख यह नई है? यह तो प्राचीन युगों में वर्तमान थी। 
Ecclesiastes 1:11 प्राचीन बातों का कुछ स्मरण नहीं रहा, और होने वाली बातों का भी स्मरण उनके बाद होने वालों को न रहेगा।
Ecclesiastes 1:12 मैं उपदेशक यरूशलेम में इस्राएल का राजा था। 
Ecclesiastes 1:13 और मैं ने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूं; यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगें। 
Ecclesiastes 1:14 मैं ने उन सब कामों को देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं; देखो वे सब व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है। 
Ecclesiastes 1:15 जो टेढ़ा है, वह सीधा नहीं हो सकता, और जितनी वस्तुओं में घटी है, वे गिनी नहीं जातीं।
Ecclesiastes 1:16 मैं ने मन में कहा, देख, जितने यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, उन सभों से मैं ने बहुत अधिक बुद्धि प्राप्त की है; और मुझ को बहुत बुद्धि और ज्ञान मिल गया है। 
Ecclesiastes 1:17 और मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि का भेद लूं और बावलेपन और मूर्खता को भी जान लूं। मुझे जान पड़ा कि यह भी वायु को पकड़ना है।
Ecclesiastes 1:18 क्योंकि बहुत बुद्धि के साथ बहुत खेद भी होता है, और जो अपना ज्ञान बढ़ाता है वह अपना दु:ख भी बढ़ाता है।

एक साल में बाइबल: 
  • होशे 5-8 
  • प्रकाशितवाक्य 2


मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

जोखिम


   प्रभु यीशु के जन्म के वृतांत में उनके सांसारिक पिता यूसुफ का भी उल्लेख आता है, लेकिन उनके जन्म से संबंधित घटनाओं के पश्चात यूसुफ के बारे फिर बहुत कम ही मिलता है। हम इससे यह निषकर्ष निकाल सकते हैं कि प्रभु यीशु के मानवीय जीवन के संदर्भ में युसुफ कोई महत्वपूर्ण पात्र नहीं था; उसकी आवश्यकता केवल प्रभु यीशु के दाऊद के घराने से होने को प्रमाणित करने के लिए थी। लेकिन यह धारणा रखना सही नहीं है।

   युसुफ की भूमिका प्रभु यीशु के जन्म के वृतांत में सामरिक रीति से बहुत महत्वपूर्ण है। यूसुफ की मंगेतर, मरियम, के गर्भवती होने की बात पता चलने के बाद से ही यूसुफ चिंतित था और मरियम को चुपचाप छोड़ देने पर गंभीरता से विचार कर रहा था। ऐसे में जब परमेश्वर की ओर से भेजे गए स्वर्गदूत ने उससे मरियम को अपने घर ले आने को कहा (मत्ती 1:20), तो यह युसुफ के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला था। यदि यूसुफ स्वर्ग्दूत की बात को मानने से इंकार कर देता, तो मानवीय दृष्टिकोण से, प्रभु यीशु के जन्म का पूरा घटनाक्रम बड़े जोखिम में पड़ जाता। लेकिन मरियम को अपनी पत्नि स्वीकार कर के घरअ ले आना भी जोखिम से बाहर नहीं था। यदि वह यीशु का पिता होना स्वीकार करता तो वह एक झूठ के साथ समझौता करता और यहूदी व्यवस्था को तोड़ने वाला ठहरता; यदि वह पिता होने से इन्कार करता तो समाज से बहुत बदनामी मिलना स्वाभाविक था। आज हम सब को यूसुफ का आभारी और धन्यवादी होना चाहिए कि उसने अपनी बदनामी और अपने विचारों की परवाह किए बैगैर परमेश्वर की योजना का एक भाग बनना स्वीकार किया और परमेश्वर का आज्ञाकारी रहा। परिणामस्वरूप उसे अब अनन्त काल के लिए परमेश्वर के वचन में उसे प्रभु यीशु का सांसारिक पिता होने का आदर प्राप्त है और उसकी इस आज्ञाकारिता कि चर्चा और प्रशंसा सदा होती रहती है।

