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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

सर्वसामर्थी


   हम में से जितने किसी त्रासदी से होकर निकले हैं और फिर इसके बारे में परमेश्वर से प्रश्न पूछने का साहस किया है, उन सब के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल में अय्यूब की पुस्तक के 38वें अध्याय में विचार करने के लिए बहुत कुछ है। ज़रा कल्पना कीजिए कि अपने इलाके की जानी-मानी हस्ती अय्यूब को कैसा अनुभव हुआ होगा जब एक आंधी में से उसे परमेश्वर कि वाणी सुनाई दी और "तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया, यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है? पुरुष की नाईं अपनी कमर बान्ध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे" (अय्यूब 38:1-3) - उसका तो गला सूख गया होगा; अय्यूब ने अपने को चींटी के समान छोटा सा अनुभव किया होगा।

   इसके आगे के पदों में अय्यूब से किए गए परमेश्वर के प्रश्न ना केवल अनपेक्षित थे वरन हिला देने वाली सामर्थ भी रखते थे। परमेश्वर ने अय्यूब के अपनी त्रासदी से संबंधित उसके द्वारा उठाए "ऐसा क्यों?" वाले किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया; वरन परमेश्वर ने अय्यूब का ध्यान अपनी सृजने की शक्ति जिससे उसने इस सृष्टि की रचना करी तथा सृष्टि को संभालने की अपनी सामर्थ की ओर खींचा और उसे जताया कि वही है जो इस संपूर्ण सृष्टि की हर बात को नियंत्रित एवं संचालित करता है। तात्पर्य था कि अय्यूब समझ सके कि यह सब स्पष्ट प्रमाण है कि उसे अपनी परिस्थितियों और जीवन के लिए परमेश्वर पर पूरा पूरा भरोसा रखना चाहिए।

   परमेश्वर ने ना केवल इस पृथ्वी की रचना और संचालन और इस पर विद्यमान एवं कार्यकारी विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों की ओर अय्यूब का ध्यान खींचा, वरन आकाश के तारागण और विभिन्न नक्षत्र समूहों की ओर भी उसे देखने को कहा और पूछा कि क्या वह समझता है कि कैसे ये सब आपस में तालमेल के साथ बने रहते हैं तथा अपने अपने उद्देश्य पूरे करते रहते हैं? अद्भुत सृष्टि और विशाल आकाश के भव्य तारागण के सामने मनुष्य कितना गौण है!

   किंतु जो परमेश्वर उन तारगणों को अपने हाथों में रख कर नियंत्रित एवं संचालित करता है, वह मनुष्य की गति को भी उतनी ही कुशलता और बारीकी से नियंत्रित तथा संचालित करता है। उसकी दृष्टि से एक भी चीज़ पल भर के लिए भी ओझल नहीं होती; वह वास्तव में सर्वसामर्थी है। इसीलिए जो जीवन उसके हाथों में समर्पित कर दिया गया है, वही सबसे सुरक्षित है और उस जीवन के लिए अन्ततः हर बात के द्वारा परमेश्वर भलाई ही उत्पन्न करेगा। - डेव ब्रैनन


वह जो अंतरिक्ष में नक्षत्रों को थामे रहता है, पृथ्वी पर अपने लोगों को भी वैसे ही थामे रहता है।

इस कारण मैं इन दुखों को भी उठाता हूं, पर लजाता नहीं, क्योंकि मैं उसे जिस की मैं ने प्रतीति की है, जानता हूं; और मुझे निश्‍चय है, कि वह मेरी थाती की उस दिन तक रखवाली कर सकता है। - 2 तिमुथियुस 1:12 

बाइबल पाठ: अय्यूब 38:1-11;31-33
Job 38:1 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया,
Job 38:2 यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है?
Job 38:3 पुरुष की नाईं अपनी कमर बान्ध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे।
Job 38:4 जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे।
Job 38:5 उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा?
Job 38:6 उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई, वा किस ने उसके कोने का पत्थर बिठाया,
Job 38:7 जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे?
Job 38:8 फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया;
Job 38:9 जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लपेट दिया,
Job 38:10 और उसके लिये सिवाना बान्धा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़ें लगा दिए, कि
Job 38:11 यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडने वाली लहरें यहीं थम जाएं?
Job 38:31 क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूंथ सकता वा मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है?
Job 38:32 क्या तू राशियों को ठीक ठीक समय पर उदय कर सकता, वा सप्तर्षि को साथियों समेत लिये चल सकता है?
Job 38:33 क्या तू आकाशमण्डल की विधियां जानता और पृथ्वी पर उनका अधिकार ठहरा सकता है?

