बाइबल और जीव-विज्ञान - 4
हमने पिछले तीन लेखों में देखा है कि जीव-जंतुओं और मनुष्यों से संबंधित
कितनी ही बातें हैं जिनका क्रमिक विकासवाद (Evolution) के
पास आज भी कोई उत्तर नहीं है। हम यह भी देख चुके हैं कि क्रमिक विकासवाद और
विज्ञान के नाम पर सब कुछ जो हमें पढ़ाया और बताया जाता रहा है वह सत्य नहीं है,
और न ही सभी तथ्यों का सही प्रकटीकरण अथवा व्याख्या है; बहुत सी असुविधाजनक बातों को, जिनके कोई संतोषजनक
उत्तर विज्ञान या वैज्ञानिकों के पास नहीं हैं, उन्हें दबा
दिया जाता है, या टाल दिया जाता है। हम सामान्यतः क्रमिक
विकासवाद को केवल इसलिए सच और सही मान लेते हैं क्योंकि यह बचपन से हमें विज्ञान
और सत्य बताकर पढ़ाया जाता है, हमारे मनों में बैठा दिया गया
है, जबकि वास्तविकता इससे बहुत भिन्न है। हमारे चारों ओर कुछ
बातें तो इतनी सामान्य हैं कि अधिकांशतः हम उन बातों पर कुछ विशेष ध्यान दिए बिना,
उन्हें यूं ही स्वीकार कर लेते हैं, और उनके
विषय क्रमिक विकासवाद की चुप्पी पर ध्यान भी नहीं करते हैं।
ऐसी ही कुछ बातों पर ध्यान कीजिए:
- विज्ञान
के इतने उन्नत और जटिल यंत्रों से लैस वायु-यान और जल-पोत भी दिशा भटक जाते
हैं, और इस कारण
दुर्घटना-ग्रस्त हो जाते हैं; किन्तु छोटा सा पक्षी,
कबूतर, जिसका पूरा मस्तिष्क हमारे अंगूठे
के सिरे के बराबर भी नहीं होता, वह कभी दिशा नहीं भटकता
है; कहीं से भी छोड़ा जाए, वह अपने
‘घर’ पहुँच जाता है।
- कुछ
समुद्री मच्छलियाँ हैं जो अंडे देने के लिए मीठे जल की नदियों में पानी के प्रवाह की विपरीत दिशा में जाती हैं, और नदी में उसी स्थान पर जाकर अंडे देती हैं, जहाँ पर वे स्वयं अंडों से
निकलकर और फिर पानी के साथ बहकर समुद्र में पहुंची और बड़ी हुईं। वे पली और बड़ी
समुद्र में हुईं, वहीं इधर से उधर विचरण करती हैं;
किन्तु उन्हें अपने जन्म का स्थान और नदी, उसकी भौगोलिक स्थिति, याद है, जबकि सागर में न जाने कितनी नदियां मिलती रहती हैं। कौन उन्हें यह सिखाता और उस स्थान का सटीक पता
बताता है?
- उत्तरी
अमेरिका के क्षेत्रों की कुछ तितलियाँ हैं जो जब उनके अंडे देने का समय आने लगता है, तो लाखों की संख्या में लगभग 2500
मील की यात्रा करके मध्य तथा दक्षिणी अमेरिका में जा कर ही
अंडे देती हैं, और उनकी अगली पीढ़ी जन्म लेने के बाद
स्वतः ही वहाँ
से वापस उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रों में लौट कर आती है; और अपनी अगली पीढ़ी को जन्मे देने
के लिए वे फिर वहीं दक्षिण की ओर लौट कर जाती हैं, और
यह चक्र चलता ही रहता है।
- उत्तरी
ध्रुव के निकट के क्षेत्रों के कुछ पक्षी हैं जो हर वर्ष ठंड आरंभ होने से
पहले दक्षिण की ओर हजारों मील उड़ कर पहुंचते हैं। वहाँ अंडे देते और अपनी
अगली पीढ़ी को जन्म देते हैं, और सर्दियाँ समाप्त होने तथा गर्मियों का आरंभ होने पर फिर अपने
ठन्डे इलाके को लौट जाते हैं। पृथ्वी का यह भूगोल और मौसम ज्ञान तथा समझ उन में कैसे आई? वे कैसे उन्हीं स्थानों पर
प्रति वर्ष लौट कर आ जाते हैं जहाँ
उनका जन्म हुआ था? जबकि उनसे
कहीं अधिक और उन्नत बुद्धि वाला मनुष्य एक छोटे से जंगल में, यहाँ तक कि अपने ही शहर
में भी दिशा
भटक जाता है, स्थान नहीं स्मरण रख पाता है।
- एक
नया जन्मा हुआ कीट, जैसे कि मकड़ी, या छिपकली, या अन्य जन्तु जिनकी परवरिश उनके माता-पिता नहीं करते हैं, वे कैसे अपने भोजन को पहचानने और पकड़ने की कला सीख लेते हैं; मकड़ी को उसका अद्भुत जाला बनाना कौन सिखाता है?