   संसार के प्रनुख लोगों की तुलना में, संसार के घटनाक्रम में, हम में से अधिकांशतः की भूमिका बहुत छोटी या फिर नगण्य है। लेकिन हम में से प्रत्येक से परमेश्वर अपने प्रति आज्ञाकारी रहने की आशा रखता है। अनेक बार परमेश्वर की यह आज्ञाकारिता हमें बहुत जोखिम भरी या फिर अनावश्यक लग सकती है। लेकिन केवल परमेश्वर ही जानता है उस आज्ञाकारिता में होकर वह हमें किन आशीशों से परिपूर्ण करना चाहता है। परमेश्वर सदा अपने बच्चों के लिए केवल भलाई ही की योजनाएं बनाता है, चाहे वह भलाई अभी दिखाई दे या ना दे; क्या मैं और आप उसकी आज्ञाकारिता में जोखिम उठाने और उन आशीशों को पाने को तैयार हैं? - जो स्टोवैल


परमेश्वर पर भरोसा रखना और उसके आजाकारी रहना कोई छोटी बात नहीं है।

धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है। - याकूब 1:12

बाइबल पाठ: मत्ती 1:18-25
Matthew 1:18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 
Matthew 1:19 सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। 
Matthew 1:20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्‍वप्‍न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्‍नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। 
Matthew 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा। 
Matthew 1:22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो। 
Matthew 1:23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है “ परमेश्वर हमारे साथ”। 
Matthew 1:24 सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्‍नी को अपने यहां ले आया। 
Matthew 1:25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।

एक साल में बाइबल: 
  • होशे 1-4 
  • प्रकाशितवाक्य 1


सोमवार, 9 दिसंबर 2013

क्या चाहिए?


   मुझे बताया गया है कि संसार की लगभग सभी संस्कृतियों में "तीन इच्छाओं" की कहानी मिलती है, और सभी कहानियों की समान सी ही रूपरेखा है: एक निसहाय और आवश्यकता में पड़े व्यक्ति के पास कोई सामर्थी उपकारी जन आता है और उसे तीन इच्छाओं की पूर्ति का वर्दान देता है। इन कहानियों का इतनी बार इतने स्थानों पर मिलना दिखाता है कि सभी संस्कृतियों में यह पहचान है कि मानव जाति को कुछ ऐसा चाहिए जो वह अपनी सामर्थ और प्रतिभा से नहीं प्राप्त कर सकती।

   बाइबल में भी एक "इच्छा-पूर्ति" की कहानी है: "गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग" (1 राजा 3:5)। सुलेमान के पास अवसर था कि वह जो चाहे सो माँग ले, धन-संपत्ति, आदार, ख्याति, सामर्थ इत्यादि। लेकिन सुलेमान ने इनमें से कुछ भी नहीं माँगा; उसने माँगा, "तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके?" (1 राजा 3:9)। राजा सुलेमान युवा था, अनुभवहीन था और एक बहुत बड़े राज्य पर परमेश्वर की ओर से राजा बना था, उसे परमेश्वर की सामर्थ और सदबुद्धि की आवश्यकता थी जिससे वह परमेश्वर की प्रजा पर परमेश्वर की ओर से और परमेश्वर की इच्छानुसार राज्य कर सके, उनकी देख-भाल कर सके। परमेश्वर उस की इस माँग से प्रसन्न हुआ और बुद्धिमता के साथ साथ वह सब भी उसे प्रदान कर दिया जो सुलेमान ने नहीं माँगा था।

   आज यदि परमेश्वर द्वारा यही प्रश्न - "क्या चाहिए?" मुझ से किया जाए तो क्या मैं सुलेमान के समान बुद्धिमता दिखाने पाऊँगा? मैं परमेश्वर से क्या माँगूंगा? क्या मैं सांसारिक धन-संपत्ति, स्वास्थ्य, लंबी उम्र, संसार में आदर और ख्याति माँगूंगा या फिर बुद्धिमानी, पवित्रता और निस्वार्थ प्रेम माँगूंगा? अपने माँगने में मैं बुद्धिमान होता या मूर्ख?