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 6-7 
  • लूका 20:27-47


रविवार, 28 अप्रैल 2013

ईश-विरोधी


   हाल ही में मैंने एक पुस्तक सुनी - उस पुस्तक के लेखक ने स्वयं ही उसे पढ़कर रिकॉर्ड किया था। वह लेखक नास्तिकता का घोर समर्थक था और बड़े रोष, व्यंग्य और कटुता के साथ अपनी रचना को पढ़ रहा था और मैं सोच रहा था कि ऐसा क्यों है कि यह व्यक्ति इतनी कड़ुवाहट से भरा है? वह अपनी बात और अपने विचार सामन्य ढंग से और साधारण भाषा में भी तो व्यक्त कर सकता है!

   परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि जो परमेश्वर का इन्कार करते रहते हैं और उसकी चेतावनियों को नहीं मानते वे वास्तव में उसके प्रति और कटुता एवं घृणा रखने लग जाते हैं, क्योंकि फिर परमेश्वर भी उन्हें उनके मन की करने को स्वतंत्र छोड़ देता है और वे बद से बदतर होते जाते हैं: "और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें। सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, बदनाम करने वाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरों का अनादर करने वाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातों के बनाने वाले, माता पिता की आज्ञा न मानने वाले। निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मायारिहत और निर्दयी हो गए" (रोमियों 1:28-31)। परमेश्वर से मुँह मोड़ लेने से कोई मनुष्य धर्मनिरपेक्ष तटस्थता की ओर नहीं जाता, वरन धर्म तथा सदाचार से भी विमुख हो जाता है।

   संसार का इतिहास गवाह है कि जैसे जैसे समाज से परमेश्वर के नाम और नियमों को हटाने के प्रयास बढ़े हैं, समाज में अराजकता, आपसी कलह, दुराचार आदि भी बढ़ा है। ना मनुष्यों के ज्ञान ने और ना ही उनकी संपन्नता ने उन्हें सदाचार की ओर मोड़ा है; सबसे धनी और सबसे अधिक शिक्षित देशों में भी जहाँ जहाँ लोग परमेश्वर के विमुख हुए तो उनके समाज अशान्ति, तथा सामाजिक एवं नैतिक पतन की ओर ही गए हैं। जहाँ परमेश्वर का नाम और नियम आदर पाते हैं उन परिवारों और समाजों में शांति और सदाचारिता अन्य सभी से अधिक देखने को मिलती है।

   जब हम नास्तिक और अन्य मसीह विरोधी लोगों द्वारा परमेश्वर के विरुद्ध कार्य और प्रचार होते देखते-सुनते हैं तो हम मसीही विश्वासियों का क्या रवैया होना चाहिए? घृणा और बैर के प्रत्युत्तर में घृणा और बैर देना तो बहुत सरल है, परन्तु परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है कि हम सत्य का बचाव विरोध से नहीं वरन प्रेम से करें: "और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहिचानें" (2 तिमुथियुस 2:25)। जब लोगों ने परमेश्वर की ओर से अपना मुँह फेरा और उसके विरोध में बातें करीं और कहीं, तो परमेश्वर ने तुरंत ही उनसे कोई बदला नहीं लिया। चाहे परमेश्वर ने उनके चुनाव के अनुसार उन्हें छोड़ दिया हो और उनसे सीधे-सीधे संपर्क ना रखा हो, परन्तु उसने उन्हें तजा कदापि नहीं; वरन हम मसीही विश्वासियों को यह ज़िम्मेदारी दे दी कि हम अपने जीवन, प्रेम और उदाहरण से उन्हें उनकी गलती का एहसास कराएं और सच्चाई का नमूना उनके सामने रखें जिससे वे मन फिराव की ओर आ सकें।

   अगली बार जब आपका सामना किसी नास्तिक या ईश-विरोधी से हो, और चाहे आप उसकी कटुता से आहत भी हों, तो भी अपने रवैये का आंकलन अवश्य कर लें; और फिर परमेश्वर से मांगें कि वह आपको धैर्य और संयम का आत्मा दे जिससे आप नम्रता और प्रेम पूर्वक उसके सामने सत्य को जानने और अनुसरण करने का सजीव उदाहरण प्रस्तुत कर सकें। क्या जाने आपका उदाहरण और आपके जीवन की गवाही उसके जीवन में क्या परिवर्तन ले आए। - डेनिस फिशर


