बाइबल अध्ययन और प्रार्थना - गणित का समीकरण?
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पिछले लेख में हमने देखा कि प्रेरितों 2:42 की चारों बातों (वचन
की शिक्षा पाना, संगति रखना, प्रभु-भोज
में सम्मिलित होना, प्रार्थना करना) को उद्धार या नया जन्म
प्राप्त कर लेने के लिए गणित के एक समीकरण के समान देखना, एक रस्म के समान इनकी
औपचारिकता को पूरा करते रहना, बाइबल के अनुसार गलत धारणाएं
ही हैं, और प्रभु परमेश्वर को स्वीकार्य होने के लिए,
धर्म-कर्म-रस्म के निर्वाह वाले भले जीवन और भले कामों वाले पहले के
उदाहरण के समान, उपयोगी नहीं हैं। आज हम प्रेरितों 2:42
की इन चारों बातों के बारे में कुछ और विस्तार से देखेंगे।
1. बाइबल की शिक्षा पाना: पापों की क्षमा और उद्धार पाया हुआ
व्यक्ति बाइबल को पढ़ने, सीखने
और बाइबल की शिक्षाओं का पालन करने में रुचि रखता है, समय
बिताता है। किन्तु बाइबल में रुचि दिखाने, उसे सीखने,
जानने, और मानने का प्रयास करने वाला हर
व्यक्ति उद्धार, नया जन्म, और पापों की
क्षमा पाया हुआ व्यक्ति नहीं होता है। संसार में ऐसे भी अनेकों व्यक्ति हैं जो
मसीह यीशु के जगत का उद्धारकर्ता होने तथा बाइबल के परमेश्वर का वचन होने में
विश्वास नहीं रखते हैं। किन्तु ऐसे लोग फिर भी, चाहे उसकी
आलोचना करने के लिए, अथवा उसके प्रति कौतूहल से, या उस में से कुछ भली बातों को सीखने की इच्छा से बाइबल में रुचि रखते हैं,
उसे पढ़ते और सीखते हैं, और उसकी कुछ शिक्षाओं
से प्रभावित होकर उन्हें अपने जीवन में लागू करने के भी प्रयास करते हैं। किन्तु ऐसा
करने से वे मसीही विश्वासी, परमेश्वर की संतान, स्वर्ग के वारिस नहीं हो जाते हैं। क्योंकि वे प्रभु के जन नहीं हैं,
इसलिए वे परमेश्वर पवित्र आत्मा की बजाए, मनुष्यों से और मनुष्यों
के ज्ञान तथा पुस्तकों से बाइबल के बारे में सीखते हैं; इसलिए
बाइबल की सही शिक्षा से वंचित रहते हैं (1 कुरिन्थियों 2:10-15)। उन्हें बाइबल के बारे में बहुत सा ज्ञान तो हो सकता है, किन्तु उनके द्वारा की जाने वाली बाइबल की व्याख्या और दी जाने वाली
शिक्षाओं में किताबी ज्ञान या मनुष्यों के विचार भरे होते हैं, और वह आत्मिकता और आत्मिक सामर्थ्य नहीं होती है जो परमेश्वर पवित्र आत्मा
की अगुवाई में बाइबल सीखने, पालन करने, और सिखाने में देखने को मिलती है, “जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़
उसके उपदेश से चकित हुई। क्योंकि वह उन के शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु
अधिकारी के समान उन्हें उपदेश देता था” (मत्ती 7:28-29)।
2. प्रार्थना करना: जो बात ऊपर बाइबल की शिक्षाओं के संबंध में कही गई है, वही प्रार्थना करने के विषय भी सत्य है। प्रार्थना करना, परमेश्वर से वार्तालाप करना है; एक घनिष्ठ, विश्वासयोग्य, सर्वसामर्थी अंतरंग मित्र के साथ अपने
मन की बात साझा करना, और उससे अपनी भलाई के लिए परामर्श
प्राप्त करना, और फिर उस परामर्श का पालन करना। किन्तु
अधिकांश लोगों के लिए प्रार्थना एक औपचारिकता है, कुछ रटी
हुई बातों को दोहराते रहना है, और कुछ के लिए तो इन बातों को
दोहराते रहने की एक निर्धारित संख्या को पूरा करना है। वे कभी आत्मिकता में प्रभु
के साथ जुड़ कर उसके साथ यह प्रार्थना रूपी वार्तालाप नहीं करने पाते हैं। अधिकांश
लोग तो प्रार्थना के नाम पर न केवल परमेश्वर को अपनी समस्या बताते हैं, वरन उसे यह भी बताते हैं कि वह उस समस्या का क्या समाधान करे, कैसे करे, कब करे, और उसके साथ-साथ
उनके लिए और क्या कुछ करे। वे परमेश्वर को अल्लादीन के चिराग के जिन्न के समान
प्रयोग करना चाहते हैं - प्रार्थना रूपी ‘चिराग’ को रगड़ा, और ‘परमेश्वर’
नामक जिन्न को बता दिया कि वह उनके लिए क्या करे, और कैसे करे, आदि। उन्हें परमेश्वर की इच्छा जानने और पूरी करने में कोई
रुचि नहीं होती है; वे केवल परमेश्वर को अपनी स्वार्थ-सिद्धि
और सांसारिक बातों की उन्नति के लिए प्रयोग करना चाहते हैं।
उसी गणित के समीकरण के समान, जैसे मसीही विश्वासी भी
प्रार्थना करते हैं, ये औपचारिकता निभाने वाले भी ‘प्रार्थना’ के नाम पर कुछ करते हैं; किन्तु दोनों की ‘प्रार्थना’ में