   आज परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह में होकर हमारी प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति का वायदा किया है (फिलिप्पियों 4:19); जो कोई परमेश्वर से प्रभु यीशु में मिलने वाली पापों की क्षमा और उद्धार माँग लेता है, उसे प्रभु यीशु में होकर स्वर्ग के खज़ाने और पृथ्वी की सभी आवश्यक्ताओं की पूर्ति का आश्वासन भी साथ ही मिल जाता है। आपको क्या चाहिए - नाशमान संसार की नाशमान तथा अल्पकालीन उपल्ब्धियाँ या प्रभु यीशु में मिलने वाली अनन्त काल की महिमा तथा समझ और बयान से बाहर स्वर्गीय खज़ाने? - डेविड रोपर


परमेश्वर नम्रता तथा बुद्धिमानी से माँगने वालों की इच्छाओं को पूरा करता है।

और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा। - फिलिप्पियों 4:19

बाइबल पाठ: 1 राजा 3:1-14
1 Kings 3:1 फिर राजा सुलैमान मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया, और उसको दाऊदपुर में लाकर जब तक अपना भवन और यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारों ओर की शहरपनाह न बनवा चुका, तब तक उसको वहीं रखा। 
1 Kings 3:2 क्योंकि प्रजा के लोग तो ऊंचे स्थानों पर बलि चढ़ाते थे और उन दिनों तक यहोवा के नाम का कोई भवन नहीं बना था। 
1 Kings 3:3 सुलैमान यहोवा से प्रेम रखता था और अपने पिता दाऊद की विधियों पर चलता तो रहा, परन्तु वह ऊंचे स्थानों पर भी बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता था। 
1 Kings 3:4 और राजा गिबोन को बलि चढ़ाने गया, क्योंकि मुख्य ऊंचा स्थान वही था, तब वहां की वेदी पर सुलैमान ने एक हज़ार होमबलि चढ़ाए। 
1 Kings 3:5 गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। 
1 Kings 3:6 सुलैमान ने कहा, तू अपने दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा, क्योंकि वह अपने को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साथ सच्चाई और धर्म और मन की सीधाई से चलता रहा; और तू ने यहां तक उस पर करुणा की थी कि उसे उसकी गद्दी पर बिराजने वाला एक पुत्र दिया है, जैसा कि आज वर्तमान है। 
1 Kings 3:7 और अब हे मेरे परमेश्वर यहोवा! तूने अपने दास को मेरे पिता दाऊद के स्थान पर राजा किया है, परन्तु मैं छोटा लड़का सा हूँ जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता। 
1 Kings 3:8 फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगों के मध्य में है, जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती। 
1 Kings 3:9 तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 
1 Kings 3:10 इस बात से प्रभु प्रसन्न हुआ, कि सुलैमान ने ऐसा वरदान मांगा है। 
1 Kings 3:11 तब परमेश्वर ने उस से कहा, इसलिये कि तू ने यह वरदान मांगा है, और न तो दीर्घायु और न धन और न अपने शत्रुओं का नाश मांगा है, परन्तु समझने के विवेक का वरदान मांगा है इसलिये सुन, 
1 Kings 3:12 मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ, यहां तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहिले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा। 
1 Kings 3:13 फिर जो तू ने नहीं मांगा, अर्थात धन और महिमा, वह भी मैं तुझे यहां तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा। 
1 Kings 3:14 फिर यदि तू अपने पिता दाऊद की नाईं मेरे मार्गों में चलता हुआ, मेरी विधियों और आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊंगा।