सत्य का बचाव प्रेम से ही संभव है।

और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; - रोमियों 1:28

बाइबल पाठ: 2 तिमुथियुस 2:22-26
2 Timothy 2:22 जवानी की अभिलाषाओं से भाग; और जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेते हैं, उन के साथ धर्म, और विश्वास, और प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर।
2 Timothy 2:23 पर मूर्खता, और अविद्या के विवादों से अलग रह; क्योंकि तू जानता है, कि उन से झगड़े होते हैं।
2 Timothy 2:24 और प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो।
2 Timothy 2:25 और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहिचानें।
2 Timothy 2:26 और इस के द्वारा उस की इच्छा पूरी करने के लिये सचेत हो कर शैतान के फंदे से छूट जाएं।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 3-5 
  • लूका 20:1-26


शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कानाफूसी के शब्द


   लंडन शहर का सैलानियों के लिए एक प्रमुख स्थान है वहाँ का विशाल और भव्य ’सेंट पॉल्स कैथेड्रल’। सर क्रिस्टोफर वैरन द्वारा योजनबद्ध रीति से बनवाया गया यह प्राचीन गिरजाघर सबसे अधिक अपने विशाल गुम्बद के लिए जाना जाता है। इस गुम्बद में वास्तुशिल्प का एक अनोखा नमूना है - ’व्हिस्परिंग गैलरी’; यह एक ऐसा गलियारा है जहां दीवार की ओर मुँह करके कही गई हल्की सी फुसफुसाहट भी दूसरे छोर पर स्पष्ट सुनाई देती है क्योंकि उस गुम्बद की गोलाकार रचना आवाज़ को पूर्ण रीति से एक से दूसरे स्थान पहुँचा देती है। इस कारण दो जन एक दुसरे की ओर पीठ करके, विपरीत छोरों पर बैठकर केवल फुसफुसाते हुए एक दूसरे से बात कर सकते हैं।

   सेंट पॉल कैथेड्रल की यह रोचक विशेषता हमें एक अन्य तथ्य के लिए सचेत भी करती है - दूसरों के लिए फुसफुसा कर कही गई हमारी बातें भी अन्य लोगों तक पहुँच सकती हैं। हमारी कानाफूसी और इधर-उधर की बातें ना केवल यहाँ-वहाँ पहुंच सकती हैं, वरन वे बहुत हानि भी पहुंचा सकती हैं। इसीलिए परमेश्वर का वचन बाइबल अनेक बार पाठकों को अपने शब्दों के सही उपयोग के लिए चिताती है। बुद्धिमान राजा सुलेमान ने लिखा: "जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है" (नीतिवचन 10:19)।

   बजाए इसके कि हम दूसरों को चोट पहुँचाने वाली अथवा औरों का नुकसान करने वाली बातें कानाफूसी में भी कहें, भला होगा कि यदि हम मुँह खोलें तो दूसरों की भलाई के लिए, उन्हें आशीष देने के लिए या फिर परमेश्वर की स्तुति और आराधना के लिए; क्योंकि यह ना केवल औरों का भला करेगा, वरन स्वयं हमारी भलाई और आशीष का भी कारण बनेगा। - बिल क्राउडर


व्यर्थ कानाफूसी का अन्त बुद्धिमान के कान तक पहुँचने पर हो जाता है।

जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। - नीतिवचन 10:19

बाइबल पाठ: नीतिवचन 10:11-23
Proverbs 10:11 धर्मी का मुंह तो जीवन का सोता है, परन्तु उपद्रव दुष्टों का मुंह छा लेता है।
Proverbs 10:12 बैर से तो झगड़े उत्पन्न होते हैं, परन्तु प्रेम से सब अपराध ढंप जाते हैं।
Proverbs 10:13 समझ वालों के वचनों में बुद्धि पाई जाती है, परन्तु निर्बुद्धि की पीठ के लिये कोड़ा है।
Proverbs 10:14 बुद्धिमान लोग ज्ञान को रख छोड़ते हैं, परन्तु मूढ़ के बोलने से विनाश निकट आता है।
Proverbs 10:15 धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल लोग निर्धन होने के कारण विनाश होते हैं।
Proverbs 10:16 धर्मी का परिश्रम जीवन के लिये होता है, परन्तु दुष्ट के लाभ से पाप होता है।
Proverbs 10:17 जो शिक्षा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डांट से मुंह मोड़ता, वह भटकता है।
Proverbs 10:18 जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है, और जो अपवाद फैलाता है, वह मूर्ख है।
Proverbs 10:19 जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है।
Proverbs 10:20 धर्मी के वचन तो उत्तम चान्दी हैं; परन्तु दुष्टों का मन बहुत हलका होता है।
Proverbs 10:21 धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन पोषण होता है, परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं।
Proverbs 10:22 धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता।
Proverbs 10:23 मूर्ख को तो महापाप करना हंसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझ वाले पुरूष में बुद्धि रहती है।

एक साल में बाइबल: 1 राजा 1-2 लूका 19:28-48

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

कल्पना से बाहर


   जब कभी मैं और मेरी पत्नि कहीं छुट्टियाँ बिताने जाने की योजना बनाते हैं तो हम उस स्थान के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित करते हैं, वहाँ से संबंधित नक्शों और चित्रों का अध्ययन करते हैं और फिर उन बातों को प्रत्यक्ष देखने के रोमांच से भरे वहाँ पहुँचने की प्रतीक्षा में रहते हैं। जो लोग मसीही विश्वासी हैं, उनका भी एक गन्तव्य स्थान है - स्वर्ग, जहाँ वे अनन्त काल तक अपने प्रभु और उद्धारकर्ता मसीह यीशु के साथ रहेंगे।

   लेकिन मुझे यह कुछ विचित्र सा लगता है कि बहुतेरे मसीही विश्वासी स्वर्ग पहुँचने और वहाँ के बारे में जानने में अधिक रुचि नहीं लेते। ऐसा क्यों? संभवतः इसलिए क्योंकि हम स्वर्ग को अधिक समझ नहीं पाते। हम वहाँ चोखे सोने से बनी सड़कों और मोतियों से बने द्वारों की बात तो करते हैं, किन्तु वास्तव में वह कैसा स्थान है और वहाँ हम क्या कुछ देखने पाएंगे, किन किन से मिलने पाएंगे, क्या कुछ करेंगे आदि बातें स्वर्ग के बारे में हमारी उत्सुकता को जगाने नहीं पातीं।

   मेरे विचार से स्वर्ग के बारे में कही गई बातों में से सबसे गहन प्रेरित पौलुस द्वारा फिलिप्पियों की मण्डली को लिखी पत्री के एक पद में मिलती है; पौलुस ने कहा: "... जी तो चाहता है कि कूच कर के मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है" (फिलिप्पियों 1:23)। जब मेरे 8 वर्षीय पोते ने स्वर्ग के बारे में मुझ से पूछा तो मैंने उसे यही उत्तर दिया। अपने उत्तर को देने से पहले मैंने उससे पूछा, "तुम्हारे जीवन में सबसे रोमांचक बात कौन सी है?" उसने अपने कंप्यूटर पर खेले जाने वाले खेलों के बारे में बताना आरंभ किया और कंप्यूटर पर वह क्या कुछ कर लेता है। तब मैंने उससे कहा, स्वर्ग इन सबसे भी कहीं अधिक अच्छा और रोमांचकारी है। उसने थोड़ा सा सोच कर उत्तर दिया, "दादा, इस की तो कल्पना भी करना कठिन है।"

   आप अपने जीवन में किस बात की आशा रखते हैं? क्या है जो आपको उत्तेजित करता है? क्या है जिसकी कल्पना मात्र भी आपको रोमांचित कर देती है? वह जो कुछ भी हो, स्वर्ग उससे भी कहीं बढकर है - चाहे यह बात कल्पना से बाहर ही क्यों ना हो! - जो स्टोवैल


आप जितना स्वर्ग की प्रतीक्षा में रहेंगे, पृथ्वी की इच्छाएं उतनी ही कम होती जाएंगी।

क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच कर के मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है। - फिलिप्पियों 1:23