प्रकृति और जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की ऐसी ही अनगिनत बातें
हैं जिनके लिए क्रमिक विकासवाद या विज्ञान के पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं है।
उपरोक्त तथा उनके समान बातों के लिए उन्हें जीव-जंतुओं के नैसर्गिक गुण (animal
instinct) कहकर टाल दिया जाता है, किन्तु यह
कोई नहीं बताता और समझाता है कि ये नैसर्गिक गुण कभी तो उत्पन्न हुए होंगे,
कहीं से तो आए होंगे; तो उनका यह आरंभ कहाँ से
और कैसे हुआ था?
किन्तु बाइबल का परमेश्वर हमें बताता है कि ये और ऐसे
सभी गुण, सभी
प्राणियों में उसने दिए हैं, उसकी सृष्टि की योजना का भाग
हैं; उसकी बुद्धिमता और कार्य-कौशल तथा महानता का प्रमाण
हैं। लगभग 4000 वर्ष प्राचीन अय्यूब की पुस्तक में परमेश्वर इन्हीं बातों को आधार बना कर अय्यूब से उनके
विषय प्रश्न करता है, कि
क्या उसमें यह सब समझने और जानने की समझ तथा क्षमता है (अय्यूब 39 अध्याय)।
इन्हीं बातों को आधार बना कर परमेश्वर अपने लोगों से,
उनकी परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारिता के लिए उलाहना देता है “आकाश में लगलग भी
अपने नियत समयों को जानता है, और पणडुकी, सूपाबेनी, और सारस भी अपने आने का समय रखते हैं;
परन्तु मेरी प्रजा यहोवा का नियम नहीं जानती” [Even
the stork in the heavens Knows her appointed times; And the Turtledove, the
Swift, and the Swallow observe the time of their coming. But My people do not
know the judgment of the Lord] (यिर्मयाह 8:7)। साथ ही इन छोटे और नगण्य प्रतीत होने वाले जीवों में जो गुण उसने डाले हैं, उन से शिक्षा लेने की भी
सलाह देता है “पृथ्वी पर चार छोटे जन्तु हैं, जो अत्यन्त बुद्धिमान हैं: च्यूटियां निर्बल जाति तो हैं, परन्तु धूप काल में अपनी भोजन वस्तु बटोरती हैं; शापान
बली जाति नहीं, तौभी उनकी मान्दें पहाड़ों पर होती हैं;
टिड्डियों के राजा तो नहीं होता, तौभी वे सब
की सब दल बान्ध बान्ध कर पलायन करती हैं; और छिपकली हाथ से
पकड़ी तो जाती है, तौभी राजभवनों में रहती है” (नीतिवचन 30:24-28)। बाइबल में ऐसे ही अनेकों अन्य
खंड और पद हैं जो सृष्टि की हर बात में परमेश्वर की बुद्धिमता और ज्ञान के विषय बताते हैं।
बाइबल काल्पनिक किस्से-कहानियों की पुस्तक नहीं, परमेश्वर का सत्य वचन है। परमेश्वर का अपने विषय एक सीमित
प्रकटीकरण है। जो थोड़ा सा उसने हम पर प्रकट किया है, वही इतना अद्भुत, विलक्षण, और अनुपम है, कि दाऊद
ने कहा “यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है” (भजन 139:6)। जब परलोक में हम उसके सामने होंगे, तब परमेश्वर के
लोगों के लिए जो तैयार किया गया है उसके विषय परमेश्वर ने लिखवाया, “परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी,
और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के
चित्त में नहीं चढ़ीं वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम
रखने वालों के लिये तैयार की हैं” (1 कुरिन्थियों 2:9)
- साधारण शब्दों में, वे बातें इतनी अद्भुत हैं कि हम मानवीय बुद्धि और
क्षमता से उनकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
अब यह आपको
निर्णय लेना है कि आप किस की मानेंगे, किस पर विश्वास करेंगे -
विज्ञान और तथ्यों के नाम पर बदलती रहने वाली बातों को सिखाने वालों पर;
या कभी न बदलने वाले, कभी झूठ न बोलने,
सदा हमारा भला ही चाहने और करने वाले परमेश्वर पर? उस प्रेमी सच्चे सृष्टिकर्ता परमेश्वर पर जिसने हम से इतना प्रेम किया है
कि हमारे उद्धार के लिए अपने पुत्र तक को बलिदान कर दिया, जिससे
कि उसकी अनाज्ञाकारिता और अवहेलना करते रहने वाले हम पापी मनुष्यों को उससे
मेल-मिलाप कर लेने, उसके पास लौट आने का मार्ग मिल सके?
