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बुधवार, 29 अगस्त 2012

शांति और स्तुति


   रॉबर्ट लौरे सोचा करते थे कि उनके द्वारा किया गया प्रचार उनके जीवन का सबसे बड़ा योगदान होगा। किंतु १९वीं शताब्दी के इस पास्टर को आज उनके द्वार लिखे गए स्तुति गीतों और उनके द्वारा बनाई गई स्तुति गीतों की धुनों के लिए स्मरण लिया जाता है। उन्होंने अपने जीवन काल में ५०० से भी अधिक परमेश्वर की स्तुति के गीत लिखे या गीतों की धुनें बनाईं; इन में कुछ जाने माने गीत हैं "Christ Arose", "I Need Thee Every Hour", "Shall We Gather" इत्यादि।

   सन १८६० में जब अमेरिका ग्रह युद्ध के कगार पर खड़ा था, लौरे ने एक गीत लिखा जो आस-पास की विनाशकारी परिस्थितियों पर नहीं वरन अविनाशी, अपरिवर्तनीय और अनन्त प्रभु यीशु और उसमें मिलने वाली शांति पर आधारित है। गीत के भाव कुछ इस प्रकार से हैं: "क्या हुआ यदि मेरे आराम और आनन्द के साधन जाते रहे? मेरा प्रभु और उद्धारकर्ता तो जीवित है; क्या हुआ यदि अन्धकार चारों ओर से घेर रहा है? वह अन्धकार में भी स्तुति के गीत देता है: कोई तूफान मेरे अन्दर की शांति को भंग नहीं कर सकता, जब तक मैं उस शरणस्थान में हूँ; क्योंकि मसीह स्वर्ग और पृथ्वी का प्रभु है, मैं उसकी स्तुति गाने से कैसे रुक सकता हूँ?"

   कठिनाईयों के दौर में भी परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखने वाला लौरे का विश्वास परमेश्वर के वचन बाइबल में भजनकार द्वारा लिखे गए शब्दों का स्मरण दिलाता है: "तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वही भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी। क्या ही धन्य वह है, जिसका सहायक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है" (भजन १४६:३-५)।

   हमारा दृष्टिकोण निर्धारित करता है कि कठिन और विषम परिस्थितियों में हमारी प्रतिक्रिया कैसी होगी - शांति की या भय की। यदि हम भजनकार के समान इस बात पर विश्वास रखते हैं कि हमारा प्रभु सदा के लिए और पीढ़ी पीढ़ी तक राज्य करेगा (पद १०) तो लौरे के समान हम भी कह सकते हैं कि "मैं उसकी स्तुति गाने से कैसे रुक सकता हूँ?" - डेविड मैक्कैसलैंड


यदि आप मसीह के साथ तालमेल बना कर रखते हैं तो अन्धकार में भी उसका स्तुति गान कर सकते हैं।

मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा। - भजन १४६:२

बाइबल पाठ: भजन १४६
Psa 146:1  याह की स्तुति करो। हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर! 
Psa 146:2  मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपने परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।
Psa 146:3  तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। 
Psa 146:4  उसका भी प्राण निकलेगा, वही भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।
Psa 146:5  क्या ही धन्य वह है, जिसका सहायक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है। 
Psa 146:6  वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उन में जो कुछ है, सब का कर्ता है; और वह अपना वचन सदा के लिये पूरा करता रहेगा। 
Psa 146:7  वह पिसे हुओं का न्याय चुकाता है; और भूखों को रोटी देता है। यहोवा बन्धुओं को छुड़ाता है; 
Psa 146:8  यहोवा अन्धों को आंखें देता है। यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है; यहोवा धर्मियों से प्रेम रखता है। 
Psa 146:9  यहोवा परदेशियों की रक्षा करता है; और अनाथों और विधवा को तो सम्भालता है, परन्तु दुष्टों के मार्ग को टेढ़ा मेढ़ा करता है।
Psa 146:10  हे सिरयोन, यहोवा सदा के लिये, तेरा परमेश्वर पीढ़ी पीढ़ी राज्य करता रहेगा। याह की स्तुति करो!

एक साल में बाइबल: 
  • भजन १२६-१२८ 
  • १ कुरिन्थियों १०:१९-३३

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

बुद्धिमानी के उत्तर


   जब धार्मिक अगुवे व्यभिचार में पकड़ी गई उस स्त्री को लेकर प्रभु यीशु के पास आए और उससे पुछने लगे कि उस स्त्री के साथ क्या किया जाना चाहिए, तो प्रभु यीशु ने उन्हें तुरन्त उत्तर नहीं दिया; वरन वे नीचे झुककर भूमि पर कुछ लिखने लगे (यूहन्ना ८:६-११)। उन्होंने क्या लिखा यह तो हम नहीं जानते, परन्तु जब भीड़ उनसे पूछती ही रही तो एक छोटे वाक्य में प्रभु यीशु ने अपना उत्तर दे दिया: "...तुममें जो निष्‍पाप हो, वही पहिले उसको पत्थर मारे" (यूहन्ना ८:७)। इस छोटे से वाक्य के थोड़े से शब्द उन धार्मिक अगुवों को उनके अपने पाप दिखाने के लिए काफी थे, और वे सब एक एक करके वहां से चले गए। प्रभु यीशु के ये शब्द आज भी संसार भर में गूंज रहे हैं और लोगों को दूसरों पर दोष देने की बजाए स्वयं अपने पापों के प्रति सचेत रहने को प्रेरित कर रहे हैं।

   इन थोड़े शब्दों के बड़े प्रभावी होने का कारण था प्रभु यीशु की अपने स्वर्गीय पिता पर सदा बने रहने वाली निर्भरता; उन्होंने अपने विषय में कहा, "...उस की आज्ञा अनन्‍त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं" (यूहन्ना १२:५०)। काश हम सब भी प्रभु यीशु के समान सदा अपने परमेश्वर पिता पर निर्भर रहते और उसकी बुद्धिमता पर निर्भर हो कर ही हर बात का उत्तर देने वाले होते।

   यह बुद्धिमानी आरंभ होती है याकूब की पत्री में लिखे उपदेश के पालन के साथ: "...इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्‍पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो" (याकूब १:१९)। जिस धीमेपन की बात यहां करी जा रहा है वह अज्ञानता, भीतरी खोखलेपन, कायरता, लज्जा या दोषी होने के कारण होने वाली मूँह और बुद्धि की खामोशी नहीं है। यह वह खामोशी है जो परमेश्वर पर विचारमग्न रहने और उस पर ध्यान लगाए रखने से आई बुद्धिमानी द्वारा उत्पन्न होती है।

   हम से कई बार कहा जाता है कि बोलने से पहले ज़रा सा थम कर, विचार कर के, फिर बोलें। लेकिन मेरा मानना है कि उत्तर देने की प्रवृत्ति को इस स्तर से भी आगे ले जाकर, सदा परमेश्वर की सुनते रहें और उस पर निर्भर होकर उसके निर्देषों के अनुसार उत्तर देने को अपनी आदत बना लें। जब यह निर्भरता हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन जाएगी, तब हमारे सभी उत्तर भी बुद्धिमानी के उत्तर होंगे। - डेविड रोपर


परमेश्वर के लिए बोलने से पहले परमेश्वर की सुनने वाले बनें।

और मैं जानता हूं, कि उस की आज्ञा अनन्‍त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं। - यूहन्ना १२:५०

बाइबल पाठ: यूहन्ना ८:१-११
Joh 8:1  परन्‍तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया। 
Joh 8:2  और भोर को फिर मन्‍दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्‍हें उपदेश देने लगा। 
Joh 8:3   तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए, जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उस को बीच में खड़ी करके यीशु से कहा। 
Joh 8:4   हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है। 
Joh 8:5  व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्‍त्रियों को पत्थरवाह करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्‍या कहता है? 
Joh 8:6  उन्‍होंने उस को परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएं, परन्‍तु यीशु झुककर उंगली से भूमि पर लिखने लगा। 
Joh 8:7  जब वे उस से पूछते रहे, तो उस ने सीधे होकर उन से कहा, कि तुम में जो निष्‍पाप हो, वही पहिले उसको पत्थर मारे। 
Joh 8:8   और फिर झुककर भूमि पर उंगली से लिखने लगा। 
Joh 8:9  परन्‍तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई। 
Joh 8:10 यीशु ने सीधे होकर उस से कहा, हे नारी, वे कहां गए? क्‍या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी। 
Joh 8:11  उस ने कहा, हे प्रभु, किसी ने नहीं: यीशु ने कहा, मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन १२३-१२५ 
  • १ कुरिन्थियों १०:१-१८

सोमवार, 27 अगस्त 2012

निकट एवं दूर


   हमारे आंगन में सब शांत था। मैं आंगन में रखी मेज़ पर बैठी काम कर रही थी, मेरा पालतू कुत्ता मेरे निकट घास में लेट हुआ था। अचानक सूखे पत्तों में हुई सरसराहट की आवाज़ ने सब कुछ बदल डाला। कुत्ता लपक कर आवाज़ की ओर दौड़ा और शीघ्र ही एक पेड़ के चारों ओर चक्कर लगाने लगा जहां एक छोटा जीव अपनी जान बचाने के लिए थोड़ी ऊंचाई पर पेड़ से चिपका हुआ था। मैंने कुत्ते को पुकारा और वह मेरे पास आ तो गया, लेकिन उसकी आंखें उस पेड़ ही की ओर लगी हुई थीं। मेरे भरसक प्रयत्न के बावजूद वह मेरी ओर नहीं देख रहा था, उस पेड़ पर चिपके उस छोटे से जीव ने मेरे कुत्ते का पूरा ध्यान अपनी ओर खींच रखा था, और अब उसका सारा ध्यान मेरी ओर नहीं वरन उस जीव को पकड़ लेने पर ही था। शारीरिक रूप से वह मेरे निकट था परन्तु वास्तव में वह मुझ से दूर था क्योंकि उसका मन और चाह उस पेड़ पर चिपके जीव के साथ थीं, मेरे साथ नहीं।

   इस घटना ने मेरे विचार मेरे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के साथ मेरे संबंधों की ओर मोड़े; कितनी सरलता से मैं अन्य बातों में उलझकर अपना ध्यान अपने प्रभु से हटा लेती हूँ। चाहे वे प्रलोभन हों या ज़िम्मेदारियां, या फिर किसी चीज़ को पाने की लालसा हो या किसी आनन्द का मोह - ये सब उससे, जो मुझ से प्रेम करता है और सदा मेरा भला तथा मेरे लिए सर्वोत्तम ही चाहता है, मेरा ध्यान हटा सकने में सक्षम हैं। अपनी प्राथमिकताओं को सही और अपने ध्यान को अपने प्रभ यीशु की ओर लगाए रखने के लिए मुझे सदैव प्रयत्नशील रहना पड़ता है।

   एक ऐसे ही बंटे हुए ध्यान के रोग से प्रभु यीशु के समय के धार्मिक अगुवे भी ग्रसित थे (मत्ती १५:८-९)। वे परमेश्वर के मन्दिर में बने रहते थे, वहां सेवकाई करते थे और लोगों को परमेश्वर और उसके वचन की शिक्षाएं देते थे, उन्हें परमेश्वर के प्रति उनकी ज़िम्मेदारियां सिखाते थे, किंतु स्वयं उनके मन परमेश्वर से कोसों दूर थे।

   यही दशा आज हम मसीही विश्वासियों की भी हो सकती है। हम भी चर्च जाने, लोगों को सिखाने, परमेश्वर के नाम से कई कार्यों में अपने आप को लगाए रखने वाले तो हो सकते हैं, और यह मानते हुए चल सकते हैं कि हम परमेश्वर के निकट हैं; किंतु हमारे मनों की अशांति और जीवन में रहने वाली बेचैनी दिखाती है कि वास्तव में हम उससे दूर हैं। यदि हमारा ध्यान हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु पर लगातार बना हुआ नहीं है तो यह सब हमारे लिए व्यर्थ कार्य हैं जिनसे ना हमें और ना दूसरों को कोई शांति या लाभ मिलेगा। जब हम अपने ध्यान व्यर्थ बातों और लालसाओं से हटा कर अपने प्रभु की ओर देखना आरंभ करेंगे और उस ही पर केंद्रित करेंगे, तब ही प्रभु यीशु हमारे मनों को एक नए उत्साह से भर कर परमेश्वर से हूई हमारी दूरी को वास्तविक निकटता में बदल सकेगा।

   यदि आज आप परमेश्वर के निकट होने के अपने प्रयासों के बावजूद भी परमेश्वर से दूर हैं, तो प्रभु यीशु की ओर देखना आरंभ कीजिए। इस दूरी को पाटने का वो ही एकमात्र रास्ता है। - जूली ऐकैरमैन लिंक


जब प्रभु यीशु हमारे जीवनों का केंद्र बिंदु होता है, अन्य सब कुछ स्वतः ही सही परिपेक्ष में आ जाता है।

मेरी आंखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला। - भजन ११९:३७

बाइबल पाठ: मत्ती १५:७-२०
Mat 15:7  हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की। 
Mat 15:8  कि ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है। 
Mat 15:9  और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्‍योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं। 
Mat 15:10   और उस ने लोगों को अपने पास बुलाकर उन से कहा, सुनो और समझो। 
Mat 15:11   जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 
Mat 15:12  तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्‍या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई? 
Mat 15:13  उस ने उत्तर दिया, हर पौधा जो मेरे स्‍वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा। 
Mat 15:14  उन को जाने दो; वे अन्‍धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और अन्‍धा यदि अन्‍धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे। 
Mat 15:15  यह सुनकर, पतरस ने उस से कहा, यह दृष्‍टान्‍त हमें समझा दे। 
Mat 15:16  उस ने कहा, क्‍या तुम भी अब तक ना समझ हो? 
Mat 15:17  क्‍या नहीं समझते, कि जो कुछ मुंह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और सण्‍डास में निकल जाता है; 
Mat 15:18   पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 
Mat 15:19  क्‍योंकि कुचिन्‍ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्‍दा मन ही से निकलती है। 
Mat 15:20  यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्‍तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन १२०-१२२ 
  • १ कुरिन्थियों ९

रविवार, 26 अगस्त 2012

बुज़ुर्ग या बेहतर?


   हम जानने लगते हैं कि हम उम्र में बढ़ रहे हैं जब हम कहना आरंभ कर देते हैं कि, "क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि ये व्यावासायिक खिलाड़ी कितनी कम उम्र के हैं?" और बुज़ुर्ग होने का यह निश्चित चिन्ह है जब आप अपने किसी हम-उम्र मित्र से मिलने पर उससे यह नहीं पूछते, "कैसे हो?" परन्तु, जैसे उसे देखकर अचरज हुआ हो, उस से कहते हैं, "अरे तुम तो बड़े अच्छे और स्वस्थ दिख रहे हो!"

   उम्र में बढ़ना अवश्यंभावी है, इसे टाला या रोका नहीं जा सकता। दुर्भाग्यवश हमारा समाज हमें इसे छुपाना और इससे भयभीत रहना सिखाता है। परन्तु उम्र में बढ़ना मसीही विश्वासियों के लिए अद्भुत बात है और और उनके बेहतर होते जाने का समय भी। जैसे प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखा : "इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्‍व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्‍व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है" (२ कुरिन्थियों ४:१६)।

   जैसे कि शारीरिक चिन्ह प्रगट करते हैं कि हम उम्र में बढ़ रहे हैं, वैसे ही कुछ बातें प्रगट करती हैं कि हम बेहतर हो रहे हैं। बजाए इसके कि उम्र के साथ साथ वे अधिक चिड़चिड़ाने और खिसियाने वाले बनें, या असहनशील होते जाएं, या लोगों से प्रेमपूर्ण व्यवाहार छोड़ दें, एक प्रौढ़ मसीही विश्वासी क्षमा करने, दूसरों की चिंता और देखभाल करने तथा प्रेमपूर्ण व्यवाहार प्रदर्शित करने में और बेहतर होता जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके लिए बढ़ती उम्र अपने उद्धारकर्ता प्रभु यीशु की समानता में बढ़ते जाने की जीवन यात्रा का एक भाग ही है। इसका तात्पर्य है कि मसीही विश्वासियों के लिए समय के साथ साथ मसीह की समानता में अपने मन और अपनी प्रवृत्तियों को ढालते जाना एक स्वाभाविक बात है और उनके जीवन मसीह के चरित्र और दिल जीत लेने वाले स्वभाव को अधिकाधिक प्रतिबिंबित करते रहते हैं।

   इसलिए आइये, उम्र बढ़ने के साथ मसीह की समानता में और अधिक ढलने के अवसर का और भी अधिक लाभ उठाएं। तब हमारे मित्र तथा आस-पास वाले पहचानेंगे कि हम बुज़ुर्ग नहीं बेहतर होते जा रहे हैं। - जो स्टोवैल


मसीह के अनुयायी होने के कारण केवल बुज़ुर्ग ही ना हों, वरन साथ ही बेहतर भी होते जाएं।

इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्‍व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्‍व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। - २ कुरिन्थियों ४:१६

बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ४:१६-१८
2Co 4:16  इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्‍व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्‍व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। 
2Co 4:17  क्‍योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्‍लेश हमारे लिये बहुत ही महत्‍वपूर्ण और अनन्‍त जीवन महिमा उत्‍पन्न करता जाता है। 
2Co 4:18  और हम तो देखी हुई वस्‍तुओं को नहीं परन्‍तु अनदेखी वस्‍तुओं को देखते रहते हैं, क्‍योंकि देखी हुई वस्‍तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्‍तु अनदेखी वस्‍तुएं सदा बनी रहती हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन ११९:८९-१७६ 
  • १ कुरिन्थियों ८

शनिवार, 25 अगस्त 2012

अभिलाषाएं


   डायना और डेव को, जब दिन गर्म हो और सूर्य चमक रहा हो तो अपनी स्की पर झील में पानी के ऊपर इधर से उधर विचरण करना अच्छा लगता है। एक सुबह जब मौसम थोड़ा ठंडा था और बादल भी थे तो डायना डेव को स्कीइंग के लिए मना नहीं सकी, इसलिए उसने अकेले ही स्कीइंग करने की ठान ली। स्कीइंग करना आरंभ करने पर उसे पता चला कि वहां झील के पानी के ऊपर बहुत ठंडा था और वह कुछ गर्मी पाने के लिए बादलों की छाया के बीच यहां-वहां चमकते सूर्य के स्थानों के पीछे स्की लेकर भागती रही, किंतु जब तक वह उस स्थान पर पहुँचती, बादल वहां भी छाया कर देते और उसे फिर से कोई ऐसा स्थान ढूंढना पड़ता जहां सूर्य चमक रहा हो। कुछ देर के बाद उसे अपने इन प्रयासों की व्यर्थता का एहसास हुआ और वह पानी से बाहर आ गई, क्योंकि जिस आनन्द की उसे अभिलाषा थी वह उसे नहीं मिला।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में हम पाते हैं राजा सुलेमान ने एक अन्य प्रकार से संतुष्टि पाने के लिए अभिलाषाओं का पीछा किया (सभोपदेशक २:१)। सभोपदेशक पुस्तक के दूसरे अध्याय के पहले ११ पदों में ही सुलेमान बताता है कि उसने संतुष्टि पाने के लिए जिन अभिलाषाओं का पीछा किया वे थीं आनन्द, विनोद, मदिरा, बुद्धि, मकान, बाग़-बग़ीचे, धन, संपत्ति, संगीत, वासना और हर प्रकार की इच्छापूर्ति। इन सब का पीछा करने और भोगने के बाद उसका निष्कर्ष था, "तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं" (सभोपदेशक २:११)। सुलेमान अपनी इस पुस्तक का आरंभ करता है सांसारिक अभिलाषाओं की व्यर्थता को बताने से, "उपदेशक का यह वचन है, कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है" (सभोपदेशक १:२) और इस पुस्तक के अन्त में उसका बुद्धिमतापूर्ण निष्कर्ष था, "सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा" (सभोपदेशक १२:१३, १४)।

   कहीं आप भी उन ही अभिलाषाओं के पीछे तो नहीं भाग रहे हैं जिनके पीछे राजा सुलेमान था? यदि हां, तो जान लीजिए कि यह एक व्यर्थ प्रयास है। सच्ची संतुष्टि अभिलाषाओं के पीछे भागने से नहीं केवल एकमात्र सच्चे परमेश्वर प्रभु यीशु को जानने और उसकी आज्ञाकरिता में रहने से मिलती है। व्यर्थ अभिलाषाओं के पीछे अपना जीवन व्यर्थ मत कीजिए; परमेश्वर के वचन बाइबल और उन के अनुभवों से सीखिए जो इस मार्ग पर चलकर देख चुके हैं। - ऐने सेटास


केवल परमेश्वर ही एक खाली हृदय को भर सकता है।

तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं। - सभोपदेशक २:११

बाइबल पाठ: सभोपदेशक २:१-११
Ecc 2:1  मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। 
Ecc 2:2  मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है? 
Ecc 2:3  मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को थामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे। 
Ecc 2:4  मैं ने बड़े बड़े काम किए; मैं ने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियां लगवाईं; 
Ecc 2:5  मैं ने अपने लिये बारियां और बाग लगावा लिए, और उन में भांति भांति के फलदाई वृक्ष लगाए। 
Ecc 2:6  मैं ने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिस में पौधे लगाए जाते थे। 
Ecc 2:7  मैं ने दास और दासियां मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए; और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में थे उन से कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मैं स्वामी था। 
Ecc 2:8  मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैं ने अपने लिये गवैयों और गाने वालियों को रखा, और बहुत सी कामिनियां भी, जिन से मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं।
Ecc 2:9  इस प्रकार मैं अपने से पहिले के सब यरूशलेमवासियों से अधिक महान और धनाढय हो गया; तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही। 
Ecc 2:10  और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला। 
Ecc 2:11  तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्र्म को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं।

एक साल में बाइबल: 

  • भजन ११९:१-८८ 
  • १ कुरिन्थियों ७:२०-४०

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

संतुष्टि


   एक कवि ने लिखा था: "मनुष्य स्वभाव ही से मूर्ख है। जब गर्म होता है तो उसे ठंडा चाहिए; जब ठंड होती है तो उसे गर्मी चाहिए। जो नहीं है, सदा ही बस वही चाहिए।" यह बात मानवीय स्वभाव का कितना सटीक चित्रण है।

   इसलिए जब हम परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रेरित पौलुस द्वारा फिलिप्पियों ४:११ में लिखी गई बात "यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्‍योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं" पढ़ते हैं तो अचरज के साथ यह कह उठना कि, "क्या यह संभव है?" स्वाभाविक ही है।

   पौलुस के लिए यह संभव था; फिलिप्पियों ४:१२-१३ जीवन के प्रति पौलुस के रवैये को बताता है: "मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।" परमेश्वर के साथ पौलुस का संबंध उसके पास सांसारिक बातों के होने या ना होने पर निर्भर नहीं था; उसकी संतुष्टि परिस्थितियों पर नहीं वरन उसके उद्धारकर्ता और प्रभु यीशु के साथ संबंध पर आधारित थी।

   पौलुस स्मरण दिलाता है कि संतुष्टि रातों-रात नहीं आ जाती; यह एक ऐसी बात है जो व्यक्तिगत अनुभव से समझी-सीखी जाती है। समय और अनुभवों के साथ जैसे जैसे परमेश्वर के साथ हमारा संबंध प्रगाढ़ और स्थिर होता जाता है, हम अपने आप पर कम और परमेश्वर पर अधिक भरोसा करना सीखते जाते हैं और फिर हमारी निर्भरता अपनी नहीं वरन उसकी सामर्थ पर हो जाती है। पौलुस यह बात जान चुका था, और इसीलिए वह अपनी हर परिस्थिति और आवश्यक्ता के लिए अपने प्रभु और उद्धारकर्ता पर निर्भर रहता था, उससे सामर्थ प्राप्त करता था।

   आज आपकी कोई भी परिस्थिति या आवश्यक्ता क्यों ना हो उद्धाकर्ता प्रभु यीशु पर विश्वास करने और प्रार्थना के द्वारा हर बात के लिए सामर्थ और संतुष्टि आपके लिए उपलब्ध है। - एल्बर्ट ली


हमें संतुष्टि भी वहीं से मिलती है जहां से उद्धार मिलता है - प्रभु यीशु से।

हर बात में धन्यवाद करो: क्‍योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्‍छा है। - १ थिस्सुलुनिकीयों

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों ४:४-१३
Php 4:4  प्रभु में सदा आनन्‍दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्‍दित रहो। 
Php 4:5   तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। 
Php 4:6  किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्‍तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। 
Php 4:7  तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षित रखेगी।
Php 4:8   निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्‍हीं पर ध्यान लगाया करो। 
Php 4:9   जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्‍हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्‍ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
Php 4:10  मैं प्रभु में बहुत आनन्‍दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्‍चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 
Php 4:11  यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्‍योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं। 
Php 4:12  मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 
Php 4:13   जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन ११६-११८
  • १ कुरिन्थियों ७:१-१९

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

बचपन से आरंभ


   हम लोग रात्रि के भोजन के लिए एकत्रित होकर बैठे ही थे, कि हमारी ३ वर्षीय पोती चिंतित स्वर में बोल उठी - "हमने अभी भोजन के लिए ध्न्यवाद की प्रार्थना नहीं करी है!" हमने देखा कि एक व्यक्ति ने बैठते ही कुछ खाना आरंभ कर दिया था, जो हमारी पोती के लिए अनहोना और परेशानी का कारण था; क्योंकि वह जानती थी कि परमेश्वर को धन्यवाद दिए बिना हम भोजन आरंभ नहीं करते।

   उसकी यह चिंता एक अच्छा संकेत था; इससे यह पता चल रहा था कि हमारी पोती में एक अच्छी आदत, जो उसने अपने जीवन के आरंभ से अपने परिवार में देखी और सीखी थी, घर करना आरंभ कर चुकी थी और यह उसके जीवन भर उसके साथ रहेगी। यह छोटी सी बात उसे अभी उसकी छोटी उम्र से ही प्रार्थना और परमेश्वर के धन्यवादी होने के महत्व को सीखने में सहायक है, जो आगे चलकर उसे जीवन कि कई जटिल परिस्थितियों में सहायता और शांति पाने का मार्ग होगा।

   आज के इस समय में जब हर बात में मसीही विश्वास का कड़ा विरोध संसार भर में हो रहा है, बच्चों को मसीही विश्वास की शिक्षाओं के साथ बड़ा करना सरल नहीं है। कई माता-पिता चिंतित रहते हैं कि कैसे बच्चों को अपने प्रभु पर विश्वास करना और उसके भय में जीना सिखाएं, कैसे परमेश्वर के प्रति सही रवैया उनके मनों में डालें। परमेश्वर के वचन बाइबल में नीतिवचन नामक पुस्तक इस में सहायक है। नीतिवचन की शिक्षाएं सिखातीं हैं माता-पिता द्वारा दिए गए श्रेष्ठ निर्देश इस बात की कुंजी हैं (नीतिवचन १:८)। वैसे तो ये बातें किसी भी उम्र में सीखी-सिखाई जा सकती हैं किंतु बचपन ही से माता-पिता द्वारा बच्चों को बुद्धि कि बात सुनने (नीतिवचन २:२), यत्न से समझ-बूझ प्राप्त करने (नीतिवचन २:३), परमेश्वर के भय को मानने (नीतिवचन २:५), माता-पिता की शिक्षाओं को स्मरण रखने (नीतिवचन ३:१), भले-बुरे को समझने की शिक्षाएं दी जानीं चाहिएं (नीतिवचन ४:१-४) जिससे आती उम्र में वे परमेश्वर की निकटता और उसके वचन कि आज्ञाकारिता में स्थिर खड़े रह सकें।

   यदि आपके पास बच्चे या नाती-पोते हैं उन्हें इन भली शिक्षाओं को सिखाना बचपन ही से आरंभ कर दीजिए। आज का बोया-सींचा हुआ अच्छा बीज कल उनके जीवन में भले फल लाएगा। - डेव ब्रैनन


आपके बच्चों के कल का चरित्र, उनके जीवनों में आज बोई गई बातों पर निर्भर करता है।

हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े,...तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा। नीतिवचन २:१,५

बाइबल पाठ: नीतिवचन २
Pro 2:1  हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़े, 
Pro 2:2  और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; 
Pro 2:3  और प्रवीणता और समझ के लिये अति यत्न से पुकारे, 
Pro 2:4  ओर उसको चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसी खोज में लगा रहे; 
Pro 2:5  तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा। 
Pro 2:6  क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं। 
Pro 2:7  वह सीधे लोगों के लिये खरी बुद्धि रख छोड़ता है; जो खराई से चलते हैं, उनके लिये वह ढाल ठहरता है। 
Pro 2:8  वह न्याय के पथों की देख भाल करता, और अपने भक्तों के मार्ग की रक्षा करता है। 
Pro 2:9  तब तू धर्म और न्याय, और सीधाई को, निदान सब भली-भली चाल समझ सकेगा; 
Pro 2:10  क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; 
Pro 2:11  विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा, और समझ तेरी रक्षक होगी; 
Pro 2:12  ताकि तुझे बुराई के मार्ग से, और उलट फेर की बातों के कहने वालों से बचाए, 
Pro 2:13  जो सीधाई के मार्ग को छोड़ देते हैं, ताकि अन्धेरे मार्ग में चलें; 
Pro 2:14  जो बुराई करने से आनन्दित होते हैं, और दुष्ट जन की उलट फेर की बातों में मगन रहते हैं; 
Pro 2:15  जिनकी चालचलन टेढ़ी मेढ़ी और जिनके मार्ग बिगड़े हुए हैं।
Pro 2:16  तब तू पराई स्त्री से भी बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है, 
Pro 2:17  और अपनी जवानी के साथी को छोड़ देती, और जो अपने परमेश्वर की वाचा को भूल जाती है।
Pro 2:18  उसका घर मृत्यु की ढलान पर है, और उसी डगरें मरे हुओं के बीच पहुंचाती हैं? 
Pro 2:19  जो उसके पास जाते हैं, उन में से कोई भी लौट कर नहीं आता, और न वे जीवन का मार्ग पाते हैं।
Pro 2:20  तू भले मनुष्यों के मार्ग में चल, और धमिर्यों की बाट को पकड़े रह। 
Pro 2:21  क्योंकि धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। 
Pro 2:22  दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन ११३-११५ 
  • १ कुरिन्थियों ६