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 1:19-26
Philippians 1:19 क्योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा।
Philippians 1:20 मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं या मर जाऊं।
Philippians 1:21 क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
Philippians 1:22 पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं।
Philippians 1:23 क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच कर के मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है।
Philippians 1:24 परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है।
Philippians 1:25 और इसलिये कि मुझे इस का भरोसा है सो मैं जानता हूं कि मैं जीवित रहूंगा, वरन तुम सब के साथ रहूंगा जिस से तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उस में आनन्‍दित रहो।
Philippians 1:26 और जो घमण्‍ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 शमूएल 23-24 
  • लूका 19:1-27


गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

अपना भोजन


   नॉर्फोक वन्स्पति उद्यान में लगे एक कैमरे से बड़ा रोचक घटनाक्रम दिखाया जा रहा था - उस उद्यान में चील के एक घोंसले में चील के तीन चूज़े भूखे थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके माता-पिता इस बात कि अन्देखी कर रहे हैं। उन चूज़ों में से एक ने स्वयं ही अपनी भूख की समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया - वह अपने पास की घोंसले की लकड़ी को चबाने का प्रयास करने लगा। किंतु शीघ्र ही उसने यह करना छोड़ दिया - संभवतः उसे वह स्वादिष्ट नहीं लगी, या वह उसे चबा नहीं पाया।

   लेकिन जिस बात ने मुझे विस्मित किया वह चूज़े का लकड़ी चबाने का प्रयास नहीं था, वरन यह कि उन चूज़ों के पीछे ही एक बड़ी मछली घोंसले में पड़ी हुई थी, लेकिन वे उसे अपना पेट भरने के लिए उपयोग नहीं कर रहे थे। उन चूज़ों ने अब तक अपना भोजन आप लेना नहीं सीखा था; वे अभी भी अपने माता-पिता द्वारा भोजन छोटे छोटे टुकड़ों में बना कर उनके मुँह में डाले जाने के आदी थे। संभवतः चूज़ों के माता-पिता उन चूज़ों को अपनी निगरानी में भूखा रख कर प्रयास कर रहे थे कि चूज़े भोजन को पहचानें और अपना भोजन आप ही खाना सीखें - क्योंकि यदि वे अपना भोजन आप जुटाना और खाना नहीं सीखेंगे तो फिर उनका जीवित बने रहना खतरे में पड़ जाएगा।

   आत्मिक जीवन में भी यह बात इतनी ही महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग आत्मिक संगति तो करते हैं परन्तु सदा ही आत्मिक शिक्षाओं और उससे होने वाली आत्मिक बढ़ोतरी के लिए दूसरों पर ही निर्भर रहते हैं। परमेश्वर अपने प्रत्येक सन्तान को व्यक्तिगत रीति से सिखाना चाहता है, उनसे संपर्क रखना चाहता है, किंतु लोग इस बात को अन्देखा कर, परमेश्वर की बजाए अन्य मनुष्यों पर ही निर्भर रहते हैं। यह समस्या आज की नहीं है, यही प्रवृति पुराने नियम में इस्त्राएली समाज में और फिर नए नियम में प्राथमिक मसीही विश्वासी मण्डली में भी देखी जाती थी तथा आज भी मसीही विश्वासी मण्डलियों में विद्यमान है। बजाए परमेश्वर की उपस्थिति में परमेश्वर के वचन बाइबल के साथ बैठ कर उस पर स्वयं मनन करने के, वे सदा दूसरों के मनन और प्रवचन से सीखने की प्रवृति रखते हैं। आत्मिक भोजन उनके पास है, परन्तु उसे ग्रहण करना वे नहीं जानते, और इस कारण आत्मिक रीति से कमज़ोर रहते हैं। इब्रानियों की मण्डली को लिखी अपनी पत्री में लेखक के द्वारा परमेश्वर का आत्मा कहता है: "समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए" (इब्रानियों 5:12)।

   प्रचारकों और वचन के शिक्षकों से परमेश्वर के वचन को सीखना अच्छा है और कई बातों में लाभप्रद भी है, किंतु यह कभी स्वयं परमेश्वर के वचन पर मनन के द्वारा परमेश्वर से सीखने का स्थान नहीं ले सकता। आत्मिक सामर्थ और बढ़ोतरी के लिए अपना आत्मिक भोजन आप जुटाना भी आवश्यक है। - जूली ऐकरमैन लिंक


आत्मिक बढ़ोतरी परमेश्वर के वचन के ठोस भोजन से ही संभव है।

समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। - इब्रानियों 5:12

बाइबल पाठ: इब्रानियों 5:12-6:2
Hebrews 5:12 समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए।
Hebrews 5:13 क्योंकि दूध पीने वाले बच्‍चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है।
Hebrews 5:14 पर अन्न सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्‍द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।
Hebrews 6:1 इसलिये आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़ कर, हम सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने।
Hebrews 6:2 और बपतिस्मों और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्‍तिम न्याय की शिक्षारूपी नेव, फिर से न डालें।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 शमूएल 21-22 
  • लूका 18:24-43


बुधवार, 24 अप्रैल 2013

वैध प्रवेश


   मैं अपनी पत्नि के साथ अमेरिका से बाहर के एक देश में शिक्षण कार्य के लिए निकला। जिस देश में हमें जाना था जब हम वहाँ पहुँचे तो हमारे वीसा (प्रवेश आज्ञा पत्र) में कुछ गड़बड़ के कारण हमें प्रवेश करने से रोक दिया गया। हम इस विश्वास में थे कि हमें बिलकुल सही वीसा मिले हैं, परन्तु जब उस देश में प्रवेश करने के लिए उन्हें जांचा गया तो उनमें त्रुटियाँ पाई गईं। कई लोगों, सरकारी और गैर-सरकारी ने, हमारे प्रवेश कर पाने के लिए बहुत प्रयास किए, हमारे भले उद्देश्य और अच्छे चरित्र की दुहाई दी, किंतु कुछ भी नहीं हो सका और हमें अमेरिका जाने वाले अगले ही वायु यान में बैठा कर वापस भेज दिया गया। किसी की ओर से कोई भी प्रयास इस तथ्य को बदल नहीं सका कि हमारे प्रवेश पत्र वैध नहीं थे और हमें उन अवैध प्रवेश पत्रों के आधार पर प्रवेश कदापि नहीं मिल सकता था। हमारे चरित्र, हमारे उद्देश्य, हमारे कार्य, हमारे लिए करी गई सिफारिशें आदि कुछ भी काम नहीं आए और हमें लौटना ही पड़ा। केवल एक ही उपाय था, एक नए कार्यक्रम के अन्तर्गत और वैध तथा सही प्रवेश पत्र लेकर हम पुनः वहाँ आएं।

   वीसा संबंधित यह अनुभव अति असुविधाजनक तो था, लेकिन इससे मेरा ध्यान एक और प्रकार के अवैध प्रवेशों के प्रयासों की ओर गया, जिनमें संसार का प्रायः अधिकांश लोग लिप्त रहते आए हैं और लिप्त हैं। मेरा तात्पर्य स्वर्ग में परमेश्वर के पास प्रवेश से है। अन्तिम क्षण पर जब फिर कभी कुछ नहीं हो सकता, स्वर्ग के द्वार से लौटना एक ऐसा दर्दनाक और भयावह अनुभव है जिसकी कल्पना भी हम मनुष्यों की बुद्धि से परे है और उस परदेश की सीमा से हमारे लौटने की असुविधा तो उसके सामने कुछ भी नहीं है। संसार के लोग इस बात को भूल जाते हैं या अन्देखा करते हैं कि स्वर्ग परमेश्वर का निवास स्थान है, कोई छुट्टी बिताने या सैलानियों के समान कुछ समय के लिए घूमने जाने का स्थान नहीं है जहां आप अपनी इच्छा, अपनी योजनाओं और अपनी सुविधानुसार पहुंच जाएं। परमेश्वर के निवास स्थान में जो प्रवेश पाएगा वह परमेश्वर की अनुमति से और परमेश्वर द्वारा निर्धारित शर्तों के आधार पर ही यह करने पाएगा; ना कि अपनी इच्छा, अपनी योजनाओं या अपनी किन्ही योग्यताओं के आधार पर।

   ऐसे असंख्य लोग हैं जो अपने धर्म-कर्म और भलाई के जीवन को इस प्रवेश के लिए वैध समझते हैं, किंतु परमेश्वर का वचन सभी मनुष्यों के लिए कहता है "जैसा लिखा है, कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं। इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं" (रोमियों 3:10, 11, 23)। बहुतेरे अपने अच्छे चरित्र और समाज में अच्छे नाम को प्रवेश के लिए वैध समझते हैं, किंतु परमेश्वर का वचन कहता है "हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है" (यशायाह 64:6)। कितने ही अपने पूर्वजों के नाम और अपनी उच्च वंशावली को अपने लिए स्वर्ग में प्रवेश का वैध आधार मानते हैं, लेकिन परमेश्वर का वचन सिखाता है कि "क्योंकि तुम जानते हो, कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बाप दादों से चला आता है उस से तुम्हारा छुटकारा चान्दी सोने अर्थात नाशमान वस्‍तुओं के द्वारा नहीं हुआ" (1 पतरस 1:18 )। परमेश्वर की चेतावनी सब के  लिए है: "हे भाइयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न विनाशी अविनाशी का अधिकारी हो सकता है" (1 कुरिन्थियों 15:50); "यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता। क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है" (यूहन्ना 3:3, 6)।

   परमेशवर के निवास स्थान अर्थात परमेश्वर के पास प्रवेश का केवल एक ही वैध प्रवेश मार्ग है: "यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता" (यूहन्ना 14:6)। केवल प्रभु यीशु ही है जिसने समस्त मानव जाति के पापों लिए अपने प्राणों के बलिदान और फिर मृत्कों में से पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर के पास प्रवेश का मार्ग संभव किया है और केवल वह ही परमेश्वर की उपस्थिति में आने के लिए हमें उस पर लाए गए विश्वास और उससे प्राप्त होने वाली पापों की क्षमा द्वारा वैध प्रवेश प्रदान कर सकता है।

   क्या आपने प्रभु यीशु पर विश्वास किया है, उससे पापों की क्षमा मांगी है? समय कब पूरा हो जाए और अन्तिम यात्रा कब करनी पड़ जाए, कोई नहीं जानता। अब और अभी ही स्वर्ग में अपने प्रवेश की वैधता को सुनिश्चित कर लीजिए। - बिल क्राउडर


केवल प्रभु यीशु के माध्यम से ही हम प्रमेश्वर पिता के समक्ष प्रवेश पा सकते हैं।

यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता। - यूहन्ना 14:6

बाइबल पाठ: यूहन्ना 14:1-10
John 14:1 तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।
John 14:2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं।
John 14:3 और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।
John 14:4 और जहां मैं जाता हूं तुम वहां का मार्ग जानते हो।
John 14:5 थोमा ने उस से कहा, हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहां जाता है तो मार्ग कैसे जानें?
John 14:6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
John 14:7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।
John 14:8 फिलेप्पुस ने उस से कहा, हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।
John 14:9 यीशु ने उस से कहा; हे फिलेप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूं, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा।
John 14:10 क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूं, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 शमूएल 19-20 
  • लूका 18:1-23

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

सहायता


   अमेरिका के बहुत से वन प्राणी संख्या में घटते जा रहे हैं और उनकी प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर पहुँच रही हैं। इस स्थिति का एक प्रमुख कारण शिकारीयों की बन्दूकें नहीं वरन सड़कों पर भारी यातायात और रिहायशी इलाकों की बढ़ती हुई सीमाएं हैं जो उनके विचरण और रहने के क्षेत्रों पर कब्ज़ा जमाते जा रहे हैं और उन वन प्राणियों को विस्थापित कर रहे हैं। मुझे इन वन प्राणियों की दयनीय स्थिति का सजीव उदाहरण तब देखने को मिला जब मैं एक बार गाड़ी चलाते हुए जा रहा था कि अचानक एक मादा हिरन बड़ी तेज़ी से मेरी गाड़ी के आगे से होकर भागी, फिर सड़क की दूसरी ओर पहुँच कर रुक गई और पलट कर देखने लगी। मैंने भी उसी ओर देखा जिधर उसकी नज़रें लगी थीं और पाया कि उसके दो नन्हे शावक बड़ी बेबसी से सड़क के पार खड़ी अपनी माँ की ओर देख रहे थे, लेकिन सड़क पर चल रही गाड़ियों के कारण पार नहीं हो पा रहे थे। कुछ देर तक ऐसे ही बेबस खड़े रहने के बाद वे दोनो बच्चे वापस जंगल की ओर मुड़ गए; शायद एक परिवार सदा के लिए एक दुसरे से बिछड़ गया था।

