सिंगापुर के एके भवन निर्माता ने अपनी नई गगनचुंबी भवन निर्माण योजना का विज्ञापन दिया: "पृथ्वी पर स्वर्ग अनुभव कीजिए।" शायद उसका तातपर्य था कि उसके बनाए नए मकान इतने आलिशान और ऐश्वर्यपूर्ण होंगे कि उनमें रहने वाले अलौकिक आनन्द की अनुभूति करेंगे।
सभोपदेशक का लेखक राजा सुलेमान असीम संपत्ति का मालिक था (सभोपदेशक १:१२)। उसने अपनी संपति और ऐश्वर्य द्वारा पृथ्वी पर स्वर्गीय आनन्द पाने के प्रयास में, जो संभव हुआ वह किया (सभोपदेशक २:१-१०), तौभी उसे संतुष्टि नहीं मिली। अन्ततः वह सांसारिक जीवन की मिथ्या से इतना निराश हुआ कि उसने अपने सारे प्रयसों और अनुभवों को एक ही शब्द में निचोड़ डाला - "व्यर्थ"। सभोपदेशक के दूसरे अध्याय में "व्यर्थ" शब्द का उपयोग उसने आठ बार किया। जब उसने पृथ्वी पर करी अपनी मेहनत और अपने कार्यों का विशेलेषण किया (सभोपदेशक २:११) तो उसने पाया कि उसमें, और किसी अन्य मनुष्य में कोई अन्तर नहीं है। इस एहसास ने कि जो कुछ वह जमा कर रहा है, उसके बाद किसी और को जाएगा, और न उसे पता है और न उसका कोई नियंत्रण है कि वह दूसरा उसके परिश्रम का उपयोग कैसे करेगा, उसके व्यर्थता के एहसास को और बढ़ा दिया। उसका निष्कर्ष यही था कि "मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्र्म करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है।"(सभोपदेशक २:२४)
प्रभु यीशु ने अपने अनुयायियों से सांसारिक वस्तुओं के संबंध में वायदा किया है: " इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं तुम्हें मिल जाएंगी।" (मत्ती ६:३१-३३)
पौलुस ने कहा "पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ।" (कुलुस्सियों ३:२२)
पृथ्वी पर स्वर्ग की खोज में न रहें - यह संभव नहीं है, चाहे जैसा और चाहे जितना प्रयास कर लें। सांसारिक वस्तुओं की अभिलाषा छोड़कर परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करें, उसकी शांति से अपने मन को भर लें; और यथासमय प्रभु आपको स्वर्ग में भी स्थान देगा, जहां वह आपके लिये स्थान तैयार कर रहा है "तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आ कर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।" (यूहन्ना १४:१-३) - सी. पी. हिया
पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। - कुलुस्सियों ३:२२
बाइबल पाठ: सभोपदेशक २:१-२६
मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है।
मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है?
मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को थामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे।
मैं ने बड़े बड़े काम किए, मैं ने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियां लगवाईं;
मैं ने अपने लिये बारियां और बाग लगावा लिए, और उन में भांति भांति के फलदाई वृक्ष लगाए।
मैं ने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिस में पौधे लगाए जाते थे।
मैं ने दास और दासियां मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए, और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में थे उस ने कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मैं स्वामी था।
मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैं ने अपने लिये गवैयों और गाने वालियों को रखा, और बहुत सी कामिनियां भी, जिन से मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं।
इस प्रकार मैं अपने से पहिले के सब यरूशलेम वासियों से अधिक महान और धनाढय हो गया तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही।
और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका, मैं ने अपना मन को किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्र्म के कारण आनन्दित हुआ और मेरे सब परिश्र्म से मुझे यही भाग मिला।
तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्र्म को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं।
फिर मैं ने अपने मन को फेरा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्यों को देखूं, क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है।
तब मैं ने देखा कि उजियाला अंधियारे से जितना उत्तम है, उतना बुद्धि भी मूर्खता से उत्तम है।
जो बुद्धिमान है, उसके सिर में आंखें रहती हैं, परन्तु मूर्ख अंधियारे में चलता है, तौभी मैं ने जान लिया कि दोनों की दशा एक सी होती है।