यदि आपने परमेश्वर के पक्ष में अपना निर्णय लिया है, तो आपके द्वारा स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के प्रति पश्चातापी मन
के साथ आप के द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना “हे प्रभु यीशु,
मैं मान लेता हूँ कि मैंने मन, ध्यान, विचार, व्यवहार में जाने-अनजाने पाप किए हैं। मैं
मान लेता हूँ कि आप ने मेरे पापों के दंड को अपने ऊपर लेकर मेरे बदले में उनकी सज़ा
को क्रूस पर बलिदान देकर पूरा कर दिया है। कृपया मेरे पाप क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, मेरे पापी मन और जीवन को बदल
कर अपना मुझे अपने साथ ले लें” आपके जीवन को बदल देगी,
पापी मन को बदल कर आपको परमेश्वर की संतान बना देगी।
बाइबल
पाठ: यशायाह 1:2-7, 18-20
यशायाह 1:2 हे
स्वर्ग सुन, और हे पृथ्वी कान लगा; क्योंकि
यहोवा कहता है: मैं ने बाल-बच्चों का पालन पोषण किया, और उन
को बढ़ाया भी, परन्तु उन्होंने मुझ से बलवा किया।
यशायाह 1:3 बैल
तो अपने मालिक को और गदहा अपने स्वामी की चरनी को पहचानता है, परन्तु इस्राएल मुझे नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार
नहीं करती।
यशायाह 1:4 हाय,
यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस
वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, ये लड़के-बाले कैसे बिगड़े हुए
हैं! उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया, उन्होंने इस्राएल के
पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं।
यशायाह 1:5 तुम
बलवा कर कर के क्यों अधिक मार खाना चाहते हो? तुम्हारा सिर
घावों से भर गया, और तुम्हारा हृदय दु:ख से भरा है।
यशायाह 1:6 नख
से सिर तक कहीं भी कुछ अरोग्यता नहीं, केवल चोट और कोड़े की
मार के चिन्ह और सड़े हुए घाव हैं जो न दबाये गए, न बान्धे
गए, न तेल लगा कर नरमाये गए हैं।
यशायाह 1:7 तुम्हारा
देश उजड़ा पड़ा है, तुम्हारे नगर भस्म हो गए हैं; तुम्हारे खेतों को परदेशी लोग तुम्हारे देखते ही निगल रहे हैं; वह परदेशियों से नाश किए हुए देश के समान उजाड़ है।
यशायाह 1:18
यहोवा कहता है, आओ, हम आपस में वाद-विवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग
के हों, तौभी वे हिम के समान उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी
रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएंगे।
यशायाह 1:19
यदि तुम आज्ञाकारी हो कर मेरी मानो,
यशायाह 1:20
तो इस देश के उत्तम से उत्तम पदार्थ खाओगे; और यदि तुम ना मानो और बलवा करो, तो तलवार से
मारे जाओगे; यहोवा का यही वचन है।।
एक साल में बाइबल:
· भजन 113-115
· 1 कुरिन्थियों
6
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