एक साल में बाइबल: 
  • दानिय्येल 11-12 
  • यहूदा


रविवार, 8 दिसंबर 2013

रेखाचित्र


   प्रसिद्ध लेखक सी. एस. लुइस द्वारा लिखित एक पुस्तक, The Weight of Glory में एक महिला की कहानी है जिसे किसी अपराध के लिए एक कालकोठरी में डाला गया और अपने इस कालकोठरी के प्रवास के समय उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका वह पुत्र भी उसके साथ ही कालकोठरी में ही रहते हुए बड़ा हुआ। क्योंकि उस कोठरी के बाहर का कोई दृश्य उन्हें नहीं दिखता था इसलिए बाहर की दुनिया के बारे में वह बालक कुछ नहीं जानता था। बाहर की दुनिया की बातों की जानकारी देने के लिए उसकी माँ पेंसिल से कुछ रेखाचित्र बना बना कर उसे उनके बारे में समझाने लगी। कारावास की सज़ा का समय पूरा करके जब माँ और बेटे के कालकोठरी से निकल कर बाहर की दुनिया में जाने का समय आया तब ही वह बालक वास्तविक दुनिया को देख सका, लेकिन माँ के बनाए रेखाचित्रों ने उसे उस वास्तविक दुनिया की बातों और वस्तुओं को समझने में बहुत सहायता करी।

   कुछ इसी प्रकार पाप के अन्धकार में पड़े और पाप के प्रभाव से बिगड़े हुए संसार में परमेश्वर का वचन बाइबल हमें परमेश्वर के सिद्ध स्थान, स्वर्ग का चित्रण करके बताती है। जब हम मसीही विश्वासी इस संसार के अपने समय को पूरा कर के अपने परमेश्वर पिता के पास स्वर्ग में जाएंगे तब ही उसकी वास्तविक सुन्दरता को देख और जान सकेंगे, लेकिन उस स्थान का एक सीमित रेखाचित्र आज हमारे सामने बाइबल द्वारा दिखाया जाता है। प्रेरित पौलुस ने भी इस बात को समझा, और वह इस संदर्भ में लिखता है: "अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं" (1 कुरिन्थियों 13:12)। इस "धुंधले" और "अधूरे" से रेखाचित्र में भी पौलुस ने वह अद्भुत सुन्दरता और विलक्षण सामर्थ देखी कि उस आती महिमा को पाने के लिए वह संसार से मिलने वाला हर सताव और क्लेष सहने को तैयार हो गया; वह लिखता है: "क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्लेष उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं" (रोमियों 8:18)।

   स्वर्ग की महिमा, विलक्षणता और वर्णन से बाहर सुन्दरता के बारे में हमारे वर्तमान विचार वहां के बारे में बने किसी रेखाचित्र के समान ही हैं। हमारा और जगत का उद्धारकर्ता प्रभु यीशु हमारे लिए वहाँ स्थान तैयार कर रहा है (यूहन्ना 14:1-3) और वह समय आने वाला है जब वह अपने लोगों को उस तैयार स्थान में ले जाएगा; ज़रा विचार कीजिए, जब पाप के कारण बिगड़ी यह सृष्टि इतनी सुन्दर और अद्भुत हो सकती है, तो वह सिद्ध स्वर्ग कैसा अद्भुत और सुन्दर होगा! हम मसीही विश्वासियों के पास यह अडिग और अटल आशा है कि हमारा सर्वोत्तम तो अभी आना शेष है। - डेनिस फिशर


अभी हम अपने प्रभु को बाइबल में देखते हैं; वह समय आता है जब प्रत्यक्ष देखेंगे।

तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो। - यूहन्ना 14:1-3

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 13:8-12
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। 
1 Corinthians 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी। 
1 Corinthians 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।