तब मैं ने मन में कहा, जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्यों अधिक बुद्धिमान हुआ? और मैं ने मन में कहा, यह भी व्यर्थ ही है।
क्योंकि ने तो बुद्धिमान का और न मूर्ख का स्मरण सर्वदा बना रहेगा, परन्तु भविष्य में सब कुछ बिसर जाएगा।
बुद्धिमान क्योंकर मूर्ख के समान मरता है! इसलिये मैं ने अपने जीवन से घृणा की, क्योंकि जो काम संसार में किया जाता है मुझे बुरा मालूम हुआ; क्योंकि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।
मैं ने अपने सारे परिश्र्म के प्रतिफल से जिसे मैं ने धरती पर किया या घृणा की, क्योंकि अवश्य है कि मैं उसका फल उस मनुष्य के लिये छोड़ जाऊं जो मेरे बाद आएगा।
यह कौन जानता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा वा मूर्ख? तौभी धरती पर जितना परिश्र्म मैं ने किया, और उसके लिये बुद्धि प्रयोग की, उस सब का वही अधिकारी होगा। यह भी व्यर्थ ही है।
तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्र्म के विषय जो मैं ने धरती पर किया था निराश हुआ।
क्योंकि ऐसा मनुष्य भी है, जिसका कार्य परिश्र्म और बुद्धि और ज्ञान से होता है और सफल भी होता है, तौभी उसको ऐसे मनुष्य के लिये छोड़ जाना पड़ता है, जिस ने उस में कुछ भी परिश्र्म न किया हो। यह भी व्यर्थ और बहुत ही बुरा है।
मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगा कर परिश्र्म करता है उस से उसको क्या लाभ होता है?
उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता हैं; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है।
मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्र्म करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है।
क्योंकि खाने-पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्थ कौन है?
जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है, परन्तु पापी को वह दु:ख भरा काम ही देता है कि वह उसको देने के लिये संचय करके ढेर लगाए जो परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।
एक साल में बाइबल:
सभोपदेशक का लेखक राजा सुलेमान असीम संपत्ति का मालिक था (सभोपदेशक १:१२)। उसने अपनी संपति और ऐश्वर्य द्वारा पृथ्वी पर स्वर्गीय आनन्द पाने के प्रयास में, जो संभव हुआ वह किया (सभोपदेशक २:१-१०), तौभी उसे संतुष्टि नहीं मिली। अन्ततः वह सांसारिक जीवन की मिथ्या से इतना निराश हुआ कि उसने अपने सारे प्रयसों और अनुभवों को एक ही शब्द में निचोड़ डाला - "व्यर्थ"। सभोपदेशक के दूसरे अध्याय में "व्यर्थ" शब्द का उपयोग उसने आठ बार किया। जब उसने पृथ्वी पर करी अपनी मेहनत और अपने कार्यों का विशेलेषण किया (सभोपदेशक २:११) तो उसने पाया कि उसमें, और किसी अन्य मनुष्य में कोई अन्तर नहीं है। इस एहसास ने कि जो कुछ वह जमा कर रहा है, उसके बाद किसी और को जाएगा, और न उसे पता है और न उसका कोई नियंत्रण है कि वह दूसरा उसके परिश्रम का उपयोग कैसे करेगा, उसके व्यर्थता के एहसास को और बढ़ा दिया। उसका निष्कर्ष यही था कि "मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्र्म करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है।"(सभोपदेशक २:२४)
प्रभु यीशु ने अपने अनुयायियों से सांसारिक वस्तुओं के संबंध में वायदा किया है: " इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं तुम्हें मिल जाएंगी।" (मत्ती ६:३१-३३)
पौलुस ने कहा "पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ।" (कुलुस्सियों ३:२२)
पृथ्वी पर स्वर्ग की खोज में न रहें - यह संभव नहीं है, चाहे जैसा और चाहे जितना प्रयास कर लें। सांसारिक वस्तुओं की अभिलाषा छोड़कर परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करें, उसकी शांति से अपने मन को भर लें; और यथासमय प्रभु आपको स्वर्ग में भी स्थान देगा, जहां वह आपके लिये स्थान तैयार कर रहा है "तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आ कर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।" (यूहन्ना १४:१-३) - सी. पी. हिया
जिन्होंने अपने मन स्वर्गीय वस्तुओं की ओर लगा रखे हैं वे पृथ्वी की वस्तुओं को गौण जानते हैं।
पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। - कुलुस्सियों ३:२२
बाइबल पाठ: सभोपदेशक २:१-२६
मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है।
मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है?
मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को थामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे।
मैं ने बड़े बड़े काम किए, मैं ने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियां लगवाईं;
मैं ने अपने लिये बारियां और बाग लगावा लिए, और उन में भांति भांति के फलदाई वृक्ष लगाए।
मैं ने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिस में पौधे लगाए जाते थे।
मैं ने दास और दासियां मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए, और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में थे उस ने कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मैं स्वामी था।
मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैं ने अपने लिये गवैयों और गाने वालियों को रखा, और बहुत सी कामिनियां भी, जिन से मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं।
इस प्रकार मैं अपने से पहिले के सब यरूशलेम वासियों से अधिक महान और धनाढय हो गया तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही।
और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका, मैं ने अपना मन को किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्र्म के कारण आनन्दित हुआ और मेरे सब परिश्र्म से मुझे यही भाग मिला।
तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्र्म को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं।
फिर मैं ने अपने मन को फेरा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्यों को देखूं, क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है।
तब मैं ने देखा कि उजियाला अंधियारे से जितना उत्तम है, उतना बुद्धि भी मूर्खता से उत्तम है।
जो बुद्धिमान है, उसके सिर में आंखें रहती हैं, परन्तु मूर्ख अंधियारे में चलता है, तौभी मैं ने जान लिया कि दोनों की दशा एक सी होती है।
तब मैं ने मन में कहा, जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्यों अधिक बुद्धिमान हुआ? और मैं ने मन में कहा, यह भी व्यर्थ ही है।
क्योंकि ने तो बुद्धिमान का और न मूर्ख का स्मरण सर्वदा बना रहेगा, परन्तु भविष्य में सब कुछ बिसर जाएगा।
बुद्धिमान क्योंकर मूर्ख के समान मरता है! इसलिये मैं ने अपने जीवन से घृणा की, क्योंकि जो काम संसार में किया जाता है मुझे बुरा मालूम हुआ; क्योंकि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।
मैं ने अपने सारे परिश्र्म के प्रतिफल से जिसे मैं ने धरती पर किया या घृणा की, क्योंकि अवश्य है कि मैं उसका फल उस मनुष्य के लिये छोड़ जाऊं जो मेरे बाद आएगा।
यह कौन जानता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा वा मूर्ख? तौभी धरती पर जितना परिश्र्म मैं ने किया, और उसके लिये बुद्धि प्रयोग की, उस सब का वही अधिकारी होगा। यह भी व्यर्थ ही है।
तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्र्म के विषय जो मैं ने धरती पर किया था निराश हुआ।
क्योंकि ऐसा मनुष्य भी है, जिसका कार्य परिश्र्म और बुद्धि और ज्ञान से होता है और सफल भी होता है, तौभी उसको ऐसे मनुष्य के लिये छोड़ जाना पड़ता है, जिस ने उस में कुछ भी परिश्र्म न किया हो। यह भी व्यर्थ और बहुत ही बुरा है।
मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगा कर परिश्र्म करता है उस से उसको क्या लाभ होता है?
उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता हैं; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है।
मनुष्य के लिये खाने-पीने और परिश्र्म करते हुए अपने जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है।
क्योंकि खाने-पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्थ कौन है?
जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है, परन्तु पापी को वह दु:ख भरा काम ही देता है कि वह उसको देने के लिये संचय करके ढेर लगाए जो परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्थ और वायु को पकड़ना है।
एक साल में बाइबल:
- यहेजेकेल १८, १९
- याकूब ४
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