हम
में से कुछ की प्रवृत्ति है कि हम संसार में केवल बुरा ही देखते हैं। डीविट जोंस
नैशनल जिओग्राफिक पत्रिका के लिए कार्य करने वाले फोटोग्राफर हैं, जिन्होंने अपने
व्यवसाय को संसार में जो भला है उसे दिखाने और उससे आनंदित होने के लिए उपयोग किया
है। वे ध्यान से देखते रहते तथा प्रतीक्षा में रहते हैं, किसी भी परिपेक्ष अथवा
परिस्थिति में आए हलके से भी परिवर्तन के कारण उजागर होने वाले किसी अचरज को, जो
वहां होते हुए भी पहले प्रकट नहीं था, अपने कैमरे में पकड़ लेते हैं। वे अपने कैमरे
का प्रयोग लोगों तथा प्रकृत्ति की बहुत सामान्य बातों में भी सुन्दरता एवं मनोहरता
को ढूँढने तथा दिखाने के लिए करते हैं।
यदि
इस संसार में गलत देखने के लिए किसी के पास कारण थे, तो निःसंदेह अय्यूब के पास
थे। परमेश्वर के वचन बाइबल में पुराने नियम खण्ड के इस प्रमुख व्यक्ति ने जो कुछ
संसार में भोगा, वह शायद ही कभी किसी अन्य ने भोगा होगा। अय्यूब एक भरे-पूरे
परिवार वाला बहुत संपन्न तथा धर्मी व्यक्ति था; परन्तु जो कुछ उसके लिए आनन्द का
कारण था, शैतान ने उससे वह सब छीन लिया, और उसे सांत्वना देने आए उसके मित्र भी उस
पर दोषारोपण करने वाले बन गए। उन सभी को लगने लगा कि अय्यूब में अवश्य ही कुछ छिपे
हुए पाप हैं, जिन्हें वह स्वीकार नहीं कर रहा है, और इसी कारण उसे यह सब दुःख सहना
पड़ रहा है। जब उस धर्मी अय्यूब ने सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारा, तो परमेश्वर
भी चुप रहा।
अन्ततः
परमेश्वर ने उसके जीवन में उठे तूफ़ान और आए अंधियारे में से भी अय्यूब से उसके
चारों और फ़ैली प्रकृति के अचरजों को देखने और उन पर विचार करने के लिए कहा, जिन
सभी से परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और सामर्थ्य प्रकट होती है और जो अय्यूब की अपनी
बुद्धिमत्ता और सामर्थ्य से कहीं अधिक बढ़कर है (अय्यूब 38:2-4)। जब अय्यूब ने ऐसा
किया, तो वह पहचान सका की परमेश्वर के सम्मुख वह कितना तुच्छ है और उसकी
बुद्धिमत्ता कितनी गौण है; और उसने परमेश्वर के सामने नतमस्तक होकर पश्चाताप किया
और क्षमा माँगी (अय्यूब 42:1-6)।
आज
जब हम अपनी परिस्थितियों और कठिनाइयों के लिए परमेश्वर पर दोष लगाते हैं, उससे
प्रश्न करते हैं, तो वह हम से क्या कहेगा? क्या हम अपने चारों फैली प्रकृति, उसकी
हस्तकला और सृष्टि, में उसकी बुद्धिमत्ता और सामर्थ्य को पहचानने और उनके लिए उसकी
आराधना और स्तुति करने पाते हैं? यदि हम भी यह दृष्टिकोण रखने लगें, तो हमें भी
पहले से विद्यमान परमेश्वर की कारीगरी में एक नई मनोहरता दिखाई देगी, और हम भी
अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर के मन और हृदय की हमारे प्रति भावना को समझने पाएंगे, कि
वह सदा हमारे साथ बना रहता है। - मार्ट डीहान
प्रकृति में ऐसे अद्भुत अचरज भरे पड़े हैं,
जिनका कोई अंत नहीं है।
मैने कानों से तेरा समाचार सुना था,
परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; इसलिये
मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में
पश्चात्ताप करता हूँ। - अय्यूब 42:5-6
बाइबल पाठ: अय्यूब 38:1-18
Job 38:1 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में
से यूं उत्तर दिया,
Job 38:2 यह कौन है जो अज्ञानता की बातें
कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है?
Job 38:3 पुरुष के समान अपनी कमर बान्ध ले,
क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू
मुझे उत्तर दे।
Job 38:4 जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली,
तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे।
Job 38:5 उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा?
Job 38:6 उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई,
वा किस ने उसके कोने का पत्थर बिठाया,
Job 38:7 जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द
से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे?
Job 38:8 फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो
वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया;
Job 38:9 जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया
और घोर अन्धकार में लपेट दिया,
Job 38:10 और उसके लिये सिवाना बान्धा और
यह कहकर बेंड़े और किवाड़े लगा दिए, कि
Job 38:11 यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडने वाली लहरें यहीं थम
जाएं?
Job 38:12 क्या तू ने जीवन भर में कभी भोर
को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है,
Job 38:13 ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश
में करे, और दुष्ट लोग उस में से झाड़ दिए जाएं?
Job 38:14 वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के
नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएं मानो वस्त्र
पहिने हुए दिखाई देती हैं।
Job 38:15 दुष्टों से उनका उजियाला रोक
लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बांह तोड़ी जाती है।
Job 38:16 क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक
पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?
Job 38:17 क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर
प्रगट हुए, क्या तू घोर अन्धकार के फाटकों को कभी देखने पाया
है?
Job 38:18 क्या तू ने पृथ्वी की चौड़ाई को
पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे।
एक साल में बाइबल:
- व्यवस्थाविवरण 28-29
- मरकुस 14:54-72
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