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शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

उद्देश्य


   न्यू यॉर्क टाईम्स में छपे एक लेख के अनुसार, अनेकों अफ्रीकी देशों में, बच्चों के नाम किसी सुप्रसिद्ध अतिथि, या ऐसी कोई विशेष घटना या परिस्थिति जो माता-पिता के लिए अर्थपूर्ण हो, के आधार पर दिए जाते हैं। जब चिकित्सकों ने एक बच्चे के माता-पिता को यह बताया कि उनके पास उस बच्चे की बीमारी का कोई इलाज नहीं है और केवल परमेश्वर ही जानता है कि वह बच्चा बचेगा कि नहीं, तो उन्होंने बच्चे का नाम ’परमेश्वर जानता है’ रख दिया। एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि उसका नाम ’काफी’ इसलिए रखा गया क्योंकि उसके माँ के 13 बच्चे थे और वह अन्तिम था। प्रत्येक के नाम का कोई न कोई अर्थ होता है, और कभी-कभी उस नाम का अर्थ कुछ विशेष भी बताता है।

   प्रभु यीशु के जन्म से पहले, परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने प्रभु यीशु के साँसारिक पिता को उसके विषय में बताया, "वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा" (मत्ती 1:21)। यीशु यूनानी शब्द यहोशु से आया है, जिसका अर्थ होता है, "प्रभु बचाता है।" उस समय और उस संसकृति में अनेकों बच्चों का नाम यीशु रखा गया होगा, परन्तु केवल एक ही वह अभिषिक्त (मस्सा किया हुआ - मसीह) था जिस ने इस संसार में सबके पापों के लिए बलिदान होने के लिए जन्म लिया, जिससे समस्त सँसार में जो कोई भी उसे स्वीकार करे और उस पर विश्वास लाए, वह पापों की क्षमा पाए, पापों के दास्तव से मुक्त हो जाए और अनन्तकाल तक स्वर्ग में प्रभु के साथ रहे।

   जब क्रिसमस का समय निकट आता है तो हम बहुधा चार्ल्स वेसली द्वारा लिखे गी एक स्तुति गीत को गाते हैं, जिसके भाव हैं: "दीर्घ काल से प्रतीक्षित, अपने लोगों को मुक्त करने के लिए जन्में यीशु आईए; हमें हमारे भय और पापों से छुड़ाईए; जिससे आप में हम अपना विश्राम पाएं।"

   प्रभु यीशु मसीह के जन्म का उद्देश्य था समस्त मानव जाति के लिए पाप के अंधकार से अनन्त जीवन की ज्योति की ओर मुड़ने का मार्ग बनाए; हमारी निराशाओं को आशा में परिवर्तित कर दे, और हमें हमारे पापों से बचा ले। जब हम यीशु को अपना प्रभु स्वीकार कर लेते हैं, उससे अपने पापों की क्षमा माँगकर, अपना जीवन उसे समर्पित कर देते हैं, तो हमारे जीवन में उसका यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। - डेविड मैक्कैसलैंड


प्रभु यीशु मसीह के नाम का अर्थ और उद्देश्य एक ही हैं - हमें बचा लेना।

और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें। - प्रेरितों 4:12

बाइबल पाठ: मत्ती 1:18-25
Matthew 1:18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 
Matthew 1:19 सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। 
Matthew 1:20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्‍वप्‍न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्‍नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। 
Matthew 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा। 
Matthew 1:22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो। 
Matthew 1:23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है “परमेश्वर हमारे साथ”। 
Matthew 1:24 सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्‍नी को अपने यहां ले आया। 
Matthew 1:25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।

एक साल में बाइबल: 
  • यहेजकेल 40-41
  • 2 पतरस 3


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