कभी कभी जब अनन्त और असीमित परमेश्वर अपने विचारों को नाशमान एवं सीमित मनुष्यों तक पहुँचाता है तो वह रहस्यमय लगता है। उदाहरण के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल में भजन की पुस्तक में एक गंभीर पद है जिससे उत्तर कम और प्रश्न अधिक जन्म लेते हैं: "यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है" (भजन 116:15)। मैं इस बात पर विचार करता और विस्मय के साथ अपना सिर हिलाता हूँ, कि यह कैसे हो सकता है? मैं तो पृथ्वी की आँखों तथा दृष्टिकोण से देखता हूँ और मुझे यह समझना बहुत कठिन होता है कि मेरी 17 वर्षीय पुत्री मेलिस्सा के एक कार दुर्घटना में आक्समिक मारे जाने, या किसी अन्य जन के अपने किसी प्रीय जन को खो देने में भला क्या "अनमोल" हो सकता है?
इस रहस्य से पर्दा उठना तब आरंभ होता है जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि जो परमेश्वर के लिए अनमोल है वह केवल सांसारिक आशीषों तक ही सीमित नहीं है; यह पद परमेश्वर के स्वर्गीय दृष्टिकोण को लेकर लिखा गया है। परमेश्वर के वचन के एक और भाग, भजन 139:16 से मैं समझने पाता हूँ कि मेलिस्सा का परमेश्वर के पास स्वर्ग में आना अपेक्षित था, परमेश्वर उसके आने की बाट जोह रहा था, और यह उसके लिए अनमोल था। इसे ऐसे समझिए, जब हमारे बच्चे किसी दूर स्थान पर कुछ समय बिता कर लौट कर आते हैं, तो उन्हें वापस अपने पास, अपने साथ देखने का सुख और आनन्द कैसा अद्भुत होता है, कितना अनमोल होता है। ऐसे ही परमेश्वर भी अपने बच्चों के वापस घर आने से आनन्दित होता है और यह आनन्द उसके लिए भी अनमोल है।
जब एक मसीही विश्वासी के लिए मौत आती है, तब वास्तव में परमेश्वर स्वर्ग में उसका स्वागत अपनी बाहें खोलकर अपनी उपस्थिति में कर रहा होता है। प्रीय जनों से पृथ्वी पर बिछुड़ने के दुख में भी हम इस बात से सांत्वना ले सकते हैं कि यह परमेश्वर की दृष्टि में अनमोल है। - डेव ब्रैनन
एक स्थान का सूर्यास्त, दूसरे स्थान का सूर्योदय होता है।
धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिये जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिये उठा लिया गया कि आने वाली आपत्ति से बच जाए - यशायाह 57:1
बाइबल पाठ: यूहन्ना 17:20-26
John 17:20 मैं केवल इन्हीं के लिये बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिये भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों।
John 17:21 जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।
John 17:22 और वह महिमा जो तू ने मुझे दी, मैं ने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे की हम एक हैं।
John 17:23 मैं उन में और तू मुझ में कि वे सिद्ध हो कर एक हो जाएं, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही उन से प्रेम रखा।
John 17:24 हे पिता, मैं चाहता हूं कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहां मैं हूं, वहां वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तू ने मुझे दी है, क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ति से पहिले मुझ से प्रेम रखा।
John 17:25 हे धामिर्क पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा।
John 17:26 और मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था, वह उन में रहे और मैं उन में रहूं।
एक साल में बाइबल:
- लैव्यवस्था 4-5
- मत्ती 24:29-51
सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास