हाल ही में मैंने एक पुस्तक सुनी - उस पुस्तक के लेखक ने स्वयं ही उसे पढ़कर रिकॉर्ड किया था। वह लेखक नास्तिकता का घोर समर्थक था और बड़े रोष, व्यंग्य और कटुता के साथ अपनी रचना को पढ़ रहा था और मैं सोच रहा था कि ऐसा क्यों है कि यह व्यक्ति इतनी कड़ुवाहट से भरा है? वह अपनी बात और अपने विचार सामन्य ढंग से और साधारण भाषा में भी तो व्यक्त कर सकता है!
परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि जो परमेश्वर का इन्कार करते रहते हैं और उसकी चेतावनियों को नहीं मानते वे वास्तव में उसके प्रति और कटुता एवं घृणा रखने लग जाते हैं, क्योंकि फिर परमेश्वर भी उन्हें उनके मन की करने को स्वतंत्र छोड़ देता है और वे बद से बदतर होते जाते हैं: "और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें। सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, बदनाम करने वाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरों का अनादर करने वाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातों के बनाने वाले, माता पिता की आज्ञा न मानने वाले। निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मायारिहत और निर्दयी हो गए" (रोमियों 1:28-31)। परमेश्वर से मुँह मोड़ लेने से कोई मनुष्य धर्मनिरपेक्ष तटस्थता की ओर नहीं जाता, वरन धर्म तथा सदाचार से भी विमुख हो जाता है।
संसार का इतिहास गवाह है कि जैसे जैसे समाज से परमेश्वर के नाम और नियमों को हटाने के प्रयास बढ़े हैं, समाज में अराजकता, आपसी कलह, दुराचार आदि भी बढ़ा है। ना मनुष्यों के ज्ञान ने और ना ही उनकी संपन्नता ने उन्हें सदाचार की ओर मोड़ा है; सबसे धनी और सबसे अधिक शिक्षित देशों में भी जहाँ जहाँ लोग परमेश्वर के विमुख हुए तो उनके समाज अशान्ति, तथा सामाजिक एवं नैतिक पतन की ओर ही गए हैं। जहाँ परमेश्वर का नाम और नियम आदर पाते हैं उन परिवारों और समाजों में शांति और सदाचारिता अन्य सभी से अधिक देखने को मिलती है।
जब हम नास्तिक और अन्य मसीह विरोधी लोगों द्वारा परमेश्वर के विरुद्ध कार्य और प्रचार होते देखते-सुनते हैं तो हम मसीही विश्वासियों का क्या रवैया होना चाहिए? घृणा और बैर के प्रत्युत्तर में घृणा और बैर देना तो बहुत सरल है, परन्तु परमेश्वर का वचन हमें सिखाता है कि हम सत्य का बचाव विरोध से नहीं वरन प्रेम से करें: "और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहिचानें" (2 तिमुथियुस 2:25)। जब लोगों ने परमेश्वर की ओर से अपना मुँह फेरा और उसके विरोध में बातें करीं और कहीं, तो परमेश्वर ने तुरंत ही उनसे कोई बदला नहीं लिया। चाहे परमेश्वर ने उनके चुनाव के अनुसार उन्हें छोड़ दिया हो और उनसे सीधे-सीधे संपर्क ना रखा हो, परन्तु उसने उन्हें तजा कदापि नहीं; वरन हम मसीही विश्वासियों को यह ज़िम्मेदारी दे दी कि हम अपने जीवन, प्रेम और उदाहरण से उन्हें उनकी गलती का एहसास कराएं और सच्चाई का नमूना उनके सामने रखें जिससे वे मन फिराव की ओर आ सकें।
अगली बार जब आपका सामना किसी नास्तिक या ईश-विरोधी से हो, और चाहे आप उसकी कटुता से आहत भी हों, तो भी अपने रवैये का आंकलन अवश्य कर लें; और फिर परमेश्वर से मांगें कि वह आपको धैर्य और संयम का आत्मा दे जिससे आप नम्रता और प्रेम पूर्वक उसके सामने सत्य को जानने और अनुसरण करने का सजीव उदाहरण प्रस्तुत कर सकें। क्या जाने आपका उदाहरण और आपके जीवन की गवाही उसके जीवन में क्या परिवर्तन ले आए। - डेनिस फिशर
सत्य का बचाव प्रेम से ही संभव है।
और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; - रोमियों 1:28
बाइबल पाठ: 2 तिमुथियुस 2:22-26
2 Timothy 2:22 जवानी की अभिलाषाओं से भाग; और जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेते हैं, उन के साथ धर्म, और विश्वास, और प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर।
2 Timothy 2:23 पर मूर्खता, और अविद्या के विवादों से अलग रह; क्योंकि तू जानता है, कि उन से झगड़े होते हैं।
2 Timothy 2:24 और प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो।
2 Timothy 2:25 और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहिचानें।
2 Timothy 2:26 और इस के द्वारा उस की इच्छा पूरी करने के लिये सचेत हो कर शैतान के फंदे से छूट जाएं।
एक साल में बाइबल:
- 1 राजा 3-5
- लूका 20:1-26
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