आपके रहने का स्थान आप को कुछ बातों का ध्यान रखने और मानने के लिए सावधान करता है; यदि आप ऐसा नहीं करते तो आप स्वयं और आपके द्वारा आपके पड़ौसी भी कठिनाईयों में पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए मेरे रहने के स्थान को ही लीजिए। हमारे इलाके में कूड़ा उठाने वाला मंगलवार की प्रातः ही आता है, इसलिए यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं सोमवार की देर रात को ही कूड़ा उठा कर बाहर सड़क की पटरी के किनारे पर रख दूँ। यदि मैं अपने घर का कूड़ा प्रतिदिन ही बाहर रखता रहूँ तो निश्चय ही मेरे पड़ौसी मुझे से अप्रसन्न रहेंगे, एतराज़ करेंगे। फिर, मेरे घर के आस-पास बहुत से छोटे बच्चे हैं जो बाहर खेलते रहते हैं, कभी-कभी वे अपनी गेंद या अन्य किसी खेल अथवा खिलौने के पीछे अचानक ही बाहर सड़क पर भाग कर आ जाते हैं, बिना यह देखे कि कोई गाड़ी तो नहीं आ रही है। इसलिए हम लोगों ने सड़क पर बहुत से संकेत लगा रखे हैं जिससे गाड़ी चलाने वालों को ध्यान रहे कि वे गाड़ी बहुत धीरे से चलाएं और बच्चों का ध्यान रखें। मुझे भी अपनी गाड़ी वहाँ धीरे से और ध्यान से चलानी होती है। निश्चय ही मेरा रहने का स्थान मेरे व्यवहार को निर्धारित करता है।
हम मसीही विश्वासियों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि परमेश्वर ने "...हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया" (कुलुस्सियों 1:13)। अब प्रभु यीशु के राज्य और उस के पड़ौस में रहने के कारण हमारे व्यवहार में कुछ ऐसे मूलभूत परिवर्तन दिखाई देने चाहिएं जो हमारे आत्मिक ठिकाने के अनुरूप हों। इसीलिए रोम के विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस उन्हें स्मरण दिलाता है कि परमेश्वर का राज्य सांसारिक बातों को लेकर तर्क और झगड़ों का स्थान नहीं है वरन धार्मिकता, शांति और आनन्द का स्थान है (रोमियों 14:17); अर्थात हमारे जीवन परमेश्वर के आत्मिक मानकों के अनुसार, तथा दूसरों को शांति एवं आनन्द देने वाले होने चाहिएं। जब हम ऐसे जीवन व्यतीत करते हैं तो यह ना केवल अन्य लोगों को वरन परमेश्वर को भी भाता है, प्रसन्न करता है (पद 18)।
मसीही विश्वासी होने के नाते, यदि आप एक ऐसा पड़ौस बना लेंगे, तो भला कौन वहाँ नहीं रहना चाहेगा? - जो स्टोवैल
यदि आप परमेश्वर के राज्य के निवासी हैं, तो यह आप की जीवन-शैली में प्रकट होना चाहिए।
और धर्म का फल शांति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा। - यशायाह 32:17
बाइबल पाठ: रोमियों 14:13-19
Romans 14:13 सो आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएं पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के साम्हने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
Romans 14:14 मैं जानता हूं, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उसको अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है।
Romans 14:15 यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता: जिस के लिये मसीह मरा उसको तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर।
Romans 14:16 अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए।
Romans 14:17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना पीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है;
Romans 14:18 जो पवित्र आत्मा से होता है और जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहण योग्य ठहरता है।
Romans 14:19 इसलिये हम उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
एक साल में बाइबल:
- यिर्मयाह 43-45
- इब्रानियों 5
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