एक साल में बाइबल: 
  • दानिय्येल 8-10 
  • 3 यूहन्ना


शनिवार, 7 दिसंबर 2013

यादगार


   जब भी अमेरीकी नौसेना की बन्दरगाह पर्ल हार्बर में कोई नौसेना पोत आता है या वहां से विदा होता है तो उस पोत के सभी नाविक वर्दी पहने हुए पोत के किनारे कतार में खड़े होकर सलामी देते हैं। उनकी यह सलामी उन सैनिकों, नाविकों और नागरिकों को होती है जिन्होंने दिसंबर 7, 1944 को पर्ल हार्बर पर हुए जापानी हमले में अपनी जान गंवाई थी और जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका की दूसरे विश्वयुद्ध में प्रविष्ठी हुई थी। यह एक बहुत भावोतेजक दृश्य होता है और अनेक नाविकों ने इसे अपने जीवन के सबसे यादगार सैनिक अनुभवों में से एक कहा है।

   तट पर खड़े दर्शकों के लिए भी यह ऐसा ही अनुभव होता है और इस सलामी के समय उन नौसैनिकों और दर्शकों के बीच एक अद्वितीय भावनात्मक संबंध स्थापित हो जाता है, विशेषकर यदि वहां उन बीते दिनों के लोग भी उपस्थित हों। यह वर्तमान नौसैनिकों के कार्य को उत्तमता और बीते समय में बलिदान देने वाले नौसिनिकों के बलिदान को गौरव प्रदान करता है।

   जब प्रभु यीशु ने "प्रभु-भोज" स्थापित किया (मत्ती 26:26-29), तो उसका प्रयोजन भी एक ऐसा ही भावनात्मक संबंध स्थापित करना था, जो उसके महान बलिदान की उत्तमता और गौरव को उसके चेलों के सामने सदा बना कर रखे। हमारा प्रभु भोज में भाग लेना कोई महज रस्मपरस्ति नहीं है वरन प्रभु यीशु के संसार के सभी लोगों के उद्धार के लिए किए गए महान कार्य का आदर तथा उसके गौरव में सहभागी होने और उसके साथ जुड़ जाने का अवसर है।

   जैसे अमेरीकी नौसेना ने पर्ल हार्बर पर होने वाली दिवंगत लोगों के प्रति श्र्द्धांजलि की इस पदद्धिति की विधि को बारीकी से निर्धारित करके रखा है, वैसे ही परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु भोज में सहभागी होने की पदद्धिति को भी सावधानी पूर्वक निर्धारित किया गया है (1 कुरिन्थियों 11:23-32)। प्रभु यीशु के प्रति श्रद्धा, आदर और धन्यवाद का यह समय हम मसीही विश्वासियों के लिए अपने आप को जांचने, अपनी गलतियों को सुधारने तथा प्रभु के साथ अपने संबंध को और गहरा करने का समय है; इसके गौरव को कभी कम ना होने दें। - रैन्डी किल्गोर


प्रभु भोज - मसीह यीशु की यादगार जो उसने अपने प्रत्येक विश्वासी के लिए स्थापित करी है।

...जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष मांग कर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, लो, खाओ; यह मेरी देह है। फिर उसने कटोरा ले कर, धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, तुम सब इस में से पीओ। क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है। - मत्ती 26:26-28

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 11:23-32
1 Corinthians 11:23 क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया रोटी ली। 
1 Corinthians 11:24 और धन्यवाद कर के उसे तोड़ी, और कहा; कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो। 
1 Corinthians 11:25 इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा; यह कटोरा मेरे लोहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो। 
1 Corinthians 11:26 क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो। 
1 Corinthians 11:27 इसलिये जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा। 
1 Corinthians 11:28 इसलिये मनुष्य अपने आप को जांच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए। 
1 Corinthians 11:29 क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्‍ड लाता है। 
1 Corinthians 11:30 इसी कारण तुम में से बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए। 
1 Corinthians 11:31 यदि हम अपने आप में जांचते, तो दण्‍ड न पाते। 
1 Corinthians 11:32 परन्तु प्रभु हमें दण्‍ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिये कि हम संसार के साथ दोषी न ठहरें।

एक साल में बाइबल: 
  • दानिय्येल 5-7 
  • 2 यूहन्ना