जमीन-आसमान का अंतर है। मसीही विश्वासी परमेश्वर से उसकी इच्छा जानकर उसे पूरी
करने, परमेश्वर के लिए उपयोगी होने के लिए प्रार्थना करता और
सामर्थ्य माँगता है; रस्म या औपचारिकता को निभाने वाले
परमेश्वर को अपनी इच्छाएं और लालसाएँ बताकर, उसे अपने लिए
प्रयोग करने और सांसारिक बातों में बढ़ना चाहते हैं। उनके शिष्यों के अनुरोध पर कि प्रार्थना
क्या है, और उसका खाका कैसा होना चाहिए, यह समझाने तथा प्रार्थना करने में लोगों की सहायता के लिए प्रभु ने उन्हें
प्रार्थना से संबंधित कुछ शिक्षाएं (मत्ती 6:5-15) और नमूने
के रूप में एक प्रार्थना (पद 9-13) दी।
गणित के समीकरण समान “मसीही विश्वासी
प्रार्थना करता है; इसलिए प्रार्थना करने वाला मसीही
विश्वासी होता है” देखने वालों, और इसे
औपचारिकता के समान निभाने वालों ने प्रभु के द्वारा दी गई इस नमूने की प्रार्थना
को भी एक रस्म और औपचारिकता बना दिया है। और अब प्रभु द्वारा दिया गया प्रार्थना
का यह नमूना “प्रभु की प्रार्थना” के
नाम से रट कर, बिना उस पर विचार किए, बिना
उसे समझे, मसीही या ईसाई धर्म के मानने वालों के द्वारा धर्म
और कर्म के निर्वाह के लिए बड़ी निष्ठा के साथ दोहराया जाता है। उनकी कोई प्रार्थना,
कोई सभा, कोई रस्म बिना इस रटी हुई ‘प्रार्थना’ को व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रीति से
दोहराए पूरी ही नहीं होती है; और यदि ऐसा न करवाया जाए,
तो उन्हें लगता है कि कुछ अपूर्ण और अधूरा रह गया है जिसका कुछ बुरा
परिणाम आ सकता है। इनमें से कोई भी जन, न सामान्य व्यक्ति और
न ही धार्मिक अगुवा इस बात पर ध्यान करता है कि प्रभु ने स्पष्ट कहा कि “इस रीति से प्रार्थना किया करो”; न कि
“यह प्रार्थना किया करो’। और न वे इस बात का ध्यान करते हैं कि सुसमाचारों के अतिरिक्त, संपूर्ण नए नियम में और कहीं भी न तो किसी व्यक्ति अथवा प्रेरित ने और न
ही किसी और ने कभी भी यह ‘प्रार्थना’ फिर
कभी दोहराई, या उसे करने के विषय शिक्षा दी, या लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित किया। सुसमाचारों में भी, जहाँ प्रभु ने यह शिक्षा दी और शिष्यों को प्रार्थना का यह खाका या नमूना
दिया, उसके अतिरिक्त फिर कभी न तो प्रभु ने और न उनके शिष्यों
ने कभी भी इस नमूने को एक अनिवार्य प्रार्थना के समान दोहराया या स्मरण करवाया,
या इसे अनिवार्य बनाया।
शेष दो बातों के
पालन से संबंधित परमेश्वर के वचन बाइबल की कुछ शिक्षाओं को हम अगले लेख में आगे
देखेंगे। किन्तु यदि आपने अभी तक अपने आप को प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में
समर्पित नहीं किया है, और आप अभी भी अपने जन्म अथवा संबंधित
धर्म तथा उसकी रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं,
तो आपको भी अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकलकर सच्चाई को स्वीकार करने
और उसका पालन करने की आवश्यकता है। आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को
सुधारने का अवसर है; प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा
माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता
में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको
स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है,
और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना
और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं
आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को
अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही,
गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन
जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे
पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता
हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके
वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को,
अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यशायाह
28-29
- फिलिप्पियों 3
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