मुझे यह परेशान करता था कि मैं अपने आचरण तथा जीवन में जितना परमेश्वर के निकट बढ़ता, उतना ही अधिक पापी महसूस करता। फिर एक दिन मेरे कमरे हुई एक घटना ने मुझे इसे समझा दिया। मेरे कमरे की खिड़की पर परदे खिंचें हुए थे, कोई बत्ती नहीं जल रही थी, और दो परदों के बीच की पतली सी झिर्री से सूरज की ज्योति की किरण कमरे में आ रही थी। जब मैंने ज्योति की उस किरण की ओर देखा तो उसकी रौशनी में हवा में इधर-उधर हिलते हुए धूल के कण दिखाई दिए। बिना ज्योति के ये कण दिखाई नहीं देते हैं, और अन्धेरे में कमरा साफ-सुथरा प्रतीत होता है, परन्तु ज्योति के कारण गन्दगी दिखाई देने लगती है।
इस घटना ने मेरे आत्मिक जीवन पर भी प्रकाश डाला - संसार की बातों और अपने दृष्टिकोण तथा आँकलन के अन्धकार में मुझे अपने अन्दर कुछ बुरा दिखाई नहीं देता है; परन्तु जब मैं ज्योतिर्मय प्रभु परमेश्वर के निकट आता हूँ, तो उसकी ज्योति मुझे मेरे अन्दर की गन्दगी दिखा देती है। जब प्रभु यीशु मसीह की ज्योति हमारे जीवनों के अन्धकार में चमकती है, तो वह हमारे पाप प्रगट कर देती है - हमें निराश करने के लिए नहीं वरन हमें नम्र करने के लिए कि हम उस पर विश्वास रख सकें। क्योंकि हम सब पापी हैं और परमेश्वर की धार्मिकता के मानकों पर पूरे नहीं उतरते (रोमियों 3:23), इसलिए हम अपनी किसी धार्मिकता पर अपने उद्धार के लिए भरोसा नहीं रख सकते हैं। जब हम में कोई पाप होता है, तो हमारे प्रभु के निकट आने पर प्रभु की ज्योति उस पाप को प्रगट कर देती है, और हम यशायाह के समान पुकार उठते हैं, "हाय! हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है" (यशायाह 6:5)।
परमेश्वर हर बात में परम-सिद्ध है। उसके निकट आने के लिए हमारे अन्दर नम्रता और बच्चों के समान विश्वास रखने वाला मन चाहिए ना कि कोई घमण्ड या अपनी ही किसी बात पर भरोसा करना। जब हम पश्चतापी मन के साथ, दीन और नम्र होकर प्रभु परमेश्वर के निकट आते हैं, तो अपने अनुग्रह में होकर वह हमें स्वीकार करता है, अपने परिवार का भाग बना लेता है। यह भला है कि परमेश्वर के निकट आने में हम अपने आप को उसकी निकटता के लिए अयोग्य महसूस करते हैं, क्योंकि इससे हमारे अन्दर कोई घमण्ड उत्पन्न नहीं होने पाता, वरन नम्रता आती है, और उसके सामने धर्मी बनने के लिए केवल उस ही पर निर्भर होने की भावना आती है। - लॉरेंस दरमानी
जब हम प्रभु परमेश्वर के साथ चलते हैं तो घमण्ड के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता है।
इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। - रोमियों 3:23-24
बाइबल पाठ: यशायाह 6:1-8
Isaiah 6:1 जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया।
Isaiah 6:2 उस से ऊंचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुंह को ढांपे थे और दो से अपने पांवों को, और दो से उड़ रहे थे।
Isaiah 6:3 और वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।
Isaiah 6:4 और पुकारने वाले के शब्द से डेवढिय़ों की नेवें डोल उठीं, और भवन धूंए से भर गया।
Isaiah 6:5 तब मैं ने कहा, हाय! हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!
Isaiah 6:6 तब एक साराप हाथ में अंगारा लिये हुए, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया था, मेरे पास उड़ कर आया।
Isaiah 6:7 और उसने उस से मेरे मुंह को छूकर कहा, देख, इस ने तेरे होंठों को छू लिया है, इसलिये तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए।
Isaiah 6:8 तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेंजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज
एक साल में बाइबल:
- गिनती 1-3
- मरकुस 3
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