   संसार पर पाप के प्रभाव, सांसारिकता तथा जीवन में पाप की प्रवृति से समस्त मानव जाति भी विनाश के कगार पर खड़ी है। पाप की इस अव्यवस्था के दुषप्रभाव से, उस हिरनी और उसके शावकों के समान, हम भी अपने आप को अनापेक्षित परिस्थितियों, अनभिज्ञ खतरों अथवा विषम परिस्थितियों में पा कर असहाय तथा निरुपाय अनुभव कर सकते हैं। पाप के प्रभाव और दोष से पार पाने में हमारे अपने प्रयास और क्षमताएं तथा योजनाएं चाहे अक्षम हों, लेकिन वास्तव में हम असहाय या निरुपाय नहीं हैं; हम सब को पाप के दोष और उसके दुषप्रभावों से बचाने के लिए स्वर्गीय परमेश्वर पिता की सहायता की उपल्बध है। चाहे वे दुषपरिणाम पूर्वजों के पापों के कारण हो और हमें उन से उभरने तथा अपने जीवन में उन्हें ना दोहराने की समझ और शक्ति की आवश्यकता हो (नहेमेयाह 9:2-3); या उस प्रेमी परमेश्वर और ध्यानपूर्वक हमारी देखभाल करने वाले धैर्यवान पिता के पास पश्चाताप के साथ लौटने के लिए हिम्मत और सदबुद्धि की आवश्यकता हो (लूका 15:8), परमेश्वर हमारी सहायता के लिए सदैव तत्पर और तैयार है। परमेश्वर ने हमें पाप के दोष से छुड़ाने और स्वर्गीय जीवन जीने के लिए हमारी सहायता करने को प्रभु यीशु के रूप में अपना हाथ हमारी ओर बढ़ाया है। किंतु उसके बढ़े हुए हाथ की ओर अपना हाथ बढ़ाकर उसे थामने और पाप से निवारण के उसके उपाय को स्वीकार करने की बजाए यदि हम अपनी ही सीमित समझ और युक्तियों के सहारे कार्य करते रहेंगे, और फिर परिणामस्वरूप परेशानियों में पड़े रहने को सही एवं बुद्धिमतापूर्ण समझते रहेंगे तो समस्या का निवारण नहीं हो पाएगा।

   केवल हमारा स्वर्गीय परमेश्वर पिता ही हमारे जीवनों के संचालन के लिए हमें वह परिपूर्ण अनुग्रह, संपूर्ण क्षमा, खरा उदाहरण और भीतरी शान्ति प्रदान कर सकता है जिसके साथ हम जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना कर सकें। वह हमारी वास्तविकता, हमारी क्षमता और कमज़ोरियाँ जानता है और इसीलिए उसने अपने पुत्र और संसार के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के द्वारा सेंत-मेंत बचाए जाने, तथा पापों से क्षमा और उद्धार पाने का मार्ग समस्त संसार के सभी लोगों के लिए बना कर दिया है। जो कोई उसके इस खुले निमंत्रण को स्वीकार करके प्रभु के पीछे हो लेता है, उसे वह सहायता के लिए अपना पवित्र आत्मा भी देता है, जो उस व्यक्ति में निवास करता है, उसकी सहायता करता है और उसका मार्गदर्शन करता है।

   परमेश्वर नहीं चाहता कि उसकी सृष्टि, उसके बच्चे अपने पापों में बने रहने के कारण उससे बिछड़ें इसलिए उसने अपने साथ चलने और बने रहने का मार्ग, क्षमा और सामर्थ सब के लिए दे दी है। उसकी इस प्रेम-भेंट को स्वीकार करके उसकी बात को मानना और उसका अनुसरण करना, अब यह प्रत्येक व्यक्ति का अपना निर्णय है। - मार्ट डी हॉन


परमेश्वर की ओर वापस लौट आने का मार्ग इस जीवन में ही खुला मिलता है।

और इस्राएलियों में से बहुतेरों को उन के प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा। - (लूका 1:16)

बाइबल पाठ: मलाकी 4:4-6; मत्ती 1:21-23
Malachi 4:4 मेरे दास मूसा की व्यवस्था अर्थात जो जो विधि और नियम मैं ने सारे इस्रएलियों के लिये उसको होरेब में दिए थे, उन को स्मरण रखो।
Malachi 4:5 देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा।
Malachi 4:6 और वह माता पिता के मन को उनके पुत्रों की ओर, और पुत्रों के मन को उनके माता-पिता की ओर फेरेगा; ऐसा न हो कि मैं आकर पृथ्वी को सत्यानाश करूं।
Matthew 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा।
Matthew 1:22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो।
Matthew 1:23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है “परमेश्वर हमारे साथ”।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 शमूएल 16-18 
  • लूका 17:20-37