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रविवार, 8 जून 2014

स्वर्ग में प्रवेश


   मुझे अपने चर्च में आयोजित स्कूल के अवकाश के समय में बच्चों के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम में तीसरी एवं चौथी कक्षा के बच्चों को परमेश्वर के वचन बाइबल की बातें सिखाने का कार्य दिया गया था। मैंने सोचा कि कार्यक्रम के अन्तिम दिन पर मैं अपने सभी छात्रों को एक एक उपहार दूँगा, और यह बात मैंने उन बच्चों को भी बता दी। लेकिन मैंने इसके लिए एक शर्त उनके सामने रखी, उपहार प्राप्त करने के लिए उन्हें मुझे यह बताना होगा कि कोई व्यक्ति स्वर्ग कैसे जा सकता है।

   उस अन्तिम दिन पर उपहार लेने से पहले जो बातें मुझे उन 9 या 10 वर्ष के बच्चों ने बताईं वे काफी रोचक थीं। अधिकांश बच्चे तो यह समझ और जान गए थे कि स्वर्ग पहुंचने का मार्ग प्रभु यीशु से मिलने वाली पापों की क्षमा तथा उद्धार है, लेकिन कुछ अभी भी इस सुसमाचार को समझ नहीं पाए थे, इसलिए वे अपनी समझ के अनुसार जो उन्हें सही लगा वह बता रहे थे। एक बच्चे ने कहा, "अच्छा बनने और सन्डे स्कूल जाने के द्वारा", तो दूसरे ने झिझकते हुए मुझ से ही पूछा "क्या परमेश्वर से प्रार्थना करने के द्वारा?" एक और ने कहा, "यदि आप अपने मित्रों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे और अपने माता-पिता के आज्ञाकारी रहेंगे।"

   उद्धार पाने तथा स्वर्ग जाने के प्रभु यीशु में उपलब्ध सही मार्ग को समझाने और इन सभी गलत धारणाओं को धीरे से दूर करने के प्रयास में मैंने उन्हें फिर से समझाने का प्रयत्न किया कि प्रभु यीशु द्वारा हमारे पापों को अपने ऊपर उठाकर कलवरी के क्रूस पर बलिदान होने, मारे जाने और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठने के द्वारा हमारे लिए स्वर्ग जाने का मार्ग अब सेंत-मेंत उपलब्ध है। इसलिए अब जो कोई प्रभु यीशु के इस कार्य को स्वीकार कर के पश्चाताप के साथ उससे अपने पापों की क्षमा माँगता है और अपना जीवन उसे समर्पित कर देता है वह उद्धार पाता है, स्वर्ग में जाता है। लेकिन उन बच्चों को एक बार फिर यह सुसमाचार समझाते हुए साथ ही मुझे यह भी ध्यान आया कि इन बच्चों के समान ही संसार में कितने ही जन हैं जो अभी भी सुसमाचार को नहीं समझते और अपनी ही गलत धारणाओं और प्रयासों में जी रहे हैं, अपने ही तरीकों से स्वर्ग जाने के प्रयास कर रहे हैं, जबकि स्वर्ग जाने का मार्ग तो परमेश्वर की ओर से उन्हें सेंत-मेंत उपलब्ध है, उन्हें बस विश्वास के साथ कदम बढ़ाकर उस पर चल निकलना है।

   आज आप की क्या स्थिति है? क्या उद्धार या मोक्ष के बारे में आपके विचार परमेश्वर के विचार और वचन के अनुरूप हैं? क्या आपने कभी प्रभु यीशु द्वारा संसार के सभी लोगों के लिए किए गए कार्य पर गंभीरता से विचार किया है? स्वर्ग में प्रवेश के लिए परमेश्वर आपसे प्रभु यीशु में विश्वास के अलावा और कुछ नहीं मांगता; उसने अपने वचन में लिखवाया है, "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा" (प्रेरितों 16:31) - क्या आपने यह विश्वास किया है? - डेव ब्रैनन


यह मानना मसीह यीशु मारा गया, इतिहास को मानना है; यह विश्वास करना कि मसीह यीशु मेरे पापों के लिए मारा गया, उद्धार को मानना है।

क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। - यूहन्ना 3:16

बाइबल पाठ: रोमियों 3:20-28
Romans 3:20 क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है। 
Romans 3:21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं। 
Romans 3:22 अर्थात परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है; क्योंकि कुछ भेद नहीं। 
Romans 3:23 इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। 
Romans 3:24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। 
Romans 3:25 उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपनी धामिर्कता प्रगट करे। 
Romans 3:26 वरन इसी समय उस की धामिर्कता प्रगट हो; कि जिस से वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो। 
Romans 3:27 तो घमण्ड करना कहां रहा उस की तो जगह ही नहीं: कौन सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन विश्वास की व्यवस्था के कारण। 
Romans 3:28 इसलिये हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 43-45


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